Balmukund Gupt Ke Shresh Nibandh
Author:
Satyaprakash MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
Awating description for this book
ISBN: 9788180310768
Pages: 225
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Aadhunikata Aur Hindi Sahitya
- Author Name:
Indranath Madan
- Book Type:

- Description: आधुनिकता की दृष्टि से हिन्दी कविता, कहानी, उपन्यास और नाटक की यह शायद पहली पहचान है। क्या इसकी परख हो भी सकती है या नहीं? इस सवाल को जगह-जगह उठाया गया है। आधुनिकता का बोध क्या है, इसे अनेक दृष्टियों से पहचानने की कोशिश की गई है। क्या इसे देश की कसौटी पर परखना संगत है या काल की कसौटी पर या देश-काल दोनों की कसौटी पर? क्या इसे ऐतिहासिक दृष्टि से आँकना सही है? क्या इसमें निरन्तरता को खोजा और पाया जा सकता है या अनिरन्तरता को? निरन्तरता किसकी या अनिरन्तरता किसकी? क्या आधुनिकता की प्रक्रिया के एक से अधिक दौर कविता, कहानी आदि में आए हैं? यदि आए हैं तो किस तरह, कैसे और कहाँ? इसकी शुरुआत कहाँ से होती है? आधुनिकता की प्रक्रिया और नगरीकरण की प्रक्रिया में क्या परस्पर सम्बन्ध है या आधुनिकता-बोध और नगर-बोध में क्या आपसी सम्बन्ध है? आधुनिकता और आधुनिकतावाद में क्या अन्तर है? क्या रचना-विशेष के अन्त:बोध के आधार पर आधुनिकता की पहचान हो सकती है? पाश्चात्य साहित्य में आधुनिकता की परख कहाँ तक संगत है? इस तरह के पेचीदा सवालों के जवाब कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक में पाना बेहतर होगा। आलोचक को यह भी लगा है कि मात्र आधुनिकता के बोध से कृति न तो कभी बनी है और न ही बन सकती है। इसलिए जिन रचनाओं को आधुनिकता की पहचान के लिए आधार बनाया गया है, उनका कृति होना लाज़मी नहीं है।
Sahitya Sahchar
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

- Description: साहित्यिक पुस्तकें हमें सुख-दुःख की व्यक्तिगत संकीर्णता और दुनियावी झगड़ों से ऊपर ले जाती हैं और सम्पूर्ण मनुष्य जाति के और भी आगे बढ़कर प्राणिमात्र के दुःख-शोक, राग-विराग, आह्लाद-आमोद को समझने की सहानुभूतिमय दृष्टि देती हैं। वे पाठक के हृदय को इस प्रकार कोमल और संवेदनशील बनाती हैं कि वह अपने क्षुद्र स्वार्थ को भूलकर अशिवों के सुख-दुःख को अपना समझने लगता है। सारी दुनिया के साथ आह्लाद का अनुभव करने लगता है। एक शब्द में इस प्रकार के साहित्य को ‘रचनात्मक साहित्य’ कहा जा सकता है। क्योंकि ऐसी पुस्तकें हमारे ही अनुभव के ताने-बाने से एक नए रस-लोक, की रचना करती हैं। इस प्रकार की पुस्तकों को ही, संक्षेप में ‘साहित्य’ कहते हैं। साहित्य शब्द का विशिष्ट अर्थ यही है। प्रस्तुत पुस्तक में इस श्रेणी की पुस्तकों के अध्ययन करने का तरीक़ा बताना ही आचार्य द्विवेदी जी का संकल्प है।
Nyay Ka Sangharsh
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

-
Description:
न्याय की धारणा और समाज की व्यवस्था के समान रूखे विषय की विवेचना को भी रंजक बना देना इन लेखों की सार्थकता है। भाषा प्रवाह के ऊपर तैरते हुए विद्रूप की तह में सिद्धान्तों की शिलाएँ मौजूद हैं। मनोरंजन और विद्रूप का अभिप्राय रूखे और गम्भीर विषय को रोचक बना देना ही है। इन लेखों को पढ़कर आपके होंठों पर जो मुस्कराहट आएगी, वह आत्म-विस्मृत और आनन्दोल्लास की न होकर क्षोभ, परिताप और करुणा की होगी।
इन लेखों में लेखक ने आत्म-विस्मृत समाज को क़लम की नोक से गुदगुदाकर जगाने की चेष्टा की है और समाज को करवट बदलते न देखकर कई जगह उसने क़लम की नोक समाज के शरीर में गड़ा दी है।
—नरेन्द्र देव
Sahitya Vidhaon Ki Prakriti
- Author Name:
Devishanker Awasthi
- Book Type:

- Description: यह पुस्तक सृजनात्मक लेखन की सभी विधाओं के मूलभूत स्वरूप, उनके अन्तःतत्त्वों और उनकी प्रकृति का प्रामाणिक विवेचन प्रस्तुत करने के क्रम में विश्व के प्रमुख समीक्षकों के दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक आदि प्रमुख साहित्यिक विधाओं ने किस प्रकार अपने स्वरूप का क्रमिक निर्माण किया है, उनकी प्रकृति में अन्तर्भूत सृजनात्मकता के आयाम किस प्रकार बदलते और जुड़ते रहे हैं तथा जातीय संस्कृति की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में—विधाएँ किस प्रकार प्रमुख या गौण भूमिका निभाती हैं—इन सारे प्रश्नों पर विश्व के प्रमुख चिन्तकों के बीच जो भी मतभेद और सहमति के बिन्दु उपलब्ध हैं, उन्हें एक ग्रन्थ में प्रस्तुत करने का यह एक ऐतिहासिक प्रयास है।
Nirala Ki Sahitya Sadhana : Vol. 1-3
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

-
Description:
कबीर का फक्कड़पन, तुलसी का लोक-मांगल्य और रवीन्द्र का सौन्दर्यबोध की त्रयी निराला में न केवल विलीन होती है बल्कि उनके कृतित्व और व्यक्तित्व को ऐसी ऊँचाइयाँ प्रदान करती है जिसका उदाहरण हिन्दी साहित्य में विरल है। यही स्थापना है ‘निराला की साहित्य साधना’ की। डॉ. रामविलास शर्मा की तीन खंडों में उपलब्ध ऐसी कृति है जिसमें हिन्दी आलोचना के विभिन्न आयामों का उद्घाटन हुआ है।
रामविलास शर्मा अरसे तक निराला के साथ रहे थे और वे उनकी रचना-प्रक्रिया तथा जीवन-शैली के तटस्थ द्रष्टा थे। उन्होंने अपना पहला निबन्ध निराला पर ही लिखा था और उनकी पहली आलोचनात्मक पुस्तक भी निराला पर केन्द्रित होकर आई, मगर इससे रामविलास शर्मा का जी नहीं भरा। अनवरत-शोध और अध्ययन के परिणामस्वरूप उनकी अविस्मरणीय कृति ‘निराला की साहित्य साधना’ हमारे सामने आई। यह कृति निराला का जीवन-चरित भी है और उनके साहित्य का मूल्यांकन भी।
‘निराला की साहित्य साधना’ में निराला के अनेक अल्पज्ञात अथवा अज्ञात तथ्यों का उद्घाटन हुआ है। निराला के व्यक्तित्व के जटिल और सूक्ष्म अन्तर्विरोधों से निःसृत कृतित्व का इस पुस्तक में मर्मस्पर्शी मूल्यांकन हुआ है जो अत्यन्त दुर्लभ तो है ही, बेमिसाल भी है।
Doosari Parampra Ki Khoj
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
‘दूसरी परम्परा की खोज’ में नामवर सिंह आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के माध्यम से भारतीय संस्कृति और साहित्य की उस लोकोन्मुखी क्रान्तिकारी परम्परा को खोजने का सर्जनात्मक प्रयास करते हैं जो कबीर के विद्रोह के साथ ही सूरदास के माधुर्य और कालिदास के लालित्य से रंगारंग है।
आठ अध्यायों वाली इस पुस्तक के प्रत्येक अध्याय का प्रस्थान-बिन्दु आचार्य द्विवेदी की कोई-न-कोई कृति है, किन्तु यह पुस्तक उन कृतियों की व्याख्या मात्र नहीं है और न उनके मूल्यांकन का प्रयास है बल्कि उनके माध्यम से उस मौलिक इतिहास-दृष्टि के उन्मेष को पकड़ने की कोशिश की गई है जिसके आलोक में समूची परम्परा एक नए अर्थ के साथ उद्भासित हो उठती है।
‘दूसरी परम्परा की खोज’ से एक ऐसा व्यक्तित्व उभरता है जो अपनी सहजता में मोहक है, अपने संघर्ष और पराजय में भी गरिमामय है और अपनी मानव-आस्था में परम्परा के सर्वोत्तम मूल्यों का साक्षात् विग्रह है—कुटज के समान साधारण होते हुए भी मनस्वी और देवदारु के समान मस्ती से झूलते हुए भी अभिजात तथा अपनी ऊँचाइयों में एकाकी। आलोचना कितनी सर्जनात्मक हो सकती है, इसका उदाहरण है—‘दूसरी परम्परा की खोज’।
Prasad nirala Ageya
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
- Book Type:

- Description: 1989 प्रसाद की जन्मशतवार्षिकी का आरम्भ था. 1996 निराला का है। यह अवसर उचित और प्रासंगिक है कि हम इन कवियों के मूल्यांकन और परिप्रेक्ष्य में नये सिरे से रुचि लें, और उनकी रचना के जो पक्ष कहीं अब तक अनदेखे रह गये हैं उन्हें फिर से सृजित करें। साथ-ही-साथ यह अपेक्षित हो जाता है कि यत्न यह समझने का भी हो कि प्रसाद- निराला काव्य के बाद हिन्दी कविता का प्रवाह किन-किन दिशाओं में, कैसे गतिशील हुआ! एक से अधिक अर्थों में यह कहा जा सकता है कि प्रसाद-निराला काव्य के विकास का अध्ययन एक स्तर पर समूचे आधुनिक हिन्दी काव्य के विकास को समझने का यत्न है। यों, प्रसाद-निराला-अज्ञेय : इन तीन शीर्ष कवियों के माध्यम से समूची आधुनिक हिन्दी कविता का सृजनशील रूप हमारे सामने उजागर हो उठता है, और बड़ी बात यह है कि इस आलोचना के द्वारा पाठक अपने आपको इस समृद्ध काव्य-प्रक्रिया का अंग बना पाता है। काव्यालोचन का इससे अधिक स्पृहणीय रूप और क्या सम्भव है, विशेष रूप से प्रसाद निराला जन्मशतवार्षिकी जैसे अवसरों पर!
Muslim Navjagran Aur Akbar Allahabadi Ka 'Gandhinama'
- Author Name:
Virendra Kumar Baranwal
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी में सम्भवत: यह पहली किताब है जिसमें अकबर इलाहाबादी के ‘गांधीनामा’ की पृष्ठभूमि में मुस्लिम नवजागरण, उसके विविध पक्षों तथा उसमें योगदान देनेवाले प्रमुख उन्नायकों के अवदान के बारे में इतनी बारीक चर्चा की गई है। इसमें शाह वली उल्लाह से लेकर मौलाना आज़ाद तक जैसे विख्यात युगपुरुषों के अवदान पर विचार तो किया ही गया है, इसके अलावा दो ऐसे विचारकों के योगदान पर भी विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है जिनके सम्बन्ध में बहुत कम लोग जानते हैं। मिर्ज़ा अबू तालिब और मौलवी मुमताज़ अली दो ऐसे ही नाम हैं। मिर्ज़ा अबू तालिब को मुस्लिम जगत में आधुनिकता की पहली आहट निरूपित किया गया है और मौलवी मुमताज़ अली को पहले मुस्लिम नारीवादी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
हिन्दू नवजागरण के प्रवर्तक राजा राममोहन राय और मुस्लिम नवजागरण के उन्नायक सर सैयद अहमद ख़ाँ के नेतृत्व वाली अलग-अलग ये दोनों धाराएँ बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में महात्मा गांधी पर आकर एक बार एक हो जाती हैं। अकबर इलाहाबादी का ‘गांधीनामा’ दोनों पुनर्जागरणों के मिलन-बिन्दु का काव्य है। अकबर को व्यंग्य और विनोद के कवि के रूप में ही प्राय: सीमित कर दिया जाता है, उनकी कविता का प्रबल उपनिवेश विरोधी स्वर अकसर रेखांकित नहीं हो पाता। दरअसल गांधी जी की तरह वह भी पश्चिमी सभ्यता के अन्धाधुन्ध नक़ल और मशीनों के ख़िलाफ़ थे। इस तरह गांधी और अकबर के विचारों में अद्भुत समानता है। ‘गांधीनामा’ में यह स्वर बहुत अच्छी तरह से मुखर है।
Hindi Kahani Ka Vikas
- Author Name:
Madhuresh
- Book Type:

-
Description:
प्रेमचन्द के बाद हिन्दी कहानी ने अपनी रचना-यात्रा में अनेक नए और सम्भावनापूर्ण शिखरों का स्पर्श किया। लेकिन कहानी के मूल्यांकन की वास्तविक शुरुआत ‘नई कहानी’ से ही हुई। ‘नई कहानी’ से ही आन्दोलनों की व्याख्या स्वयं रचनाकारों द्वारा आरम्भ होने की परम्परा का भी सूत्रपात हुआ—बहुत कुछ ‘छायावाद’ और ‘नई कविता’ के ढंग पर। आगे चलकर ‘सचेतन कहानी’, ‘अ-कहानी’, ‘समान्तर कहानी’ और ‘जनवादी कहानी’ तक आन्दोलनों की उपलब्धियों का बखान प्राय: उनके रचनाकारों की ही ज़िम्मेवारी समझा जाता रहा। उपलब्धियों के इस कैसे ही एकांगी बखान से बचकर 'हिन्दी कहानी का विकास' में इन विभिन्न आन्दोलनों की पड़ताल उनके सामाजिक कारकों के बीच की गई है। अतियों और सामाजिक कारकों के बीच की गई है। अतियों और एकांगिता से बचते हुए अपनी सुस्पष्ट और सुनिश्चित शैली में मधुरेश ने हिन्दी कहानी के लगभग एक शताब्दी के विकास-क्रम को अत्यन्त संक्षेप में प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास किया है। मधुरेश के साथ और बाद में आए जहाँ अनेक आलोचक आज आलोचना के परिदृश्य से लगभग ग़ायब हो चुके हैं, वे पिछले तीन दशकों से निरन्तर अपनी उपस्थिति से कहानी की आलोचना में सार्थक हस्तक्षेप करते रहे हैं। ‘हिन्दी कहानी का विकास' उनकी इस उपस्थिति का ही महत्त्वपूर्ण साक्ष्य है।
‘हिन्दी कहानी का विकास' में कदाचित् पहली बार हिन्दी कहानी के समूचे विकास-क्रम को समझते हुए उसके प्रमुख आन्दोलनों का मूल्यांकन सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि में किया गया है। सम्भवत: इसीलिए यह रचनाकारों की आत्ममुग्ध और प्रशस्तकारी व्याख्याओं से अधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय है।
Hindu Banam Hindu
- Author Name:
Rammanohar Lohia
- Book Type:

-
Description:
हिन्दुस्तान बहुत बड़ा है और पुराना देश है। मनुष्य की इच्छा के अलावा कोई शक्ति इसमें एकता नहीं ला सकती। कट्टरपन्थी हिन्दुत्व अपने स्वभाव के कारण ही ऐसी इच्छा नहीं पैदा कर सकता, लेकिन उदार हिन्दुत्व कर सकता है, जैसा पहले कई बार कर चुका है। हिन्दू धर्म संकुचित दृष्टि से राजनीतिक धर्म, सिद्धान्तों और संगठन का धर्म नहीं है। लेकिन राजनीतिक देश के इतिहास में एकता लाने की बड़ी कोशिशों को इससे प्रेरणा मिली है और उनका यह प्रमुख माध्यम रहा है। हिन्दू धर्म में उदारता और कट्टरता के महान युद्ध को देश की एकता और बिखराव की शक्तियों का संघर्ष भी कहा जा सकता है।
इधर हिन्दुत्व पूरी तरह समस्या का हल नहीं कर सका। विविधता में एकता के सिद्धान्त के पीछे सदन और बिखराव के बीज छिपे हैं। कट्टरपन्थी तत्त्वों के अलावा, जो हमेशा ऊपर से उदार हिन्दू विचारों में घुस आते हैं और हमेशा दिमाग़ी सफ़ाई हासिल करने में रुकावट डालते हैं, विविधता में एकता का सिद्धान्त ऐसे दिमाग़ को जन्म देता है जो समृद्ध और निष्क्रिय दोनों ही है।
प्रस्तुत पुस्तक में जातिवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, ग़ुलामी, आज़ादी और उत्थान, जातिप्रथा समस्या की जड़, छोटी जातियाँ और भाषा आदि महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।
Kanakdas Ka Kavya
- Author Name:
Kanakdas
- Book Type:

-
Description:
कनक द्वारा रचित कीर्तन अद्भुत हैं। पौराणिक कथा-सन्दर्भ के सहारे कृष्ण के दशावतार का पहेलीबद्ध ढंग से वर्णन करना कनक काव्य-शैली की विशेषता है। भगवान कृष्ण के चरित्र के आन्तरिक सम्बन्धों का गाँठदार वर्णन और घुमावदार रूप चित्रण-शैली कन्नड़ में मुंडिगे कहलाती है। कवि कनक मुंडिगे लेखन में सिद्धहस्त हैं। कनकदास द्वारा मुंडिगे-शैली का अत्यन्त सशक्त ढंग से प्रयोग और वर्णन से लगता है—यह शैली उनके लिए, जात के आधार पर पांडित्य का और काव्यज्ञान का अहंकार बघारनेवाले समकालीन पंडितों की टक्कर में, अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति-कुशलता को दर्शाने का ज़रिया मात्र थी। कनक की मुंडिगे के अनेक सुन्दर नमूने मिलते हैं। सम्पूर्ण भक्ति साहित्य में कनक के समान मुंडिगे रचयिता विरले ही हैं। अलंकारों के समृद्ध प्रयोग में कनक का सानी दूसरा नहीं।
विष्णु के दशावतार का वर्णन और अवतारी कृष्ण के नाना लीलाओं का वर्णन कनकदास ने बहुत ही रमकर एवं जमकर किया है। अपने आराध्य देव की स्तुति में कनक कहीं भी कोताही नहीं करते। लगता है, स्तुति के लिए अलग-अलग प्रसंगों की खोज में कनक लगे ही हुए हैं। अपने सगुण साकार सुन्दर और धीरशूर आराध्य देव के हर रूप का, हर कलाओं का वैभवमय वर्णन करते हैं। दास साहित्य के श्रेष्ठ कवि कनकदास भगवान की स्तुति में, रूप वर्णन में प्रेमी कृष्ण और प्रेमिका राधा के मध्य की रागात्मक और माधुर्य सम्बन्धों का आधार लेते हैं। प्रेमिका राधा, प्रोषितपतिका राधा, मिलनाकांक्षी राधा ऐसे अनेक रूपों के द्वारा कृष्ण के विविध अवतारों का मुंडिगे-शैली में वर्णन करते हैं। इन लीला-वर्णनों में स्तुति-निन्दा काव्य-रूढ़ि का भी अत्यन्त ही आत्मीय और अद्भुत प्रयोग कनक ने किया है। ‘कनकदास का काव्य’ पुस्तक में ऐसे ही कनक रचित सुन्दर कन्नड़ मुंडिगे का अनुवाद हिन्दी पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया है।
—प्रो. परिमला अंबेकर
Anviti - Khand : 2
- Author Name:
Kunwar Narain
- Book Type:

-
Description:
कुँवर नारायण हमारे समय के बड़े कवि हैं। यदि विश्व के कुछ चुनिन्दा कवियों की तालिका बनाई जाए तो उसमें निस्सन्देह उनका स्थान होगा। वे आधुनिक बोध और संवेदना के उन कवियों में हैं जिन्होंने सदैव कविता को मनुष्यता के आभरण के रूप में लिया है।
कुँवर नारायण का काव्य मानवीय गुणों का ही नहीं, मानवीय संस्कारों का काव्य है। कविता में उनका प्रवेश चक्रव्यूह से हुआ। अपने गठन में कलात्मक किन्तु दार्शनिक प्रतीतियों वाले इस संग्रह में जीवन की पेचीदगियों को कवि ने सलीक़े से उठाया है। ‘आत्मजयी’ की लगभग अधसदी के बाद ‘वाजश्रवा के बहाने’ की रचना बतौर कुँवर नारायण यह भी जताने के लिए है कि यदि ‘आत्मजयी’ में मृत्यु की ओर से जीवन को देखा गया है तो ‘वाजश्रवा के बहाने’ में जीवन की ओर से मृत्यु को देखने की एक कोशिश है। उनके इस कथन को हम इस रोशनी में देख सकते हैं कि सारा कुछ हमारे देखने के तरीक़े पर निर्भर है—कुछ ऐसे कि यह जीवन विवेक भी एक श्लोक की तरह सुगठित और अकाट्य हो।
उनके रचना-संसार पर समय-समय पर लिखा जाता रहा है। अनेक शोधार्थियों ने उनके व्यक्तित्व और साहित्य पर कार्य किया है। कहना न होगा कि कुँवर नारायण का कृतित्व बहुवस्तुस्पर्शी है। वर्ष 2002 से पहले तक उनके व्यक्तित्व एवं कृतियों पर लिखे महत्त्वपूर्ण लेख ‘उपस्थिति’ नामक संचयन में समाविष्ट हैं। उसके पश्चात् लिखे निबन्धों का यह संकलन दो खंडों में है : ‘अन्वय’ और ‘अन्विति’। ‘अन्विति’ उनकी कृतियों को केन्द्र में रखकर लिखे आलोचनात्मक निबन्धों का चयन है। इसमें हाल की कुछ प्रकाशित कृतियों को छोड़कर बाक़ी कृतियों पर लिखे लेखों को शामिल किया गया है जो उपस्थिति में सम्मिलित नहीं हैं। अधिकांश लेख 2015 तक के हैं जब कुँवर नारायण का प्रबन्ध-काव्य ‘कुमारजीव’ प्रकाशित हुआ।
आशा है, पाठकों को ये दोनों खंड उपयोगी और प्रासंगिक लगेंगे तथा कुँवर नारायण के साहित्य के प्रति रुचि विकसित करेंगे।
Anuvad Vigyan Ki Bhumika
- Author Name:
Krishan Kumar Goswami
- Book Type:

-
Description:
अनुवाद आधुनिक युग में एक सामाजिक आवश्यकता बन गया है। भूमंडलीकरण से समूचा संसार ‘विश्वग्राम’ के रूप में उभरकर आया है और इसी कारण विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों तथा ज्ञानक्षेत्रों में अनुवाद की महत्ता और सार्थकता में वृद्धि हुई है। इधर भाषाविज्ञान और व्यतिरेकी विश्लेषण के परिप्रेक्ष्य में हो रहे अनुवाद चिन्तन से अनुवाद सिद्धान्त अपेक्षाकृत नए ज्ञानक्षेत्र के रूप में उभरा है तथा इसके कलात्मक स्वरूप के साथ-साथ वैज्ञानिक स्वरूप को भी स्पष्ट करने का प्रयास हो रहा है। इसीलिए अनुवाद ने एक बहुविधात्मक और अपेक्षाकृत स्वायत्त विषय के रूप में अपनी पहचान बना ली है। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत पुस्तक में सैद्धान्तिक चिन्तन करते हुए उसे सामान्य अनुवाद और आशु-अनुवाद की परिधि से बाहर लाकर मशीनी अनुवाद के सोपान तक लाने का प्रयास किया गया है। ‘अनुप्रायोगिक आयाम’ में साहित्य, विज्ञान, जनसंचार, वाणिज्य, विधि आदि विभिन्न ज्ञानक्षेत्रों को दूसरी भाषा में ले आने की इसकी विशिष्टताओं की जानकारी दी गई है। ‘विविध अवधारणाएँ’ आयाम में तुलनात्मक साहित्य, भाषा-शिक्षण, शब्दकोश आदि से अनुवाद के सम्बन्धों के विवेचन का जहाँ प्रयास है, वहाँ अनुसृजन और अनुवाद की अपनी अलग-अलग सत्ता दिखाने की भी कोशिश है।
अनुवाद की महत्ता और प्रासंगिकता तभी सार्थक होगी जब इसकी भारतीय और पाश्चात्य परम्परा का भी सिंहावलोकन किया जाए। इस प्रकार अनुवाद के विभिन्न आयामों और पहलुओं पर यह प्रथम प्रयास है। अतः उच्चस्तरीय अध्ययन तथा गम्भीर अध्येताओं के लिए इसकी सार्थक और उपयोगी भूमिका रहेगी।
Gandhi Aur Kala Tatha Anya Nibandh
- Author Name:
Raman Sinha
- Book Type:

- Description: भारतीय कलाओं, उनकी परम्पराओं और भाव-पक्ष पर सुनियोजित ढंग से विचार करने वाली ‘गांधी और कला तथा अन्य निबन्ध’ पुस्तक डॉ. रमण सिन्हा के समय-समय पर लिखे गए निबन्धों और व्याख्यानों का संकलन है। ‘गांधी और कला’ शीर्षक सुदीर्घ निबन्ध इसकी विशेष उपलब्धि है जिसमें कलाओं को लेकर गांधी की दृष्टि और विभिन्न कलाओं में गांधी व उनके विचारों के अंकन को अलग-अलग कोणों से देखा गया है। कलाओं की आन्तरिक परस्परता को भारतीय कला-दृष्टि की विशिष्टता बताते हुए यह पुस्तक उन कला-रूढ़ियों को भी रेखांकित करती चलती है जो वक़्त-वक़्त पर विदेशी लोगों के आगमन के साथ भारत की कला-धारा में समाहित होती रहीं, और उसे नया रूप देती रहीं। मध्यकालीन भारतीय कला और संस्कृति पर विचार करते हुए लेखक कहते हैं कि भारतीय चित्रकला के इतिहास में मुग़ल शैली का उद्भव एक युगान्तरकारी घटना सिद्ध हुई, जिसमें दो संस्कृतियों ने एक-दूसरे के साथ आदान-प्रदान का सम्बन्ध कायम किया तथा देशी का विदेशी के साथ व परम्परा का नवाचार के साथ संवाद बना। ‘तुलसीदास का प्रतिमा-निरूपण’, ‘कविता और राग’ तथा ‘हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत : लौकिक या पारलौकिक?’ आदि निबन्धों के अलावा अभिनय के माध्यम से अपने आत्म का अन्वेषण करनेवाले फ़िल्मकार ऋतुपर्ण घोष पर केद्रित एक आलेख भी इसमें शामिल है जो इस कला-विवेचन को हमारे आज के कला-बोध से जोड़ता है।
Pracheen Bharat Ke Kalatmak Vinod
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

