Kuvempu Sahitya : Vividh Aayam
Author:
Ram PrakashPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Unavailable
भारतेन्दु का भाषा–प्रेम, मैथिलीशरण गुप्त की सांस्कृतिकता, जयशंकर प्रसाद की दार्शनिकता, पंत का प्रकृति–प्रेम, महादेवी वर्मा की रहस्यात्मकता, निराला की क्रान्तिकारिता, हजारीप्रसाद द्विवेदी की परम्परा–निष्ठा, प्रेमचन्द की सामाजिक–प्रतिबद्धता, रेणु की आंचलिकता, नागार्जुन की फक्कड़ता, केदारनाथ अग्रवाल का ग्रामीण–प्रेम, हरिशंकर परसाई की व्यंग्यात्मकता और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की वैज्ञानिकता को अपने साहित्य में समेटनेवाले रचनात्मक व्यक्तित्व का नाम है—‘कुवेम्पु’। कन्नड़ भाषा के प्रथम ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित ‘कन्नड़ कविरत्न’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विविध पक्षों पर विद्वत्तापूर्ण व्यापक अध्ययन को प्रस्तुत करनेवाले आलेखों का संग्रह है—‘कुवेम्पु साहित्य : विविध आयाम’।
ISBN: 9788183612142
Pages: 211
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Nayi Kavita Aur Astitwavad
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

-
Description:
डॉ. रामविलास शर्मा ने इस महत्त्वपूर्ण कृति में यह स्पष्ट किया है कि ‘नयी कविता’ के विकास की क्या प्रक्रिया रही तथा अस्तित्ववादी भावबोध ने इसे किस प्रकार और किस हद तक प्रभावित किया है। ‘तार सप्तक’ के पहले और बाद की नयी कविता की विषयवस्तु और इसके स्वरूप का विवेचन करते हुए इसमें इसकी अन्तर्वर्ती धाराओं का भी परिचय दिया गया है, साथ ही तत्त्ववाद की मूल दार्शनिक मान्यताओं की रोशनी में लेखक ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि ‘हिन्दी में अस्तित्ववाद एक अराजकतावादी धारा है’, तथा अस्तित्ववादी कवियों ने प्रायः ‘समस्त इतिहास की व्यर्थता’ सिद्ध करते हुए ‘पूँजीवादी दृष्टिकोण से यथार्थ को देखा और परखा’ है। इसी क्रम में उनका यह सन्तोष ज़ाहिर करना भी महत्त्व रखता है कि ‘हिन्दी में पिछले बीस साल में बहुत-सी कविता अस्तित्ववाद से अलग हटकर हुई है।’
नयी कविता के मुख्य स्वरों को प्रस्तुत ग्रन्थ में बड़ी प्रामाणिकता और ईमानदारी के साथ रेखांकित किया गया है तथा अज्ञेय, शमशेर, मुक्तिबोध और नागार्जुन जैसे प्रमुख कवियों के लिए अलग-अलग अध्याय देकर उनके कृतित्व का पैना विश्लेषण किया है। ‘मुक्तिबोध का पुनर्मूल्यांकन’ शीर्षक विस्तृत लेख मुक्तिबोध को ज़्यादा तर्कसंगत दृष्टि से प्रस्तुत करता है। साथ ही इस नये संस्करण में पहली बार शामिल एक और महत्त्वपूर्ण लेख ‘कविता में यथार्थवाद और नयी कविता’ हिन्दी कविता की यथार्थवादी धारा को फिर से पहचानने का आग्रह करता है, जिसमें नागार्जुन और केदारनाथ अग्रवाल की कविता पर विस्तार से विचार किया गया है।
Hindi Sahitya Aur Samvedana Ka Vikas
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने की क्या-क्या समस्याएँ हैं, इसे लेकर एकाधिक पुस्तकें लिखी जा सकती हैं, किसी रूप में लिखी भी गई हैं। कुछ लेखक-समूहों, मुख्यत: शोधकर्ताओं द्वारा इतिहास की सामग्री के संकलन प्रस्तुत हुए हैं, जो अपने आपमें उपयोगी हैं। पर नहीं लिखा गया तो इतिहास, रामचन्द्र शुक्ल और छायावाद के बाद। ऐसे चुनौती-भरे वातावरण में साहित्य और संवेदना के विकास को साथ-साथ व्याख्यायित करते चलना कितना कठिन है, यह सहज अनुमान किया जा सकता है।
किसी भी साहित्य के इतिहास की अच्छाई को जाँचने की दो कसौटियाँ हो सकती हैं। एक तो यह कि वह कहाँ तक, साहित्य की ही तरह, विविध पाठक-वर्गों की अपेक्षाओं की एक साथ पूर्ति करता है। और दूसरे यह कि वह साहित्य को उप-साहित्य से अलग करके चलता है या नहीं, विशेष रूप से एक ऐसे युग में जबकि संचार-माध्यम साहित्य के विविध सीमान्तों से टकरा रहे हैं। दूसरे शब्दों में कि वह इतिहास असल में कितनी दूर तक साहित्य का इतिहास है, इन कसौटियों पर परखकर प्रस्तुत अध्ययन की जाँच स्पष्ट ही आप स्वयं करेंगे। अपनी ओर से हम इतना अवश्य कहना चाहेंगे कि समूची साहित्य-प्रक्रिया की जैसी संवेदनशील समझ विकसित करने का यत्न यहाँ हुआ है वैसी ही विश्वसनीय तथ्य-सामग्री भी जुटाई गई है, जो अपने आपमें एक विरल संयोग है।
अब प्रस्तुत है ‘विकास’ का नया संवर्द्धित संस्करण। गत एक दशक में हुए विविध संस्करण जहाँ इस इतिहास की पाठक समाज में व्यापक स्वीकृति का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं, वहीं यह इस प्रयत्न का परिचायक है कि पुस्तक के कलेवर को बिना अनावश्यक रूप से स्फीत किए इस दशक की नई रचना-उपलब्धियों को कैसे समाविष्ट किया जा सकता है। यों ‘विकास’ अपने नामकरण को स्वत: प्रमाणित कर सके, यह इस नए संवर्द्धित संस्करण की, नई मुद्रण-शैली के साथ, प्रमुख विशेषता होनी चाहिए।
Bharat Ki Bhasha Samasya
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

