Patna Mein 1857 Ki Bagawat
Author:
William TaylorPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Unavailable
विलियम टेलर ने सन् 1857 में पटना विद्रोह को दबाने में अहम भूमिका निभाई थी, किंतु उसकी अनेक गतिविधियाँ ऊपर के पदाधिकारियों को पसंद नहीं आईं। अति उत्साह में उसके द्वारा उठाए गए कदमों की काफी आलोचना हुई। बिना पुख्ता सबूत के लोगों को फाँसी देना, धोखे से वहाबी पंथ के तीनों मौलवियों को गिरफ्तार करना, उद्योग विद्यालय खोलने के लिए जमींदारों से जबरदस्ती चंदा वसूल करना, पटना के प्रतिष्ठित बैंकर लुत्फ अली खाँ के साथ बदसलूकी से पेश आना, मेजर आयर को आरा की तरफ कूच करने से मना करना, बगावत की आशंका से सारे यूरोपीयनों को पटना बुला लेना इत्यादि अनेक कदम टेलर ने उठाए, जिससे ऊपर के पदाधिकारी, खासकर लेफ्टिनेंट गवर्नर हैलिडे बहुत नाराज हुए। परिणामस्वरूप 5 अगस्त, 1857 को विलियम टेलर को पदमुक्त कर दिया गया।
प्रस्तुत पुस्तक ‘पटना में 1857 की बगावत’ विलियम टेलर द्वारा अपने आपको दोषमुक्त साबित करने के लिए लिखी गई थी। इसमें उसने बताया है कि कितनी विषम परिस्थितियों में अपनी जान जोखिम में डालकर उसने अंग्रेज कौम का भला किया और एक सच्चे अंग्रेज का फर्ज निभाया।
पटना में स्वतंत्रता के प्रथम आंदोलन का जीवंत एवं प्रामाणिक इतिहास।
ISBN: 9789382898337
Pages: 96
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: "देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कार्य क्षमता, बोलने की अनूठी शैली और आम व्यक्ति के साथ हर पल जुड़े रहने की इच्छा ने उनके व्यक्तित्व को अप्रतिम बना दिया है। नरेंद्र मोदीजी आज केवल एक व्यक्तित्व भर नहीं हैं, बल्कि वे हमारे देश के एक-एक नागरिक की आँखों की चमक हैं। नरेंद्र मोदीजी केवल अपने कदम बढ़ाने में यकीन नहीं रखते हैं, बल्कि वे कहते हैं कि मेरे साथ 130 करोड़ भारतीयों के कदम साथ चलेंगे, तो देश विकास के पथ पर अग्रसर होगा और भारत की पताका सदैव विश्व में सबसे ऊपर नजर आएगी। वे सकारात्मकता से भरपूर हैं। कठिन से कठिन परिस्थिति भी उन्हें विचलित नहीं करती। वे जितना अधिक राजनीति में बेजोड़ हैं, उतने ही शब्दों और विचारों के अधिकारी। उनकी बातें और उनका लेखन हर भारतीय में ऊर्जा, जोश और आत्मविश्वास का संचार करता है। यह पुस्तक नरेंद्र मोदीजी के प्रेरक विचारों का नवनीत है। यह पुस्तक हर भारतीय की सकारात्मकता को ऊर्जावान बनाने और उन्हें राष्ट्र के लिए समर्पित होने का भाव जाग्रत् करेगी।"
Prachin Bharat Mein Nagar Tatha Nagar Jivan
- Author Name:
Uday Narayan Rai
- Book Type:

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Description:
इस ग्रन्थ में आरम्भ से लेकर बारहवीं शती ई. तक ‘प्राचीन भारत में नगर तथा नगर-जीवन’ विषय का विशद् एवं रोचक ऐतिहासिक परिचय पहली बार प्रस्तुत किया गया है।
