Prasad ki sampoorn kahaniyan evam Nibandh
Author:
Jaishankar PrasadPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 1036
₹
1295
Available
Awating description for this book
ISBN: 9789348229960
Pages: 1662
Avg Reading Time: 55 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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मध्यकालीन भक्ति आन्दोलन का स्वरूप अखिल भारतीय था। देश के अलग-अलग प्रान्तों और क्षेत्रों में सगुण भक्ति के साथ-साथ निर्गुणी संतों ने अपनी वाणियों के माध्यम से ईश्वर का गुणगान किया। वहीं दूसरी ओर तत्कालीन समाज और धर्म में विद्यमान रूढ़ियों, कुरीतियों और बुराइयों पर करारी चोट की। इन संतों ने एक ओर मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा का व्यापक प्रयास किया तो वहीं दूसरी ओर ऊँच-नीच, जाति-पाँति, छुआछूत और आडम्बरों के खिलाफ सशक्त आवाज उठाई।
उत्तर भारत में एक ओर जहाँ कबीर, रैदास, दादूदयाल और सुन्दरदास आदि संतों ने ईश्वर भक्ति का भाव जगाकर तत्कालीन समाज को दिशा दी, देश के विभिन्न प्रान्तों में अन्य संतों ने भी अपना अहम योगदान दिया। महाराष्ट्र के वारकरी और महानुभाव सम्प्रदाय के संतों ने भी भक्ति और सुधार की अलख जगाई, असम में शंकरदेव ने ज्ञान और भक्ति की अलख जगाई। राजस्थान में दादूदयाल और दादूपन्थ के संतों ने महनीय कार्य किया। राजस्थान की महिला संतों—दयाबाई और सहजो बाई ने भी ईश्वर भक्ति का गुणगान किया।
संत साहित्य मानव धर्म का साहित्य है। यह संसार के सभी मनुष्यों को ईश्वर की सृष्टि मानता है। अतः जाति आधारित भेदभावों का यहाँ कोई स्थान नहीं है। ...संत साहित्य सरलता एवं सहजता का साहित्य है। सभी संतों ने धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में व्याप्त रूढ़ियों एवं आडम्बरों का विरोध किया।
‘मध्यकालीन संत कवि’ पुस्तक में संत मत पर विचार होने के साथ-साथ मध्यकालीन संतों का स्मरण है। पुस्तक में संकलित आलेख संतों के जीवन पर प्रकाश डालने के साथ-साथ उनकी रचनाओं के वैशिष्ट्य का भी वर्णन करते हैं। विविध संतों पर केन्द्रित आलेख मध्यकालीन निर्गुण भक्ति साधना की परम्परा को समझाने में अपनी महती भूमिका रखते हैं।
Garo Literature
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Shreshth Lalit Nibandh : Vol. 2
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‘ललित निबन्ध' नाम से ख्यात व्यक्तित्व-प्रधान निबन्ध-विधा की भारतीय भाषाओं में अलग-अलग संज्ञा है, पर सबकी प्रकृति एक ही है। निबन्ध शैली में रचित ललित निबन्ध के विधा-वैशिष्ट्य को संक्षेप में रेखांकित करने की चेष्टा प्रथम खंड के सम्पादकीय वक्तव्य में की गई है।
प्रस्तुत खंड में संकलित हिन्दीतर भारतीय भाषा के निबन्धों को देखकर भारतीय साहित्य की एक विशिष्ट विधा का परिचय मिल जाएगा। संक्रमण काल के जातीय परिदृश्य और संवेदना की व्यंजक अभिव्यक्ति से यह विधा अपेक्षाकृत अधिक उपयुक्त है। इसकी उन्मुक्त प्रकृति अधिक सम्भावनापूर्ण है। हास-परिहास और गपशप के व्याज से ज्वलन्त सांस्कृतिक प्रश्नों, मनुष्य की अस्मिता और धूमायित करनेवाले मानव-प्रणीत प्रपंच-प्रदूषण और समाज के अधोमुखी प्रवाह पर तीखा व्यंग्य-कटाक्ष इन निबन्धों में ललित मुद्रा में प्रकट हुआ है।
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