Utkoch
Author:
Jaiprakash KardamPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
भ्रष्टाचार, जिसका विरोध करना भारतीय समाज का सबसे पसन्दीदा शगल है, दरअसल हमारी जीवन-शैली का हिस्सा बन चुका है। हर कोई दूसरे के भ्रष्टाचार से त्रस्त है और सबके पास अपने भ्रष्टाचार के पक्ष में देने के लिए अनेक व्यावहारिक तर्क हैं। जो भ्रष्ट नहीं है और जीवन के हर मोड़, हर क़दम पर सिर्फ़ सिद्धान्त रूप में नहीं, बल्कि व्यवहार में भी उसका विरेाध करता है, उसे अस्वीकार करता है, वह ख़ुद-ब-ख़ुद समाज से निर्वासित महसूस करने लगता है।</p>
<p>इस उपन्यास का नायक मनोहर ऐसा ही व्यक्ति है जो किसी भी रूप में रिश्वत का समर्थन नहीं करता। इसके कारण, उसे न सिर्फ़ अपने दफ़्तर में अपने सवर्ण सहकर्मियों की उपेक्षा, उपहास और उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है, बल्कि घर में उसकी पत्नी भी इसी कारण पहले उससे नाराज़ रहने लगती है, और फिर तनाव के चलते बीमार पड़ जाती है।</p>
<p>जयप्रकाश कर्दम ने इस उपन्यास में विस्तार से एक आदर्शवादी युवक के मानसिक और सामाजिक संघर्ष को दर्शाया है। साथ ही आरक्षण और उच्च स्तरों पर व्याप्त भ्रष्टाचार, जाति-व्यवस्था, जाति के आधार पर दफ़्तरी माहौल में फैले भेदभाव आदि को भी बारीकी से उभारा है। सरल, सहज भाषा में बिलकुल आसपास घटित होती दिखनेवाली यह कहानी पाठकों को निश्चय ही पठनीय लगेगी।
ISBN: 9788183619165
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: "मॉरीशस के हिंदू समाज के मन में श्री राजेंद्र अरुण के प्रति अत्यंत स्नेह, सम्मान और आत्मीय भाव है। सन् 1974 में वे प्रधानमंत्री सर शिवसागर रामगुलाम के साप्ताहिक पत्र ‘जनता’ के प्रबंध संपादक बने। सन् 1982 में उनके जीवन में एक नया मोड़ आया। एम.बी.सी. रेडियो पर उन्होंने रामायण की व्याख्या पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम ‘मंथन’ आरंभ किया। लोगों ने इसे खूब सराहा। यह कार्यक्रम अब तक ‘मानस मंथन’ नाम से जारी है। उनके रेडियो कार्यक्रम की लोकप्रियता से ‘रामकथा’ का आरंभ हुआ। सन् 2000 के लगभग से श्री अरुणजी के मन में यह विचार आने लगा कि एक संस्था बनाकर रामकथा का विश्व स्तर पर प्रचार-प्रसार करें। सन् 2001 में उनके इस विचार को ‘रामायण सेंटर’ की स्थापना के साथ ठोस आधार प्राप्त हुआ। जन-मन के हृदय में रामायण गुरु के रूप में प्रतिष्ठित पं. राजेंद्र अरुण के 70वें जन्मदिन पर उन्हें उपहार रूप में भेंट करने के लिए इस पुस्तक के प्रकाशन का विचार हमारे मन में आया। इस पुस्तक में आत्मीय जनों द्वारा अरुणजी पर लिखे गए लेख, अरुणजी द्वारा लिखी गई कविताएँ, उनके चित्र, पत्र-पत्रिकाएँ जिनमें उन पर या उनका कुछ प्रकाशित है, ‘जनता’ समाचार-पत्र की कुछ कतरनें और उनकी कुछ पुस्तकों के अंश तथा एक लंबा साक्षात्कार और अरुणजी को प्राप्त कुछ सम्मान और पुरस्कार आदि संकलित हैं। ‘मॉरीशस के तुलसी’ पं. राजेंद्र अरुण के जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व के सम्यक् रूप का दिग्दर्शन करानेवाला संपूर्ण ग्रंथ। "
