Divya
Author:
YashpalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
मार्क्सवादी चिन्तक और वैचारिक प्रतिबद्धता को बुद्धि का सर्वश्रेष्ठ अनुशासन माननेवाले कथाकार यशपाल के सरोकारों में भारतीय सामाजिक संरचना में स्त्री की यातना और व्यक्तित्व का प्रश्न हमेशा प्रमुख रहा है।</p>
<p>‘दिव्या’ (1945) में यशपाल ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में स्त्री की पीड़ा के सामाजिक कारणों की तलाश करते हैं। उनका मानना है कि ‘इतिहास विश्वास की नहीं, विश्लेषण की वस्तु है।...अतीत में अपनी रचनात्मक सामर्थ्य और परिस्थितियों के सुलझाव और रचना के लिए निर्देश पाती हैं।’ ‘दिव्या’ में लेखक सागल के गणसमाज को केन्द्र में रखकर पृथुसेन, मारिश और दिव्या के माध्यम से तत्कालीन सामाजिक अन्तर्विरोधों की गहन पड़ताल करता है। न तो वर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित सामन्ती समाज ही स्त्री को सम्मान और सुरक्षा दे सकता है और न बौद्ध धर्म जो स्त्री के स्वतंत्र व्यक्तित्व को ही शंका की निगाह से देखता है।</p>
<p>अपनी प्रदत्त ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में ‘दिव्या’ सामाजिक संरचना के मूल अन्तर्विरोधों को रेखांकित करते हुए अपनी तेजस्विता से परिवर्तन के लिए निर्णायक संघर्ष भी करती है। अपनी सन्तुलित सोच के साथ वह हमारे समकालीन नारी-विमर्श के लिहाज़ से भी एक विचारणीय प्रस्ताव लेकर आती है।</p>
<p>
ISBN: 9788180314988
Pages: 158
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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आलोकुठि सुन्दरबन में होते हुए भी वहाँ के नक्शे में दर्ज नहीं है। इस महादेश के त्रासद विभाजन के वक्त तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से भारत आए अधिसंख्य दलित शरणार्थियों के जीवन में आलोकुठि इतिहास के अँधेरों से बाहर आने की छटपटाती हुई कहानी है जो सुन्दरबन के वास्तविक भूगोल में घटित होती है। बानी, रुक्मी और रूपेन हालदार जैसे चरित्र मारीच झांपी जैसे वास्तविक भूगोल में बार-बार निर्वासन की त्रासद कथा से साक्षात्कार करते हैं।
1905 से लेकर बांग्लादेश बनने तक के काल खंड को छूती हुई यह कथा बंगाल से दंडकारण्य भेज दिए गए मनुष्यों की त्रासदी से साक्षात्कार कराती है। जड़ों को जमीन में जगह बनाने का स्वप्न गंगा-पद्मा की लहरों के साथ उपन्यास में हिलोरें लेता रहता है। लेकिन सुन्दरबन से दूसरे निर्वासन के लिए अभिशप्त शरणार्थियों की यह कथा उन मनुष्यों की त्रासदी को उजागर करती है जिसके बारे में इतिहास ने सायास चुप्पी साध रखी है।
हिन्दी में इस तरह के अछूते विषय पर यह सम्भवत: पहला उपन्यास है जिसको लिखने के लिए लेखक ने इतिहास के प्राय: विस्मृत कर दिए गए पक्ष को चुना। गंगा और पद्मा का जीवन्त भूगोल मनुष्य के जीवट और संघर्ष से भरी इस कथा को प्रामाणिकता प्रदान करता है।
— नवीन कुमार नैथानी
Justju-E-Nihan : Urf Runiyabas Ki Antarkatha
- Author Name:
Jitendra Bhatia
- Book Type:

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Description:
‘जुस्तजू-ए-निहां उर्फ़ रुणियाबास की अन्तर्कथा’ यानी तलाश एक ऐसी छिपी हुई अन्दरूनी दुनिया की, जिसे पहचानकर उस पर उँगली रख पाना सचमुच बहुत मुश्किल है, लेकिन फिर भी जिसका कोई-न-कोई अंश हमें बार-बार अपने भीतर छटपटाता दिखाई दे जाता है। इसे हम अपने होने का दु:ख, उसका अकेलापन या अकेलेपन की समूची अव्यक्त तकलीफ़ को किसी मूर्त आस्था की बैसाखियों पर खड़ा कर सकने की भोली ललक, या ठहराव को तोड़ने की उद्दाम लालसा या एक बिखरती हुई सिनिकल सभ्यता की बदहवासी के बीच से दु:ख का प्रतिदान ढूँढ़ निकाल पाने की पागल, मर्मांतक ज़िद—कुछ भी कह सकते हैं...
