Ek Break Ke Baad
Author:
Alka SaraogiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
उम्र के जिस मुक़ाम पर लोग रिटायर होकर चुक जाते हैं, के.वी. शंकर अय्यर के पास नौकरियाँ चक्कर लगा रही हैं। के.वी. मानते हैं कि इंडिया के इकोनॉमिक ‘बूम’ में देश की एक अरब जनता के पास ख़ुशहाली के सपने हैं। दुनिया का शासन अब सरकारों के हाथ नहीं, कॉरपोरेट कम्पनियों के हाथों में है।</p>
<p>मल्टीनेशनल कम्पनी का एक्जीक्यूटिव गुरुचरण राय के.वी. की बातों को बिना काटे सुनता रहता है। वह बीच-बीच में पहाड़ों पर क्या करने जाता है, इसकी कोई भनक के.वी. को नहीं है। अन्ततः वह कम्पनी के काम से मध्य प्रदेश के किसी सुदूर प्रान्त में जाकर लापता हो जाता है। एक ब्रेक के बाद, जिसमें वह एक आई-गई ख़बर हो गया है, के.वी. को मिलती हैं उसकी डायरियाँ, जिसमें लिखी बातों का कोई तुक उन्हें नज़र नहीं आता।</p>
<p>उपन्यास के तीसरे पात्र भट्ट की नियति एक नौकरी से दूसरी नौकरी तक शहर-शहर भटकने की है। कॉरपोरेट दुनिया के थपेड़े खाते-खाते वह बीच में गुरुचरण उर्फ़ गुरु के साथ पहाड़-पहाड़ घूमता है। स्त्रियों के साथ सम्बन्धों में गुरु क्या खोजता है या उसका क्या सपना <br>है, यह जाने बग़ैर गुरु के साथ भट्ट यायावरी करता जीवन के कई सत्यों से टकराता रहता है।</p>
<p>अलका सरावगी का यह नया उपन्यास कॉरपोरेट इंडिया की तमाम मान्यताओं, विडम्बनाओं और धोखों से गुज़रता है। इस दुनिया के बाज़ू में कहीं वह पुराना ‘पोंगापंथी’ और पिछड़ा भारत है, जहाँ तीस करोड़ लोग सड़क के कुत्तों जैसी ज़िन्दगी जीते हैं। कॉरपोरेट इंडिया अपने लुभावने सपनों में खोया यह मान लेता है कि ‘ट्रिकल डाउन इफ़ेक्ट’ से नीचेवालों को देर-सबेर फ़ायदा होना ही है।</p>
<p>गुरुचरण का कॉरपोरेट जगत् का चोला छोड़कर सिर्फ़ गुरु बनकर जीने का निर्णय तथाकथित विकास की अन्धी दौड़ का मौन प्रतिरोध है। गुरु के रूप में भी उसकी मृत्यु एक तरह से औपन्यासिक आत्महत्या मानी जा सकती है। जिस तरह की संवेदनात्मक दुनिया बनाने का उसका सपना है, उसकी क़ब्र पर कॉरपोरेट इंडिया उग आया है, जिसमें भट्ट जैसे लोगों के नए सपने और नई सफलताएँ हैं।
ISBN: 9788126719693
Pages: 215
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘जुस्तजू-ए-निहां उर्फ़ रुणियाबास की अन्तर्कथा’ यानी तलाश एक ऐसी छिपी हुई अन्दरूनी दुनिया की, जिसे पहचानकर उस पर उँगली रख पाना सचमुच बहुत मुश्किल है, लेकिन फिर भी जिसका कोई-न-कोई अंश हमें बार-बार अपने भीतर छटपटाता दिखाई दे जाता है। इसे हम अपने होने का दु:ख, उसका अकेलापन या अकेलेपन की समूची अव्यक्त तकलीफ़ को किसी मूर्त आस्था की बैसाखियों पर खड़ा कर सकने की भोली ललक, या ठहराव को तोड़ने की उद्दाम लालसा या एक बिखरती हुई सिनिकल सभ्यता की बदहवासी के बीच से दु:ख का प्रतिदान ढूँढ़ निकाल पाने की पागल, मर्मांतक ज़िद—कुछ भी कह सकते हैं...
...किसी बेग़ैरत और मखौल-भरी ज़िन्दगी से उकताया एक अनास्थावादी ‘खोजी’ पत्रकार जब अनायास ही राजस्थान के बियाबान इलाक़े में उपेक्षित खड़े एक नामालूम खँडहर और उस खँडहर के भीतर बरसों से ‘अदृश्यवास’ कर रहे अनदेखे ‘ओझल बाबा’ की किंवदन्ती से जा टकराता है तो उसे लगता है कि उस रहस्य के भीतर से वह कहीं अपनी उद्देश्यहीन ज़िन्दगी का खोया हुआ सिरा भी ढूँढ़ निकालेगा।...क्या सचमुच वहाँ किसी सिद्ध बाबा का वास था? क्या उनके भीतर भी वही गुमनाम, अपरिभाषित-सी बेचैनी मँडरा रही थी? चालीस वर्षों के असाध्य एकान्तवास के ज़रिए क्या वे भी उसकी तरह ही किसी नामालूम, बेग़ैरत ज़िन्दगी का तोड़ ढूँढ़ निकालने की ज़िद पर अड़े हुए थे? अगर अड़े हुए थे तो क्या आख़िरकार उन्हें वह मिल पाया? और अगर मिला, तो क्या था वह तोड़?
‘जुस्तजू-ए-निहां...’ अपने समय और सभ्यता के अवसाद और उसकी आस्थाहीनता का विकल्प ढूँढ़ निकालने का एक जुनून-भरा वैयक्तिक अभियान है, जिसमें विचारधाराओं, नसीहतों और सैद्धान्तिकताओं से अलग एक पारदर्शी ईमानदारी और तड़प साफ़ महसूस की जा सकती है। रहस्य, रोमांच, व्यंग्य, अनास्था और संवेदना के सम्मोहक ताने-बाने में छतों और दीवारों के बाहर, खुले आसमान तले रचा गया हिन्दी गद्य के सशक्त हस्ताक्षर जितेन्द्र भाटिया का यह विलक्षण उपन्यास न सिर्फ़ कई स्तरों पर हमारी संवेदनाओं को छूता है, बल्कि अपनी पुरानी संवादपरकता पर से खोया हुआ विश्वास हमें लौटाने का साहस भी दिखाता है।
Shadows of Solitude
- Author Name:
Aryani Banerjee
- Book Type:

- Description: Twenty-nine-year-old aniya finds it extremely difficult to cope after her fiancé abhishar Sen’s untimely demise. Solitude takes her on a roller coaster ride, and she suddenly develops feelings for her Jovial reporting manager Vinod Gupta, which she believes is an infatuation created by the void abhishar’s death has left in her life. Amidst all this, she comes to know that Mohan – one of her colleagues she becomes friends, has been in love with her for a long time. Droplets of hope trickle down the moist glass of her broken heart; who will she choose?
You & Many Other Things
- Author Name:
Dr. Upasana Gupta
- Book Type:

- Description: Poetry Book
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