Gandhi Ji Bole Theiy
Author:
Abhimanyu AnatPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
मॉरिशस के सुप्रसिद्ध हिन्दी कथाकार अभिमन्यु अनत का यह उपन्यास उनकी बहुचर्चित कथाकृति ‘लाल पसीना’ की अगली कड़ी है। ‘लाल पसीना’ मॉरिशस की धरती पर प्रवासी भारतीयों की शोषणग्रस्त ज़िन्दगी के अनेकानेक अँधेरों का दर्दनाक दस्तावेज़ है, लेकिन इस उपन्यास में हम उसी ज़िन्दगी और उन अँधेरों से चेतना का एक नया सूर्योदय होता हुआ देखते हैं।</p>
<p>हज़ारों-हज़ार शोषित मज़दूर-किसानों के बीच होनेवाला यह सूर्योदय शिक्षा, संगठन और संघर्ष का प्रतीक है और इसी का मूर्त रूप है उपन्यास का नायक ‘परकाश’। शैशव में उसने दक्षिण अफ़्रीका से भारत लौट रहे गांधीजी को सुना था। उन्हीं के आदर्श से वह प्रेरित है—अन्याय के अस्वीकार के लिए शिक्षा और राजनीति का स्वीकार तथा मानवोचित अधिकारों की प्राप्ति के लिए संगठन और संघर्ष।</p>
<p>इस अन्तर्वस्तु को उजागर करने के क्रम में लेखक ने जिस वातावरण, घटनाओं और चरित्रों की सृष्टि की है, वह अविस्मरणीय है। आज से सत्तर-अस्सी वर्ष पूर्व के मॉरिशसीय समाज में भारतीयों की जो स्थिति थी—मर्मान्तक ग़रीबी के बीच अपनी ही बहुविध जड़ताओं और गौरांग सत्ताधीशों से उनका जो दोहरा संघर्ष था—उसे उसकी समग्रता में हम यहाँ बखूबी महसूस करते हैं। मदन, परकाश, सीता, मीरा, सीमा आदि इस उपन्यास के ऐसे पात्र हैं, जिनके विचार, संकल्प, श्रम, त्याग और प्रेम-सम्बन्ध उच्च मानवीय आदर्शों की स्थापना करते हैं और जो किसी भी संक्रमणशील जाति के प्रेरणास्रोत हो सकते हैं।
ISBN: 9788126714674
Pages: 214
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘त्रिशूल’ वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति का ऐसा उपन्यास है जो उनकी कहानियों की लीक से हटकर एक नए दृष्टिबोध और तेवर के साथ सामने आता है। साम्प्रदायिकता और जातिवाद हमारे समाज में अरसे से जड़ जमाए बैठे हैं पर इनकी आँच पर राजनीति की रोटी सेंकने की होड़ के चलते इनके ज़हर और आक्रामकता में इधर चिन्ताजनक वृद्धि हुई है। फलस्वरूप, आज समाज में भयानक असुरक्षा, अविश्वास और वैर-भाव पनप रहा है। धर्म, जाति और सम्प्रदाय के ठेकेदार आदमी और आदमी के बीच की खाई को निरन्तर चौड़ी करते जा रहे हैं।
‘त्रिशूल’ न केवल मन्दिर-मंडल की बल्कि आज के समाज में व्याप्त उथल-पुथल और टूटन की कहानी है। देशव्यापी उथल-पुथल को कथ्य बनाकर लेखक जातिवाद के विरूप और साम्प्रदायिकता की साज़िश को बेबाकी और निर्ममता से बेनक़ाब करता है। ओछे हिन्दूवाद को ललकारता है।
त्रिशूल को प्रशंसा के फूल ही नहीं, विरोध के पत्थर भी कम नहीं मिले। इसे जातियुद्ध भड़काने और आग लगानेवाली रचना कहा गया। इस पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए पैम्फ़लेटों और सभाओं द्वारा लम्बा निन्दा अभियान चलाया गया।
यह उपन्यास इस तथ्य को भी स्पष्टता से इंगित करता है कि प्रतिगामी शक्तियों का मुँहतोड़ जवाब शोषण और उत्पीड़न झेल रहे दबे-कुचले ग़रीबजन ही दे सकते हैं, दे रहे हैं।
उपन्यास के पात्र, चाहे वह पाले हो, महमूद हो, शास्त्री जी हों, चौकीदार या मिसिराइन हों, यहाँ तक कि गाय, बछड़ा या कुत्ता झबुआ हो, पाठक के दिल में गहराई तक उतर जाते हैं।
भारतीय समाज के अन्तर्विरोधों को उजागर करता एक स्मरणीय-संग्रहणीय उपन्यास।
Pashupati
- Author Name:
Rajshree
- Book Type:

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पशुपति उपन्यास का आधार संस्कृति की स्थापना और विध्वंस है। इस उपन्यास के दो प्रमुख नायक हैं—वैदिककालीन महाअसुर वरुण व महारुद्र शिव। इस उपन्यास के ये दो महानायक भारतीय संस्कृति के इतिहास से सम्बन्ध रखते हैं। इनके आचरण से मिलनेवाली शिक्षा हर युग में युगपरक है।