...किसी बेग़ैरत और मखौल-भरी ज़िन्दगी से उकताया एक अनास्थावादी ‘खोजी’ पत्रकार जब अनायास ही राजस्थान के बियाबान इलाक़े में उपेक्षित खड़े एक नामालूम खँडहर और उस खँडहर के भीतर बरसों से ‘अदृश्यवास’ कर रहे अनदेखे ‘ओझल बाबा’ की किंवदन्ती से जा टकराता है तो उसे लगता है कि उस रहस्य के भीतर से वह कहीं अपनी उद्देश्यहीन ज़िन्दगी का खोया हुआ सिरा भी ढूँढ़ निकालेगा।...क्या सचमुच वहाँ किसी सिद्ध बाबा का वास था? क्या उनके भीतर भी वही गुमनाम, अपरिभाषित-सी बेचैनी मँडरा रही थी? चालीस वर्षों के असाध्य एकान्तवास के ज़रिए क्या वे भी उसकी तरह ही किसी नामालूम, बेग़ैरत ज़िन्दगी का तोड़ ढूँढ़ निकालने की ज़िद पर अड़े हुए थे? अगर अड़े हुए थे तो क्या आख़िरकार उन्हें वह मिल पाया? और अगर मिला, तो क्या था वह तोड़?
‘जुस्तजू-ए-निहां...’ अपने समय और सभ्यता के अवसाद और उसकी आस्थाहीनता का विकल्प ढूँढ़ निकालने का एक जुनून-भरा वैयक्तिक अभियान है, जिसमें विचारधाराओं, नसीहतों और सैद्धान्तिकताओं से अलग एक पारदर्शी ईमानदारी और तड़प साफ़ महसूस की जा सकती है। रहस्य, रोमांच, व्यंग्य, अनास्था और संवेदना के सम्मोहक ताने-बाने में छतों और दीवारों के बाहर, खुले आसमान तले रचा गया हिन्दी गद्य के सशक्त हस्ताक्षर जितेन्द्र भाटिया का यह विलक्षण उपन्यास न सिर्फ़ कई स्तरों पर हमारी संवेदनाओं को छूता है, बल्कि अपनी पुरानी संवादपरकता पर से खोया हुआ विश्वास हमें लौटाने का साहस भी दिखाता है।
Bharatiya Rajneeti Aur Hamari Soch
- Author Name:
Rajnath Singh
- Book Type:

- Description: "वैचारिक दृष्टि से भाजपा एक सामान्य राजनैतिक दल नहीं है जो सत्ता प्राप्ति के स्वार्थ से जुड़कर और प्रेरित होकर अपना कार्य करते हैं। भाजपा एक ऐसा राजनैतिक दल है जो एक विशिष्ट विचारधारा और राजनीतिक शैली को भारत की राजनीति में स्थापित करने के लक्ष्य से प्रेरित होकर कार्य कर रही है। हम सब परिपक्व विचारधारा के प्रति समर्पित एक परिपक्व कार्यकर्ता है। हमारे अंदर लोग भारतीयता की झलक देखते हैं। और इसके माध्यम से राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान की अपेक्षा करते हैं। स्वतंत्र भारत के इतिहास में देश की जनता ने किसी भी दल से इतनी अपेक्षाएँ नहीं कीं जितनी कि हमसे की हैं। --- भाजपा का वैचारिक अधिष्ठान सांस्कृतिक रावाद है। विगत दो दशकों में पश्चिमी मॉडल पर जिस तेजी से आर्थिक प्रगति हो रही है, वह उतनी ही तेजी से पश्चिमी जीवन मूल्य हमारे शाश्वत सांस्कृतिक मूल्यों, सामाजिक आदर्शों और परिवार के स्वरूप पर भी आघात कर रहे हैं। अन्य राजनैतिक दल भले ही इसे गंभीरता से न लेते हों परंतु भारत और भारतीयता के प्रति