Baniya-Bahu
Author:
Mahashweta DeviPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
‘बनिया-बहू’ की कथा 16वीं शताब्दी के एक आख्यान पर आधारित है, जिसे तत्कालीन कवि मुकुंदराम चक्रवर्ती ने अपनी कृति ‘चंडीमंगल’ में लिपिबद्ध किया था। महाश्वेता देवी ने यह आख्यान इसी पुस्तक से उठाया है और उसे एक अत्यन्त मार्मिक उपन्यास में ढाला है।
महाश्वेता जी का मानना है : “बनिया-बहू सम्भवतः आज भी प्रासंगिक है। क़ानून को धता बताकर आज भी बहुविवाह प्रचलित है।...और ‘बेटे की माँ’ न हो सकने की स्थिति में आज भी स्त्रियाँ ख़ुद को अपराधी मानती हैं...अर्थात् अभी भी हम बीसवीं शताब्दी तथा अन्य बीती शताब्दियों में एक साथ रह रहे हैं।”
भूमिका से
‘बनिया-बहू’ बहुविवाह प्रथा की इसी चिराचरित त्रासदी की कहानी है। एक स्त्री के बाँझपन के हाहाकार के साथ उसके द्वारा एक दूसरी अत्यन्त कोमल, कमनीय तथा सरल बालिका पर किए गए अकथ अत्याचार से नष्ट होते पारिवारिक जीवन और सुख-शान्ति का मर्मस्पर्शी आख्यान है यह उपन्यास। अन्ततः दोनों ही स्त्रियाँ सामाजिक कुरीतियों, अन्धविश्वासों के मकड़जाल में फँसकर दम तोड़ देती हैं, जबकि उनका कोई दोष नहीं।
लेखिका ने दोनों स्त्रियों के साथ पूरी सहानुभूति के साथ, तन्मय होकर, उन स्थितियों का विश्लेषण तथा उद्घाटन किया है, जिनमें एक भयानक सामाजिक विनाश के बीज निहित हैं। एक सिद्धहस्त कथा लेखिका की क़लम से निकली एक अनुपम औपन्यासिक कृति।
ISBN: 9788171196227
Pages: 131
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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इसीलिए, समाज, परिवार और अनुशासन को अँगूठा दिखा एक ‘विधर्मी’, अफ़ग़ान युवक से शादी रचा सपनों के रथ पर सवार हो रवीन्द्रनाथ के काबुलीवाले के देश में क़दम रखा। अफ़ग़ानिस्तान की धरती पर क़दम रखते ही उसके सारे सपने चूर-चूर हो गए। यह तो रवीन्द्रनाथ के रहमत का देश नहीं है। यह तो मानो मध्ययुगीन, अशिक्षाग्रस्त, जर्जर, दासप्रथावाला अन्धकारमय असांस्कृतिक देश है।
विवेक और मानवता उसे जेहाद छेड़ने के लिए प्रेरित करते। आख़िर शिक्षा, नारी-स्वाधीनता के नाम पर, मानवता के पक्ष में अपना सिर उठाकर उसने मनुष्यता के शत्रु ‘इस्लामी’ गुरु और उनके शिष्य तालिबानियों के विरुद्ध संग्राम छेड़ ही दिया।
तालिबानों के अत्याचारों, दम-घोंटू रीति-रिवाजों, पल-पल मौत के साए में जीवन बसर करनेवाले मज़लूमों, बेक़सूरों के ख़ौफ़ की सच्ची दास्तान है सुष्मिता बंद्योपाध्याय का यह तीसरा आत्मकथात्मक उपन्यास—‘एक अक्षर भी झूठा नहीं’।
Kumbhipak
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Nagarjun
- Book Type:

- Description: नरक की रचना जिन जीवन-स्थितियों से हुई होगी, नागार्जुन का यह उपन्यास उन्हीं के शब्दांकन का परिणाम है। एक ही मकान में रहनेवाले छह किराएदारों की जीवनचर्या पर केन्द्रित यह उपन्यास हमारे ‘विकासमान' नागर-जीवन के जिस सामाजिक यथार्थ की परतें खोलता है, प्रकारान्तर से वह समूचे भारतीय जीवन का यथार्थ है, क्योंकि स्त्री के प्रति पदार्थवादी नज़रिए की कहीं कोई कमी नहीं। आर्थिक अभावों में पिसती अनेकानेक निर्दोष जीवनेच्छाएँ किस प्रकार भोगवाद की भट्टी में झोंक दी जाती हैं, उनकी पीड़ा और मुक्तिकामी छटपटाहट को नागार्जुन ने गहरी आत्मीयता से उकेरा है। साथ ही, नागार्जुन यहाँ उस दृष्टि को प्रस्थापित करते हैं जो स्त्री की सामाजिक भूमिका और मानवीय गरिमा के प्रति सचेत है।
