Pashchim Se Samvad : Hindi, Samaj, Alochana
Author:
Dilip Kumar GuptPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Available
संसार के मानव-समुदायों और राष्ट्रों का वर्तमान समय बीती सदियों की जिजीविषा के मोहक संघर्ष का अद्यतन रूप है। एक मानव समुदाय द्वारा दूसरे को अधीन करने या अन्य की दासता का भोग करने की कामना अत्यन्त प्राचीन है। किन्तु इसके साधन और उपकरण एक जैसे नहीं होते। आज ये उपकरण इतने महीन और सूक्ष्म हैं कि इनकी पहचान करना सामान्यत: सरल नहीं है। इनमें सर्वाधिक दक्ष और प्रचलित है—अन्य के सपनों और आकांक्षाओं के टेक्सचर पर नियंत्रण। मुख्यत: संस्कृति में घटित होने वाली इन प्रक्रियाओं का प्रकटन भाषा और साहित्य में सर्वाधिक प्रामाणिक और स्थायी होता है। भारत के बारे में सोचते हुए और हिन्दी समाज से गुज़रते हुए जब हम कुछ समकालीन प्रश्नों से संवाद करते हैं तो धर्म और संस्कृति तथा भाषा और साहित्य के कई रूपक व्याख्यायित करने पड़ते हैं और बात बहुत दूर तक जाती है।
ISBN: 9789389742398
Pages: 224
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Vichar Ka Dar
- Author Name:
Krishna Kumar
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी गद्य का स्वरूप साठ के दशक में बदलना शुरू हो चुका था। सत्तर के दशक में यह बदलाव कई विधाओं में प्रकट हुआ। लोकतांत्रिक चेतना के फैलाव से पैदा हुए तनावों के अलावा शिक्षा और संचार के आधुनिक माध्यमों का विस्तार गद्य को जिज्ञासा और समझ की नई ज़मीनें तोड़ने के लिए तैयार कर रहा था। इस विकास को कुंठित करनेवाली ताक़तें—अंग्रेज़ी की चौधराई, राज्याश्रित हिन्दी की राजनीति और उत्तर के समाज में फैली सामन्ती प्रवृत्तियाँ भी—पोषण पा रही थीं; विचार का डर हमें इन ताक़तों को समझने में मदद दे सकता है।
इस पुस्तक में संकलित पद्य पिछले दो दशकों में प्रकाशित कृष्ण कुमार की वैचारिक रचनाशीलता की बानगी तो देता ही है, इस समूचे दौर की गतिशील प्रवृत्तियों का बिम्ब भी प्रस्तुत करता है। विषयों की दृष्टि से ये लेख, निबन्ध और संस्मरण हिन्दी समाज के सरोकारों का पैमाना कहे जा सकते हैं। अर्थ और राजनीति से लेकर साहित्य, संचार और मनोरंजन के तेज़ी से बदलते हुए ढाँचों के बीच तकनीक, भाषा, फ़िल्म-संगीत, स्त्री, साम्प्रदायिक हिंसा और पत्रकारिता जैसे सन्दर्भों की जाँच इस कृति को एक नई तरह का, बहुत फैला हुआ पाठक समुदाय देती है।
Shrilal Shukla Ki Duniya
- Author Name:
Shrilal Shukla
- Book Type:

-
Description:
स्वातंत्र्योत्तर भारतीय यथार्थ के अत्यन्त सतर्क और विलक्षण उद्घाटनकर्ता हैं श्रीलाल शुक्ल। उन्होंने रचनात्मकता का जैसा जादू बिखेरा, वैसा उनके अतिरिक्त अन्य किसी से सम्भव न हुआ। उपन्यास, कहानी, निबन्ध, व्यंग्य, आलोचना आदि विविध विधाओं में फैला उनका साहित्य भारतीय समाज का महायथार्थ प्रकट करता है। साथ ही वह भाषा और शिल्प के अभूतपूर्व और अप्रतिम रूपों का आविष्कार भी करता है। ऐसे में श्रीलाल शुक्ल के जीवन और साहित्य के सत्यों, प्रश्नों, रहस्यों और जिज्ञासाओं को सुलझाने और उनका मूल्यांकन प्रस्तुत करनेवाले पुस्तक की आवश्यकता लम्बे अर्से से थी। उस आवश्यकता को पूरा करती है यह पुस्तक ‘श्रीलाल शुक्ल की दुनिया’।
प्रसिद्ध युवा कथाकार अखिलेश द्वारा सम्पादित यह कृति श्रीलाल शुक्ल के व्यक्तित्व और सृजन के अध्ययन की विभिन्न विचारोत्तेजक छवियाँ प्रस्तुत करती है। अनेक विख्यात रचनाकारों के लेखों से समृद्ध यह पुस्तक हिन्दी में सर्वाधिक पढ़े जा रहे साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल को विधिवत् जानने का अचूक ज़रिया है।
‘श्रीलाल शुक्ल की दुनिया’ कोई अभिनन्दन ग्रन्थ नहीं है। यहाँ तो व्यक्ति और लेखक श्रीलाल शुक्ल को लेकर बहसें हैं, मत वैभिन्य हैं, विश्लेषण हैं, सन्देह और भरोसे हैं। इसीलिए श्रीलाल शुक्ल और उनके लेखक की तरह ही जीवन्त, उत्तेजक, बेलौस और संजीदा बन सका है उनके समग्र मूल्यांकन का यह संसार।
‘श्रीलाल शुक्ल की दुनिया’ में श्रीलाल शुक्ल पर इतनी अधिक, इतनी बेशक़ीमती सामग्री उपस्थित है और मूल्यांकन की इतनी प्रविधियाँ हैं कि पाठक, विद्वान, लेखक, शोधार्थी सदा लाभान्वित होते रहेंगे।
Bhartiya Aryabhasha Aur Hindi
- Author Name:
Sunitikumar Chaturjya
- Book Type:

-
Description:
‘भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी’ में प्रख्यात भाषाविद् डॉ. सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के वे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भाषण संकलित हैं, जो उन्होंने 1940 ई. में ‘गुजरात वर्नाक्यूलर सोसाइटी’ के आमंत्रण पर दिए थे। इन भाषणों के विषय थे : (1) ‘भारतवर्ष में आर्यभाषा का विकास’ और (2) ‘नूतन आर्य अन्त:प्रादेशिक भाषा हिन्दी का विकास’ अर्थात् राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का विकास। जनवरी 1942 में सुनीति बाबू ने इन भाषणों को संशोधित और परिवर्धित करके पुस्तक रूप में प्रकाशित कराया था। 1960 में दूसरे संस्करण के लिए उन्होंने फिर इसे पूरी तरह संशोधित किया। इसमें कुछ अंश नए जोड़े और कुछ बातों पर पहले के दृष्टिकोण में संपरिवर्तन किया। इस प्रकार पुस्तक ने जो रूप लिया, वह आज पाठकों के सामने है, और भारत में ही नहीं विदेश में भी यह अपने विषय की एक अत्यन्त प्रामाणिक पुस्तक मानी जाती है।
भारत सरकार द्वारा यह पुस्तक पुरस्कृत हो चुकी है।
Ramvilas Sharma Rachanawali Vol : 1-19
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

- Description: भाषा, विचार, साहित्य, दर्शन, संस्कृति, इतिहास और समाजशास्त्र समेत मानव, उसके वर्तमान और भविष्य को लक्षित आलोचना के विराट व्यक्तित्व रामविलास शर्मा का लेखन न केवल परिमाण में विपुल है, बल्कि चिन्तन की लगभग सभी सम्भव दिशाओं में मौलिक दृष्टि तथा गहन अध्ययन से प्रसूत पथ-निर्देशक अवधारणाओं का विशाल आगार है। उनको पढ़ना हिन्दी मेधा के शिखर से गुजरना है। साहित्य-रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए उनकी आलोचकीय जिज्ञासा रस, लय, शब्द-संयोजन आदि की पड़ताल करते हुए भाषा-विज्ञान, भाषा-इतिहास और दर्शनशास्त्र तक पहुँची। मार्क्सवादी विश्व-दृष्टि उनके चिन्तन और विवेचन की अविचल आधारभूमि रही, लेकिन उसे भी उन्होंने अपनी सीमा नहीं बनने दिया। आलोचना-समीक्षा करते समय उन्होंने सिद्धान्तों या प्रतिमानों को विशेष महत्त्व नहीं दिया। उनके अनुसार, 'प्रतिमान आलोचना की अग्रभूमि में स्थित नहीं हैं। प्रत्येक रचना अपना प्रतिमान गढ़ती है; आलोचक उसका अन्वेषण करते हुए रचनाकार की विश्व-दृष्टि, उसकी परिस्थिति, परिवेश और यथार्थ-चित्रण का मूल्यांकन करता है।' यह डॉ. रामविलास शर्मा के सम्पूर्ण आलोचनात्मक लेखन की प्रस्तुति है, जिसकी प्रतीक्षा हिन्दी संसार को लम्बे समय से थी। गत कई वर्षों के अथक परिश्रम के फलस्वरूप तैयार अठारह खंडों की इस रचनावली में रामविलास जी के विचारपरक लेखन को सुचिन्तित क्रम से संकलित किया गया है। रचनावली के इस पहले खंड में रामविलास जी के अवदान पर केन्द्रित डॉ. कृष्णदत्त शर्मा की विस्तृत प्रस्तावना के अलावा रामविलास जी की ‘प्रेमचन्द’ तथा ‘प्रेमचन्द और उनका युग’ पुस्तकों को शामिल किया गया है। रामविलास जी का मानना था कि, ‘प्रेमचन्द की आवाज भारत की अजेय जनता की आवाज है, इसीलिए प्रेमचन्द आज भी हमारे साथ हैं।’ इन पुस्तकों में उन्होंने प्रेमचन्द के व्यक्ति तथा कथाकार, दोनों पर दृष्टिपात किया है।
Bhartiya Kavya Shastra Ki Bhumika
- Author Name:
Yogendra Pratap Singh
- Book Type:

-
Description:
भारतीय काव्य-चिन्तन की दृष्टि कविता के स्थापत्य से जुड़ी है। काव्य-सृजन शब्दार्थ का एक अद्वैत सहयोग है और कवि अपनी प्रतिभा के संयोग से इस शब्दार्थ में चित्त को विगलित करने की सामर्थ्य उत्पन्न करता है। पश्चिम में, यदि प्लेटो तथा अरस्तू से इसका प्रारम्भ माने तो सत्रहवीं शती तक वहाँ इसका अव्यवस्थित एवं अक्रमबद्ध विवेचन मिलता है, जबकि आचार्य भरत से प्रारम्भ होकर भारतीय काव्य-चिन्तन सत्रहवीं शती तक अपने विकास के चरम शीर्ष पर पहुँच जाता है।
‘शब्दार्थ’ रचना की प्रमुख समस्याएँ—‘सर्जन का मूलाधार’ (काव्य हेतु), ‘सृजन की केन्द्रीय चेतना’ (काव्यात्मा), ‘सृजन का मूल उद्देश्य’ (काव्य प्रयोजन), ‘कवि-कर्म का वैशिष्ट्य’ जैसे महत्त्वपूर्ण पक्षों पर यहाँ क्रमश: चिन्तन किया गया है और सार्वभौम हल निकालने की चेष्टा की गई है। भारतीय काव्य चिन्तन की केन्द्रीय धुरी ‘शब्दार्थ’ रचना ही है क्योंकि कविता की निष्पत्ति के लिए एकमात्र और अन्तिम मूल सामग्री वही है—भारतीय काव्य-चिन्तन का समग्र विकास अर्थात् शब्द सौष्ठव से लेकर आस्वादन तक का विवेचन, इसी शब्दार्थ पर ही आधारित रहा है और प्रस्तुत कृति का सम्बन्ध भारतीय कविता-चिन्तन के इसी वैशिष्ट्य को इंगित करना है।
Aacharya Ramchandra Shukla ke Itihas ki Rachna Prakriya
- Author Name:
Sameeksha Thakur
- Book Type:

-
Description:
* आचार्य शुक्ल का "हिंदी साहित्य का इतिहास" उनकी साहित्य साधना की चरम परिणति है। अपने वर्तमान रूप में उनका यह अंतिम ग्रंथ भी है और अन्यतम भी। हिंदी साहित्य के ज्ञान कोश के रूप में यह आज भी सबसे विश्वसनीय संदर्भ ग्रंथ है। एक साथ ही यह इतिहास भी है और आलोचना भी, समालोचना का सिद्धान्त भी और प्रमुख हिंदी साहित्यकारों का तारतमिक मूल्यांकन भी, हिंदी जाति की चित्तवृत्ति का 'संचित प्रतिबिम्ब' भी और हिंदी भाषा की मूल प्रकृति का मानक भी। 'यदिहास्ति तदन्यत्र यन्त्रेहास्ति न तत क्वचित्' (जो यहाँ है वही अन्यत्र है, जो यहाँ नहीं है वह कहीं नहीं है) की उक्ति बहुत कुछ इस कालजयी कृति के विषय में भी चरितार्थ होती है।
* "हिंदी साहित्य का इतिहास" का भी एक इतिहास है। आलोचना की यह एक ऐसी विकासशील कृति है जिसने अनेक चरणों में पूर्णता प्राप्त की है। सौभाग्य से इनमें से प्रत्येक चरण के आलेख प्रकाशित रूप में सुरक्षित हैं। यह और बात है कि वे सभी दस्तावेज सरलता से सुलभ नहीं हैं। किन्तु इतना निश्चित है कि इस 'इतिहास' का इतिहास इन आलेखों में ही छिपा है। उस इतिहास की निर्माण-प्रक्रिया का अनावरण उन सभी आलेखों के तुलनात्मक अनुशीलन से ही सम्भव है।
Urdu Ka Arambhik Yug
- Author Name:
Shamsurrahman Farooqui
- Book Type:

-
Description:
उर्दू भाषा की उत्पत्ति दिल्ली के आसपास हुई, लेकिन आरम्भ में इसमें साहित्य की पैदावार गुजरात और दकन में हुई। ऐसा क्यों हुआ, इस पर इस पुस्तक में प्रकाश डाला गया है। फिर गुजरात और दकन में सैद्धान्तिक आलोचना और काव्यशास्त्र के उदय तथा इस सिलसिले में अमीर खुसरो और संस्कृत की केन्द्रीय भूमिका को भी इसमें रेखांकित किया गया है। इसके अलावा इस पुस्तक में जिन विषयों की जाँच-पड़ताल की गई है, वे हैं : दिल्ली का साहित्यिक परिप्रेक्ष्य पर देर से प्रकट होना, दिल्ली के साहित्यिक साम्राज्यवादी स्वभाव के कारण ग़ैर दिल्ली और बाहरी साहित्यकारों का उर्दू की प्रामाणिक सूची से बाहर रहना और अठारहवीं सदी की दिल्ली में नई साहित्यिक संस्कृति और काव्यशास्त्र का उदय।
दिल्ली में भाषा की शुद्धता की मुहिम और अन्योक्ति (ईहाम) के आन्दोलनों की वास्तविकता क्या है, उस्तादी/शागिर्दी का इदारा दिल्ली के अलावा कहीं और क्यों न वजूद में आया? इन प्रश्नों के अलावा ‘दिल्ली स्कूल’ और ‘लखनऊ स्कूल’ पर भी इसमें विचार किया गया है। इसका संक्षिप्त रूप शेलडन पॉलक की सम्पादित पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है। हमें उम्मीद है कि हिन्दी के पाठकों को यह पुस्तक बेहद उपयोगी और सूचनापरक लगेगी।
Shabd Shuddh Uchcharan Avm Padbhar
- Author Name:
Dr. Azam
- Book Type:

- Description: Book
Shabdon Ka Jeevan
- Author Name:
Bhola Nath Tiwari
- Book Type:

-
Description:
शब्दों के जन्म, निर्माण, अर्थ, ध्वनि परिवर्तन और आदान-प्रदान आदि से सम्बद्ध भाषावैज्ञानिक तथ्य प्रायः नीरस होते हैं। उन्हें समझना और समझाना, दोनों ही कार्य किसी चुनौती से कम नहीं है। इसलिए लेखक का ध्यान इस ओर पाठक से भी पहले जाता है और इस विषय को वह अधिकाधिक पठनीय बनाकर प्रस्तुत करता है।
शब्दों का जीवन सुप्रसिद्ध भाषाविज्ञानी भोलानाथ तिवारी के ऐसे ही प्रयास का परिणाम है। उनकी यह कृति हिन्दी में ऐसा पहला ही प्रयास था, जब किसी ने भाषावैज्ञानिक तथ्यों को ललित निबन्धों के शिल्प में पेश किया हो। भाषाविज्ञान पर यह उनकी सर्वथा अनूठी कृति है। उनकी कल्पना ने इन ललित निबन्धों में शब्दों को मनुष्य की तरह ही जन्म लेते, मरते, उलटते-पलटते और उठते-बैठते दिखाया है। दूसरे शब्दों में कहें तो वे शब्दों का मानवीकरण करने में सफल रहे हैं।
प्रत्येक शब्द का अपना इतिहास है और अपना भूगोल। कहना न होगा कि सामान्य पाठकों के लिए यदि यह कृति ललित निबन्धों का संग्रह है तो विद्यार्थियों के लिए भाषाविज्ञान जैसे विषय को अत्यन्त मनोरंजक भाषा-शैली में हृदयंगम करानेवाली बहुचर्चित कृति।
Vakya Sanrachana Aur Vishleshan : Naye Pratiman
- Author Name:
Badrinath Kapoor
- Book Type:

- Description: हिन्दी की प्रकृति और प्रवृत्ति को जानना-समझना डॉ. बदरीनाथ कपूर का व्यसन रहा है। ‘बेसिक हिन्दी’, ‘परिष्कृत हिन्दी व्याकरण’, ‘हिन्दी व्याकरण की सरल पद्धति’ तथा ‘नवशती हिन्दी व्याकरण’ आदि पुस्तकें इसी व्यसन की सूचक हैं। ‘नवशती हिन्दी व्याकरण’ में कुछ नई प्रस्थापनाएँ भी की गई थीं जो परम्परा से हटकर थीं। प्रस्तुत पुस्तक क्रियाओं के सम्बन्ध में किए गए उनके चिन्तन का सुफल परिणाम है। उनका मानना है कि क्रियापदों में ही ऐसे सूत्र निहित हैं जिनके आधार पर वाक्य की संरचना की जा सकती है। उन्होंने इन सूत्रों को ‘क्रिया-निर्देश’ की संज्ञा दी है। कुल सूत्र चालीस हैं और पाँच-पाँच सूत्रों के इनके आठ सर्ग हैं। इन्हीं के आधार पर इस पुस्तक में हिन्दी वाक्यों की विशेषतः सरल वाक्यों की— संरचना करने का प्रयास किया गया है। इस पुस्तक में वाक्य-संरचना और विश्लेषण दोनों साथ-साथ दिये गए हैं जिससे स्पष्ट हो कि क्रिया-निर्देशों और नवशती हिन्दी व्याकरण की स्थापनाओं (दोनों) का उद्देश्य एक है। हिन्दी वाक्य-संरचना के नए प्रतिमान प्रस्थापित करनेवाली डॉ. बदरीनाथ कपूर की यह महत्त्वपूर्ण पुस्तक हिन्दी भाषा की सूत्रबद्धता को स्थापित करती है और सिद्ध करती है कि हिन्दी एक सुचिन्तित और सुनियोजित भाषा है। हिन्दी भाषा की अस्मिता और गरिमा की वृद्धि करनेवाली इस महत्त्वपूर्ण कृति का संयोजन वैज्ञानिक और गणितीय पद्धति पर हुआ है। छात्रों-अध्येताओं के लिए समान रूप से उपयोगी।
Pragatisheel Aalochana Aur Namvar Singh
- Author Name:
Vijay Kumar Bharti
- Book Type:

-
Description:
प्रगतिशील आलोचना के सन्दर्भ में नामवर सिंह का मूल्यांकन किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने प्रगतिशील आलोचना को विस्तार दिया और उसे नयी ऊर्जा व जीवन्तता प्रदान की। नवीन विचारों, सिद्धान्तों और मूल्यों को आत्मसात करते हुए वे सदैव प्रगतिशील मूल्यों की रक्षा करते रहे, साथ ही प्रगतिशीलता की राह में बाधक तत्त्वों से हिन्दी-समाज को सावधान भी करते रहे।
उनकी प्रगतिशील दृष्टि में वाद, विवाद और संवाद के जरिए ही कोई विमर्श अपनी पूर्णता को प्राप्त कर सकता है। इसे ही मार्क्सवाद में थीसिस, एंटी-थीसिस और सिंथेसिस कहा जाता है। लेकिन मार्क्सवादी विचार को वे अनुकरणमूलक ढंग से नहीं स्वीकारते, वे उसे साहित्यिक और सांस्कृतिक जिम्मेदारी के रूप में देखते हैं जिसका एक व्यापक और व्यावहारिक परिप्रेक्ष्य है।
उनकी प्रगतिशील आलोचना-दृष्टि विभिन्न वादों, सिद्धान्तों और विचारधाराओं से मुठभेड़ करते हुए प्रगतिशीलता की रक्षा करती है। वर्तमान परिस्थितियों में मार्क्सवाद को जीवन्त बनाए रखने के लिए उन्होंने उन जड़ताओं पर भी प्रहार किया जो प्रगतिशील मूल्यों के रास्ते में बाधा उत्पन्न कर सकती थीं। नए प्रतिमान तलाशते हुए वे परम्परा की खोज करते हैं और आधुनिक प्रवृत्तियों की पड़ताल भी करते रहते हैं।
नामवर सिंह की प्रगतिशील आलोचना जितनी भारतीय सन्दर्भ से जुड़ी है, उतनी ही पाश्चात्य सन्दर्भ से भी। प्रगतिवादी कवियों को प्रयोगवादी शिल्प के खतरों से सचेत करते हुए वे विदेश से आयातित ह्रासोन्मुख भावनाओं, युद्धजनित अनास्था, वैयक्तिक असन्तोष तथा कुंठाओं के खतरे से भी रचनाकारों को सतर्क करते हैं। आलोचना के अन्तर्गत परम्परा के स्वाभाविक विकास के साथ-साथ द्वन्द्वात्मक विकास को महत्व देते हुए वे स्थापित करते हैं कि विकास विरोध से निर्मित होता है, परिपाटी-पालन से नहीं। उनके अनुसार प्रगतिशीलता अपने युग की प्रगतिशील शक्तियों की पहचान पर निर्भर होती है। इसीलिए वे मार्क्सवाद के नाम पर छद्म क्रान्तिकारिता का विरोध करते हैं, परम्परा-पूजा से सावधान करते हैं और सांस्कृतिक विरासत को आलोचनात्मक ढंग से देखने की अपील करते हैं।
यह शोध-ग्रन्थ उनकी प्रगतिशील सोच और उससे उत्पन्न उनकी आलोचना-दृष्टि की जड़ों की खोज है जो नामवर-साहित्य के अलावा उससे सम्बन्धित व्यापक संदर्भ-सामग्री के अध्ययन से संभव हुई है।
Vanchito Ke Kathakar: Renu Aur Tara Shankar
- Author Name:
Soma Bandyopadhyay
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी एवं बांग्ला के दो प्रमुख कथा-साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु एवं ताराशंकर बन्द्योपाध्याय जो आंचलिक उपन्यासकार के रूप में भी ख्याति प्राप्त कर चुके हैं, इनके साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन कर हिन्दी व बांग्ला के पाठकों को प्रोत्साहित करना ही मेरा मुख्य ध्येय है। मैं यह भी आशा करती हूँ कि यह तुलनात्मक अध्ययन अन्तःप्रान्तीय भाषाओं के सम्पर्क को और अधिक दृढ़ बनाएगा एवं देश के दो प्रान्तों के पाठकवर्ग के बीच एक भावात्मक एकता स्थापित करने में सफल होगा। साथ ही, साहित्य के प्रति उनके मन की अनन्त जिज्ञासा को भी मिटा
सकेगा।बांग्ला के ताराशंकर बन्द्योपाध्याय द्वारा लिखित ‘गणदेवता’ व ‘हाँसुली बाँकेर उपकथा’ एवं हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ आंचलिक उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास ‘मैला आँचल’ एवं ‘परती परिकथा’ बांग्ला व हिन्दी साहित्य की दुर्लभ सम्पदा बन गए हैं। ताराशंकर के उपन्यास तथा रेणु के उपन्यासों का पाठ करने के पश्चात् मैंने पाया कि इनके उपन्यासों में समता अधिक है। रेणु के उपन्यास ‘मैला आँचल’ में वर्णित ‘मेरीगंज’ की कहानी केवल बिहार की ही नहीं, बल्कि बंगाल के वीरभूम जिला स्थित किसी गाँव की ही कहानी लगती है, जहाँ स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व व उसके पश्चात् होनेवाले आमूल परिवर्तनों को दिखाया गया है।
युग-सचेतन, ज्ञानवान और संवेदनशील लेखकद्वय ने एक ओर जहाँ, नए समाज में विकसित हुए पिछड़े वर्ग का चरित्र उद्घाटित किया है, वहीं दूसरी ओर अपनी अभिव्यक्ति को बिलकुल यथार्थ की भूमिका पर प्रस्तुत करते हुए उसके द्वारा नए-नए आयामों की खोज भी की है।
BHARAT-CHINA LAC TAKRAV
- Author Name:
Mukesh Kaushik
- Book Type:

- Description: भारत और चीन के बीच अप्रैल 2020 से लेकर फरवरी 2021 के बीच एल.ए.सी. पर सैनिकों का आमना-सामना हुआ। करीब 10 महीने तक जंग जैसे हालात बने रहे। यह पुस्तक इस तनातनी का सबसे प्रामाणिक ब्योरा लेकर आई है। यह आधिकारिक स्तर पर दिए गए वक्तव्यों, सैन्य तैनाती से जुड़े शीर्ष अधिकारियों और संसद् से लेकर राजनीतिक बैठकों तक के विचार-विमर्श का विवरण पेश करती है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आर.के.एस. भदौरिया के अलावा चीनी समकालीन अध्ययन केंद्र के प्रमुख ले. जनरल एस. एल. नरसिंहन ने इस पुस्तक में योगदान दिया है। यह पुस्तक एल.ए.सी. पर तनातनी शुरू होने से पहले की सच्चाई, गलवान की खूनी रात और कैलाश रेंज पर भारतीय सेना की तैनाती का बहुत सटीक विवरण देती है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तथा विदेश मंत्री एस. जयशंकर की कूटनीति और सैन्य नीति को भी इसमें बेबाकी से पेश किया गया है। कई मायनों में यह पुस्तक भारत-चीन के बीच सैन्य संबंधों का संग्रहणीय दस्तावेज है।
Kavita : kya kahan kyon
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
- Book Type:

-
Description:
यह पुस्तक विधिवत् लिखी गयी पुस्तक नहीं है : पिछले छह दशकों से कविता के बारे में समय-समय पर जो सोचा-गुना-लिखा, उसका संचयन है।
*** *** ***
स्वयं कवि होने के नाते मैंने कविता की, अल्पसंख्यकता के बावजूद, अपनी जगह खोजने-पाने की जद्दोजहद और उस पर बेजा क़ब्ज़ा न करने देने की सावधानी भरसक अलक्षित नहीं जाने दी है। कविता किसी बिल में नहीं दुबकी है और, सौभाग्य से, वह साहस-संघर्ष-सौन्दर्य-अन्त:करण का अवाँगार्द बनी हुई है। वह साहचर्य का स्थल है : कल्पना और स्वप्न की रंगभूमि भी। यह आरोप लग सकता है कि मैंने कविता से बहुत अधिक की उम्मीद लगा रखी है : मैं उसे स्वीकार करता हूँ क्योंकि मुझे कभी कविता के सिलसिले में कम-से-कम का ख़याल नहीं आया। एक कारण यह भी कि संसार की कविता कम-से-कम की नहीं अधिक-से-अधिक की भावना जगाती रही है। अगर पाठकों में कविता को लेकर कुछ उद्वेलन और उत्सुकता यह संचयन जगा पाये तो उसकी मेरी लम्बी और निस्संकोच पक्षधरता अकारथ नहीं जायेगी।
Acharya Hazari Prasad Dwivedi Ki Jai Yatra
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी आलोचना के शिखर-पुरुष नामवर सिंह और उनके प्रेरणा-पुंज गुरु आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी मिलकर एक ऐसा प्रकाश-युग्म निर्मित करते हैं जिसकी रोशनी में बीसवीं सदी की न सिर्फ़ आलोचना-दृष्टि, बल्कि सम्पूर्ण रचना-दृष्टि अपना पथ प्रशस्त करती है।
यह पुस्तक इस युग्म की मनीषा का संयुक्त प्रक्षेपण है; इसमें नामवर सिंह की दृष्टि में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी आलोकित होते हैं और आचार्य द्विवेदी के आलोक में नामवर जी की इतिहास-प्रवर्तक आलोचक मेधा प्रकाशित। ये निबन्ध सिर्फ़ आलोचना से सम्बन्ध नहीं रखते, इनमें उपन्यास-सुलभ पठनीयता भी है और संस्मरण, रेखाचित्र और जीवनी जैसी जिज्ञासा-प्रेरक विवरणात्मकता भी। विचार, जैसाकि स्वाभाविक है, निरन्तर इन आलेखों की रीढ़ भी है, मांस भी और
त्वचा भी।
नामवर सिंह के व्यक्तित्व, दृष्टि और प्रतिभा का सबसे सघन और उज्ज्वल प्रतिफलन आचार्य द्विवेदी से सम्बन्धित लेखन में हुआ है, लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि वास्तव में आचार्य द्विवेदी ने जिस तरह बाणभट्ट के माध्यम से अपना अन्वेषण किया था, उसी तरह नामवर सिंह ने आचार्य द्विवेदी के माध्यम से अपनी दूसरी परम्परा की खोज की।
Ramvilas Sharma
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
रामविलास शर्मा और नामवर सिंह के कृतित्व की विकास-यात्रा में एक-दूसरे की अपरिहार्य भूमिका और उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है। यदि नामवर सिंह नहीं होते तो सम्भवतः रामविलास शर्मा के कृतित्व की विशिष्टता, उनकी उपलब्धि और मूल्यांकन कुछ और प्रतीत होते। उसी तरह रामविलास शर्मा की अनुपस्थिति में नामवर सिंह का व्यक्तित्व और कृतित्व शायद कुछ और प्रतीत होता।
रामविलास शर्मा और नामवर सिंह जीवन, संस्कृति, साहित्य और राजनीति से जुड़ी यात्रा में ‘हमराही' से हैं। दोनों एक-दूसरे के चिन्तन और समालोचना को गहराई से प्रभावित करते प्रतीत होते हैं। शीर्षस्थ समीक्षकों ने एक-दूसरे को प्रभावित करने के साथ-साथ एक-दूसरे का मूल्यांकन भी किया है।
सच तो यही है कि रामविलास शर्मा के कृतित्व, उपलब्धि, प्रासंगिकता और सीमाओं का बोध साहित्य-जगत को लगभग उतना ही है, जितना नामवर सिह ने अपनी समीक्षा से प्रस्तुत किया है। तथ्य है कि आज भी हम रामविलास शर्मा के कृतित्व को ‘...केवल जलती मशाल’ और ‘इतिहास की शव-साधना’ के दो ध्रुवान्तों के मध्य ही विश्लेषित करने को मजबूर हैं। रामविलास शर्मा के सन्दर्भ में यह नामवर सिह की समीक्षा की अपरिहार्यता और केन्द्रीयता का दुर्निवार तथ्य और प्रमाण हैं।
रामविलास शर्मा को समीक्षित करने के क्रम में यह संस्कृति, भारतीयता, साहित्य, आलोचना, विचारधारा और अन्ततः जीवन को समीक्षित करनेवाली अपरिहार्य एवं अविस्मरणीय समालोचना पुस्तक प्रतीत होती है।
Tulsi-Kavya Mein Sahityik Abhipray
- Author Name:
Janardan Upadhyay
- Book Type:

-
Description:
भक्ति कविता स्वयं में साहित्यिक परम्परा से जुड़ी प्रतिबद्ध भारतीय आध्यात्मिक कविता ही है और अब उन आलोचकों की मान्यताएँ ख़ारिज हो चुकी हैं जो कबीर तथा तुलसीदास जैसे श्रेष्ठतम काव्य सर्जकों को साहित्येतर श्रेणी में रखते रहे हैं।
तुलसी की आध्यात्मिक कविता की व्याख्या केवल उनके द्वारा अभिव्यक्त भावात्मक संवेदनाओं से ही न की जाकर उन सन्दर्भों से भी किया जाना अपेक्षित है—जो साहित्य एवं सर्जन के संरचनात्मक मानदंड के रूप में परम्परा में जाने जाते रहे हैं—और जिनको कलात्मक परम्परा के कवियों यथा—कालिदास, भारवि, श्रीहर्ष आदि ने अपनाया है। ये मानदंड हैं, साहित्यिक अभिप्राय अर्थात् कवि के कल्पना प्रसूत कलात्मक मानक जैसे—विविध प्रकार के कवि समय, काव्य रूढ़ियाँ, काल्पनिक कथाएँ, अलंकार विधान की प्रचलित उपमान तथा उपमेय परम्पराएँ आदि।
गोस्वामी तुलसीदास अपनी व्यक्ति काव्य-प्रतिमा के प्रति विनयोक्ति जैसा भाव प्रगट करते हुए भी भारतीय कविता की शास्त्रीय परम्पराओं की वे उपेक्षा नहीं करते। इन सबके लिए मानस में वे 'काव्य प्रौढ़ि' एवं ‘काव्य छाया’ शब्दों का प्रयोग करके इंगित करते हैं कि भारतीय कविता की वैभवमयी परम्परा को त्याग कर कविता का सर्जन किसी भारतीय कवि के लिए सम्भव नहीं है। प्रस्तुत अध्ययन का गन्तव्य इसी सन्दर्भ को स्पष्ट करना रहा है कि तुलसी जैसे श्रेष्ठ आध्यात्मिक कवि की कविता भी भारतीय कविता की कलात्मक परम्परा से पूरी तरह जुड़ी है और उसे किसी भी तरह से धार्मिक साहित्य की श्रेणी में रखकर एकांगी एवं संकीर्ण नहीं बनाया जाना चाहिए। आध्यात्मिक कविता के श्रेष्ठतम मानक भारतीय कविता तथा कला के मानक हैं—और उन्हीं से हम भारतीयों की पहचान भी सम्भव है।
—डॉ. योगेन्द्र प्रताप सिंह
Hindi Sahitya Ki Bhoomika
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Agyeya Ka Kavya
- Author Name:
Pranay Krishna
- Book Type:

- Description: अज्ञेय को बहुधा व्यक्तिवादी या अस्तित्ववादी कहा जाता है। यह तय है कि अज्ञेय व्यक्तित्व को मूलगामी मानते थे, न कि सामाजिक सम्बन्धों का उत्पाद; व्यक्तित्व को अनन्यता, अद्वितीयता, मौलिकता वगैरह को उन्होंने भारी महत्त्व दिया। अस्तित्वाद की भी इसमें एक भूमिका थी। महत्त्व की बात लेकिन यह है कि उनका व्यक्तित्ववाद भी प्रबुद्ध बुर्जुआ व्यक्तिवाद ही था जिसमें लोकतंत्र, आधुनिकता, धर्मनिरपेक्षता, मानवाधिकार के प्रति प्रतिबद्धता निहित थी। सांस्कृतिक व्यक्तित्व होने के नाते ही व्यक्तिगत सम्बन्धों में भारत के बड़े पूँजी घरानों से जुड़ने के बावजूद वे एक अकेलापन भी भोगते हैं। यह अकेलापन दुतरफ़ा है। समाज के जिस तबके में उनका जीवन बसर होता है, उसके सम्बन्ध कृत्रिम हैं। दूसरी ओर उनकी दृष्टि में व्यापक जनसमाज की ‘भीड़’ और कोलाहल में व्यक्ति की निजता का कोई मोल नहीं।
Mithak Aur Swapna
- Author Name:
Ramesh Kuntal Megh
- Book Type:

-
Description:
इस पुस्तक में कई गवेषणाओं में से कुछेक वैदिक आख्यान को शैवदर्शन में विश्रान्त करने, तथा कुछ सर्गों के सामाजिक-मनोवैज्ञानिक नामकरण के कारण ‘कामायनी’ में जिस प्रकार मानवता का इतिहास, मनुष्य का मनोवैज्ञानिक क्रमविकास, भारतीय दर्शन का आनन्दवादी उत्कर्ष संस्थापित करने के चलन हुए हैं, उन्हें त्रुटिपूर्ण, भ्रामक एवं अन्तरालों से असंगत पाया गया।
पन्द्रह सर्गों के पाँच सर्ग-त्रिकोणों की संरचना वाली इस प्रबन्ध-गाथा में भारतीय और पाश्चात्य महाकाव्य-लक्षण अनुपस्थित हैं। यह लिरिकल मुक्तकों के कदम्बवाला एक ‘गीत-कामायनीयम्’ है। इसकी जीवनी का भी ‘कामना’ तथा ‘एक घूँट’ द्वारा विकास ढूँढ़ते हुए, तथा पांडुलिपि एवं प्रकाशित प्रति की तुलना और पाठालोचन करते हुए, प्रसाद की गूढ़ सृजन-प्रक्रिया भी उद्घाटित की गई है।
पाया गया कि तीन फंतासियों (नर्तित नटेश, त्रिदिक् विश्व, आनन्द लोक) द्वारा स्वप्न में किस तरह छलाँग लगाई गई है; कैसे देवताओं के स्वर्ग, मनुष्यों के नगर तथा प्रकृति-सुन्दरी की पूर्णकला के वस्तुपरक लोक वाले मिथक का सौन्दर्यदर्शन हुआ है; तथा कौन-से द्विपर्ण-विरोधों एवं युग्म-द्वन्द्वों (प्रलय-ज्वाला, कण-क्षण, कर्म-काम, संघर्ष-समाधि, अधिनायक-जनता, इच्छा-ज्ञान, पुरुष-प्रकृति) का काव्यदर्शन तथा दार्शनिक काव्य में रूपान्तरण किया गया है।
समानान्तरता में (तब) खोजे गए मुअनजोदड़ो को सारस्वत नगर में; स्वप्न-संघर्ष सर्गों को राष्ट्रीय-मुक्ति संघर्ष और स्वार्थ-केन्द्रित भीषण व्यक्तित्ववाद की आलोचना में; अन्ततः शैव त्रिपुर को आले-दुआले सामन्तीय-उपनिवेशवादी-पूँजीवादी दुर्व्यवस्थाओं में भी दूरागत प्रक्षेपण होते परिलक्षित पाया गया है। इसलिए अगर प्रसाद लम्बी आयु पाते तो वे ‘ध्रुवस्वामिनी’ सिंड्रोम से प्रतिश्रुत होकर यथार्थोन्मुखी होते चले जाते।
निष्कर्षतः ‘कामायनी’ छायावाद का सर्वोत्तम हीरक किरीट है जो भव्यवृत्तान्तों वाला एक लिरिकल प्रबन्ध-कदम्ब भी है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...