Poorva Madhyakalin Bharat Ka Samanti Samaj Aur Sanskriti
Author:
Ramsharan SharmaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 716
₹
895
Unavailable
यह पुस्तक पूर्व-मध्यकालीन समाज एवं संस्कृति के स्वरूप पर प्रकाश डालती है। गुप्तोत्तरकाल में सामाजिक संकट के कारण भूमि अनुदानों में वृद्धि हुई और व्यापार और मुद्रा-प्रयोग की कमी तथा प्राचीन नगरों के पतन के कारण यह प्रथा बढ़ चली। इस पुस्तक में इस तथ्य को उजागर किया गया है। इसके साथ ही भारतीय सामन्तवाद की आलोचनाओं पर विचार करते हुए इसमें मध्यकालीन उत्पादन पद्धति एवं उत्पादन सम्बन्धों तथा राज्य-व्यवस्था के सामन्ती पक्ष का उद्घाटन करते हुए प्राचीनकाल तथा मध्यकाल के बीच के अन्तर को स्पष्ट किया गया है। इसके अलावा इसमें जातियों की संख्या के बढ़ने और उनके बीच पैदा होनेवाले नए समीकरणों के कारणों की भी व्याख्या की गई है।</p>
<p>यह पुस्तक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त श्रेणीबद्ध, सोपानबद्ध सामन्ती संघटन के प्रभाव को तो दर्शाती ही है, तांत्रिक पंथ के उदय और प्रसार की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि को भी प्रस्तुत करती है। इसका मुख्य आकर्षण इस बात में है कि इसमें साहित्यिक तथा अन्य स्रोतों के आधार पर सामन्ती मानसिकता के विश्लेषण के साथ-साथ यह भी स्पष्ट किया गया है कि जब-तब किसान सामन्ती व्यवस्था का विरोध कैसे करते थे। लेखक का विचार है कि सामन्तवाद के मूल में प्रभुतासम्पन्न भूस्वामियों के अधीन बेबस किसानों का बना रहना अत्यावश्यक है। इस अवधारणा के आलोक में मध्यकालीन कला, धर्म, साहित्य और जातिप्रथा को सही ढंग से परखा जा सकता है, साथ ही देश के सामन्ती अवशेषों की पहचान और उनके उन्मूलन द्वारा प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।
ISBN: 9788171785605
Pages: 263
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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