Beghar
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Mamta Kaliya
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- Description: हिन्दी उपन्यास पुनर्परिभाषा के जिस बिन्दु पर आ पहुँचा है, वहीं ‘बेघर’ की कथा आरम्भ होती है। महानगरों में रहते युवा वर्ग के संघर्ष, सफलता और अन्तर्सम्बन्धों को आधुनिक, बेधक शिल्प में रेखांकित करता यह उपन्यास वर्तमान समय का दस्तावेज़ बन जाता है। परमजीत अकस्मात् संजीवनी से टकरा जाता है। एक दिन उन दोनों के जिस्म घुलमिल जाते हैं पर इस मिलन से ही नए सवाल जन्म लेते हैं। प्रेमी परमजीत को लगता है कि प्रेमिका संजीवनी असूर्यपश्या नहीं है, उसके जीवन का पहला पुरुष परमजीत नहीं है। यह वह क्षण है जब परमजीत प्रेमी की जगह पुरुष अहं को साकार करते हुए संजीवनी को छोड़ देता है। कौमार्य के मिथ की मार झेलती संजीवनी वापस अपने सूनेपन में सीमित रह जाती है जबकि परमजीत रमा से पारम्परिक विवाह कर लेता है। इस बार उसे तकनीकी तौर पर विशुद्ध ‘कुँवारी’ पत्नी मिलती है। ‘सुन्दर, सुशील और गृह-कार्य में दक्ष’ वर्ग में उसका शुमार होता है पर वह अपनी मानसिकता और जीवन-शैली में इतनी जड़ और जकड़बन्द है कि उसे बदलना परमजीत के लिए सम्भव नहीं है; बल्कि वह स्वयं, भावात्मक, दैहिक और मानसिक धरातल पर एकाकी होता चला जाता है। यह अकेलापन अन्तत: एक क्राइसिस पर समाप्त होता है। स्त्री को लेकर पुरुष-समाज में आज भी जो रूढ़ धारणाएँ, अमानवीय और अवैज्ञानिक सोच है, ममता कालिया का उपन्यास बेघर इन्हीं रूढ़ियों पर चोट करता है। समकालीन उपन्यासों में लेखिका की यह कथाकृति विशेष रूप से चर्चित व प्रशंसित रही है।
Uttarayan
- Author Name:
Rangnath Tiwari
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Description:
रवीन्द्रनाथ टैगोर हमारे लिए प्रकाश और समरसता की आस्था के जीवित प्रतीक रहे हैं। वे मुक्त पंछी के समान आँधी और तूफ़ान के बीच शाश्वत-काल के संगीत की रचना करते रहे हैं। उनकी उत्कृष्ट कला कभी भी स्वतंत्रता के हित में मानवीय संकटों और जनता के वीरतापूर्ण संघर्षों के प्रति उदासीन नहीं रही। जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा है—वे महान प्रहरी हैं। टैगोर ने संकट के क्षणों में अपने देशवासियों और दुनिया की स्पष्ट और निर्भय दृष्टि से पहरेदारी की है। हम आज जो कुछ भी हैं और जो कुछ हमने सीखा है, वह सब उनकी कविता और प्रेम की अजस्र सरिता से अभिसिंचित हैं या जुड़े हुए हैं।
—रोमां रोलां
Aur Pasina Bahata Raha
- Author Name:
Abhimanyu Anat
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Description:
मॉरिशस के हिन्दी-लेखकों में अग्रगण्य अभिमन्यु अनत अपने देश की मिट्टी से जुड़े कथाकार हैं। उनके उपन्यासों में मॉरिशस के आम आदमी की ज़िन्दगी, उसके सुख-दु:ख और हर्ष-विषाद का अत्यन्त आत्मीयतापूर्ण चित्रण है। आम आदमी यानी प्रवासी भारतीय, जो उस देश की आबादी में लगभग तीन-चौथाई हैं।
