Huckulburry Finn
Author:
Mark TwainPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
विश्व साहित्य के महान उपन्यासों को किशारों के लिए संक्षिप्त-रूपान्तरित संस्करणों की शृंखला में यह मार्क ट्वेन के प्रसिद्ध उपन्यास ‘द एडवेंचर्स ऑफ़ हकलबरी फ़िन’ का रूपान्तरण है। 1884 में प्रकाशित यह उपन्यास अपने रंगभेद-विरोध तथा भाषा-प्रयोगों के लिए कुछ लोगों की आलोचना का निशाना भी बना<strong>, </strong>लेकिन इसे मार्क ट्वेन की श्रेष्ठतम रचनाओं में एक माना जाता है।</p>
<p>उपन्यास की कहानी के केन्द्र में हकलबरी फ़िन नाम का एक किशोर है जिसे उसके दोस्त हक कहते हैं। नशेड़ी पिता द्वारा पाला गया हक अपने दोस्त जिम<strong>, </strong>जो एक ग़ुलाम है<strong>, </strong>के साथ मिसिसिपी नदी की रोमांचक यात्रा पर निकल जाता है। समाज के बन्धन उसे नहीं भाते। प्राकृतिक और सभ्य जीवन-शैली के बीच उसका रुझान प्राकृतिक की ओर है।</p>
<p>मिसिसिपी नदी की यात्रा के दौरान वह जीवन के अनेक सबक़ सीखता है और धीरे-धीरे उसका व्यक्तित्व भी निखरता जाता है। रंगभेद और 19वीं सदी के सभ्य अमेरिकी समाज के दोहरे चरित्र पर तीखी दृष्टि डालनेवाले इस उपन्यास को बाल साहित्य की धारा को एक नए स्तर पर ले जानेवाली रचना कहा जाता है।
ISBN: 9788183613613
Pages: 88
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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आधुनिक इतिहास में यदि किसी विचारक-लेखक की ख्याति उसकी ज़िन्दगी में ही पूरी दुनिया में फैल चुकी थी और जीते-जी ही वह एक मिथक बन गया था, तो वे लेव तोल्स्तोय ही थे। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के साहित्यिक परिदृश्य पर जिस तरह बाल्ज़ाक छाए हुए थे, उसी तरह उत्तरार्द्ध के साहित्यिक परिदृश्य पर तोल्स्तोय का प्रभाव-साम्राज्य फैला हुआ था।
‘पुनरुत्थान’ एक नए प्रकार का उपन्यास था जिसमें पात्रों के गहन आत्मसंघर्ष और रूपान्तरण के साथ ही, सेंट पीटर्सबर्ग के दरबार के लोगों और ग्रामीण कुलीनों से लेकर किसानों, क़ैदियों और साइबेरिया-निर्वासन पर जा रहे क़ैदियों के चरित्रों के माध्यम से तत्कालीन रूस के समूचे वैविध्यपूर्ण सामाजिक परिदृश्य को एक इतिहासकार-सदृश वस्तुपरकता और अधिकार के साथ उपस्थित कर दिया गया है। कात्यूशा का मुक़दमा और उसमें जूरी सदस्य के रूप में नेख्लूदोव की उपस्थिति सामाजिक अन्याय पर आधारित जीवन की निरर्थकता और न्यायतंत्र की कुरूपता को एकदम नंगा कर देती है।
‘पुनरुत्थान’ में तोल्स्तोय सरकार, न्यायालय, चर्च, कुलीन भूस्वामियों के विशेषाधिकारियों, भूमि के निजी स्वामित्व, मुद्रा, जेलों और वेश्यावृत्ति की मर्मभेदी आलोचना करते हैं। घनी और शक्तिशाली लोगों द्वारा उत्पीड़ित निम्न वर्गों के प्रति सहानुभूति-प्रदर्शन पर उपन्यास तीखा व्यंग्य करता है। किसानों, क्रान्तिकारियों और निर्वासित अपराधियों सहित सामान्य जनसमुदाय का चित्रण करते हुए तोल्स्तोय का ज़ोर इस बात पर है कि उत्पीड़न और अधिकारहीनता ने आमजन की आत्मिक शक्तियों को पंगु बना डाला है।
Ration Card Ka Dukh
- Author Name:
Jugnu Shardey
- Book Type:

- Description: "एक युग से आँसुओं, नारों, माँगों और फोटू कमेटी की बरसात हो रही थी। कल गरमी के बावजूद संसद् के एयरकंडीशन से कलेजे में ठंडक लिये वैसे ही मुसकराई देश की संसदीय महिलाएँ, जैसे कभी मुसकराती थीं टूथपेस्ट बेचनेवाली महिलाएँ। आखिर पेश हो गया राज्यसभा में संविधान संशोधन 108वाँ विधेयक। इसमें संसद् और विधानसभा में आबादी के 50 प्रतिशत को 33 प्रतिशत रिजर्वेशन मिल सकेगा। चाणक्य कहते हैं, कहते हैं या नहीं पता नहीं, क्योंकि स्तंभकार ने चाणक्य का अर्थशास्त्र नहीं पढ़ा है, लेकिन छोटी बात को बड़ी बनाने के लिए बड़े लोगों का नाम लेना चाहिए। इसीलिए चाणक्य कहते हैं कि कुछ भी लिखने के पहले सोचसमझ लेना चाहिए। सोचसमझ के लेखन का मतलब होता है कि लिखने के पहले सोचा ही न जाए। जन्म बीत जाए सोचतेसोचते। लेखन तो बस साप्ताहिक मुद्रास्फीति लेखन है कि बस प्रतिशत बढ़ाते या घटाते जाना लिखना भर होता है। फिर भी इस स्तंभकार ने बाकायदा खोजबीन की। ब्रेकिंगन्यूज के बकवासी खतरों और टीवीयाना बहसों की सिरदर्द के बावजूद खबरिया चैनलों को देख गया। रंगीन विज्ञापनों से भरे अगरमगरलेकिनपरंतु वाले प्रिंट मीडिया को पढ़कर चश्मे का नंबर बढ़ गया। इंटरनेटीय सर्च इंजनों को झाँक गया, जहाँ एक विषय पर लाखों भड़ासी जानकारियाँ होती हैं। तब जाकर समझ में आया कि शोधअनुसंधान के लिए विषय का होना जरूरी होता है। अब तक सारी खोजबीन बिना विषय के हो रही थी। विषय भी तय कर लिया गया—देश और गांधीजी के तीन बंदर का व्यावहारिक संबंध।"
Road Trip: Ahmedabad to Asha Guest House
- Author Name:
Meghasi Bhatt
- Book Type:


- Description: Manini is busy with her routine life when her cousin Reema asks her to accompany her on a road trip from their hometown Ahmedabad to Manali. Manini accepts her cousin’s invitation, looking forward to a break from her daily routine. She also invites two of her friends Viha and Khushi to join them. The four women embark on their road trip, unfamiliar with each other, unknown to the many adventures awaiting them. However, differences crop up between Reema and Khushi as soon as they lay eyes on each other, both being very different personalities. Moreover, all four women are struggling with significant personal issues and troubles which they initially try to conceal from the others. Will they be able to have a fruitful and enjoyable vacation? Will all four women manage to overcome their personal difficulties and find contentment and happiness? With the emotional baggage they are carrying with them, stop them from opening up their hearts to new experiences, new friends and new lives?
Khuda Sahi Salamat Hai
- Author Name:
Ravindra Kaliya
- Book Type:

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Description:
अगर ‘झूठा सच’ बँटवारे का ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, तो बँटवारे के बावजूद भारत में हिन्दू-मुस्लिम जनता के सहजीवन का मार्मिक उद्घाटन ‘ख़ुदा सही सलामत है’ में सम्भव हुआ है। हजरी, अज़ीज़न, गुलबदन, शर्मा, सिद्दीकी, पंडित, पंडिताइन, गुलाबदेई, लतीफ़, हसीना, उमा, लक्ष्मीधर, ख़्वाजा और प्रेम जौनपुरी जैसे जीवन्त और गतिशील पात्र अपनी तमाम इनसानी ताक़त और कमज़ोरियों के साथ हमें अपने परिवेश का हिस्सा बना लेते हैं। शर्मा और गुल का प्रेम इन दो धाराओं के मिश्रण को पूर्णता तक पहुँचाने को है कि साम्प्रदायिकता की आड़ लेकर रंग-बिरंगे निहित स्वार्थ उनके आड़े आ जाते हैं। जैसे प्रेम क़ुर्बानी माँगता है, वैसे ही महान सामाजिक उद्देश्य भी। यह उपन्यास अन्तत: इसी सत्य को रेखांकित करता है।
साम्प्रदायिकता के अलावा यह उपन्यास नारी-प्रश्न पर भी गहराई से विचार करता है। इसके महिला पात्र भेदभाव करनेवाली पुरुष मानसिकता की सारी गन्दगी का सामना करने के बावजूद अन्त तक अविचलित रहते हैं। अपनी समस्त मानवीय दुर्बलताओं के साथ चित्रित होने के बावजूद एक क्षण को भी ऐसा नहीं लगता कि उन्हें उनके न्यायोचित मार्ग से हटाया जा सकता है। उत्तर मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की वारिस, तवायफ़ों के माध्यम से आनेवाली यह व्यक्तित्व सम्पन्नता काफ़ी मानीखेज़ है। यह हमें याद दिलाती है कि औपनिवेशिक आधुनिकता की आत्महीन राह पर चलते हुए हम अपना क्या कुछ गँवा चुके हैं।
1980 के दशक में हमारे शासकवर्ग ने साम्प्रदायिक मसलों को हवा देने का जो रवैया अपनाया था, वह ज़मीनी स्तर पर कैसे दोनों सम्प्रदायों के निहित स्वार्थों को खुलकर खेलने के नए-नए मौक़े मुहैया करा रहा था, और भारत की संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता इस घिनौने खेल को बन्द करनेवाला नहीं, इसे ढकने-तोपने वाला परदा बनी हुई थी, इसकी पड़ताल भी इस उपन्यास में आद्यन्त निहित है। आज़ाद भारत में ग़ैरमुस्लिम कथाकारों के यहाँ मुस्लिम समाज की बहुश्रुत अनुपस्थिति के बीच यह उपन्यास एक सुखद और आशाजनक अपवाद की तरह हमारे सामने है। अपनी इन्हीं ख़ूबियों के कारण यह उपन्यास ‘आग का दरिया’, ‘उदास नस्लें’, ‘झूठा सच’ और ‘आधा गाँव’ की परम्परा की अगली कड़ी साबित होता है।
—कृष्णमोहन
PT. RAJENDRA ARUN : RAM KAAJ KARIBE KO AATUR
- Author Name:
Dr. Vinod Bala Arun
- Book Type:

- Description: "मॉरीशस के हिंदू समाज के मन में श्री राजेंद्र अरुण के प्रति अत्यंत स्नेह, सम्मान और आत्मीय भाव है। सन् 1974 में वे प्रधानमंत्री सर शिवसागर रामगुलाम के साप्ताहिक पत्र ‘जनता’ के प्रबंध संपादक बने। सन् 1982 में उनके जीवन में एक नया मोड़ आया। एम.बी.सी. रेडियो पर उन्होंने रामायण की व्याख्या पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम ‘मंथन’ आरंभ किया। लोगों ने इसे खूब सराहा। यह कार्यक्रम अब तक ‘मानस मंथन’ नाम से जारी है। उनके रेडियो कार्यक्रम की लोकप्रियता से ‘रामकथा’ का आरंभ हुआ। सन् 2000 के लगभग से श्री अरुणजी के मन में यह विचार आने लगा कि एक संस्था बनाकर रामकथा का विश्व स्तर पर प्रचार-प्रसार करें। सन् 2001 में उनके इस विचार को ‘रामायण सेंटर’ की स्थापना के साथ ठोस आधार प्राप्त हुआ। जन-मन के हृदय में रामायण गुरु के रूप में प्रतिष्ठित पं. राजेंद्र अरुण के 70वें जन्मदिन पर उन्हें उपहार रूप में भेंट करने के लिए इस पुस्तक के प्रकाशन का विचार हमारे मन में आया। इस पुस्तक में आत्मीय जनों द्वारा अरुणजी पर लिखे गए लेख, अरुणजी द्वारा लिखी गई कविताएँ, उनके चित्र, पत्र-पत्रिकाएँ जिनमें उन पर या उनका कुछ प्रकाशित है, ‘जनता’ समाचार-पत्र की कुछ कतरनें और उनकी कुछ पुस्तकों के अंश तथा एक लंबा साक्षात्कार और अरुणजी को प्राप्त कुछ सम्मान और पुरस्कार आदि संकलित हैं। ‘मॉरीशस के तुलसी’ पं. राजेंद्र अरुण के जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व के सम्यक् रूप का दिग्दर्शन करानेवाला संपूर्ण ग्रंथ। "
Alfa-Bita-Gama
- Author Name:
Nasera Sharma
- Book Type:

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Description:
‘अल्फ़ा-बीटा-गामा’ एक ऐसे विषय को लेकर सभ्य, महानगरीय समाज की निर्दयताओं और अक्षम्य अमानवीयताओं को उजागर करता है जिसकी तरफ़ लिखित शब्दों का ध्यान अकसर नहीं जाता, वह भी इतने बड़े पैमाने पर कि उपन्यास हो जाए।
यह उपन्यास मनुष्य की आत्मग्रस्तता को कभी कुत्तों की आँखों से दिखाता है, कभी उन कुछ जनों की आँखों से जो अपने सीमित साधनों के साथ, और अपने आस-पड़ोस का विरोध झेलकर उन असहाय जीवों के लिए कुछ करना चाहते हैं। आख़िर यह कैसे होता है कि संस्कृति और धर्म के धनी जिस भारतीय समाज में पत्थरों के साथ भी जीवित की तरह बर्ताव कर लिया जाता है, इन सजीवों के लिए सहानुभूति का संस्कार हम ख़ुद को और अपनी सन्तानों को नहीं दे पाते!
भारतीय कुत्तों की अनेक प्रजातियों के गहरे अध्ययन, उनके व्यवहार की गहरी जानकारी के साथ नासिरा जी इस उपन्यास में नागर क्रूरताओं की दैनिक और शाश्वत कथा कहते हुए हमारे मौजूदा समय तक आती हैं जहाँ कोरोना है, और लॉकडाउन है। लॉकडाउन जिसके शिकार अनेक लोग हुए और उसी अनुपात में वे कुत्ते भी जो सार्वजनिक स्थलों, दुकानों, होटलों आदि के बन्द हो जाने के बाद न सिर्फ़ भूखे, बल्कि अकेले भी पड़ गए। लाखों मज़दूरों के पलायन और उससे पहले हुए दिल्ली दंगों की विभीषिका के मद्देनजर उपन्यास कुत्तों की पीड़ा को मानवीय भाषा में समझाने का प्रयास करता है, और चाहता है कि हमारी संवेदना की पहुँच हमारे बन्द दरवाज़ों के बाहर तक हो।
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