Besharam : 'Lajja' Upanyaas Ki Uttar-Katha
Author:
Taslima NasrinPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास उन लोगों के विषय में है जो अपनी जन्मभूमि को छोड़कर किसी और देश में, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में, पराए माहौल और पराई आबोहवा में अपना जीवन बिता रहे हैं। कहने की ज़रूरत नहीं कि तसलीमा ने यह जीवन बहुत नज़दीक से जिया है। उनकी विश्व-स्तर पर चर्चित पुस्तक ‘लज्जा’ के लिए उन्हें कट्टरपंथियों ने देशनिकाला दे दिया था। लम्बा समय उन्होंने अपने मुल्क से बाहर बिताया है। इस उपन्यास में उन्होंने अपनी जड़ों से उखड़े ऐसे ही जीवन की मार्मिक और विचारोत्तेजक कथा कही है। स्वयं उनका कहना है कि यह उपन्यास ‘लज्जा’ की तरह राजनीतिक नहीं है, इसका उद्देश्य निर्वासन की सामाजिक दुर्घटना और उसकी परिस्थितियों को रेखांकित करना है। उपन्यास के सभी पात्र निश्चित रूप से उन चेहरों की नक़्क़ाशी करते हैं जिन्हें साम्प्रदायिक उन्माद और अत्याचार के चलते अपना घर छोडऩा पड़ा और बेगानी आबोहवा में साँस लेते हुए जीने की नई मुहिम शुरू करनी पड़ी।
ISBN: 9789388183994
Pages: 256
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
कृष्ण-चरित्र के अछूते-मार्मिक प्रसंगों को उद्घाटित करनेवाली वृहद् औपन्यासिक कृति ‘कृष्णावतार’ का यह छठा खंड है। लेखक के अनुसार, छठे खंड में निबद्ध होकर भी यह कथा इस समूची ग्रन्थमाला की प्रस्तावना के समान है। अतः इस खंड की महत्ता स्वयंसिद्ध है।
देश-काल की दृष्टि से यह वह समय है जब आर्यावर्त्त में वर्ण-व्यवस्था जन्म ले रही थी। ऐसे में मूल महाभारत के रचयिता, तीर्थ-संस्कृति के जनक और ‘श्रुति’ को प्रामाणिक रूप से लिपिबद्ध करनेवाले कृष्ण द्वैपायन व्यास अपने जीवन-काल में ही एक महान धर्म-निर्माता, महामुनि, यहाँ तक कि भगवान वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे। लेकिन एक मछुआरे की कन्या के गर्भ से पैदा होकर इस महान गौरव तक वे किस प्रकार पहुँचे, इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता। यह उपन्यास इसी अभाव की सुन्दरतम पूर्ति है। किशोर और युवा व्यास को इस कृति में हम अकल्पनीय रूप से सक्रिय देखते हैं, जिसे तत्कालीन समाज के जटिलतम संघर्षों और उसके अपने दु:खों ने एक नया व्यक्तित्व प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त इस उपन्यास में कितनी ही ऐसी घटनाएँ और चरित्र हैं, जो हमें मुग्ध और सम्मोहित कर लेते हैं।
Pootonwali
- Author Name:
Shivani
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-
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‘पूतोंवाली’ एक ऐसी स्त्री की विडम्बना-भरी जीवन-गाथा है, जो पाँच-पाँच सुयोग्य-मेधावी बेटों की माँ होकर भी अन्त तक निपूती रही। शहरी चकाचौंध और सम्पन्नता की ठसक-भरे जीवन के मद में अपने सरल लेकिन उत्कट स्वाभिमानी पिता और स्निग्ध, वात्सल्यमयी माँ के दधीचि जैसे उत्सर्ग-भरे जीवन की अवहेलना करनेवाले बेटों का ठंडा व्यवहार आज के जीवन में घर-घर की कहानी बन चला है। ‘पूतोंवाली क्षय होते पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों के पक्ष में एक मार्मिक गुहार है।
‘कैंजा’ यानी सौतेली माँ। एक ऐसा ओहदा जिसकी मर्यादा प्राणपण से निभाने के बाद भी निष्कलुष-मना नन्दी उसका पारम्परिक कलुष नहीं उतार पाती। बेटा रोहित समाज की कानाफूसी से विह्वल हो विद्रोही बनता जाता है। उसके फेंके पत्थरों से सिर्फ़ शीशा ही नहीं टूटता, नन्दी का हृदय भी विदीर्ण हो जाता है। एक ऐसी युवती की मार्मिक कथा, जो जन्मदायिनी माँ न होते हुए भी अपने सौतेले बेटे से सच्चा प्रेम करने की भूल कर बैठी है।
...“आँधी की ही भाँति वह मुझे अपने साथ उड़ा ले गई थी, और जब लौटी तो उसका घातक विष मेरे सर्वांग में व्याप चुका था।...”
कौन थी यह रहस्यमयी प्रतिवेशिनी जो नियति के लिखे को झुठलाने अकेली उस भुतही कोठी में आन बसी थी?
‘विषकन्या’ में शिवानी की जादुई क़लम ने उकेरी है दो यकसाँ जुड़वाँ बहनों की मार्मिक कहानी और उनमें से एक के ईर्ष्या से सुलगते जीवन की केन्द्रीय विडम्बना, जो स्पर्शमात्र से किसी के जीवन में हलाहल घोल देती है।
...सावित्री के दोनों बेटे विदेश चले जाते हैं। एक यात्रा के दौरान ट्रेन में मिला लावारिस बच्चा ही अन्तिम दिनों में उसके साथ रहता है। सावित्री अपनी सारी सम्पत्ति इसी तीसरे बेटे के नाम कर जाती है, परन्तु भाभियों का यह ताना सुनकर कि उसने धन पाने के लिए माँ की सेवा की, तीसरा बेटा गंगा वसीयतनामे को फाड़कर भाइयों के मुँह पर फेंक देता है। लोकप्रिय लेखिका की क़लम से निकली एक और मार्मिक कथा।
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