Muslim Navjagran Aur Akbar Allahabadi Ka 'Gandhinama'
Author:
Virendra Kumar BaranwalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
हिन्दी में सम्भवत: यह पहली किताब है जिसमें अकबर इलाहाबादी के ‘गांधीनामा’ की पृष्ठभूमि में मुस्लिम नवजागरण, उसके विविध पक्षों तथा उसमें योगदान देनेवाले प्रमुख उन्नायकों के अवदान के बारे में इतनी बारीक चर्चा की गई है। इसमें शाह वली उल्लाह से लेकर मौलाना आज़ाद तक जैसे विख्यात युगपुरुषों के अवदान पर विचार तो किया ही गया है, इसके अलावा दो ऐसे विचारकों के योगदान पर भी विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है जिनके सम्बन्ध में बहुत कम लोग जानते हैं। मिर्ज़ा अबू तालिब और मौलवी मुमताज़ अली दो ऐसे ही नाम हैं। मिर्ज़ा अबू तालिब को मुस्लिम जगत में आधुनिकता की पहली आहट निरूपित किया गया है और मौलवी मुमताज़ अली को पहले मुस्लिम नारीवादी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।</p>
<p>हिन्दू नवजागरण के प्रवर्तक राजा राममोहन राय और मुस्लिम नवजागरण के उन्नायक सर सैयद अहमद ख़ाँ के नेतृत्व वाली अलग-अलग ये दोनों धाराएँ बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में महात्मा गांधी पर आकर एक बार एक हो जाती हैं। अकबर इलाहाबादी का ‘गांधीनामा’ दोनों पुनर्जागरणों के मिलन-बिन्दु का काव्य है। अकबर को व्यंग्य और विनोद के कवि के रूप में ही प्राय: सीमित कर दिया जाता है, उनकी कविता का प्रबल उपनिवेश विरोधी स्वर अकसर रेखांकित नहीं हो पाता। दरअसल गांधी जी की तरह वह भी पश्चिमी सभ्यता के अन्धाधुन्ध नक़ल और मशीनों के ख़िलाफ़ थे। इस तरह गांधी और अकबर के विचारों में अद्भुत समानता है। ‘गांधीनामा’ में यह स्वर बहुत अच्छी तरह से मुखर है।
ISBN: 9789388183529
Pages: 312
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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कनक द्वारा रचित कीर्तन अद्भुत हैं। पौराणिक कथा-सन्दर्भ के सहारे कृष्ण के दशावतार का पहेलीबद्ध ढंग से वर्णन करना कनक काव्य-शैली की विशेषता है। भगवान कृष्ण के चरित्र के आन्तरिक सम्बन्धों का गाँठदार वर्णन और घुमावदार रूप चित्रण-शैली कन्नड़ में मुंडिगे कहलाती है। कवि कनक मुंडिगे लेखन में सिद्धहस्त हैं। कनकदास द्वारा मुंडिगे-शैली का अत्यन्त सशक्त ढंग से प्रयोग और वर्णन से लगता है—यह शैली उनके लिए, जात के आधार पर पांडित्य का और काव्यज्ञान का अहंकार बघारनेवाले समकालीन पंडितों की टक्कर में, अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति-कुशलता को दर्शाने का ज़रिया मात्र थी। कनक की मुंडिगे के अनेक सुन्दर नमूने मिलते हैं। सम्पूर्ण भक्ति साहित्य में कनक के समान मुंडिगे रचयिता विरले ही हैं। अलंकारों के समृद्ध प्रयोग में कनक का सानी दूसरा नहीं।
विष्णु के दशावतार का वर्णन और अवतारी कृष्ण के नाना लीलाओं का वर्णन कनकदास ने बहुत ही रमकर एवं जमकर किया है। अपने आराध्य देव की स्तुति में कनक कहीं भी कोताही नहीं करते। लगता है, स्तुति के लिए अलग-अलग प्रसंगों की खोज में कनक लगे ही हुए हैं। अपने सगुण साकार सुन्दर और धीरशूर आराध्य देव के हर रूप का, हर कलाओं का वैभवमय वर्णन करते हैं। दास साहित्य के श्रेष्ठ कवि कनकदास भगवान की स्तुति में, रूप वर्णन में प्रेमी कृष्ण और प्रेमिका राधा के मध्य की रागात्मक और माधुर्य सम्बन्धों का आधार लेते हैं। प्रेमिका राधा, प्रोषितपतिका राधा, मिलनाकांक्षी राधा ऐसे अनेक रूपों के द्वारा कृष्ण के विविध अवतारों का मुंडिगे-शैली में वर्णन करते हैं। इन लीला-वर्णनों में स्तुति-निन्दा काव्य-रूढ़ि का भी अत्यन्त ही आत्मीय और अद्भुत प्रयोग कनक ने किया है। ‘कनकदास का काव्य’ पुस्तक में ऐसे ही कनक रचित सुन्दर कन्नड़ मुंडिगे का अनुवाद हिन्दी पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया है।
—प्रो. परिमला अंबेकर
Aadybimb Aur Godan
- Author Name:
Krishna Murari Mishra
- Book Type:

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'आद्यबिम्ब और गोदान’ पुस्तक हिन्दी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान करती है। कविता की आद्य बिम्बात्मक आलोचना से सम्बन्धित कई पुस्तकों का प्रकाशन हिन्दी में हो चुका है, किन्तु कथा साहित्य के क्षेत्र में यह प्रथम प्रयास है।
'आद्यबिम्ब’ शीर्षक पहले निबन्ध में आद्यबिम्ब की स्वरूप-विवृत्ति के लिये हिन्दी में पहली बार युग के ऊर्जीय दूष्टिकोण का सारभूत आख्यान तथा यौगपत्य-सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय है। 'आद्यबिम्ब और उपन्यास’ शीर्षक द्वितीय निबन्ध उपन्यासालोचन के क्षेत्र में आद्यबिम्ब की धारणा के संप्रयोग से सम्बन्धित है। इसमें लेखक ने अनेक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों की स्थापना की है जिनसे हिन्दी आलोचना के नए विकास की संभावनाएँ बलवती होती हैं। 'आद्यबिम्ब और गोदान' शीर्षक तीसरे निबन्ध में ‘गोदान' का आद्यबिम्बात्मक अध्ययन है। लेखक ने मुख्यत कथानक, उद्देश्य एवं भाषा के बिम्बत्व का गभीर विवेचन किया है।
'गोदान' की संरचनात्मक गहनताओं का यह अध्ययन उसके लगभग सभी विवादास्पद पहलुओं पर नई रोशनी डालता है। निस्सन्देह, यह पुस्तक हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में मील का पत्थर है।
Kavya Ki Aatma Aur Aatmiyakaran
- Author Name:
Rameshraaj
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- Description: यह पुस्तक गहन अध्ययन, चिंतन, मनन के उपरांत ठोस प्रमाणों और वैज्ञानिक समझ का समावेश करते हुए लिखी गई है। रागात्मक चेतना को काव्य की आत्मा सिद्ध करते हुए संस्कृत काल से चली आ रही रस, ध्वनि, अलंकार , औचित्य, रीति, सात्विक बुद्धि की काव्य के संदर्भ में इनके आत्मा होने के अस्तित्व मान्यताओं को खारिज कर, यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि इन सबको आलोकित करने वाला एक ही प्राण तत्त्व है - रागात्मक चेतना। यही सच्चे अर्थों में काव्य की आत्मा है। इसी रागात्मक चेतना से रस, ध्वनि, अलंकार, औचित्य, रीति आदि की सत्ता प्रकाशमय होती है। इसी रागात्मक चेतना को आधार बनाकर अति प्राचीन और वर्तमान समय तक सर्वमान्य सिद्धांत साधारणीकरण को असत्य सिद्ध किया है। इस नाते पुस्तक - काव्य की आत्मा और आत्मीयकरण एक शोधपूर्ण वैज्ञानिक प्रमाणों से युक्त अद्भुत, मौलिक, और सुधी शोध कर्त्ताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण कृति है।
Vibhajan Ki Vibheeshika
- Author Name:
Shri Manohar Puri
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- Description: भारत का विभाजन विश्व के सबसे बड़े नरसंहार के रूप में हिंदुओं और सिखों की महिलाओं की छाती पर हुआ। इसमें 30 लाख से अधिक लोगों की नृशंस हत्या हुई। विभाजन के समय हिंदू और सिख पुरुषों को एक लाइन में खड़ा करके पाकिस्तानी सेना ने गोलियों से भून दिया। एक लाख से अधिक महिलाओं का अपहरण व बलात्कार करके अधिकांश को मौत के घाट उतार दिया गया | उनकी संपत्ति को हड़प लिया अथवा उसे आग के हवाले कर दिया । विश्व में यह एकमात्र ऐसा उदाहरण है, जब करोड़ों की जनसंख्या का विनिमय बिना किसी योजना एवं पूर्व प्रबंधों के अचानक कर दिया गया। पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित इन दंगों में 1.5 करोड़ लोग विस्थापित हुए। विभाजन का यह काला अध्याय विस्थापित हुए, भगाए गए, मारे गए और भटककर मौत को गले लगानेवाली मनुष्यता के खून के छींटों से भरा हुआ है। यह इतिहास के चेहरे पर पुती वह कालिमा है, जिसे कभी साफ नहीं किया जा सकेगा। इसका दंश इस पीढ़ी ने झेला, पर उसका दर्द और मार वहाँ से विस्थापित हुए परिवार आज भी झेल रहे हैं। विभाजन का दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह है कि इसके लिए उत्तरदायी नेता अपने इस अमानवीय कुकृत्य के लिए कभी शर्मिंदा नहीं हुए, बल्कि विभीषिका को “रक्तहीन क्रांति' कहकर स्वयं को गौरवान्वित करते रहे । इन्हीं खून के धब्बों की लोमहर्षक घटनाओं पर उकेरा गया है यह अत्यंत मर्मस्पर्शी एवं संवेदनशील उपन्यास--'विभाजन की विभीषिका ।
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