Sahitya Aur Samaj
Author:
Ramdhari Singh DinkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
‘साहित्य और समाज’ समर्थ साहित्यकार, ओजस्वी वक्ता और प्रखर चिन्तक रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के साहित्य की विभिन्न विधाओं और समस्याओं को समर्पित चिन्तनपूर्ण अठारह निबन्धों का संकलन है।</p>
<p>यह पुस्तक यहाँ एक तरफ़—‘परम्परा और भारतीय साहित्य’, ‘साहित्य पर विज्ञान का प्रभाव’, ‘साहित्य में आधुनिकता’, ‘समाजवाद के अन्दर साहित्य’, ‘साहित्य का नूतन ध्येय’, ‘कलाकार की सफलता’, ‘भविष्य के लिए लिखने की बात’, ‘लेखकों का कार्य-शिविर’, ‘हिन्दी साहित्य पर गांधी जी का प्रभाव’, ‘पाकिस्तान के पीछे साहित्य की प्रेरणा’, ‘श्री अरविन्द की साहित्यिक मान्यताएँ’, ‘जार्ज रसल का साहित्य-चिन्तन’ आदि निबन्धों द्वारा समाज और साहित्य पर प्रकाश डालती है तो दूसरी तरफ़ ‘अर्धनारीश्वर’, ‘कला’, ‘धर्म और विज्ञान’, ‘आउट-साइडर’, ‘रवीन्द्रनाथ की राष्ट्रीयता और अन्तरराष्ट्रीयता’, ‘क्या रवीन्द्रनाथ अभारतीय हैं?’, ‘महात्मा टॉलस्टॉय’ जैसे विषयों पर दिनकर जी के गम्भीर चिन्तन को भी हमारे सम्मुख लाती है।</p>
<p>पठनीय और मननीय निबन्धों से सुसज्जित यह पुस्तक राष्ट्रकवि दिनकर के चिन्तक स्वरूप को उद्घाटित करनेवाली एक श्रेष्ठ बौद्धिक कृति है।
ISBN: 9788180313264
Pages: 146
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: Awating description for this book
Nagarjuna Aur Unki Kavita
- Author Name:
Nandkishore Naval
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Description:
खड़ीबोली कविता की परम्परा भी प्रचुर समृद्ध है। नागार्जुन इस परम्परा की महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। उनकी कविता के अनेक पक्ष हैं, यथा—आत्माभिव्यक्ति, प्रगतिशीलता, राजनीति, प्रकृति आदि। कुछ कथात्मक कविताओं में उन्होंने पौराणिक आख्यानों को भी आधार बनाया है, पर उसे आधुनिक संवेदना से नया बना दिया है।
नागार्जुन के प्रत्येक पक्ष की कविता में गजब का वैविध्य है। यह वैविध्य अन्तर्वस्तु के स्तर पर भी है और रूप के स्तर पर भी। उनकी तरह अनेक प्रकार की भाषाओं का प्रयोग करनेवाले कवि आधुनिक काल में निराला के अलावा शायद ही कोई हुए हों।
आम तौर पर उन्हें जन-कवि माना जाता है, लेकिन वे उसके साथ-साथ अभिजन-कवि भी थे। अभी कुछ दिन पहले ‘कवि अज्ञेय’ नामक डा. नवल की आलोचना-पुस्तक प्रकाशित हुई है। उससे स्पष्ट हो जाता है कि अज्ञेय और नागार्जुन एक-दूसरे के उलट नहीं थे, बल्कि उनमें मिलन के अनेक बिन्दु थे। अज्ञेय की कविता का नायक भी जनसाधारण था और नागार्जुन ने भी अनेक स्थलों पर अभिजात संवेदना का परिचय दिया है।
उनकी कविता के सम्बन्ध में ज्यादा न कहकर उनकी कुछ पंक्तियाँ उद्धृत की जाती हैं, जिससे उनकी अभिजात संवेदना और भाषा-शैली का भी पता चल सके। एक कविता में उन्होंने राष्ट्रगान की याद दिलानेवाला यह चित्र अंकित किया है: ‘दक्षिण में है नारिकेल-पूगीवन वलयित केरल जनपद/ तमिलनाडु की धनुष्कोटि-कन्याकुमारिका/पश्चिम जलनिधि सिंध-कच्छ-सौराष्ट्र/और गुर्जर- परिशोभित/उत्तर का दिक्पाल तुम्हारा महानाम उत्तुंग भाल/गौरीपति शंकर-तपःपूत कैलाश शिखर दंडायमान है/प्राची में है वरुणालय वह वंग-विभूषण/और वक्ष पर कौस्तुभ मणि-सा विंध्य पड़ा है/जाने कब से!’
