Godhuli
Author:
Jagdish Prasad SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
“अनुराधा भी चाहती थी सुख-शान्ति का जीवन। लेकिन घर का माहौल इतना दूषित था कि वहाँ एक पल गुज़ारना नरक में जीने जैसा था। पिता जहाँ घर की नौकरानी की ‘सेवा’ का आकांक्षी थे, तो वहीं पिता द्वारा तिरस्कृत माँ दुनिया-जहान से दूर अपने पूजा-पाठ में लीन और दोनों भाइयों की उच्छृंखलता सीमाओं का अतिक्रमण करने को उद्धत। ऐसे में अनुराधा चली आती है देवल, और वहीं एक कॉलेज के हॉस्टल में रहकर शिक्षा ग्रहण करने लगती है। वहीं एक सहेली के माध्यम से उसकी भेंट एक राजनेता से होती है। नेता उसके जीवन में क्या आता है, उसकी जीवनधारा ही बदलकर रह जाती है। और फिर रह जाती है वह लुटी-पिटी, ठगी-सी।” जगदीश प्रसाद सिंह का एक विचारोत्तेजक उपन्यास है—गोधूलि।</p>
<p>लेखक ने अपने इस उपन्यास के माध्यम से महिलाओं के उत्पीड़न के साथ जहाँ सामाजिक ताने-बाने की टूटन को उजागर किया है, वहीं कालाबाज़ारियों, भ्रष्टाचारियों, अपराधियों, आतंकवादियों को प्रश्रय देनेवाले तथाकथित नेताओं की कारगुजारियों पर भी रोशनी डाली है कि किस तरह वे अपनी कुत्सित भावनाओं को तरजीह देने के पीछे देश तक को बेच देने पर उतारू हैं।
ISBN: 9788126715756
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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बात दरअसल उस बरस भर की नहीं है। उस बरस को हम आज में भी घसीट लाए हैं। न ही बात है सिर्फ़ हमारे शहर की। ‘और शहरों जैसा ही है हमारा शहर’—सुलगता, खदकता—‘स्रोत और प्रतिबिम्ब दोनों ही’ मौजूदा स्थिति का। एक आततायी आपातस्थिति, जिसका हल फ़ौरन ढूँढ़ना है; पर स्थिति समझ में आए, तब न निकले हल। पुरानी धारणाएँ फिट बैठती नहीं, नई सूझती नहीं, वक़्त है नहीं कि जब सूझें, तब उन्हें लागू करके जूझें स्थिति से। न जाने क्या से क्या हो जाए तब तक। वे संगीनें जो दूर हैं उधर, उन पर मुड़ीं, वे हम पर भी न मुड़ जाएँ, वह धूल-धुआँ जो उधर भरा है, इधर भी न मुड़ आए।
अभी भी जो समझ रहे हैं कि दंगे उधर हैं—दूर, उस पार, उन लोगों में—पाते हैं कि ‘उधर’ ‘इधर’ बढ़ आया है, ‘वे’ लोग ‘हम’ लोग भी हैं, और इधर-उधर वे-हम करके ख़ुद को झूठी तसल्ली नहीं दी जा सकती। दंगे जहाँ हो रहे हैं, वहाँ ख़ून बह रहा है। सो, यहाँ भी बह रहा है, हमारी खाल के नीचे।
अपनी ही खाल के नीचे छिड़े दंगे से दरपेश होने की कोशिश ही इस गाथा का मूल। ख़ुद को चीरफाड़ के लिए वैज्ञानिक की मेज़ पर धर देने जैसा। अपने को नंगा करने का प्रयास ही अपने शहर को समझने, उसके प्रवाहों को मोड़ देने की एकमात्र शुरुआत हो सकती है। यही शुरुआत एक ज़बरदस्त प्रयोग द्वारा गीतांजलि श्री ने ‘हमारा शहर उस बरस’ में की है। जान न पाने की बढ़ती बेबसी के बीच जानने की तरफ़ ले जाते हुए।
Chhaila Sandu
- Author Name:
Mangal Singh Munda
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Description:
छैला सन्दु आदिवासी समाज का एक अप्रतिम नायक है। इतिहास उसके बारे में मौन है लेकिन सन्दु और बुन्दी की प्रेमकथा मुण्डा समाज की सर्वाधिक लोकप्रिय जनश्रुतियों में से एक है। उसको सुनते-सुनाते हुए मुण्डा जन आज भी रोमांचित हो उठते हैं।
प्रकृति का अन्यतम प्रेमी छैला संगीत का असाधारण साधक भी था। उसका बाँसुरीवादन किसी को भी अवश करने में सक्षम था। बाँसुरी से उसका लगाव लोक स्मृति में इतना गहरे रचा-बसा है कि मुण्डाजन साँवले रंग, छरहरे शरीर और मानवीय गुणों से भरपूर व्यक्तित्व वाले छैला को कृष्ण का अवतार मानते हैं।
