Kahani Nai Kahani
Author:
Namvar SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
प्रस्तुत पुस्तक लगभग एक दशक की चिन्तन-यात्रा की पगडंडी है जिसमें कथा-समीक्षा की एक पद्धति निकालने की कोशिश की गई है।</p>
<p>इस कहानी में आलोचना की वही विश्लेषणात्मक पद्धति अपनाई गई है जो पिछले कुछ दशकों से छोटी कविताओं के विश्लेषण में सफल पाई गई थी। इस निबन्ध से, मेरे निकट, उन लोगों के लिए भी उत्तर प्रस्तुत था जिनका यह आरोप था कि मैं कहानी-समीक्षा में काव्य-समीक्षा की पद्धति का बलात् उपयोग करके भूल कर रहा हूँ।</p>
<p>हिन्दी आलोचना जो अभी तक मुख्यतः काव्य-समीक्षा रही है, कविता से कथा-नाटक आदि साहित्य-रूपों का विधिवत् विश्लेषण करके ही अपने को सुसंगत एवं समृद्ध बना सकती है। कहानी-समीक्षा सम्बन्धी ये निबन्ध इसी दिशा में विनम्र प्रयास हैं। इसीलिए इनका महत्त्व केवल कहानियों की समीक्षा तक सीमित न होकर एक व्यापक समीक्षा-पद्धति के निर्माण की दिशा में है।
ISBN: 9788180313141
Pages: 196
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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तुलसीदास विश्व के श्रेष्ठतम कवियों में हैं। अपने ग्रंथों के माध्यम से उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को ही नहीं सामाजिक मूल्यों को भी सम्प्रेषित किया है। अनुभव की अद्वितीयता और भाषा की सरलता की दृष्टि से रामचरितमानस उनके कवि व्यक्तित्व को राष्ट्रीय व्यक्तित्व में बदल देता है। उनकी विनम्रता ही उनकी महानता का प्रमाण है। अपने समकालीन साहित्य के प्रति अति सजग तुलसी, लोकजीवन से प्राप्त अनुभव को सामान्यीकृत करके जनता के सलाहकार बन गये हैं।
Antastal Ka Poora Viplav : Andhere Mein
- Author Name:
Nirmala Jain
- Book Type:

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‘अँधेरे में’ उत्तरशती की सबसे महत्त्वपूर्ण और शायद सबसे विवादास्पद कविता है। विवाद भिन्न रुचि और विचारधारा वालों के बीच ही नहीं, समानधर्मा आलोचकों के बीच भी है। यह तथ्य कविता की सम्भावनाशीलता का प्रमाण है। यह भी सही है कि मुक्तिबोध के जीवन-काल में इस कविता को ख़ुद उनसे सुना तो कइयों ने होगा, लेकिन इसे सराहा उनकी मृत्यु के बाद ही गया। इस विलम्ब का कारण उपेक्षा या उदासीनता नहीं, बल्कि ऐतिहासिकता है।
अपने समय का अतिक्रमण हर कालजयी रचना में होता है। लेकिन आनेवाले समय के इस कदर साथ चलनेवाली रचनाओं की संख्या बहुत नहीं होती। इस दृष्टि से देखने पर यह बात हैरत में डालनेवाली है कि अपने सारे जटिल अर्थ-विन्यास और अपारदर्शी शिल्प के बावजूद इस कविता के पाठकों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती गई है।
कविता के पाठक-आलोचकों ने तरह-तरह से इस बात को दोहराया है कि मध्यवर्ग के सुविधाजीवी, समझौतावादी और आदर्शजीवी मन का संघर्ष ही ‘अँधेरे में’ की काव्य-वस्तु है।
इस पुस्तक में ख्यात हिन्दी आलोचक निर्मला जैन ने ‘अँधेरे में’ पर आधारित आलोचनात्मक आलेखों को संकलित किया है। ये आलेख इस कालजयी कविता की विभिन्न पक्षों से व्याख्या करते हैं।
Sahitya Ka Bhashik Chintan
- Author Name:
Ravindranath Shrivastava
- Book Type:

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सर्जनात्मक समीक्षा पर यह एक अनूठी पुस्तक है। प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव के लेखों के इस संकलन से आन्तरिक और पाठ-केन्द्रित आलोचना की एक मुकम्मल तस्वीर सामने आ गई है।
आलोचना स्वयं में एक अनुशासन है, जो अपनी सिद्धि के लिए एक निश्चित कार्य-प्रणाली का विकास करती है। व्यावहारिक आलोचना के इस सूत्र कथन को प्रो. श्रीवास्तव ने हिन्दी साहित्य को साक्षी बनाकर समीक्षा का संक्रियात्मक प्रारूप तैयार किया है।
कविता या किसी भी कृति को भाषा की ही एक विधा मानते हुए समीक्षा की नवीन और वैज्ञानिक पद्धति के उद्देश्य प्रो. श्रीवास्तव ने भाषावादी समीक्षा-चिन्तन के परिप्रेक्ष्य में घटित करके दिखाए हैं कि कविता को शैली के रूप में देखना, नार्म से अलग हटी हुई भाषा के रूप में देखना, देखना कि शब्द ख़ुद क्या बोलते हैं, अधिक समीचीन और सार्थक दृष्टि है। अर्थात् पाठ को निकट से पढ़कर शिल्प और भाषा-कौशलों के विश्लेषण के माध्यम से कृति को आलोकित करना, समीक्षा का परम लक्ष्य है, क्योंकि कविता शब्द नहीं शाब्दिक होती है, वह भाषा के माध्यम द्वारा केवल व्यक्त नहीं होती, अपितु भाषा में ही अपना अस्तित्व पाती है।
रचना की स्वनिष्ठता या उसकी सत्ता की स्वायत्तता इस पुस्तक में मात्र सैद्धान्तिक स्तर पर विवेचित नहीं है और यही इसकी नव्यता है, विशेषता है। तुलसी, सूर, प्रेमचन्द, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि के पाठ में और इनके बहाने पुनर्जागरण काल, छायावादी युग, गद्य-भाषा आन्दोलन में साहित्यिक भाषा हिन्दी के बनते-बिगड़ते भाषायी समीकरणों पर इतनी आन्दोलित करनेवाली सामग्री कम ही मिलती है।
इस किताब में मार्क्सवादी आलोचना का भाषाकेन्द्रित दृष्टिकोण, नई कविता की सम्प्रेषण-युक्तियों में परिवर्तन की दिशाओं, भिन्न समयों में साहित्यिक हिन्दी की भाषा-संघटना में आए विघटनों और उनके कारणों पर भी विस्तृत चर्चा है। पाठ-केन्द्रित आलोचना के इतिहास और विचारों पर तो इस पुस्तक में विपुल सामग्री है ही।
आज की उत्तर-आधुनिक साहित्य समीक्षा में वि-संरचना का जो पक्ष अनजाने में कहीं छूट-सा गया है, वह इस पुस्तक में भरपूर मौजूद है। अतः आज की हिन्दी समीक्षा को भी यह पुस्तक बहुत कुछ देने की सामर्थ्य रखती है।
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