Krishnavtar : Vol. 3 : Paanch Pandav
- Author Name:
K. M. Munshi
- Book Type:

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Description:
पौराणिक चरित्रों को आधार बनाकर अनेक श्रेष्ठतर आधुनिक उपन्यासों की रचना करनेवाले सुप्रसिद्ध गुजराती कथाकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का भारतीय कथा-साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान है। अपनी कृतियों में उन्होंने सुदूर अतीत का जो विस्तृत जीवन-फलक प्रस्तुत किया है, वह जितना विराट् है उतना ही आकर्षक, साथ ही वह वैज्ञानिकता की कसौटी पर भी खरा उतरता है।
मुंशी जी का ‘कृष्णावतार’ एक वृहत् उपन्यास है—सात खंडों में विभक्त। ‘पाँच पाण्डव’ तीसरे खंड का हिन्दी रूपान्तर है। अन्य खंडों की ही तरह अगर यह परस्पर सम्बद्ध है तो अपने आपमें एक पूरी कथा भी है। पाँचों पाण्डवों के जन्म, विकास और संघर्षों-उपलब्धियों की इस रोचक-रोमांचक गाथा में आर्यावर्त्त के महान नायक श्रीकृष्ण की विलक्षण ऐतिहासिक भूमिका बड़ी कलात्मकता से रेखांकित हुई है। पुराकालीन आर्यों की संघर्षशील गतिविधियों, नागों की अरण्य-संस्कृति और ‘राक्षस’ नाम से पुकारे जानेवाले प्रस्तरयुगीन मानवों की आदिम जीवनचर्या के जीवन्त चित्र इसमें पूरी तरह से मुखर हैं।
Terodaiktil
- Author Name:
Mahashweta Devi
- Book Type:

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Description:
भारत की आदिवासी जनजाति की चेतना, संस्कृति, उत्पीड़न, संघर्ष और मानवीय गरिमा का एक और ज्वलन्त प्रमाण प्रस्तुत करनेवाली अप्रतिम कथाकार महाश्वेता देवी की नवीनतम कथाकृति है— ‘टेरोडैक्टिल’ जिसमें यथार्थ और फ़ैंटेसी के अद्भुत समन्वय से ऐसे वातावरण का सृजन किया गया है जो न केवल जनजातियों की भौतिक पीड़ाओं को स्वर देता है। अपितु उनकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को भी नए आयाम देता है और उनके प्रति मुख्य धारा के विकसित भारतीय जनमानस के दायित्वों के प्रति उसे सतर्क करता है।
टेरोडैक्टिल एक अर्धमानव, अर्धपक्षी जीव है जो नागेसिया आदिवासी जाति के पूर्वपुरुषों की आत्मा के रूप में अवतरित होता है और शोषण और उत्पीड़न के विरुद्ध उस पूरी जाति के संघर्ष को एक नए मिथ से जोड़ता है।
मध्य प्रदेश के एक काल्पनिक पहाड़ी स्थल—पिरथा—की पृष्ठभूमि में रचित यह उपन्यास पाठक को सर्वग्रासी पूँजीवादी प्रगति और आदिम समाजवादी सांस्कृतिक, सामाजिक परम्परा के बीच दो जीवन-पद्धतियों और दो प्रकार के जीवन-मूल्यों के संघात को दर्शाता है। पूरे कथानक में अद्भुत और सामान्य, चिरन्तन और आधुनिक का ऐसा सन्तुलन पैदा किया गया है कि पाठक साँस रोके आधिभौतिक से भौतिक जगत् तक की यात्रा करता हुआ उस मानवीय त्रासदी का साक्षात्कार करता है, जो उसके वर्तमान ही नहीं उसके भविष्य को भी उघाड़कर उसके सामने रख देता है।
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