A Tracker And The Heart Stealer
Author:
Rajeev PundirPublisher:
Author'S Ink PublicationsLanguage:
EnglishCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 160.65
₹
189
Available
Brijesh is a decorated police officer; an expert in tracking mobile calls and electronic surveillance. On his inputs, paramilitary forces and police become successful in eliminating a group of dreaded terrorists in J&K. Soon he gets out of turn promotion to the post of Inspector. He’s assigned another case to crack the Nexus of cricket betting. Encouraged by his promotion, he dedicates himself to this case – almost forgetting his own family. And this proves counterproductive to him. One day when he reaches his home, the excerpt below speaks volumes of the state of affairs between him and his wife Anu. But she didn't care and started her outburst, “I’ve suffered a lot during these years,” and stared at him, “why have you come now and how can I trust you?” skeptical, she asked again giving him her hateful look. He continued to stare at the floor and she at his face. Soon, a drop of pain emerged at the ‘brims of his eyes and the tears on either of his cheeks traversed like a channel of a seasonal rivulet and fell on the ground. Perhaps the stony floor also cried out of pain and heat—heat of atonement, disgust, self-reproach, insult, feeling of used and misused, deceit, losing his wife and kids—all contained into his tears. But Anu didn’t listen that cry, her heart didn't melt, and she slammed the door right at his face. Why did it happen? – read the novel.
ISBN: 9788193650127
Pages: 148
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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हद दर्जे तक उदास शहरों में भी एक ऐसा उदास शहर जो अपना नाम भूल चुका है, इसी शहर में एक क़िस्सागो रशीद अपने बेटे हारून के साथ रहता है। रशीद बकवास का बादशाह है—समन्दर-भर ख़यालों और दैवी प्रतिभा का धनी। आप उससे कोई कहानी सुनाने के लिए कहिए और फिर किसी पुरानी कहानी की उम्मीद मत कीजिए, न ही ये सोचिए कि आप कोई एकाध कहानी सुनने जा रहे हैं। यहाँ सैकड़ों कहानियाँ आपकी मुंतज़िर हैं। ख़ुशी और उदासी की गड्डमड्ड कहानियाँ, प्यार और नफ़रत के टुकड़ों से बनीं; राजकुमारियों, दुष्ट चाचाओं और मोटी चाचियों, पीली चैक की पतलूनों वाले मुच्छड़ बदमाशों और दर्जनों मीठी धुनों से लबरेज़ कहानियाँ।
लेकिन एक दिन चीज़ें—कई सारी चीज़ें—भयानक ढंग से उलट-पुलट हो गईं। रशीद को उसकी पत्नी ने छोड़ दिया। उसके बाद जब भी वह मुँह खोलता, कोई कहानी हाज़िर न होती, उसकी जगह सिर्फ़ भौंकने की एक डरावनी आवाज़ सुनाई पड़ती। बकवास का बादशाह अपने वरदान से वंचित हो चुका था, क्योंकि उसकी नज़रों से कहीं दूर, जाने किस तरह कुछ बुरा घट चुका था, कहानियों का समन्दर धीरे-धीरे प्रदूषित होता जा रहा था। ख़तम-शुद—चुप्पी का राजकुमार और आवाज़ का दुश्मन—कहानियों के समन्दर को गुप्त रूप से प्रदूषित कर चुका था।
‘हारून और कहानियों का समन्दर’ एक साहसिक उपन्यास है—एक पिता, रशीद, और उसके बेटे हारून तथा हारून द्वारा अपने पिता के खोए वरदान को लौटा लाने की कोशिशों की सनसनीख़ेज़ दास्तान। इस कहानी में एक पागल बस ड्राइवर है—बट्ट और एक पानी का जिन्न है—इफ़्फ़। एक तैरता हुआ माली है और एक जोड़ा मछलियों का जिनके पूरे शरीर पर मुँह ही मुँह हैं। इस कहानी में आपको गप नाम का एक अद्भुत शहर मिलेगा (जहाँ हमेशा रोशनी रहती है) और चुप नाम का एक भयानक द्वीप भी (जहाँ हमेशा अँधेरा रहता है)।
और, इसमें आपका सामना होगा पी2सी2ई. (यानी इतनी जटिल कि समझाना कठिन प्रक्रिया—प्रोसेस टु कॉम्प्लीकेटेड टु एक्सप्लेन) से, जो शायद इस कहानी की सबसे अहम चीज़ है।