इस ग्रन्थ के प्रथम तीन अध्यायों में आज से लगभग साढ़े चार हज़ार वर्षों पूर्व ताम्राश्म-काल में प्रथम नगरीय सभ्यता का स्वदेशी उद्भव एवं प्रारम्भिक विकास, हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो-सदृश प्रथम नगरों के सन्निवेश का मौलिक स्वरूप, पाश्चात्य समकालीन नगरों की तुलना में उनके निर्माण की उत्कृष्टता, कालान्तर में लौह काल में द्वितीय पुर-कान्ति के साथ गांगेय उपत्यका में नगरीकरण की प्रक्रिया का आरम्भ, नगर-सन्निवेश की विकसित शैली तथा नगर-तत्त्वों के नवीन विकास और समावेश के विवरण प्राप्य हैं।
तदुपरान्त चतुर्थ से लेकर ग्यारहवें अध्याय तक देश के लगभग पचास प्रतिनिधि नगरों का तिथिक्रम के अनुसार ऐतिहासिक परिचय, नगर एवं गृह-निर्माण की वैज्ञानिक पद्धति, भारतीय अभियन्ताओं की मौलिक सूझ-बूझ तथा नगर-शासन की विशेषताओं का परिचय उपलब्ध होता है। बारहवें से पन्द्रहवें अध्याय तक नगरों का आर्थिक जीवन एवं संघटन, सामाजिक, भौतिक एवं सांस्कृतिक जीवन की विशेषताओं का विश्लेषण, प्राचीन भारतीय कला में नगरीय रूपांकन तथा समग्र परिशीलन का सारगर्भित निष्कर्ष प्राप्य है।
नवीनतम साक्ष्यों के आधार पर इस रचना को अधिकाधिक सज्य बनाने का प्रयास किया गया है। इसका प्रत्येक अध्याय सम्यक् पठनीय तथा नवीन तथ्यों से भरपूर एवं ऋद्ध है। अद्यतन पुरातत्त्वीय साक्ष्यों से मंडित सटीक चित्रफलक, मानचित्र एवं युक्तियाँ विवेचन को अधिकाधिक प्रामाणिक, रोचक एवं सारगर्भित बनाने के उद्देश्य से यथास्थान संयुक्त हैं।
आशा एवं विश्वास है कि अपने वर्तमान स्वरूप में यह ग्रन्थ पहले से अधिक उपादेय एवं अपने अभीष्ट की पूर्ति में सफल सिद्ध हो सकेगा।
Bharatiya Janata Party Ki Gauravgatha
- Author Name:
Shantanu Gupta
- Book Type:

- Description: 29 मार्च, 2015 को, 11 अशोक रोड स्थित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पुराने कार्यालय में एक डिजिटल काउंटर आगे बढ़ता जा रहा था। पार्टी कार्यकर्ता, पदाधिकारी, यहाँ तक कि स्टाफ की नजरें भी डिजिटल स्क्रीन पर जमी थीं। स्क्रीन पर पार्टी की सदस्यता लेनेवालों की कुल संख्या दिख रही थी, जिन्हें पार्टी के नए ‘सदस्यता अभियान’ से जोड़ा जा रहा था। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, अमित शाह उस दिन कार्यालय में ही थे। बालसुलभ उत्सुकता के साथ उनकी भी नजरें डिजिटल काउंटर पर ही गड़ी थीं। काउंटर जैसे ही अपने लक्ष्य पर पहुँचा, पूरा कार्यालय खुशी से झूम उठा। 8.8 करोड़ सदस्यों तक पहुँचते ही इसने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को पीछे छोड़ दिया था। इस महत्त्वाकांक्षी सदस्यता अभियान के पीछे अमित शाह की ही सोच थी। यह कैसे संभव हुआ? क्या यह महज आँकड़े जुटाने का अभियान था, जिसने भाजपा के भाग्य को और बलवान बनाया, या इसके पीछे ऐसी सोच थी, जिसका समय आ चुका था? 