अभिमन्यु अनत ने लगभग डेढ़ दशक पहले एक ऐतिहासिक उपन्यास-त्रयी की कल्पना की थी, जिसमें भारतीयों के मॉरिशस पहुँचने पर अपनी अस्तित्व-रक्षा के लिए किए गए संघर्षों से प्रारम्भ करके वे उनकी आज तक की सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक-राजनीतिक स्थितियों के उतार-चढ़ाव को अंकित करना चाहते थे। इस त्रयी की पहली कड़ी ‘लाल पसीना’ में प्रवासी भारतीयों की वह संघर्ष-कथा अंकित है जो न केवल भारतीयों द्वारा अपनी अस्तित्व-रक्षा के लिए किए गए प्रयत्नों की कहानी है बल्कि मॉरिशस के निर्माण की कहानी भी है। दूसरी कड़ी थी ‘गांधी जी बोले थे’ जिसमें प्रवासी भारतीयों के सामाजिक-सांस्कृतिक उत्थान की कहानी है। प्रस्तुत उपन्यास और पसीना बहता रहा इस त्रयी की अन्तिम कड़ी है। आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले वहाँ जिस संघर्ष की शुरुआत हुई थी, वह अभी समाप्त नहीं हुआ है। अलबत्ता उसका रूप बदल गया है। आज भारतवंशियों के लिए वह अस्मिता की रक्षा का संघर्ष बन गया है। प्रस्तुत उपन्यास में इसी संघर्ष की कहानी है। किसी भी प्रवासी भारतीय द्वारा अपनी जातीय अस्मिता की कहानी को महाकाव्यात्मक गरिमा के साथ सम्भवत: पहली बार प्रस्तुत किया गया है, और इस दृष्टि से इस उपन्यास-त्रयी को हिन्दी कथा-साहित्य की एक उपलब्धि माना जाएगा।
Madhur Swapna
- Author Name:
Rahul Sankrityayan
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- Description: ‘मधुर स्वप्न’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इतिहास के अध्येता-अन्वेषक के रूप में राहुल सांकृत्यायन ने ऐसे पक्षों और प्रसंगों को उजागर करने में विशेष दिलचस्पी दिखाई जिनमें गणतांत्रिक, समाजवादी और साम्यवादी मूल्यों के चिह्न मिलते हैं। वस्तुतः पाठकों को वे यह दिखलाना चाहते थे कि भेद-भावमुक्त और बराबरी पर आधारित समाज के निर्माण के लिए जिन मूल्यों की वकालत की जा रही है उनका एक ठोस ऐतिहासिक आधार है; वे मानव समाज की विरासत का हिस्सा हैं। यह सोच ‘मधुर स्वप्न’ सहित उनकी सभी ऐतिहासिक कृतियों में स्पष्ट झलकती है। इस उपन्यास की कथाभूमि है मध्य एशिया में दजला नदी से यक्षु नदी तक की भूमि और काल है पाँचवीं सदी के अन्तिम दशक से लेकर छठी सदी के आरम्भिक तीन दशक। तब वहाँ सासानी वंश का पीरोजा पुत्र कवात् का शासन था। धर्माचार्यों का उन दिनों बड़ा जोर था। इस उपन्यास में उन्हीं दिनों के सामन्ती शासन के वैभव-विलास, धर्माचार्यों की अनीति और दुराचार तथा दीन-दुखियों के करुण चीत्कार का विश्वसनीय चित्रण हुआ है। इसमें इतिहास के दोनों प्रकार के पात्र जीवन्त रूप में उपस्थित हैं—वे जिन्होंने बल और धन के जोर पर जन सामान्य का शोषण करना अपना शाश्वत अधिकार समझा, और वे भी जो प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थितियों में भी न्याय हासिल करने के स्वप्न को नहीं भूले और उसके लिए त्याग किया। धनिकों और गरीबों, शासकों और शासितों की विषम स्थिति के बीच न्याय और जनमुक्ति का यह मधुर स्वप्न ही इस उपन्यास का मूल सन्देश है। यह उपन्यास, वास्तव में, युग-युग के उस स्वप्न की सम्पूर्ण झलक है जो धीरे-धीरे, आंशिक रूप में ही सही, सत्य बनता जा रहा है।
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