जम्बूद्वीप के सर्वश्रेष्ठ देश भारत की पृष्ठभूमि पर लिखी गई कथा विश्व के किसी भी देश के लिए सत्य है। इस कथा से ज्ञात होता है कि विचारों की सरलता में, विषमता व जटिलता का समावेश सभ्यता के साथ होता जाता है। सीधी रेखाओं से किस प्रकार न सुलझने वाली गाँठ बन जाती है— ऐसी गाँठ, जो मानव को पग-पग पर अपने में बाँधती है? शिव, जिन्हें पुराणों में सृष्टि संहारक कहा गया है, उन्होंने विश्व की रक्षा के लिए हलाहल का पान किया। संहार व रक्षा एक-दूसरे के विपरीत हैं। जो संहार करता है, उसने विषपान क्यों किया? क्या था वह विषपान? आज विश्व पुनः उसी अवस्था में है जहाँ महारुद्र शिव का हलाहल-पान भी विध्वंस को नहीं रोक सका था।
यदि मानव मौलिक सरलता खोता है तो परिणाम विध्वंस है। जिस संस्कृति के विस्तार का स्वप्न इन युगपुरुषों ने देखा, वह आज हमारा दायित्व है। हम संस्कृति के मानवीय भाव व प्रकृति को समझें। इस कथा का प्रारम्भ प्रकृति करती है। वह मानव को यह समझाना चाहती है कि विध्वंस व विसर्जन में भेद है। समय मानव-मस्तिष्क की विभिन्न अवस्थाओं—कद्रू के स्वप्न, वराह की रेखाएँ और बाबा देवल की लोककथा—के माध्यम से कहता है। कद्रू अचेतन, वराह चेतन, बाबा देवल लोकमानस में चेतन-अचेतन से बननेवाली कहानी का प्रतीक हैं। इनके माध्यम से युग-विशेष के विचारों की दिशा व विषमता ज्ञात होती है।
Kanyadan • Dwiragaman
- Author Name:
Harimohan Jha
- Book Type:

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‘कन्यादान’ मिथिलाक एहन व्यथा-कथा अछि, जकरा सँ अजुका समाज सेहो मुक्त नहि भ सकल अछि। उपन्यासक पहिल संस्करण नौ दशक पहिने, यानी 1933 मे पुस्तकाकार छपल छल, मुदा आइ धरि मिथिलाक समाज मे ‘बुच्चिदाइ’ देखल जायत छैथ, आ हुनकर संघर्ष अनवरत चलि रहल छैन। कन्यादान नाम कें साकार करैत घरक मुखिया आइयो अपन कन्या कें जड़ पदार्थ जकाँ दान करबाक हेतु निमित्त रहैत छैथ आ ‘बुच्चिदाइ’ कें विवाहक हेतु सूत्रधार भाँति-भाँतिक तिकड़म लगबैत छैथ। बेस, आइ परिस्थिति बदलल अछि। आब गाम-घरक बुच्ची सेहो स्कूल जायत छैथ। मुदा लड़का-लड़किक भेद एखनो बनल अछि। आइयो कतेको घर मे लड़का कें दूध मिलैत अछि, त लड़की कें माँड़ सँ सन्तोष करऽ पड़ैत छैन।
इ पोथी कें लोकप्रियता सिर्फ समाजक यथार्थ चित्रण सँ नहि मिलल। एकर भाषा आ शिल्प अप्रतिम अछि। इ उपन्यास मैथिली समाजक मनोवृत्ति आ विसंगति कें बिना लाग-लपेट अभिव्यक्त करैत अछि। हास्यक रस होयतो इ पुस्तक मर्मस्पर्शी अछि। अहि लेल एकरा पढ़बा लेल गैर-मैथिली भाषी सेहो मैथिली सिखलाह। आ जे पढ़बा मे समर्थ नहि छलाह, से वाचन सं एकर रसास्वादन कैलाह। हरिमोहन झा हास्य सम्राट जरूर कहल जायत छैथ, मुदा ओ एहन दक्ष गद्यकार सेहो छलाह, जे मनोरंजक ढंग सँ कथा कहैत पाठक कें यथार्थक भूमि पर विस्मित कऽ दैत छथिन। हुनकर लेखनी विमर्शक एतेक द्वारि खोलैत अछि कि पाठकगण सोचबा लेल विवश होयत छैथ। ‘कन्यादान’ सेहो इ कसौटी कें सार्थक करैत अछि। इ उपन्यास मे अपन बिटियाक विवाहक हेतु माय-बाप कें चिन्ता अछि, विवाह कें सम्भव बनैबाक हेतु सूत्रधारक दाँव-पेच, नव रंग-ढंग मे रंगल पतिक आकांक्षा, अनपढ़ आ गामक संस्कृति मे रमल पत्निक कायान्तरण, आ सबसँ उल्लेखनीय, पुरातन बनाम आधुनिक परम्पराक जंग अछि। हरिमोहन झा कें नजर से केओ बाँचल नहि छैथ, अहि लेल ‘कन्यादान’ अनवरत प्रासंगिक बनल अछि।
इ पोथी मे ‘कन्यादान’ तथा ‘द्विरागमन’ (1943)— जे वस्तुत: एके उपन्यासक दू भाग अछि—एक संग प्रकाशित अछि। पाठक लोकनि हरिमोहन झा कऽ इ करिश्मा कें स्वयं अनुभव करू...
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