1984 में लोकसभा में महज दो सीटों वाली पार्टी का विपक्ष को इस प्रकार बुरी तरह परास्त करना और इतना भीमकाय रूप लेना क्या मात्र मोदी-शाह की जोड़ी का कमाल है या इसके कारण हिंदुत्व आंदोलन की उस जटिलता की गहराई में छिपे हैं, जिसे लेकर काफी गलतफहमी है? इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए शांतनु गुप्ता भारत के दक्षिणपंथी आंदोलनों के इतिहास, उनकी वैचारिक उत्पत्ति से राष्ट्रवादी विचारों के विकास तक जाते हैं, और भाजपा पर एक समग्र अध्ययन को लेकर आते हैं, जो मात्र एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि एक वैचारिक संगठन है, जो इस देश के राष्ट्रवादी आंदोलन को इस प्रकार परिभाषित करता है, जैसा पहले कभी नहीं किया गया था।
Kingmakers
- Author Name:
Rajgopal Singh Verma
- Book Type:

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Description:
अठारहवीं सदी में भारत ने राजनैतिक अव्यवस्था, प्रशासनिक दुर्बलता, आर्थिक अवनति और सांस्कृतिक पतन की अकल्पनीय परिस्थितियों का सामना किया। उस दौर के कई बादशाह विलासी और निहायत अदूरदर्शी रहे। ऐसे में व्यभिचार एवं भ्रष्टाचार के मामलों में वृद्धि हुई, जबकि जनकल्याण की अवधारणा पृष्ठभूमि में चली गई थी।
ऐसे समय में सैयद बन्धुओं—सैयद अब्दुल्ला ख़ान और सैयद हुसैन अली ख़ान का उत्कर्ष हुआ। अपने पराक्रम और वीरता के लिए विख्यात ये दोनों भाई मुग़लों के वफ़ादार थे। उनको अपनी विवशता का वास्ता देकर, सत्ता-संघर्ष में भावनात्मक रूप से शहज़ादे फ़र्रूखसियर ने उन्हें अपने पक्ष में कर लिया था। अगले सात सालों तक इन भाइयों का ऐसा सिक्का चला कि बादशाह से कहीं बेहतर स्थिति उनकी रही। शाही विरासत के फ़ैसलों के साथ ही रोज़मर्रा के कामों में भी उनकी निर्णायक दख़ल रही। वस्तुत: वे मुल्क की बादशाहत को बनाने और बिगाड़ने वाले बन बैठे थे।
लेकिन इतना शक्ति सम्पन्न होने पर भी सैयद बन्धुओं को क्या मिला? एक की धोखे से हत्या कर दी गई जबकि दूसरे को ज़हर दे दिया गया। शाही सेना की अग्रिम पंक्ति में रहकर, शत्रुओं से टक्कर लेने वाले वे दोनों भाई, मुग़ल बादशाहों के महलों की राजनीति का शिकार तो नहीं हो गए थे? गलतियाँ तो उनकी भी रही होंगी!
इतिहास के उत्तर मुग़लकालीन इन अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर तलाशने की कोशिश करती यह पहली किताब है, जिसमें ‘किंगमेकर्स’ के रूप में मशहूर सैयद भाइयों के व्यक्तित्व और कृतित्व, उनके उत्कर्ष और पराभव की परतों को उघाड़ने के साथ ही मुग़ल वंश के पतन की स्थितियों पर भी पर्याप्त प्रकाश तथ्यसंगत डाला गया है। यह किताब भारतीय इतिहास के उस कालखंड का एक ऐसा दस्तावेज़ है, जिसकी अभी तक प्राय: अनदेखी की गई है। लेखक ने इस किताब को उपन्यास जैसी रोचक शैली में लिखा है, परन्तु इतिहास की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता भी बनाए रखी है।
—प्रो. शशि प्रभा
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