
Ek Break Ke Baad
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
215
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
430 mins
Book Description
उम्र के जिस मुक़ाम पर लोग रिटायर होकर चुक जाते हैं, के.वी. शंकर अय्यर के पास नौकरियाँ चक्कर लगा रही हैं। के.वी. मानते हैं कि इंडिया के इकोनॉमिक ‘बूम’ में देश की एक अरब जनता के पास ख़ुशहाली के सपने हैं। दुनिया का शासन अब सरकारों के हाथ नहीं, कॉरपोरेट कम्पनियों के हाथों में है।</p> <p>मल्टीनेशनल कम्पनी का एक्जीक्यूटिव गुरुचरण राय के.वी. की बातों को बिना काटे सुनता रहता है। वह बीच-बीच में पहाड़ों पर क्या करने जाता है, इसकी कोई भनक के.वी. को नहीं है। अन्ततः वह कम्पनी के काम से मध्य प्रदेश के किसी सुदूर प्रान्त में जाकर लापता हो जाता है। एक ब्रेक के बाद, जिसमें वह एक आई-गई ख़बर हो गया है, के.वी. को मिलती हैं उसकी डायरियाँ, जिसमें लिखी बातों का कोई तुक उन्हें नज़र नहीं आता।</p> <p>उपन्यास के तीसरे पात्र भट्ट की नियति एक नौकरी से दूसरी नौकरी तक शहर-शहर भटकने की है। कॉरपोरेट दुनिया के थपेड़े खाते-खाते वह बीच में गुरुचरण उर्फ़ गुरु के साथ पहाड़-पहाड़ घूमता है। स्त्रियों के साथ सम्बन्धों में गुरु क्या खोजता है या उसका क्या सपना <br>है, यह जाने बग़ैर गुरु के साथ भट्ट यायावरी करता जीवन के कई सत्यों से टकराता रहता है।</p> <p>अलका सरावगी का यह नया उपन्यास कॉरपोरेट इंडिया की तमाम मान्यताओं, विडम्बनाओं और धोखों से गुज़रता है। इस दुनिया के बाज़ू में कहीं वह पुराना ‘पोंगापंथी’ और पिछड़ा भारत है, जहाँ तीस करोड़ लोग सड़क के कुत्तों जैसी ज़िन्दगी जीते हैं। कॉरपोरेट इंडिया अपने लुभावने सपनों में खोया यह मान लेता है कि ‘ट्रिकल डाउन इफ़ेक्ट’ से नीचेवालों को देर-सबेर फ़ायदा होना ही है।</p> <p>गुरुचरण का कॉरपोरेट जगत् का चोला छोड़कर सिर्फ़ गुरु बनकर जीने का निर्णय तथाकथित विकास की अन्धी दौड़ का मौन प्रतिरोध है। गुरु के रूप में भी उसकी मृत्यु एक तरह से औपन्यासिक आत्महत्या मानी जा सकती है। जिस तरह की संवेदनात्मक दुनिया बनाने का उसका सपना है, उसकी क़ब्र पर कॉरपोरेट इंडिया उग आया है, जिसमें भट्ट जैसे लोगों के नए सपने और नई सफलताएँ हैं।