- Description: भारत की भाषा-समस्या एक ज्वलन्त राष्ट्रीय समस्या है। सुप्रसिद्धप्रगतिशील आलोचक और विचारक डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार यह ‘विशुद्ध भाषा-विज्ञान कीसमस्या’ नहीं बल्कि ‘बहुजातीय राष्ट्र के गठन और विकास की ऐतिहासिक-राजनीतिक समस्या’ है। स्वाधीनता के तीन दशक बाद भी अगर यह समस्या ज्यों-की-त्यों बनी है तो सम्भवतः इसलिए कि उनकी तरह औरों ने भी इस समस्या को इसके वास्तविक और व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने का प्रयास नहीं किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में रामविलास जी ने भाषा-समस्या के विभिन्न पक्षों की विस्तार से चर्चा की है तथा इस बात पर बल दिया है कि सबसे पहले अंग्रेज़ी के प्रभुत्व को समाप्त करना आवश्यक है, क्योंकि वह भारत की सभी भाषाओं पर साम्राज्यवादियों द्वारा लादी हुई भाषा है। भारत की भाषा-समस्या के हल के लिए वह ‘अनिवार्य राष्ट्र-भाषा’ नहीं, बल्कि सम्पर्क भाषा की बात करते हैं जो हिन्दी ही हो सकती है। हिन्दी के जातीय स्वरूप की चर्चा के सन्दर्भ में वह यह स्पष्ट करते हैं कि हिन्दी और उर्दू में ‘बुनियादी एकता’ तथा हिन्दी की जनपदीय बोलियाँ परस्पर-सम्बद्ध हैं। भाषा-समस्या पर भारतीय जनता का सामाजिक और सांस्कृतिक भविष्य निर्भर करता है, इसलिए वह इसे आवश्यक मानते हैं कि ‘हम अपने बहुजातीय राष्ट्र की विशेषताएँ पहचानें, इस राष्ट्र में हिन्दी-भाषी जाति की भूमिका पहचानें।’इस पुस्तक में दिए गए उनके अकाट्य तर्क समस्या को समझने की सही दृष्टि ही नहीं देते, समस्या-समाधान की दिशा में मन को आन्दोलित भी करते हैं।
Anuvad Sidhant Evam Prayog
- Author Name:
G. Gopinathan
- Book Type:

-
Description:
प्रस्तुत ग्रन्थ को तीन भागों में बाँटा गया है—पहले भाग में अनुवाद के स्वरूप एवं प्रक्रिया पर विचार करते हुए अनुवाद की समस्याओं की सैद्धान्तिक भूमिका को स्पष्ट किया गया है। अनुवाद को एक परकाय-प्रवेश की प्रक्रिया मानते हुए अर्थ को आत्मा और शैली को शरीर माननेवाले सिद्धान्तों की नवीन व्याख्या की गई है तथा अनुवाद के प्रमुख सिद्धान्तों का समन्वय किया गया है। लेखक का विचार है कि अनुवाद विषयक अध्ययन में अर्थ को केन्द्र में रखना चाहिए न कि एक बाह्य तत्त्व के रूप में आनन्दवर्द्धन का ध्वनि सिद्धान्त एवं मैलिनोव्स्की का ‘सांस्कृतिक सन्दर्भ’ सिद्धान्त अनुवाद में अर्थ की समस्याओं के अध्ययन के लिए विशेष उपयोगी है। आधुनिक भाषाविज्ञान का सहारा लेते हुए शैली की समस्याओं का प्रमुख रूप से स्वनिमस्तरीय, शब्दस्तरीय, रूपस्तरीय एवं वाक्यस्तरीय समस्याओं के रूप में वर्गीकरण किया गया है। ग्रन्थ के दूसरे भाग में अनुवाद के रूपों का विश्लेषण किया गया है। तीसरे भाग में अनुवाद की कुछ विशिष्ट अर्थपरक एवं शैलीपरक समस्याओं का अनुप्रयोगात्मक अध्ययन करते हुए उनके लिए व्यावहारिक समाधान ढूँढ़ा गया है।
भारत जैसे बहुभाषा-भाषी राष्ट्र में अनुवाद का महत्त्व स्वयंसिद्ध है। यूरोपीय देशों में प्राचीन काल से ही अनुवाद के कुछ सामान्य सिद्धान्तों को क़ायम करने का प्रयास किया गया है। भारत में सम्भवतः अनुवाद को मौलिक लेखन से अभिन्न या उसके समकक्ष मान लेने के कारण अनुवाद के सिद्धान्तों का विशेष विकास नहीं हो पाया है। भारतीय भाषाओं में प्रायः अनुसृजन, भाषानुवाद या अनुकरण ही ज़्यादातर होते आए हैं। लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक युग की माँग है कि अनुवाद प्रामाणिक हो और उसके लिए कुछ सुनिश्चित सिद्धान्त अपनाए जाएँ।
अनुवाद विषयक प्रारम्भिक चिन्तन बाइबिल के अनुवादकों के आधार पर ही विकसित हुआ। पुनर्जागरण के बाद काव्य तथा अन्य साहित्यिक विधाओं के अनुवाद की प्रक्रिया एवं सिद्धान्तों की ओर अनुवादकों का ध्यान गया। तीसरा युग अनुवाद के भाषा-वैज्ञानिक सिद्धान्तों का युग है। बीसवीं शताब्दी में तुलनात्मक एवं व्यतिरेकी अध्ययन का विकास यंत्रानुवाद के प्रयोग तथा आदिवासियों की भाषा से अनुवाद के सिलसिले में भाषा-वैज्ञानिकों का ध्यान अनुवाद की ओर गया। यंत्रानुवाद की विशेष आवश्यकता संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी संस्थाओं में एक ही समय में विभिन्न भाषाओं में किए जानेवाले अनुवाद के सन्दर्भ में अधिक महसूस की गई। यूनेस्को के अधीन कार्यरत अनुवादकों का अन्तरराष्ट्रीय संगठन तथा यूरोप और अमेरिका के कई अनुवाद परिषदों ने भी अनुवाद-चिन्तन को एक वैज्ञानिक आधार प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
अनुवाद पर भाषा-वैज्ञानिक दृष्टि से सोचने की आवश्यकता इसलिए पड़ती है कि अनुवाद की समस्याओं का भाषा के विभिन्न पक्षों, विशेषकर स्वनिम, शब्द, रूप, वाक्य तथा अर्थ से अभिन्न सम्बन्ध है। अनुवाद की समस्याओं के विश्लेषणात्मक अध्ययन में भाषा-वैज्ञानिक दृष्टिकोण आवश्यक हो जाता है। पश्चिमी देशों के भाषा-वैज्ञानिकों ने इस प्रकार के कई अध्ययन प्रस्तुत किए हैं जो अनुप्रयुक्त भाषा-विज्ञान के अन्दर आते हैं। परन्तु जार्ज स्टीनर जैसे विद्वानों का कथन है कि अनुवाद अनुप्रयुक्त भाषा-विज्ञान नहीं है, वह तो साहित्य के सिद्धान्त एवं प्रयोग का एक विशिष्ट क्षेत्र है।
Nai Kahani Aur Amarkant
- Author Name:
Nirmal Singhal
- Book Type:

-
Description:
प्रेमचंद की कहानी-परंपरा के वाहक के रूप में ख्यात अमरकांत नई कहानी के भी प्रमुख रचनाकार हैं। उनकी कहानियों के निम्न मध्यवर्गीय और मध्यवर्गीय पात्र ‘क़फ़न’ के घीसू-माधव के वंशज प्रतीत होते हैं। साथ ही स्वातंत्र्योत्तर भारत के मोहभंग और निराशा को भी उन्होंने अपनी कहानियों में समेटा है। बल्कि कहना चाहिए कि धीरे-धीरे यही तत्व उनकी कहानियों में केंद्रीय होते चले गए हैं। साथ ही आया व्यंग्य और एक तीखा कटाक्ष जो स्वतंत्रता-बाद के सफेद-पोश भारतीय समाज की निर्ममतापूर्वक पोल खोलता है। इसी व्यंग्य के सहारे उन्होंने हमारे भीतर स्थायी भाव की तरह जड़ जमाते संत्रास, ऊब, घुटन, अकेलेपन और भीतरी-बाहरी हिंसा को भी बड़ी कुशलता के साथ रेखांकित किया है।
प्रस्तुत पुस्तक में अमरकांत के लगभग संपूर्ण कथा-जगत पर एक गहन दृष्टि के साथ-साथ नई कहानी-आंदोलन में उनकी अवस्थिति को तलाशने की भी कोशिश की गई है। इस प्रयास में एक तरफ जहाँ अमरकांत की रचनात्मकता के विभिन्न पहलुओं और उनकी कहानियों में आए पात्रों और अनेक शिल्प व कथ्यगत तत्वों का खुलासा हुआ है, वहीं नई कहानी आंदोलन के विशिष्ट पक्षों और अन्य समकालीन रचनाकारों के योगदान पर भी व्यापक प्रकाश पड़ा है।
Hindi Path
- Author Name:
Sushila Gupta
- Book Type:

-
Description:
छात्रों को हिन्दी भाषा की आधारभूत जानकारी देने के साथ-साथ हिन्दी को बातचीत की भाषा के रूप में भी सहज बनाना इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है, इसलिए शब्द-भंडार के स्तर पर भी सावधानियाँ बरती गई हैं। पुस्तक के अध्यायों को सरल रखने का हर सम्भव प्रयास किया गया है।
पुस्तक के दस अध्यायों का रोमन में लिप्यन्तरण किया गया है। लिप्यन्तरण में (.) को (n) के रूप में दर्शाया गया है। जैसे—‘लोगों’ के लिए जहाँ ‘logo’ लिखा गया है वहाँ (.) के उच्चारण को समझाने के लिए (n) को कोष्ठक में रखा गया है।
किताब का शीर्षक ‘हिन्दी पथ’ अंग्रेज़ी और हिन्दी की समानताओं को सामने लाता है। (वर्तनी और अर्थ के साथ)।
आशा है, हिन्दी की तरफ़ जानेवाला यह पथ विदेशी छात्रों के लिए सरल और रुचिकर होगा।
Kahanikar Premchand : Rachana Drishti Aur Rachana Shilp
- Author Name:
Shivkumar Mishra
- Book Type:

-
Description:
19वीं सदी का उत्तरार्द्ध हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का प्रस्थान-बिन्दु है।
पं. रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इस आधुनिक काल को ‘गद्य काल’ की संज्ञा दी है। आधुनिक काल की दूसरी अनेक विशेषताओं के अलावा उसकी एक महत्त्वपूर्ण विशेषता आधुनिक काल में खड़ी बोली गद्य, गद्य-भाषा और गद्य-विधाओं का उदय और विकास है। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में विज्ञान के विकास तथा औद्योगिक प्रगति के साथ जब छापेख़ाने का आविष्कार हुआ, हिन्दी में समाचार-पत्रों तथा पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इन पत्र-पत्रिकाओं में ही सबसे पहले गद्य की कहानी, आलोचना, निबन्ध तथा रेखाचित्र जैसी विधाओं ने रूप पाया। अतएव कहा जा सकता है कि गद्य की दूसरी तमाम विधाओं के साथ, आज जिसे हम कहानी या लघु-कहानी के नाम से जानते हैं, वह अपने वर्तमान रूप में 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध की ही देन है।कहानी एक संक्षिप्त, कसावपूर्ण, कल्पना-प्रसूत विवरण है जिसमें एक प्रधान घटना होती है, और एक प्रमुख पात्र होता है। इसमें एक कथावस्तु होती है जिसका विवरण इतना सूक्ष्म तथा निरूपण इतना संगठित होता है कि वह पाठकों पर एक निश्चित प्रभाव छोड़ता है। कहानी की प्राचीन परम्परा को महत्त्व देने के बावजूद आधुनिक कहानी के बारे में प्रेमचन्द का सुस्पष्ट मत है कि उपन्यासों की तरह आख्यायिका की कला भी हमने पश्चिम से ली है, कम से कम इसका आज का विकसित रूप तो पश्चिम का है ही।
“सबसे उत्तम कहानी वह होती है जिसका आधार किसी मनोवैज्ञानिक सत्य पर हो।...बुरा आदमी भी बिलकुल बुरा नहीं होता। उसमें कहीं देवता अवश्य छिपा होता है, यह मनोवैज्ञानिक सत्य है। उस देवता को खोलकर दिखा देना सफल आख्यायिका लेखक का काम है। प्रेमचन्द अपनी कहानी-चर्चा को आगे बढ़ाते हुए उसमें समस्या प्रवेश को ज़रूरी मानते हैं। किसी समस्या का समावेश कहानी को आकर्षक बनाने का सबसे उत्तम साधन है।”
Shabd Shuddh Uchcharan Avm Padbhar
- Author Name:
Dr. Azam
- Book Type:

- Description: Book
Manak Hindi Ke Shuddh Prayog : Vol. 4
- Author Name:
Ramesh Chandra Mahrotra
- Book Type:

-
Description:
सशक्त अभिव्यक्ति के लिए समर्थ हिन्दी चाहिए।
इस नए ढंग के व्यवहार–कोश में पाठकों को अपनी हिन्दी निखारने के लिए हज़ारों शब्दों के बारे में बहुपक्षीय भाषा–सामग्री मिलेगी। इसमें वर्तनी की व्यवस्था मिलेगी, उच्चारण के संकेत–बिन्दु मिलेंगे, व्युत्पत्ति पर टिप्पणियाँ मिलेंगी, व्याकरण के तथ्य मिलेंगे, सूक्ष्म अर्थभेद मिलेंगे, पर्याय और विपर्याय मिलेंगे, संस्कृत का आशीर्वाद मिलेगा, उर्दू और अंग्रेज़ी का स्वाद मिलेगा, प्रयोग के उदाहरण मिलेंगे, शुद्ध–अशुद्ध का निर्णय मिलेगा।
पुस्तक की शैली ललित निबन्धात्मक है। इसमें कथ्य को समझाने और गुत्थियों को सुलझाने के दौरान कठिन और शुष्क अंशों को सरल और रसयुक्त बनाने के लिहाज़ से मुहावरों, लोकोक्तियों, लोकप्रिय गानों की लाइनों, कहानी–क़िस्सों, चुटकुलों और व्यंग्य का भी सहारा लिया गया है। नमूने देखिए, स्त्रीलिंग ‘दाद’ (प्रशंसा) सब को अच्छी लगती है, पर पुर्लिंग ‘दाद’ (चर्मरोग) केवल चर्मरोग के डॉक्टरों को अच्छा लगता है।…‘मैल, मैला, मलिन’ सब ‘मल’ के भाई–बन्धु हैं…(‘साइकिल’ को) ‘साईकील’ लिखनेवाले महानुभाव तो किसी हिन्दी–प्रेमी के निश्चित रूप से प्राण ले लेंगे—दुबले को दो असाढ़। ...अरबी का ‘नसीब’ भी ‘हिस्सा’ और ‘भाग्य’ दोनों है। उदाहरण—आपके नसीब में ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं। (जबकि मेरे नसीब में मेरी पत्नी हैं।)
यह पुस्तक हिन्दी के हर वर्ग और स्तर के पाठक के लिए उपयोगी है।
Prasad Ki Kavyabhasha
- Author Name:
Rachna Anand Gaur
- Book Type:

-
Description:
‘प्रसाद की काव्यभाषा' शीर्षक से प्रकाशित इस पुस्तक में जहाँ एक ओर प्रसाद की काव्यभाषा का विकासात्मक और प्रतीतिपरक मूल्यात्मक विवेचन किया गया है, वहीं दूसरी ओर संवेदना या जनता की चित्तवृत्ति में होनेवाले परिवर्तनों के कारण खड़ीबोली के काव्यभाषा के रूप में विकास का भी अत्यन्त व्यवस्थित वर्णन है। इस दृष्टि से यह पुस्तक दोहरी अर्थवत्ता रखती है।...
प्रसाद की प्रारम्भिक कृतियों से अनेक उदाहरणों द्वारा डॉ. गौड़ ने यह सिद्ध किया है कि कैसे अन्तत: एक बड़े कवि की खोज भाषा की ही खोज होती है।
मेरा मानना है कि इस पुस्तक के द्वारा केवल छायावाद और प्रसाद की काव्यभाषा की क्षमता को ही नहीं समझा जा सकता है, बल्कि खड़ीबोली की सम्भावना को भी रेखांकित किया जा सकता है।...पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है।
— सत्यप्रकाश मिश्र
Sahitya Ke Siddhant Tatha Roop
- Author Name:
Bhagwaticharan Verma
- Book Type:

-
Description:
भगतीवचरण वर्मा ने साहित्य की विभिन्न विधाओं को अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियाँ दी हैं। इन कृतियों के पीछे कौन-सी प्रेरक शक्तियाँ रही हैं और कौन-से सिद्धान्त वर्मा जी के लेखकीय जीवन की आधारभूमि हैं, यह जानना भगवती बाबू के असंख्य पाठकों की जिज्ञासा का विषय रहा है। इन तमाम जिज्ञासाओं के समाधान की खोज का परिणाम है : भगवतीचरण का महत्त्वपूर्ण सैद्धान्तिक ग्रन्थ—‘साहित्य के सिद्धान्त तथा रूप’।
इस ग्रन्थ में लेखक की प्रतिज्ञा एकदम भिन्न और नए रूप में प्रकट हुई है। यहाँ साहित्य के सिद्धान्तों का विश्लेषण शुष्क शास्त्रीय ढंग से नहीं, लेखक के आधी शताब्दी के अनुभवों के आधार पर हुआ है। ग्रन्थ में रचना-प्रक्रिया का व्यावहारिक विश्लेषण है और साथ ही लेखक के रचना-संसार की कठिनाइयों से साक्षात्कार भी। यह कृति पाठकों तथा शोधकर्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी।
Hindi Kahani Ka Itihas : Vol. 2 (1951-1975)
- Author Name:
Gopal Ray
- Book Type:

-
Description:
यह किताब हिन्दी कहानी का इतिहास का दूसरा खंड है। पहले खंड में 1900-1950 अवधि की हिन्दी कहानी का इतिहास प्रस्तुत किया गया था। इस खंड में 1951-75 का इतिहास पेश किया जा रहा है। पहले इरादा था कि दूसरे खंड में 1951-2000 की हिन्दी कहानी का इतिहास लिखा जाए। पर सामग्री की अधिकता के कारण यह इरादा बदलना पड़ा। यह भी महसूस हुआ कि 1975 का वर्ष हिन्दी कहानी में एक पड़ाव की तरह है। मोटामोटी रूप से इस वर्ष के आसपास अनेक पुराने और नए लेखकों का कहानी-लेखन या तो समाप्त हो गया या उसकी चमक समाप्त हो गई। जो हो, दूसरे खंड की अन्तिम सीमा के लिए एक बहाना तो मिल ही गया! कहने की जरूरत नहीं कि तीसरे खंड में 1976-2000 की कहानी का इतिहास प्रस्तुत करना अभिप्रेत है।
इस पुस्तक में उर्दू-हिन्दी और मैथिली-भोजपुरी-राजस्थानी के लगभग 300 कहानी लेखकों और 5000 से अधिक कहानियों का कमोबेश विस्तार के साथ विवेचन या उल्लेख किया गया है। कहानीकारों और किसी भी कारण चर्चित, उल्लेखनीय और श्रेष्ठ कहानियों की अक्षरानुक्रम सूची अनुक्रमणिका में दे दी गई है। हमारा यह दावा निराधार नहीं है कि इसके पहले किसी इतिहास-ग्रन्थ में इतनी संख्या में कहानीकारों और कहानियों का उल्लेख उपलब्ध नहीं है।
–भूमिका से
Nagarjun Antrang Aur Srijan-Karm
- Author Name:
Murli Manohar Prasad Singh +1
- Book Type:

- Description: यह पुस्तक नागार्जुन के अन्तरंग जीवन, व्यक्तित्व और उनके सम्पूर्ण कृतित्व पर सृजनकर्मियों तथा समालोचकों द्वारा लिखे गए लेखों का संचयन-संकलन है। आत्म-साक्षात्कार के अन्तर्गत 'आईने के सामने' में बाबा नागार्जुन ने अपने ही व्यक्तित्व और सृजनधर्मी स्वभाव का खुलासा किया है। इसके अलावा मनोहर श्याम जोशी द्वारा बाबा से ली गई भेंटवार्ता तथा उनके ग्रामीण परिसर में परिवार समेत पूरे परिवेश का आँखों देखा हाल इब्बार रब्बी ने प्रस्तुत किया है। संस्मरण खंड के अन्तर्गत रामविलास शर्मा, रामशरण शर्मा मुंशी, शोभाकान्त, खगेन्द्र ठाकुर आदि की टिप्पणियाँ हैं। समालोचना खंड में अनेक ठोस साहित्यिक सन्दर्भों में तीस आलेखों का संचयन किया गया है। इन आलेखों में स्त्री-विमर्श, जनोन्मुख जीवन यथार्थ, संगीत तत्त्व, मूर्तिमत्ता और नागार्जुन के काव्य की व्यंग्यात्मकता पर विचार किया गया है। इस खंड में अन्तिम आलेख उनके मैथिली साहित्य पर केन्द्रित है। यह किताब नागार्जुन के कृतित्व के विविध पक्षों को उद्घाटित करती है, इसीलिए यह अपनी सार्थकता रखती है।
Scoleris Ki Chhaon Mein
- Author Name:
Purushottam Agarwal
- Book Type:

-
Description:
पुरुषोत्त्म अग्रवाल इस समय हिन्दी में सोचने-लिखने वाले और विचार को तार्किक स्पष्टता के साथ आगे बढ़ानेवाले चिन्तकों में अग्रणी हैं। देश की राजनीति से लेकर समाज, संस्कृति और साहित्य की दशा-दिशा पर पिछले दशकों में उन्होंने लगातार हस्तक्षेपकारी लेखन किया है।
‘स्कोलेरिस की छाँव में’ पुस्तक में उनका 2005 से 2007 तक का लेखन संकलित है जो समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर पाठकों के सामने आया और विचार-विमर्श का विषय बना। देश में मानवाधिकारों का हालात का प्रश्न हो या पूरी मानवता के लिए भविष्य की वैकल्पिक व्यवस्था का, उपनिवेश और आधुनिकता का सवाल हो या इधर बढ़ रहे बात-बात पर आहत होकर हत्या पर उतारू हो जानेवाले क़िस्म-क़िस्म के समूहों का, यहाँ भी पुरुषोत्तम जी इन तमाम मुद़्दों पर मुखर हैं।
पुस्तक के दो खंड हैं। पहले में उनके अमेरिका यात्रा और वहाँ हुए व्याख्यानादि के दौरान उपजे विचारों और प्रतिक्रियाओं का संकलन है, और दूसरे में समकाल को खँगालती अन्य टिप्पणियाँ और आलेख हैं।
शैतानों और विद्वानों का पेड़ कहे जानेवाले एल्स्टोनिया स्कोलेरिस के बहाने, जो लेखक को इंडिया इंटरनेशनल लाइब्रेरी के सामने खड़ा मिला, उन्होंने ललित चिन्तन का एक अद्भुत नमूना रचा है, जो इस किताब का शीर्षक भी बना।
Manak Hindi Ke Shuddh Prayog : Vol. 2
- Author Name:
Ramesh Chandra Mahrotra
- Book Type:

-
Description:
सशक्त अभिव्यक्ति के लिए समर्थ हिन्दी चाहिए।
इस नए ढंग के व्यवहार–कोश में पाठकों को अपनी हिन्दी निखारने के लिए हज़ारों शब्दों के बारे में बहुपक्षीय भाषा–सामग्री मिलेगी। इसमें वर्तनी की व्यवस्था मिलेगी, उच्चारण के संकेत–बिन्दु मिलेंगे, व्युत्पत्ति पर टिप्पणियाँ मिलेंगी, व्याकरण के तथ्य मिलेंगे, सूक्ष्म अर्थभेद मिलेंगे, पर्याय और विपर्याय मिलेंगे, संस्कृत का आशीर्वाद मिलेगा, उर्दू और अंग्रेज़ी का स्वाद मिलेगा, प्रयोग के उदाहरण मिलेंगे, शुद्ध–अशुद्ध का निर्णय मिलेगा।
पुस्तक की शैली ललित निबन्धात्मक है। इसमें कथ्य को समझाने और गुत्थियों को सुलझाने के दौरान कठिन और शुष्क अंशों को सरल और रसयुक्त बनाने के लिहाज़ से मुहावरों, लोकोक्तियों, लोकप्रिय गानों की लाइनों, कहानी–क़िस्सों, चुटकुलों और व्यंग्य का भी सहारा लिया गया है। नमूने देखिए, स्त्रीलिंग ‘दाद’ (प्रशंसा) सब को अच्छी लगती है, पर पुर्लिंग ‘दाद’ (चर्मरोग) केवल चर्मरोग के डॉक्टरों को अच्छा लगता है।…‘मैल, मैला, मलिन’ सब ‘मल’ के भाई–बन्धु हैं…(‘साइकिल’ को) ‘साईकील’ लिखनेवाले महानुभाव तो किसी हिन्दी–प्रेमी के निश्चित रूप से प्राण ले लेंगे—दुबले को दो असाढ़। ...अरबी का ‘नसीब’ भी ‘हिस्सा’ और ‘भाग्य’ दोनों है। उदाहरण—आपके नसीब में ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं। (जबकि मेरे नसीब में मेरी पत्नी हैं।)
यह पुस्तक हिन्दी के हर वर्ग और स्तर के पाठक के लिए उपयोगी है।
Ve Pandrah Din
- Author Name:
Prashant Pole
- Book Type:

- Description: उन पंद्रह दिनों के प्रत्येक चरित्र का, प्रत्येक पात्र का भविष्य भिन्न था! उन पंद्रह दिनों ने हमें बहुत कुछ सिखाया। माउंटबेटन के कहने पर स्वतंत्र भारत में यूनियन जैक फहराने के लिए तैयार नेहरू हमने देखे। लाहौर अगर मर रहा है, तो आप भी उसके साथ मौत का सामना करो'' ऐसा जब गांधीजी लाहौर में कह रहे थे, तब राजा दाहिर की प्रेरणा जगाकर, हिम्मत के साथ, संगठित होकर जीने का सूत्र' उनसे मात्र 800 मील की दूरी पर, उसी दिन, उसी समय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्रीगुरुजी' हैदराबाद (सिंध) में बता रहे थे। कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी सुचेता कृपलानी कराची में सिंधी महिलाओं को बता रही थी कि ‘आपके मैकअप के कारण, लो कट ब्लाउज के कारण मुसलिम गुंडे आपको छेड़ते हैं। तब कराची में ही राष्ट्र सेविका समिति की मौसीजी हिंदू महिलाओं को संस्कारित रहकर बलशाली, सामर्थ्यशाली बनने का सूत्र बता रही थीं ! जहाँ कांग्रेस के हिंदू कार्यकर्ता, पंजाब, सिंध छोड़कर हिंदुस्थान भागने में लगे थे और मुसलिम कार्यकर्ता मुसलिम लीग के साथ मिल गए थे, वहीं संघ के स्वयंसेवक डटकर, जान की बाजी लगाकर, हिंदू सिखों की रक्षा कर रहे थे। उन्हें सुरक्षित हिंदुस्थान में पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे। फर्क था, बहुत फर्क था-कार्यशैली में, सोच में, विचारों में सभी में। स्वतंत्रता प्राप्ति 15 अगस्त, 1947 से पहले के पंद्रह दिनों के घटनाक्रम और अनजाने तथ्यों से परिचित करानेवाली पठनीय पुस्तक।
Samajik Vimarsh ke Aaine Mein 'Chaak'
- Author Name:
Vijay Bahadur Singh
- Book Type:

-
Description:
रेशम विधवा थी—ज़माने के लिए, रीति-रिवाजों के लिए, शास्त्र-पुराणों के चलते घर और गाँव के लिए। विधवा सिर्फ़ विधवा होती है, वह औरत नहीं रहती—फिर यह बात पता नहीं उसे किसी ने समझाई कि नहीं? और रेशम ने, विधवा रेशम ने गर्भ धारण कर लिया। मगर जब सास ने कौड़ी-सी आँखें निकालकर उसे देखा, यह कहते हुए—‘मेरे बेटा की मौत से दगा करनेवाली, हरजाई, बदकार तेरा मुँह देखने से नरक मिलेगा’, तो रेशम ने कहा—‘आज को तुम्हारा बेटा मेरी जगह होता तो पूछती कि तू किसके संग सोया था?...तुम ख़ुश हो रही होतीं कि पूत की उजड़ी ज़िन्दगी बस गई। पर मेरा फजीता करने पर तुली हो।’
उपन्यास के शुरुआती पृष्ठों पर ही सास और गर्भवती विधवा बहू के बीच यह दृश्य खड़ा कर मैत्रेयी ने पहली बार स्त्री की निगाह से देखने की पहल की है। अन्तत: हिन्दी आलोचना का चला आता सामाजिक व्याकरण यहाँ अचकचा उठता है और आलोचकों को अपना परम्परागत सामाजिक ऑनर याद आने लगता है, जिन्होंने घर-परिवार के घिसे-पिटे और सामाजिक जीवन में लाई जानेवाली फ़ॉर्मूलाई तरक़़ीबों और क्रान्तिभ्रष्ट क्रान्तियों के यथार्थ को अपने किसी साफ़-सुथरे और दिखावटी सच की तरह अब तक पाल-पोस रखा था। मैत्रेयी का लेखन नए सिरे से पढ़ने की ज़मीन तैयार करता है। यह भी पूछने का मन बनाता है कि महादेवी, तुम नीर और भरी दु:ख की बदली क्यों हो? क्यों इस विस्तृत नभ का कोई एक कोना भी तुम्हारा अपना नहीं है? क्या किसी आलोचक ने इसके सामाजिक-आर्थिक आशयों और आधारभूत ज़मीनी सच्चाइयों पर बात करना ज़रूरी माना? मैत्रेयी इस अर्थ में एक समर्पणशील विनयी लेखिका नहीं हैं। उनकी बनावट में यह है ही नहीं। किसी भी क़दम पर वे गुड़िया बनने को तैयार नहीं हैं। ‘चाक’ इस सम्बन्ध में उनके लेखन का घोषणा-पत्र भी है और ऐतिहासिक-सांस्कृतिक दस्तावेज़ भी। यही इसका अन्तरंग चरित्र और औपन्यासिक शील भी है।
Latin America, Caribbeyayi Kshetra Aur Bharat
- Author Name:
Deepak Bhojwani
- Book Type:

- Description: लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई क्षेत्र के बारे में आम तौर पर भारत में कम जानकारी है। इस क्षेत्र में भारतीयों का अपेक्षाकृत प्रवास और संपर्क कम ही रहा है। यह पुस्तक इस क्षेत्र और यहाँ के देशों की विशिष्टताओं से पाठकों को परिचित कराती है। प्रारंभिक अध्यायों में इस क्षेत्र के राजनीतिक विकास-क्रम तथा आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों की जानकारी दी गई है। बाद के अध्यायों में भारत के साथ इन देशों के राजनीतिक, आर्थिक, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संबंधों का विवेचन किया गया है। तैंतीस देशों वाले इस क्षेत्र के देशों से मैत्री में भारत के लिए अनेक संभावनाएँ निहित हैं । ये देश विविध संसाधनों से समृद्ध हैं; इन देशों ने आकर्षक विकास-दर हासिल की है और इनकी सामाजिक नीतियों ने स्थिर सरकारों को आधार दिया है। इस पुस्तक से पाठकों को अनेक महत्त्वपूर्ण अंतर्निहित पक्षों की भी जानकारी मिलती है। लेखक ने इस क्षेत्र के देशों से संबंधों की चुनौतियों और संभावनाओं का आकलन करते हुए, अधिक प्रभावी तथा सार्थक संबंधों की दिशा दिखाई है।
Bhartiya Mukti- Andolan Aur Premchand
- Author Name:
Saroj Singh
- Book Type:

-
Description:
प्रेमचन्द के सम्पूर्ण कृतित्व को भारतीय मुक्ति-आन्दोलन की महागाथा कहा जाए तो शायद यह अत्युक्ति नहीं होगी। 1907 से लेकर 1936 तक के भारतीय जीवन-सन्दर्भों का उनके द्वारा प्रस्तुत सर्वांगीण चित्रण का केन्द्र-बिन्दु भारतीय जनता को मुक्ति की प्रबल आकांक्षा है। वे मानते थे कि साहित्यकार—“देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलनेवाली सच्चाई नहीं, बल्कि उससे आगे मशाल दिखाती हुई चलनेवाली सच्चाई है।”
भारतीय मुक्ति-आन्दोलन के सन्दर्भ में उनके इस कथन का विशेष अर्थ इसलिए है कि साहित्य में राजनीतिज्ञों के विचारों का अनुगम करने की आशा की जाती है। लेकिन प्रेमचन्द इस भ्रम को वैचारिक और रचनात्मक दोनों स्तरों पर तोड़ते हैं। सन् 1930 ई. में बनारसीदास चतुर्वेदी को लिखे पत्र में प्रेमचन्द की अभिलाषा इसका प्रमाण है—“मेरी अभिलाषाएँ बहुत सीमित हैं। इस समय सबसे बड़ी अभिलाषा यही है कि हम अपने स्वतंत्रता-संग्राम में सफल हों। मैं दौलत और सोहरत का इच्छुक नहीं हूँ। खाने को मिल जाता है। मोटर और बँगले की मुझे हविश नहीं है। हाँ, यह ज़रूर चाहता हूँ कि दो-चार उच्चकोटि की रचनाएँ छोड़ जाऊँ लेकिन उनका उद्देश्य स्वतंत्रता-प्राप्ति ही हो।” प्रेमचन्द के भारतीय मुक्ति की इसी अप्रतिम सरोकारों को अभिव्यक्त करना ही मेरा लक्ष्य रहा है।
—इसी पुस्तक से।
Stree Kavita : Paksh Aur Pariprekshya—1
- Author Name:
Shobha Nigam
- Book Type:

-
Description:
एक मानवीय इकाई के रूप में स्त्री और पुरुष, दोनों अपने समय व यथार्थ के साझे भोक्ता हैं लेकिन परिस्थितियाँ समान होने पर भी स्त्री-दृष्टि दमन के जिन अनुभवों व मन:स्थितियों से बन रही है, मुक्ति की आकांक्षा जिस तरह करवटें बदल रही है, उसमें यह स्वाभाविक है कि साहित्यिक संरचना तथा आलोचना, दोनों की प्रणालियाँ बदलें। स्त्री-लेखन स्त्री की चिन्तनशील मनीषा के विकास का ही ग्राफ़ है जिससे सामाजिक इतिहास का मानचित्र गढ़ा जाता है और जेंडर तथा साहित्य पर हमारा दिशा-बोध निर्धारित होता है। भारतीय समाज में जाति एवं वर्ग की संरचना जेंडर की अवधारणा और स्त्री-अस्मिता को कई स्तरों पर प्रभावित करती है।
स्त्री-कविता पर केन्द्रित प्रस्तुत अध्ययन जो कि तीन खंडों में संयोजित है, स्त्री-रचनाशीलता को समझने का उपक्रम है, उसका निष्कर्ष नहीं। पहले खंड, 'स्त्री-कविता : पक्ष और परिप्रेक्ष्य' में स्त्री-कविता की प्रस्तावना के साथ-साथ गगन गिल, कात्यायनी, अनामिका, सविता सिंह, नीलेश रघुवंशी, निर्मला पुतुल और सुशीला टाकभौरे पर विस्तृत लेख हैं। एक अर्थ में ये सभी वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य में विविध स्त्री-स्वरों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। उनकी कविता में स्त्री-पक्ष के साथ-साथ अन्य सभी पक्षों को आलोचना के केन्द्र में रखा गया है, जिससे स्त्री-कविता का बहुआयामी रूप उभरता है। दूसरा खंड, 'स्त्री-कविता : पहचान और द्वन्द्व' स्त्री-कविता की अवधारणा को लेकर स्त्री-पुरुष रचनाकारों से बातचीत पर आधारित है। इन रचनाकारों की बातों से उनकी कविताओं का मिलान करने पर उनके रचना-जगत को समझने में तो सहायता मिलती ही है, स्त्री-कविता सम्बन्धी उनकी सोच भी स्पष्ट होती है। स्त्री-कविता को लेकर स्त्री-दृष्टि और पुरुष-दृष्टि में जो साम्य और अन्तर है, उसे भी इन साक्षात्कारों में पढ़ा जा सकता है। तीसरा खंड, 'स्त्री-कविता : संचयन' के रूप में प्रस्तावित है...।
इन सारे प्रयत्नों की सार्थकता इसी बात में है कि स्त्री-कविता के माध्यम से साहित्य और जेंडर के सम्बन्ध को समझते हुए मूल्यांकन की उदार कसौटियों का निर्माण हो सके जिसमें सबका स्वर शामिल हो।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...