Apaar Khushi Ka Gharana
Author:
Arundhati RoyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
<span style="font-weight: 400;">'अपार ख़ुशी का घराना' हमें कई वर्षों की यात्रा पर ले जाता है। यह एक कहानी है जो पुरानी दिल्ली की तंग बस्तियों से खुलती हुई फलते-फूलते नए महानगर और उससे दूर कश्मीर की वादियों और मध्य भारत के जंगलों तक जा पहुँचती है, जहाँ युद्ध ही शान्ति है और शान्ति ही युद्ध है और जहाँ बीच-बीच में हालात सामान्य होने का एलान होता रहता है।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अंजुम, जो पहले आफ़ताब थी, शहर के एक क़ब्रिस्तान में अपना तार-तार कालीन बिछाती है और उसे अपना घर कहती है। एक आधी रात को फुटपाथ पर कूड़े के हिंडोले में अचानक एक बच्ची प्रकट होती है। रहस्यमय एस. तिलोत्तमा उससे प्रेम करनेवाले तीन पुरुषों के जीवन में जितनी उपस्थित है उतनी ही अनुपस्थित रहती है। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">'अपार ख़ुशी का घराना' एक साथ दुखती हुई प्रेम-कथा और असंदिग्ध प्रतिरोध की अभिव्यक्ति है। उसे फुसफुसाहटों में, चीख़ों में, आँसुओं के ज़रिये और कभी-कभी हँसी-मज़ाक़ के साथ कहा गया है। उसके नायक वे लोग हैं जिन्हें उस दुनिया ने तोड़ डाला है जिसमें वे रहते हैं और फिर प्रेम और उम्मीद के बल पर बचे हुए रहते हैं। इसी वजह से वे जितने इस्पाती हैं उतने ही भंगुर भी, और वे कभी आत्म-समर्पण नहीं करते। यह सम्मोहक, शानदार किताब एक नए अन्दाज़ में फिर से बताती है कि एक उपन्यास क्या कर सकता है और क्या हो सकता है। अरुंधति रॉय की कहानी-कला का करिश्मा इसके हर पन्ने पर दर्ज है।</span>
ISBN: 9789388753586
Pages: 430
Avg Reading Time: 14 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Mahesh Garg "Bedhadak"
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- Description: "अफसर होना व्यर्थ है अफसर होना व्यर्थ है, घर में पूछ न ताछ पत्र-प्रपोजल छोड़कर, बना रहे हैं छाछ बना रहे हैं छाछ, प्रभु क्या हालत कीन्हीं मैडम का अब काम रह गया नुक्ता-चीनी माँ के संग मिलकर बच्चे भी कोस रहे हैं कुछ आता-जाता नहीं, ये केवल बॉस रहे हैं। पोशाक फ्रंट रो में एक नेता चल रहे थे साथ-साथ झकझकाती ड्रेस उनकी देखकर मैंने कहा तीन पीढ़ी से यही पोशाक, कोई खास बात? वो जरा से मुस्कराए कवि से कोई क्या छुपाए? आजकल इसके बिना पहचान नहीं है अस्ल बात—इसमें गिरेबान नहीं है! "
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