Kaalyatri Hai Kavita
Author:
Prabhakar ShrotriyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
सुपरिचित आलोचक डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय द्वारा हिन्दी कविता की यह काल-यात्रा विशेष महत्त्व रखती है। कोई रचना इतिहास के दौर में क्या रूप लेती है और मानवीय संवेदन की अन्तर्धारा उसमें किन माध्यमों से परिचालित होती है, इसकी प्रामाणिक और गहरी समझ डॉ. श्रोत्रिय को थी। अक्सर इतिहास के कालबोध की परवर्ती दृष्टि के दौर में लोग अतीत की परिस्थितियों और कवि-सीमाओं को उपेक्षित कर जाते हैं। इस पुस्तक में ऐसा आवश्यक लचीलापन है, जिससे यह अतीत को जहाँ आधुनिकता की सार्थकता में देख सकी है, वहीं युग और कवि सीमा को भी संवेदित परकाय-प्रवेश की भाँति अपने मौलिक स्वरूप में प्रतिष्ठित कर सकी है। इससे कविता इतिवृत्त नहीं रहती, बल्कि वह आगामी काल-प्रवाह में सक्रिय और प्रेरक साझीदार प्रतीत होती है। अपने समय की नवीनतम काव्य-प्रवृत्तियों को भी लेखक ने गहराई से पकड़ा है, तभी वह आदिकाल से लेकर सातवें, आठवें और नवें दशक तक के विभिन्न कविता-दौरों पर समान रूप से विचार कर सका है।
यही नहीं, इस संस्करण के लिए पुस्तक को संशोधित करते हुए डॉ. श्रोत्रिय ने दो नए अध्याय भी जोड़े थे। इनमें से एक है ‘भारतीय साहित्य की परम्परा’ और दूसरा, ‘नवाँ दशक : बदलाव की नई पहल’। लम्बी कविता और हिन्दी-नवगीत पर पहले से ही दो अध्याय पुस्तक में हैं।
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ISBN: 9788171191284
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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भाषा और समाज सरीखे अत्यन्त गहन विषय पर डॉ. रामविलास शर्मा का यह एक महत्त्वपूर्ण मौलिक ग्रन्थ है। इसमें सामाजिक विकास के सन्दर्भ में भाषा के विकास का अध्ययन करते हुए भाषाशास्त्र और समाजशास्त्र की अनेक मान्यताओं का गहन विद्वत्ता के साथ खंडन-मंडन किया गया है। सैद्धान्तिक विवेचन के अलावा इसमें भाषा-सम्बन्धी अनेक व्यावहारिक समस्याओं का भी विवेचन है। उदाहरण के लिए, भारत की राजभाषा और राष्ट्रभाषा की समस्या, अहिन्दीभाषी प्रदेशों में असन्तोष के कारण, क्या भारत की सभी भाषाएँ राजभाषा बनेंगी? क्या अंग्रेज़ी विश्वभाषा है और उसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता?—आदि प्रश्नों पर भी इसमें प्रकाश डाला गया है।
यह पुस्तक न केवल भाषाविज्ञान का शास्त्रीय अध्ययन करनेवालों के लिए, बल्कि उन पाठकों के लिए भी उपयोगी है, जो इन समस्याओं में गहरी दिलचस्पी रखते हैं।
Etihasik Bhashavigyan Aur Hindi Bhasha
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

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Description:
रामविलास जी ने भाषा की ऐतिहासिक विकास-प्रक्रिया को समझने के लिए प्रचलित मान्यताओं को अस्वीकार किया और अपनी एक अलग पद्धति विकसित की।
वे मानते थे कि कोई भी भाषापरिवार एकान्त में विकसित नहीं होता, इसलिए उसका अध्ययन अन्य भाषापरिवारों के उद्भव और विकास से अलग नहीं होना चाहिए। वे चाहते थे कि प्राचीन लिखित भाषाओं की सामग्री का उपयोग करते समय जहाँ भी समकालीन उपभाषाओं, बोलियों आदि की सामग्री प्राप्त हो, उस पर भी ध्यान दिया जाए, इसी तरह आधुनिक भाषाओं पर काम करते हुए उनकी बोलियों के भाषा-तत्त्वों को भी सतत ध्यान में रखा जाए। भाषा की विकास-प्रक्रिया के विषय में उनकी मान्यता थी कि भाषा निरन्तर परिवर्तनशील और विकासमान है। विरोध और भिन्नता के बिना भाषा न गतिशील हो सकती है, न वह आगे बढ़ सकती है। इसलिए किसी भी भाषा के किसी भी स्तर पर, विरोधी प्रवृत्तियों और विरोधी तत्त्वों के सहअस्तित्व की सम्भावना के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।
इन तथा कुछ और बातों, जो रामविलास जी की भाषावैज्ञानिक समझ का अनिवार्य अंग थीं, को ध्यान में रखते हुए ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के क्षेत्र में अनुसन्धान नहीं किया गया, अगर ऐसा किया जाता तो निश्चय ही कुछ नए निष्कर्ष हासिल होते। रामविलास जी ने विरोध का जोखिम उठाकर भी यह किया, जिसके प्रमाण इस पुस्तक में भी मिल सकते हैं।
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