डा. नवल की यह पुस्तक निश्चय ही लोकप्रियता प्राप्त करेगी, ऐसा विश्वास है।
Kamayani Ka Punarmulyakan
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
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Description:
प्रस्तुत कृति के माध्यम से डॉ. चतुर्वेदी ने ‘कामायनी’ के पुनर्मूल्यांकन को सही दिशा दी है। जैसा कि उन्होंने स्वयं विवेचन किया है, आकर्षण-विकर्षण, आतंक-उपेक्षा तथा महानता-विश्वविद्यालयीयता के बीच कवि ‘प्रसाद’ का अब तक विवेचन ‘भाषा और संवेदना’ की रचनात्मक उपलब्धि के केन्द्रीय सत्य को व्याख्यायित करने में असमर्थ रहा है। डॉ. चतुर्वेदी के अनुसार बिना इस पकड़ के ‘प्रसाद’ के काव्य का न सही मूल्यांकन हो सकता है और न उनके काव्य के अध्ययन के दौरान उठनेवाले सवालों का ठीक जवाब ही खोजा जा सकता है।
लेखक ने बहुत सधे ढंग से ‘प्रसाद’ काव्य और मुख्यत: ‘कामायनी’ के गहरे और सूक्ष्म सांस्कृतिक सन्दर्भों को विवेचित करने की चेष्टा की है, और बिम्ब-विधान के माध्यम से उनकी रचनात्मक क्षमता को प्रतिपादित करने का प्रयास किया है। वस्तुत: काव्य रचनात्मक संश्लेष को उसकी सम्पूर्ण जटिलता में विवृत करने का सबसे दक्ष उपाय यही है। यह एक संक्षिप्त अध्ययन है, और इस कारण अध्येता पाठक अतृप्त रह जाने के कारण कुछ असन्तोष का अनुभव कर सकता है। परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि इस असन्तोष को जिज्ञासा में रूपान्तरित करती हुई यह कृति ‘प्रसाद’ काव्य को समझने में दूर तक हमारी सहायता करती है, और साथ ही काव्य की हमारी समझ को बढ़ाती है।
Jo Gopi Madhu Ban Gayi
- Author Name:
Rameshraaj
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- Description: श्रीकृष्ण और राधा के अलौकिक प्रेम को लेकर, यमक अलंकार से युक्त एक अद्भुत दोहा-शतक
Sahityik Nibandh
- Author Name:
Ganpatichandra Gupt
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Description:
साहित्य का आकर्षण शक्ति सिद्धान्त, साहित्य की विकास प्रक्रिया का सिद्धान्त, बौद्धिक रस, शृंगार रस सम्बन्धी नई स्थापनाएँ, रस-निष्पत्ति, साधारणीकरण एवं साहित्य की आस्वादन प्रक्रिया सम्बन्धी नए निष्कर्ष, हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन एवं काव्य-परम्पराओं का नया वर्गीकरण व नामकरण, हिन्दी साहित्य की विभिन्न काव्यधाराओं का उद्दाम स्रोत एवं प्रेरणा स्रोत के सम्बन्ध में नई स्थापनाएँ, हिन्दी साहित्य के विभिन्न युगों एवं परम्पराओं की विभिन्न प्रवृत्तियों के सम्बन्ध में नए निष्कर्ष, विभिन्न कवियों, लेखकों एवं रचनाओं के विवेचन विश्लेषण एवं मूल्यांकन से उपलब्ध नूतन निष्कर्ष इत्यादि कतिपय नए विचारों, नूतन स्थापनाओं एवं मौलिक सिद्धान्तों का उल्लेख प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है।
यह भी एक कटु सत्य है कि अभी तक हिन्दी जगत में पूर्व परम्परा से प्राप्त या विदेशों से आयातित विचारों एवं सिद्धान्तों को ही अधिक महत्त्व दिया जाता है—स्वयं हिन्दी के आचार्यों द्वारा प्रतिपादित मौलिक सिद्धान्तों की प्राय: उपेक्षा की जाती है। विदेशी शासन की दासता के कारण हम लोगों में जिस आत्महीनता एवं लघुता का भाव विकसित हुआ था, उससे अभी तक हम पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाए हैं। विश्वास है नई पीढ़ी के अध्ययन से इस आत्महीनता की भावना से मुक्त होकर स्वतंत्र एवं मौलिक चिन्तन का सम्यक् मूल्यांकन कर सकने में समर्थ होंगे।
प्रस्तुत संस्करण में नाटक, उपन्यास, कहानी आदि के विकास से सम्बन्धित निबन्धों में नव प्रकाशित रचनाओं का भी विवेचन करते हुए उन्हें अद्यतन रूप देने की चेष्टा की गई है।
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