- Description: “भारतवर्ष में एक समय ऐसा बीता है जब इस देश के निवासियों के प्रत्येक कण में जीवन था, पौरुष था, कौलीन्य गर्व था और सुन्दर के रक्षण-पोषण और सम्मान का सामर्थ्य था। उस समय के काव्य-नाटक, आख्यान, आख्यायिका, चित्र, मूर्ति, प्रासाद आदि को देखने से आज का अभागा भारतीय केवल विस्मय-विमुग्ध होकर देखता रह जाता है। उस युग की प्रत्येक वस्तु में छन्द है, राग है और रस है।’’ आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की प्रस्तुत कृति उसी छन्द, उसी राग, उसी रस को उद्घाटित करने का एक प्रयास है। इसमें उन्होंने गुप्तकाल के कुछ सौ वर्ष पूर्व से लेकर कुछ सौ वर्ष बाद तक के साहित्य का अवगाहन करते हुए उस काल के भारतवासियों के उन कलात्मक विनोदों का वर्णन किया है जिन्हें जीने की कला कहा जा सकता है। काव्य, नाटक, संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला से लेकर शृंगार-प्रसाधन, द्यूत-क्रीड़ा, मल्लविद्या आदि नाना कलाओं का वर्णन इस पुस्तक में हुआ है जिससे उस काल के लोगों की ज़िन्दादिली और सुरुचि-सम्पन्नता का परिचय मिलता है।
Duniya Ko Badal Denewale 50 Yuddha
- Author Name:
Pallav Kishore
- Book Type:

- Description: प्रकति में जब भूकंप या सूनामी इत्यादि आपदाओं के कारण उथल-पुथल मचती है तो दुनिया के नक्शे में बदलाव होता है और जब कतिपय कारणों से सामाजिक वर्णों में युद्ध छिड़ता है तो समाज के स्तर पर दुनिया में बड़ा बदलाव आता है। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद अनेक यूरोपीय और अफ्रीकी देशों की भू- सीमाओं और मानविकी में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ, जिससे स्थानीय सभ्यता और संस्कृति पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा। दूसरे विश्वयुद्ध ने आग में घी का काम किया और पूरी दुनिया को प्रभावित किया। भारत के आजादी के संग्राम और उसके बाद भारत का विभाजन कर पाकिस्तान बनाया गया--उस दौरान हुए भीषण संघर्ष में न केवल दुनिया के नक्शे पर एक नए देश का आविर्भाव हुआ, वरन् भयंकर रक्तक्रांति भी हुईं। इसने आगामी अनेक वर्षों तक मानव सभ्यता को प्रभावित किया। दरअसल जब से दुनिया बनी है, युद्ध कहीं-न-कहीं होते रहे हैं। आज भी अनेक देश युद्ध की आग में झुलस रहे हैं--सीरिया संकट, उत्तर कोरिया संकट, अफगानिस्तान में तालिबान संकट, भारत- पाक तना-तनी, इजराइल-फिलिस्तीन संकट। दुनिया में अमन-शांति के लिए आवश्यक है कि मानवहित में इन युद्धों पर पूर्णविराम लगे।
Dakshina
- Author Name:
Sirpi Balasubramaniam
- Rating:
- Book Type:

- Description: A literary digest of South Indian Languages.
Mati Pani Mein Sani Baudhikta
- Author Name:
Dr. Archana Singh +1
- Book Type:

- Description: प्रत्येक समाज अपने विकास के क्रम में ज्ञान के अपने संस्रोत विकसित करता है , जो समझने की अन्त : दृष्टि देते हैं । किन्तु भारतीय समाज को समझने की जो दृष्टियाँ हैं उनमें औपनिवेशिकता एवं पश्चिमी ज्ञान संदर्भो की भरमार है । हमें अपने समाज को समझने के लिए देशज चिन्तन दृष्टि की आवश्यकता है । यह पुस्तक समाज विज्ञान के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण देशज चिन्तन दृष्टियों को मुख्य विमर्श का हिस्सा बनाने का एक छोटा सा प्रयास है जो कि अभी तक साहित्य , लोक या गल्प के नाम पर हाशिए पर रही हैं ।
Aacharya Ramchandra Shukla Aur Hindi Aalochana
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

