Ityadi
Author:
Gagan GillPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
संस्मरणों की गगन गिल की यह दूसरी किताब है। ‘दिल्ली में उनींदें’ पहली थी। वे इन्हें ‘स्मृति-आख्यान’ कहती हैं। स्मृति जिसमें जितने दूसरे रहते हैं, उतना ही हमारा बीता हुआ समय, हमारे वर्तमान से पीछे छूट गया, हमारे स्व का एक हिस्सा, जिसके चिह्न अभी भी हमारे अस्तित्व में कहीं खुबे होते हैं।</p>
<p>कुछ क्षण जो कभी-कभी बहुत पास आकर हमें घेर लेते हैं, और कभी-कभी इतनी दूर दिखाई देते हैं कि हम उन्हें एक फ़ासले से देखते हुए शब्दबद्ध कर पाते हैं।</p>
<p>गगन गिल की भाषा को स्मृति का अंकन आता है। वे उन क्षणों को, जो बीत चुके हैं, भाषा के वर्तमान में इस कौशल से पिरोती हैं कि पाठक एक तरफ़ उनके साथ समय के उस खंड में यात्रा भी करता है, और चिन्तन भी करता है, जिसकी प्रेरणा उसे लेखक के आत्म-चिन्तन से मिलती है।</p>
<p>‘इत्यादि’ के स्मृति-आख्यानों में आयोवा युनिवर्सिटी के इंटरनेशनल राइटिंग प्रोग्राम के संस्थापक-निदेशक पॉल एंगल से मुलाक़ात, सारनाथ में दीक्षा, कोलकाता में शंख घोष से भेंट व अन्य संस्मरणों के अलावा 1984 के सिख-विरोधी दंगों की भीषण स्मृतियाँ भी हैं जिन्हें पढ़ते हुए आप सिहर उठते हैं।<strong> </strong>
ISBN: 9789360867812
Pages: 140
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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छायावाद की यशस्वी रचनाकार महादेवी वर्मा का लेखन किसी न किसी रूप में पाठकों व आलोचकों को आन्दोलित करता आया है। कभी उनकी रचनाओं में उनके जीवन के बिखरे सूत्र रेखांकित किए जाते हैं तो कभी उनके जीवन में रचनाओं के स्रोत खोजे जाते हैं। महादेवी द्वारा लिखित प्रत्येक शब्द स्वयं को ध्यान से पढ़े जाने का आग्रह करता है। ‘सात भूमिकाएँ’ में ‘रश्मि’, ‘सांध्यगीत’, ‘आधुनिक कवि’, ‘दीपशिखा’, ‘बंग–दर्शन’, ‘सप्तपर्णा’ एवं ‘हिमालय’ कविता–संग्रहों की भूमिकाएँ हैं। महादेवी वर्मा लिखित इन भूमिकाओं का ऐतिहासिक महत्त्व है। ये भूमिकाएँ उनकी तत्कालीन मन:स्थिति को प्रकट करने के साथ उनके समग्र लेखन पर एक ‘अन्त:साक्ष्य’ की भाँति हैं। ‘सात भूमिकाओं’ के सम्पादक दूधनाथ सिंह का सम्पादकीय ‘छायावाद : व्यथा का सवेरा’ अत्यन्त विचारोत्तेजक है। अपनी विशिष्ट ‘तर्कसंगत पद्धति’ से दूधनाथ सिंह ने महादेवी के रचनाकर्म को विवेचित किया है—‘उनके वाक्य स्पष्ट, पारदर्शी व निर्भ्रान्त हैं, ‘महादेवी की आलोचनाएँ शब्द–अलंकृति अधिक हैं, आलोचनाएँ कम। उनका सारा वैचारिक गद्य–लेखन लगभग ऐसा ही है। उनमें तर्क और विश्लेषण का अभाव है। अपनी हर अगली बात के लिए महादेवी तर्क की जगह कोई प्रतीक–बिम्ब ढूँढ़ने लगती हैं।’
दूधनाथ सिंह के सम्पादकीय के प्रकाश में महादेवी की इन सात भूमिकाओं को पढ़ना एक आलोचनात्मक अनुभव है। तब और भी जब महादेवी के चुटीले ‘सुरक्षात्मक वाक्य’ उनकी प्रत्येक भूमिका में हैं। ‘रश्मि’ संग्रह की ‘अपनी बात’ का पहला ही वाक्य, ‘अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है, क्योंकि अपने दोष देखना अपने आपको अप्रिय लगता है और इनको अनदेखा कर जाना औरों को...।’ एक संग्रहणीय पुस्तक।
Hindi Aalochana Ka Vikas
- Author Name:
Madhuresh
- Book Type:

-
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मधुरेश की प्रस्तुत पुस्तक ‘हिन्दी आलोचना का विकास’ सामाजिक परिप्रेक्ष्य में ही आलोचना की मुख्य प्रवृत्तियों और आलोचकों के मूल्यांकन का प्रयास करती है। हिन्दी आलोचना में लोगों के अपने कुछ प्रिय आलोचक और युग रहे हैं।
मधुरेश वस्तुनिष्ठ और विश्वसनीय रूप में समूची हिन्दी आलोचना और आलोचकों का मूल्यांकन करते हैं। न उनका कोई प्रिय युग है, न ही आलोचक। वे सदैव सामाजिक विकास के सन्दर्भ में आलोचना को देखते-परखते हैं और कैसी भी चयनवादी दृष्टि से बचते हैं। हिन्दी में मार्क्सवादी और समकालीन आलोचना पर कदाचित् पहली बार यहाँ इतने सम्पूर्ण रूप में विचार हुआ है।
प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी आलोचना और आलोचकों के लिए अनिवार्य और उपयोगी है।
Sahitya Ka Samajshastra
- Author Name:
Bachchan Singh
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- Description: राजनीतिक जगत की तरह आलोचना भी दो शिविरों में बँट गई है—समाजशास्त्र का शिविर और भाषाशास्त्र का शिविर। दोनों शिविर समय-समय पर एक दूसरे पर हमला करते हैं। आलोचना का संकट यह है कि क्या उसे हर हालत में शिविरबद्ध होकर ही रहना पड़ेगा? सही बात तो यह है कि हम न जीवन में विज्ञान और टेक्नोलॉजी से मुक्त हो सकते हैं और न साहित्य से। यदि साहित्य को अपनी रक्षा करनी है तो उसे विज्ञान और टेक्नोलॉजी से सहायता लेनी पड़ेगी। अत: साहित्य के रूपवादी दृष्टिकोण की एकतरफ़ा भर्त्सना नहीं की जा सकती। उसमें ऐसे तत्त्व मौजूद हैं जिनसे समाजशास्रीय आलोचना सम्पुष्ट और मुकम्मल होगी।
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