
Agnigarbh
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
227
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
454 mins
Book Description
पश्चिम बंगाल समेत पूरे भारतवर्ष में भूमिहीन किसानों के असन्तोष और विद्रोह का इतिहास समकालीन घटना-मात्र नहीं है। आधुनिक इतिहास के हर पर्व में विद्रोह का प्रयास, उनके प्रति दूसरे वर्ग के शोषण के चरित्र को प्रकट करता है, जो अब तक प्रायः अपरिवर्तनीय बना हुआ है।</p> <p>दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी, खड़ीबाड़ी और फाँसी से लगनेवाले अंचल के अधिकांश भाग के रहनेवाले आदिवासी भूमिहीन किसान हैं। उनमें मेदी, लेप्चा, भोटिया, संथाल, उराँव, राजबंसी और गोरखा सम्प्रदाय के लोग हैं। स्थानीय ज़मींदारों ने बहुत दिनों से चली आ रही ‘अधिया’ की व्यवस्था में उन पर अपना शोषण जारी रखा है। इस व्यवस्था के नियम के अनुसार ज़मींदार भूमिहीन किसानों को बीज के लिए धान, हल-बैल, खाना और मामूली पैसे देकर अपने खेत में काम पर लगाते और उपज का अधिकांश भाग ज़मींदार के घर जाता।</p> <p>ऐसे में वे लोग सामन्ती हिंसा के विरुद्ध हिंसा को चुन लें तो क्या आश्चर्य?</p> <p>‘अग्निगर्भ’ का संथाल किसान बसाई टुडू किसान-संघर्ष में मरता है। लाश जलने के बावजूद उसके फिर सक्रिय होने की ख़बर आती है। बसाई फिर मारा जाता है। वह अग्निबीज है और अग्निगर्भ है सामन्ती कृषि-व्यवस्था। महाश्वेता देवी मानती हैं कि इस धधकते वर्ग-संघर्ष को अनदेखा करने और इतिहास के इस संधिकाल में शोषितों का पक्ष न लेनेवाले लेखकों को इतिहास माफ़ नहीं करेगा। असंवेदनशील व्यवस्था के विरुद्ध शुद्ध, सूर्य-समान क्रोध ही उनकी प्रेरणा है। एक अत्यन्त प्रेरक कृति।