Evening
Author:
NeerajPublisher:
Author'S Ink PublicationsLanguage:
EnglishCategory:
Literary-fiction1 Reviews
Price: ₹ 167.45
₹
197
Available
It is a story of an Indian boy--his innocent childhood, his fascinating family, his adventurous friendship, his adorable first crush, his struggles, his pain, and his journey to the ??? Let's keep it a suspense, shall we??? It is a touching story based on real life. and it gives its readers a meaningful experience. Nikhil is a small town boy, who is enjoying his childhood with his best friend, Akshay. He has a loving family and shares a special bond with his grandfather. As the kids grow up, they face their ups and downs, failure and success, pain and wisdom. It is a cute and fascinating story about childhood , friendship and love. It's a story about school life, and all the fun and drama associated with it. So, grab a copy and relive those innocent childhood moments! A good story leaves its readers with a beautiful experience, and justifies their effort of reading it. --- NEERAJ
ISBN: 9788194462118
Pages: 170
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
अस्सी की होने चली दादी ने विधवा होकर परिवार से पीठ कर खटिया पकड़ ली। परिवार उसे वापस अपने बीच खींचने में लगा। प्रेम, वैर, आपसी नोकझोंक में खदबदाता संयुक्त परिवार। दादी बज़िद कि अब नहीं उठूँगी।
फिर इन्हीं शब्दों की ध्वनि बदलकर हो जाती है अब तो नई ही उठूँगी। दादी उठती है। बिलकुल नई। नया बचपन, नई जवानी, सामाजिक वर्जनाओं-निषेधों से मुक्त, नए रिश्तों और नए तेवरों में पूर्ण स्वच्छन्द।
कथा लेखन की एक नई छटा है इस उपन्यास में। इसकी कथा, इसका कालक्रम, इसकी संवेदना, इसका कहन, सब अपने निराले अन्दाज़ में चलते हैं। हमारी चिर-परिचित हदों-सरहदों को नकारते लाँघते। जाना-पहचाना भी बिलकुल अनोखा और नया है यहाँ। इसका संसार परिचित भी है और जादुई भी, दोनों के अन्तर को मिटाता। काल भी यहाँ अपनी निरन्तरता में आता है। हर होना विगत के होनों को समेटे रहता है, और हर क्षण सुषुप्त सदियाँ। मसलन, वाघा बार्डर पर हर शाम होनेवाले आक्रामक हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी राष्ट्रवादी प्रदर्शन में ध्वनित होते हैं ‘क़त्लेआम के माज़ी से लौटे स्वर’, और संयुक्त परिवार के रोज़मर्रा में सिमटे रहते हैं काल के लम्बे साए।
और सरहदें भी हैं जिन्हें लाँघकर यह कृति अनूठी बन जाती है, जैसे स्त्री और पुरुष, युवक और बूढ़ा, तन व मन, प्यार और द्वेष, सोना और जागना, संयुक्त और एकल परिवार, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान, मानव और अन्य जीव-जन्तु (अकारण नहीं कि यह कहानी कई बार तितली या कौवे या तीतर या सड़क या पुश्तैनी दरवाज़े की आवाज़ में बयान होती है) या गद्य और काव्य : ‘धम्म से आँसू गिरते हैं जैसे पत्थर। बरसात की बूँद।’
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