Kalank-Mukti
- Author Name:
Phanishwarnath Renu
- Book Type:

- Description: ‘कलंक मुक्ति’ का संसार, नारी-जीवन के क्रूरतम अन्तर्विरोधों का संसार है, जिसे रेणु ने बड़ी सहजता, आत्मीयता और सूक्ष्मता के साथ रचा है। इसमें चित्रित ‘वर्किंग विमेन्स होस्टल’ का चकलाघर में बदल जाना भारतीय शासक वर्ग के पतनशील चरित्र और झूठे लोकतंत्र की विडम्बनाओं का कच्चा चिट्ठा है, जो अपने आप में एक चीखता हुआ सवाल बन गया है कि इस सबके लिए जिम्मेदार कौन? और उपन्यास की प्रत्येक पंक्ति इस प्रश्न का उत्तर देती है। दूसरी ओर है—बेला गुप्त, त्याग, कर्त्तव्य और बलिदान की प्रतिमूर्ति । संघर्षशील । पराजित। एक संजीवनी... पुण्य... पवित्र... पापहरा धारा—बेला—कब राष्ट्रीय अस्मिता में बदल जाती है, पता नहीं लगता। केवल प्रश्न ही शेष रह जाता है वहाँ—ईश्वर की तरह तरंगायित कि क्या उस समाज का विध्वंस आवश्यक नहीं, जिसमें मनुष्य अपनी अस्मिता को सुरक्षित नहीं रख पाये? जहाँ उसका अस्तित्व स्वयं उसके हाथों से छीन लिया जाये ? और यदि ये प्रश्न जन-मानस को मथने लगते हैं तो निश्चय है कि मुक्ति की सम्भावनाएँ भी विद्यमान हैं।
Saat Aasmaan
- Author Name:
Asghar Wajahat
- Book Type:

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Description:
यह उपन्यास लम्बे कालखंड, लगभग चार सौ साल के दौरान एक परिवार की कहानी है। इसमें मौखिक परम्परा, कहीं-कहीं वातावरण बनाने के लिए इतिहास और कहीं निजी अनुभवों का सम्मिश्रण है। एक तरह से यह लम्बा बयान है जो पात्र स्वयं देते हैं। लेखक भी एक द्रष्टा है। पात्र न तो उसके बनाए हुए हैं और न उसके वश में हैं। अपनी गति और स्थितियों के अनुसार वे जो अनुभव करते हैं, जैसा व्यवहार करते हैं, वह उपन्यास में उन्ही की जुबानी आया है। एक तरह से इस उपन्यास को शास्त्रीय परिभाषा के अन्तर्गत भी नहीं रखा जा सकता क्योंकि इसमें वह एकसूत्रता नहीं है जो प्रायः उपन्यासों में होती है। यदि इसका कोई सूत्र है तो वह जीवन है जो लगातार बदल रहा है और नए-नए साँचों में ढल रहा है।
लम्बे विवरण और संवाद या पात्रों की सोच उन्हें उधेड़ती चली जाती है। अच्छा क्या है? बुरा क्या है? जीवन जीने का सही तरीक़ा क्या है? जीवन क्या है? वे लोग कैसे थे जिनकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती? —आदि सवालों के जवाब उपन्यास नहीं देता, न उन पर कोई ‘वैल्यू जजमेंट’ देता है। वह केवल पात्रों और परिस्थितियों को उद्घाटित करने में ही व्यस्त है।
‘सात आसमान’ भारत के सामन्ती समाज के कई युगों को उद्घाटित करता है। इसके साथ-साथ हर युग के मनुष्य और उसके सरोकारों को समझना ही उपन्यास का विषय है। न तो इसमें किसी को गौरवान्वित किया गया है और न किसी को निन्दनीय माना गया है। कहीं मानवीय सम्बन्ध बहुत सशक्त और गहरे दिखाई देते हैं तो कहीं पतनशीलता की चरम सीमा तक पहुँच गए हैं।
उपन्यास में अतीत के प्रति कोई मोह नहीं है। यह अतीत को वर्तमान के सन्दर्भ में या एक लम्बी यात्रा के पिछड़े पड़ावों को समझने के रूप में ही लेता है। उपन्यास में ‘नास्टैल्जिया’ भी नहीं है। हो सकता है कि पात्रों के अन्दर जाने की कोशिश यह दिखाए कि लेखक पात्रों की परतें उघाड़ते हुए निर्मम ज़रूर हो गया है, लेकिन वह सब जो कुछ हुआ है इसे न तो लेखक बदल सकता था और न बदलना चाहता ही था।
किसी प्रकार की वैचारिकता या बौद्धिकता या दार्शनिकता या प्रतिबद्धता को आरोपित न करते हुए भी यह उपन्यास निश्चय ही दृष्टिसम्पन्न उपन्यास है क्योंकि यह यथार्थ को उसकी पूरी समग्रता और गतिशीलता में पकड़ता है। चाहें तो इसके माध्यम से सामाजिक रिश्तों, राजनीतिक हलचलों और सांस्कृतिक विकास के बिन्दुओं को रेखांकित किया जा सकता है। पर यह सब पाठकों या आलोचकों पर निर्भर है। यानी यह ‘इंटरप्रेटेशन’ के खुला हुआ है।
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