Santaronwali Ladki
Author:
Jostein GaarderPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 156
₹
195
Unavailable
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ISBN: 9788126712861
Pages: 184
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘रेहन पर रग्घू’ प्रख्यात कथाकार काशीनाथ सिंह की रचना-यात्रा का नव्य शिखर है। भूमंडलीकरण के परिणामस्वरूप संवेदना, सम्बन्ध और सामूहिकता की दुनिया में जो निर्मम ध्वंस हुआ है — तब्दीलियों का जो तूफान निर्मित हुआ है — उसका प्रामाणिक और गहन अंकन है ‘रेहन पर रग्घू’। यह उपन्यास वस्तुतः गाँव, शहर, अमेरिका तक के भूगोल में फैला हुआ अकेले और निहत्थे पड़ते जा रहे समकालीन मनुष्य का बेजोड़ आख्यान है।
उपन्यास में केन्द्रीय पात्र रघुनाथ की व्यवस्थित और सफल ज़िन्दगी चल रही है। सब कुछ उनकी योजना और इच्छा के मुताबिक़। अचानक कुछ ऐसा घटित होता है कि उनके जीवन का अर्जित यथार्थ इतना महत्त्वाकांक्षी, आक्रामक, हिंस्र हो जाता है कि मनुष्यता की तमाम सारी आत्मीय, कोमल अच्छी चीजे़ं टूटने, बिखरने, बरबाद होने लगती हैं। इस महाबली आक्रान्ता के प्रतिरोध का जो रास्ता उपन्यास के अन्त में अख़्तियार किया गया, वह न केवल विलक्षण और अचूक है, बल्कि ‘रेहन पर रग्घू’ को यादगार व्यंजनाओं से भर देता है।
‘रेहन पर रग्घू‘ नए युग की वास्तविकता की बहुस्तरीय गाथा है। इसमें उपभोक्तावाद की क्रूरताओं का विखंडन है ही, साथ में शोषित-प्रताड़ित जातियों के सकारात्मक उभार और नई स्त्री की शक्ति एवं व्यथा का दक्ष चित्रांकन भी है। दरअसल ‘रेहन पर रग्घू’ में वास्तविकताओं, चरित्रों, लोकेल, उपकथाओं आदि का ऐसा सधा हुआ अकाट्य अन्तर्गुम्फन है कि उसे एक प्रौढ़ रचनात्मकता के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए। देशज सच्चाइयों, कल्पना, काव्यात्मकता, झीनी दार्शनिकता का सहमेल उपन्यास को मूल्यवान आभा से समृद्ध बनाता है।
—अखिलेश
Jali Kitab
- Author Name:
Krishna Kalpit
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‘जाली किताब’ अपने ढंग का पहला और अकेला उपन्यास है। इसमें आलोचना भी है और आलोचना की आलोचना भी। हिन्दी का इतिहास भी है। भारत देश के इतिहास की छवियाँ भी इसमें हैं, लोक और शास्त्र भी।
किताब पर किताब पर किताब—लेखक के अनुसार, यही इस उपन्यास का कथानक है। एक महाकाव्य लिखा गया ‘पृथ्वीराज रासो’। कुलीन विद्वानों ने उसे नितान्त साहित्येतर कारणों से जाली कह दिया। ‘रासो’ की प्रतिष्ठा को जनमानस में अखंड रखने के लिए ‘चंद छंद बरनन की महिमा’ नामक ग्रन्थ की रचना हुई जिसे खड़ी बोली गद्य की प्रथम कृति कहा जाता है। इसे भी विद्वज्जन ने जाली ठहरा दिया।
इन्हीं दोनों पुस्तकों को, जो अपनी अन्तर्वस्तु, कल्पनाशील रचनात्मकता और शिल्प के चलते आज भी बची हुई हैं, उक्त आरोपों से बरी करने के लिए यह किताब लिखी गई है, जो इससे पहले कि पंडित कुछ बोलें, ख़ुद ही ख़ुद को जाली कह रही है।
यह आलोचना होती, लेकिन उपन्यास हो गई। इसमें किताबें ही पात्र हैं और उन किताबों के पात्र भी यहाँ इसी के पात्र हैं। उन किताबों को लिखनेवाले भी इसके पात्र हैं, और इस किताब का लेखक ख़ुद भी।
इस किताब से गुज़रना एक बेहतरीन गद्य से गुज़रना है, उपन्यास की एक नई क़िस्म को जानना भी और हिन्दी साहित्येतिहास के कुछ अहम इलाक़ों की पुनर्यात्रा भी। पाठों, विधाओं और काल की सीमाओं का अतिक्रमण करती यह किताब कृष्ण कल्पित जैसी औघड़ मेधा से ही सम्भव थी।
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