-
Description:
डॉ. रामविलास शर्मा हिन्दी के उन गिने-चुने आलोचकों में हैं जिन्होंने साहित्य का मूल्यांकन एक सुनिश्चित जनवादी दृष्टिकोण के आधार पर किया है। बहुत स्पष्ट, सुलझे हुए विचारों के सहारे अपने विश्लेषण में वे कहीं भी भटकते नहीं हैं और आदि से अन्त तक तटस्थता को अपने हाथ से नहीं जाने देते। इसीलिए चाहे उनके सबसे प्रिय कवि निराला हों या आदर्श आलोचक रामचन्द्र शुक्ल, जहाँ भी उन्हें कोई दोष दिखाई दिया है, उसकी दो-टूक आलोचना करने से वे नहीं चूके हैं।
प्रस्तुत कृति रामविलास जी द्वारा की गई आलोचना की आलोचना है, और इसलिए कुछ लोगों के विचार से यह केवल एक छात्रोपयोगी चीज़ है; लेकिन स्वयं रामविलास जी के शब्दों में, ‘‘शुक्लजी ने न तो भारत के रूढ़िवाद को स्वीकार किया, न पच्छिम के व्यक्तिवाद को। उन्होंने बाह्य-जगत् और मानव-जीवन की वास्तविकता के आधार पर नए साहित्य-सिद्धांतों की स्थापना की और उनके आधार पर सामन्ती साहित्य का विरोध किया और देशभक्ति और जनतंत्र की साहित्यिक परम्परा का समर्थन किया। उनका यह कार्य हर देश-प्रेमी और जनवादी लेखक तथा पाठक के लिए दिलचस्प होना चाहिए। शुक्ल जी पर पुस्तक लिखने का यही कारण है।’’
एक लम्बे अन्तराल के बाद इस महत्त्वपूर्ण आलोचना-कृति का यह संशोधित-परिवर्धित संस्करण शुक्लजी के अध्ययन के लिए एक नई दृष्टि देता है, जिससे स्पष्ट हो सकेगा कि ‘शुक्लजी अपने युग के हिन्दी-अहिन्दी विचारकों से कितना आगे थे और उनकी विचारधारा कितनी वैज्ञानिक है।’
Sarjnatmak Kavyalochan
- Author Name:
Pandeya Shashibhushan 'Shitanshu'
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी में सर्जनात्मक काव्यालोचन का प्राय: अभाव रहा है, जिससे आलोचना की सर्जनात्मक मौलिकता अब तक स्थापित-प्रतिष्ठित नहीं हो पाई है। अभाव-रूपी इस अफाट सन्नाटे को भंग करनेवाली डॉ. ‘शीतांशु’ की यह पुस्तक ऐसी पहली सहृदय-संवेद्य, प्रगुणात्मक पुस्तक है, जिसमें लेखक ने 28 हिन्दी कविताओं के काव्यमर्म तथा अन्तर्न्यस्त साभिप्रायता को उद्घाटित-विवेचित किया है।
कविता का विवेचन उसकी सर्जनात्मक सार्थकता का विवेचन होता है। यह सार्थकता भावकीय प्रतिभा से कविता की कलावटी गाँठों को खोलते हुए उसके अर्थ-गह्वर में प्रवेश करने से सम्भव हो पाती है। हिन्दी काव्यालोचन अब तक अपनी लक्ष्मण-रेखा में घिरा रहा है। वह प्रवृत्तिगत, विकासात्मक, सैद्धान्तिक और वादारोपित बहस-मुबाहसे से ग्रस्त-सा है। मार्क्सवादी आलोचना को तो अपनी एकरसता में किसी भी कविता की आन्तर गहराई में उतरने से प्राय: परहेज़ ही रहा है, जिसके कारण कविता का भावन और बोधन केवल सामाजिक यथार्थ की अभिधेयात्मकता तक सीमित-प्रतिबन्धित रह गया है, जबकि उसमें अशेष प्रतीयमान, सर्जनात्मक साभिप्रायता विद्यमान होती है। यहाँ तक कि इसमें मार्क्सवादी सामाजिक यथार्थ की अनेकानेक परतें भी समाविष्ट रहती हैं।
ऐसे में प्रतीयमान आभ्यन्तर को उद्घाटित करनेवाली यह वह प्रतीक्षित आलोचना-कृति है, जो स्थापित करती है कि कविता की सही पहचान-परख उसके तलान्वेषित कथ्यों और अर्थच्छवियों की बहुआयामिता पर निर्भर है।
कहना होगा कि कविताओं की साभिप्राय पुनस्सर्जना के माध्यम से काव्यलोचन के नए क्षितिज का सन्धान और दिशा-निर्देश करनेवाली यह पुस्तक अब तक की निर्धारित लक्ष्मण-रेखा के बाहर जाकर हिन्दी काव्यालोचन को समृद्ध करती है। साथ ही नई आलोचकीय प्रतिभाओं को इस दिशा में सक्रिय होने हेतु आमंत्रित भी करती है। हिन्दी आलोचना में कविता के पाठकों और आलोचकों को संवेदन-समृद्ध करनेवाली एक अत्यन्त उपयोगी एवं पठनीय पुस्तक।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...