समर्पित भारतीय जनता पार्टी की दृष्टि में यह एक गंभीर चुनौती है। --- अनेक राजनैतिक दलों ने जहाँ जाति, पंथ और मजहब का सहारा लेकर वोट की राजनीति करने में कोई संकोच नहीं किया वहीं हमने वोट से ज्यादा अहमियत ‘राष्ट्र’ को दिया। हमारे सामने वोट से बड़ा राष्ट्र है और हमें इस बात का सुकून है कि हमने जिन बातों का विरोध किया, वह हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य था। हम अपराधबोध से ग्रस्त नहीं हैं। —इसी पुस्तक से --- ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ जिस राजनीतिक दल का प्राणतत्त्व है, जिसने कभी वोट-बैंक की राजनीति नहीं की, जिसने सदा राष्ट्रीय अस्मिता और सुरक्षा को सबसे अधिक प्रमुखता दी है, जो ‘भय-भूख-भ्रष्टाचार’ से आक्रांत कोटि-कोटि भारतीयों की आशा का केंद्र है—ऐसी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह के चिंतनपरक, प्रखर, ओजस्वी विचारों का पठनीय एवं प्रेरणाप्रद संकलन।
Lal Peeli Zameen
- Author Name:
Govind Mishra
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Description:
रचना अच्छी, कहीं-कहीं बहुत अच्छी, अच्छी के अतिरिक्त सशक्त लगी। न यह स्थानाबद्ध है और न समयाबद्ध...यह रचना की विशेषता है। जिन पात्रों और घटनाओं को लेखक ने लिया है, पात्रों के जो कार्यकलाप हैं, उसके पीछे की मार्मिक कारण-जगत की खोज लेखक को निरंतर रही है। अपने को औरों में खोजने की वृत्ति...जो ‘लाल पीली जमीन’ की औपन्यासिक दृष्टि है...वह मुझे विश्वसनीय प्रतीत होती है।
–जैनेन्द्र कुमार
पढ़ने में रुचिकर और सिर्फ पाठक की दृष्टि से कहूँ तो यह एक सफल, सशक्त और एक स्थायी प्रभाव छोड़नेवाला उपन्यास है। इसके कई चरित्र और घटनाएँ मुझे याद हैं और उनकी याद रहेगी। आंचलिकता केवल भाषिक परिवेश तक सीमित है। उपन्यास की भाषा ने मुझे बहुत आकृष्ट किया। इस उपन्यास ने
बहुत-से ऐसे शब्द हिन्दी को दिए हैं जो ज्यादा आसानी से आज की साधु हिन्दी ग्रहण कर सकती है। भाषा की दृष्टि से इस उपन्यास की यह महत्त्वपूर्ण देन रही।
–अज्ञेय
बुंदेलखंड का जन्म से मरण तक कोई ऐसा पहलू नहीं है जो इस उपन्यास में न आया हो और सो भी ‘फर्स्ट हैंड’। इस उपन्यास के कई गुण हैं मगर सबसे बड़ा गुण है, गोविन्द मिश्र के बयान का अन्दाज जो बातों को शुरू से अन्त तक कहानी बनाए रखता है। यह पुस्तक हमारे उपन्यास साहित्य में एक नक्षत्र की तरह चमकती रहेगी।
–भवानी प्रसाद मिश्र
उपन्यास की घटनाएँ बहुत सजीव हैं। कोई पात्र ‘स्टॉक’ नहीं जान पड़ता, बराबर एक साफ, सुडौल, विशिष्ट, महीन से महीन रेखाओं से उकेरा हुआ व्यक्ति सामने आता है।
–निर्मल वर्मा
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