इसी छैला सन्दु की कथा इस उपन्यास में कही गई है। बुन्दी के प्रेम में पड़ना, उसके जीवन में निर्णायक साबित होता है। बुन्दी भी उसे प्रेम करने लगती है। उस पर बुन्दी को भगाने का आरोप लगता ळै। बुन्दी के पिता अपनी पुत्री की तलाश करते हुए छैला की बस्ती को उजाड़ देते हैं। अपने प्रेम के लिए छैला कोई भी कष्ट उठाने से पीछे नहीं हटता। वह बुन्दी के भविष्य के लिए अपने जीवन का उत्सर्ग करने से भी नहीं हिचकिचाता।
Kathghare
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Ballabh Sidharth
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Description:
“जब कभी अपनी अजीबोग़रीब हरकतों के पीछे अपने अन्तश्चेतन की प्रेरणाओं को एक कोलाज में रखकर देखता हूँ तो एक अजीब-सा चित्र बनता है मेरे व्यक्ति का। सिर से जानवर। धड़ से मनुष्य जैसा। सुअर मानव।...वाराह अवतार। बस इसमें से अवतार की दिव्यता हटा दें। गले तक कटीले, आशाओं और कामनाओं से भरी जीवन की अपनी चिथड़ा-चिथड़ा हुई गठरी को सँभाले। अपनी इसी गर्हित भूमिका में अपनी सार्थकता और मुक्ति की तलाश करता हुआ...”
—इसी उपन्यास से।
बाहर से एक छोटी-सी जीवन स्थिति लेकिन गहरे में कितने-कितने द्वन्द्वों, तनावों, समझौतों की दुनिया जिसमें हर व्यक्ति पल-प्रतिपल टूट रहा है, ढह रहा है...फिर भी अपने को बचाए रखने की कोशिश-दर-कोशिश किए जा रहा है। भ्रष्ट और जर्जर आदमी के ढाँचे में मनुष्यता की दीप्ति जलती हुई। इसलिए आशा अब भी है!
बल्लभ सिद्दार्थ ने इस छोटे-से उपन्यास को लिखने में दस से ज़्यादा वर्ष लगाए हैं। पात्र गिने-चुने हैं पर प्रत्येक के भीतर कितना विशाल संसार...कहानी छोटी-सी—गिने-चुने लोगों का जीवन-संघर्ष, पर ज्यों-ज्यों वह खुलता है, आधुनिक भारतीय समाज की हज़ारों विसंगतियों को उकेरता है...और सब कुछ लेखक की कलात्मक छुअन से—जहाँ फैलाकर कुछ नहीं कहा जाता, इशारा-भर कर दिया जाता है।
अगर साहित्य ज़िन्दा रहने की ताक़त पाने के लिए पढ़ा जाता है तो ‘कठघरे’ एक उम्दा मिसाल है, जिसकी जीवन-दर्शन से भरी कितनी पंक्तियों को संचित किया जा सकता है, उनसे लटककर जीवन काटा जा सकता है।
And Tomorrow Comes Another Day
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Thashneem Sunil
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- Description: How does a lady feel when her wedded life breaks into pieces and she gets raped by her mother-in-law in-law. What does she look like the future starting there? Won't life go blank and turn into a question mark? This lady was dhiani, a rape victim. Same way what happens when a man comes to realize that his wife is a call girl? This was phani who adored his life partner to the core. Dhiani over looked everything. She turned out to be more grounded after all this and particularly when her parents never trusted her and deserted her. Starting there she saw how to live without contingent upon somebody. Later at a point, phani and dhiani fell in love with each other. It was phani, who was a consistent backing for her. Life is simple, it has numerous today's and every today has a tomorrow and each tomorrow we have an issue sitting tight for us to handle it. Same way, This story spins around dhiani and phani who face different difficulties in their day - to-day lives to withhold a relationship. They change their difficulties into circumstances which made them feel more certain. They gathered all the lessons what life gave them and that helped them to bolster Shruthi, their closest companion and sheetal's dhiani's sister.
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