
Ghungroo
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
184
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
368 mins
Book Description
श्रीमती शान्ति कुमारी बाजपेयी का उपन्यास ‘घुँघरू’ अर्द्धनारीश्वर की वाङ्मयी साधना में अर्पित एक पुष्प है। प्रकृति ने मानव को स्त्री और पुरुष—दो रूपों में अभिव्यक्ति दी है। इन दोनों स्वरूपों की क्षमताएँ, कार्यपद्धति और उपलब्धियाँ भिन्न-भिन्न हैं। परन्तु वे एक साथ मिलकर ही परिपूर्ण हो पाती हैं और सृष्टि में अपनी सार्थकता प्रकट करती हैं। पुरुष अपने पौरुष से सर्वस्व प्राप्त कर सकता है तो नारी अपने प्रेम से सर्वस्व त्याग कर सकती है। पुरुष का धर्म—साहस, सिद्धि और शक्ति है तो नारी का धर्म—ममता, विश्वास और सेवा है। पुरुष की सार्थकता अर्जन में और नारी की सार्थकता समर्पण में दिखाई पड़ती है। ये दोनों विभूतियाँ जब एक साथ मिलकर अपनी भूमिकाओं को चरितार्थ करती हैं तो विधाता की कल्याणी सृष्टि विकसित होकर मंगल के महासमुद्र में पर्यवसित होती है। दोनों के सम्मिलन में ही परिपूर्णता है—अर्द्धनारीश्वर स्वरूप का रहस्य यही है और प्रस्तुत उपन्यास में इसी की प्रतिष्ठा है।</p> <p>भारतीय संस्कृति में जिन उदात्त मानवीय विभूतियों और मूल्यों की प्रतिष्ठा है, उनकी सार्थकता भी प्रस्तुत उपन्यास में दिखाई गई है। शिव बिना शक्ति के शव है और शक्ति जब उसके साथ मिलती है तो शिवत्व आश्चर्यजनक ढंग से संसार में अभिव्यक्त हो सकता है—भारतीय जीवन में पुरुष और नारी इसी भूमिका में प्रतिष्ठित किए गए हैं। प्रस्तुत उपन्यास के पात्र इसी रूप में जीकर लोक-कल्याण की साधना में निरत हैं। प्रेम का अत्यन्त उदात्त, संयत और धर्म से ध्रुव निश्चित स्वरूप यहाँ विद्यमान है जो आँसुओं से चरितार्थ होकर कल्याण के महासमुद्र में मिलता है। उपन्यास की भाषा-शैली और वर्णन सौष्ठव की अपनी गरिमा है जो अपने मन्तव्य को पूर्णरूपेण अभिव्यक्त करने में सफल है।</p> <p>प्रस्तुत उपन्यास के द्वारा हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि तो होती ही है, साथ ही भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की अमर प्रतिष्ठा का भी यह अन्यतम साधन है। भारतीय मनीषा को इससे परितोष मिल सकेगा।