Rachnaon Par Chintan
Author:
Zilani BanoPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 440
₹
550
Available
आंचलिक उपन्यास ‘अलग-अलग वैतरणी’, 'सोनामाटी’ और ‘आधा गाँव’ ने यह अहसास दिया है कि जीवन की बहुरंगी प्रक्रियाओं के आत्मीय अंकन के लिए जितना उदार फलक आंचलिकता प्रदान करती है, उतना पारम्परिक, शिष्ट, तत्सम जीवन नहीं। इसकी तत्परता में व्यक्ति की पीड़ा अथवा उसके आन्तरिक संघर्षों के अंकन अथवा मूर्त ऐतिहासिक प्रक्रियाओं का अंकन चाहे जितना भी हो लेकिन जीवन की वह आभा, सामान्य जीवन-प्रक्रिया में ही रचे-पचे होने का सामर्थ्य कम ही दिखता है। इसी कारण शिवप्रसाद सिंह का ‘नीला चाँद’ बौद्धिक प्रयास लगता है। ‘वे दिन’, ‘चितकोबरा’ या ‘शेखर : एक जीवनी’ शिल्प और तकनीक की दृष्टि से जो भी स्थान रखते हों, अपनी अन्तरंगता के बावजूद, ऊष्माहीन और औपचारिक लगते हैं। इनसे भिन्न ‘मैला आँचल’, ‘परती परिकथा’, ‘बलचनमा’ उपन्यास जीवन को प्रथम तल पर अंकित करते है। इनमें जीवन अधिक और चिन्तन कम है।</p>
<p>लेकिन ‘इतिहासेतर’ और ‘परम इतर' के आग्रही निर्मल वर्मा परम्परा और स्मृतियों की ओर लौटते हैं और उन्हें ही निकष मानकर वर्तमान की समालोचना प्रस्तुत करते हैं।</p>
<p>'गाँधीवाद की शव परीक्षा’ में मशीन को सभ्यता, रोज़गार और सस्ते, सर्वसुलभ उत्पादों से जोड़ा गया था, ‘चक्कर क्लब’ में इसे मनुष्यत्व अर्थात् मनुष्य के सत्त्व से जोड़ा गया है।</p>
<p>‘अन्धा युग’ में वर्णित सामाजिक यथार्थ तत्कालीन सामाजिक यथार्थ से मेल नहीं खाता यह मूलतः अतियथार्थवादी है।
ISBN: 9789388211369
Pages: 224
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: नारी सृष्टि का आधार है। वह जीवनी शक्ति है। इसलिए वह आरम्भ से ही चिन्तन का केन्द्र रही है। निर्गुण कवियों ने नारी पर काफ़ी कुछ लिखा है। लेकिन उसका सही-सही मूल्यांकन भी हुआ है, ऐसा कहना सम्भव नहीं।...कम-से-कम संतों के नारी-विषयक चिन्तन के प्रति यह धारणा ही बद्धमूल हो गई थी कि वे नारी के घोर निन्दक और विरोधी रहे हैं। इसका कारण सम्भवतः यह रहा कि उनके साहित्य को समग्रता में नहीं देखा गया और न ही सन्दर्भ के सही परिप्रेक्ष्य में उसे विश्लेषित करने की कोशिश की गई। इसके लिए यह बहुत आवश्यक है कि उस समय की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक स्थितियों के आलोक में उसका मूल्यांकन किया जाए। इन तमाम सन्दर्भों के सही परिप्रेक्ष्य में निर्गुण कवियों की नारी-भावना का जब हम विश्लेषण करते हैं तो सारी पिछली बद्धमूल धारणाएँ निराधार हो जाती हैं। एक नई दृष्टि से, यह पुस्तक इसी मिथक को तोड़ने और निर्गुण काव्य के इस पक्ष विशेष के मूल्यांकन में कुछ नये आयाम जोड़ने का एक विनम्र प्रयास है।
Kaalyatri Hai Kavita
- Author Name:
Prabhakar Shrotriya
- Book Type:

- Description: सुपरिचित आलोचक डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय द्वारा हिन्दी कविता की यह काल-यात्रा विशेष महत्त्व रखती है। कोई रचना इतिहास के दौर में क्या रूप लेती है और मानवीय संवेदन की अन्तर्धारा उसमें किन माध्यमों से परिचालित होती है, इसकी प्रामाणिक और गहरी समझ डॉ. श्रोत्रिय को थी। अक्सर इतिहास के कालबोध की परवर्ती दृष्टि के दौर में लोग अतीत की परिस्थितियों और कवि-सीमाओं को उपेक्षित कर जाते हैं। इस पुस्तक में ऐसा आवश्यक लचीलापन है, जिससे यह अतीत को जहाँ आधुनिकता की सार्थकता में देख सकी है, वहीं युग और कवि सीमा को भी संवेदित परकाय-प्रवेश की भाँति अपने मौलिक स्वरूप में प्रतिष्ठित कर सकी है। इससे कविता इतिवृत्त नहीं रहती, बल्कि वह आगामी काल-प्रवाह में सक्रिय और प्रेरक साझीदार प्रतीत होती है। अपने समय की नवीनतम काव्य-प्रवृत्तियों को भी लेखक ने गहराई से पकड़ा है, तभी वह आदिकाल से लेकर सातवें, आठवें और नवें दशक तक के विभिन्न कविता-दौरों पर समान रूप से विचार कर सका है। यही नहीं, इस संस्करण के लिए पुस्तक को संशोधित करते हुए डॉ. श्रोत्रिय ने दो नए अध्याय भी जोड़े थे। इनमें से एक है ‘भारतीय साहित्य की परम्परा’ और दूसरा, ‘नवाँ दशक : बदलाव की नई पहल’। लम्बी कविता और हिन्दी-नवगीत पर पहले से ही दो अध्याय पुस्तक में हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि डॉ. श्रोत्रिय की यह आलोचना-कृति हिन्दी कविता का एक व्यापक और मूल्यवान अध्ययन है और मनुष्यता के चिर उपेक्षित हिस्से की पीड़ाओं को काव्य-साहित्य की प्रमुख मानवीय चिन्ताओं में शामिल करने का आग्रह करती है।
BHARAT-CHINA LAC TAKRAV
- Author Name:
Mukesh Kaushik
- Book Type:

- Description: भारत और चीन के बीच अप्रैल 2020 से लेकर फरवरी 2021 के बीच एल.ए.सी. पर सैनिकों का आमना-सामना हुआ। करीब 10 महीने तक जंग जैसे हालात बने रहे। यह पुस्तक इस तनातनी का सबसे प्रामाणिक ब्योरा लेकर आई है। यह आधिकारिक स्तर पर दिए गए वक्तव्यों, सैन्य तैनाती से जुड़े शीर्ष अधिकारियों और संसद् से लेकर राजनीतिक बैठकों तक के विचार-विमर्श का विवरण पेश करती है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आर.के.एस. भदौरिया के अलावा चीनी समकालीन अध्ययन केंद्र के प्रमुख ले. जनरल एस. एल. नरसिंहन ने इस पुस्तक में योगदान दिया है। यह पुस्तक एल.ए.सी. पर तनातनी शुरू होने से पहले की सच्चाई, गलवान की खूनी रात और कैलाश रेंज पर भारतीय सेना की तैनाती का बहुत सटीक विवरण देती है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तथा विदेश मंत्री एस. जयशंकर की कूटनीति और सैन्य नीति को भी इसमें बेबाकी से पेश किया गया है। कई मायनों में यह पुस्तक भारत-चीन के बीच सैन्य संबंधों का संग्रहणीय दस्तावेज है।
Samkaleenta Aur Sahitya
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

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Description:
जब मैं बैंक में काम करता था, एक भिखारी था जो थोड़े अन्तराल से बैंक आता और रोकड़िया के काउंटर पर जाकर बहुत सारी चिल्लर अपनी थैली से उलट देता, फिर अपनी अंटी से, कभी अपनी आस्तीन से तुड़े-मुड़े नोट निकालकर एक छोटी-सी ढेरी लगा देता। कहता, इसे जमा कर लीजिए। उसके आने से मज़ा आता, आश्चर्य भी होता और एक क़िस्म की खीज भी होती—उन नोटों और गन्दी-सी चिल्लर को गिनने में। उस रोकड़िया जैसी ही स्थिति मेरी भी होती है जब समय-समय पर लिखी गई, छोटी-बड़ी टिप्पणियों को जमा कर उनकी किताब बनाने लगता हूँ। इस पूरी प्रक्रिया में लेकिन भिखारी भी मैं ही हूँ और रोकड़िया भी। सारी चिल्लर और नोट गिन लिए जाते तब पता लगता कि राशि कम नहीं हैं—कुल जमा काफ़ी अच्छा-ख़ासा है। ऐसा आश्चर्य कभी-कभी मुझे भी होता है। पृष्ठ गिनने लगता हूँ तो लगता है कि बहुत कुछ जमा हो गया है। सब कुछ चोखा नहीं है, कुछ खोटे सिक्के और फटे हुए नोट भी हैं।
इस दूसरी नोटबुक में इतना ही फ़र्क़ है कि इसमें गद्य की कुछ किताबों पर गाहे-बगाहे लिखी गई टिप्पणियों को भी शामिल किया गया है। पहली नोटबुक के फ़्लैप पर मैंने कहा था कि लिखने के सारे कौशल सिर्फ़ रचनाकार की क्षमताओं से ही पैदा नहीं होते हैं, कई बार वह अक्षमताओं से भी जन्म लेते हैं। ये नोट्स और टिप्पणियाँ मेरी क्षमताओं के बनिस्बत मेरी अक्षमताओं से ज़्यादा पैदा हुई हैं।
मुझे लगता था कि बाज़ार हिन्दी की कविता का कभी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा क्योंकि न तो इस क्षेत्र में अधिक पैसा है, न ही कीर्ति के कोई बहुत बड़े अवसर ही हैं। पर मैं ग़लत था। बाज़ार एक प्रवृत्ति है। इसका ताल्लुक़ अवसर, पैसे या कीर्ति से नहीं है। हिन्दी साहित्य का वर्तमान परिदृश्य जिस तरह के घमासान और निरर्थक विवादों से भरा नज़र आ रहा है, वह बाज़ार के ही प्रभाव का परिणाम है। विगत तीन दशकों की कविता का जैसा मूल्यांकन होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। ‘आलोचना’ से यह उम्मीद तब तक निरर्थक ही होगी जब तक कि कवि स्वयं इस दृश्य के मूल्यांकन की कोशिश नहीं करेंगे। यही हालत गद्य की भी है, विशेष रूप से कहानी और उपन्यास की। उसमें हल्ला अधिक है, सार्थक विमर्श और साफ़ बोलनेवाली आलोचना कम। आलोचना का एक बड़ा हिस्सा या तो उजड्डता और अहंकार से भरा है या ‘अहो रूपम् अहो ध्वनि’ के शोर से। एक कवि और कथाकार ही इसमें हस्तक्षेप कर सकता है। उसी की ज़रूरत है।
—राजेश जोशी
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