Akath Kahani Prem Ki : Kabir Ki Kavita Aur Unka Samay

Akath Kahani Prem Ki : Kabir Ki Kavita Aur Unka Samay

Language:

Hindi

Pages:

456

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

912 mins

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Book Description

कबीर के समय को, जबदी हुई मनोवृत्ति का ‘मध्य-काल’ नहीं, देशज आधुनिकता का समय बताती हुई यह चर्चित और बहु-प्रशंसित पुस्तक प्रामाणिक और विचारोत्तेजक ढंग से कबीर और उनके समय का नया आख्यान रचती है।</p> <p>कबीर की काव्य-संवेदना का मार्मिक विश्लेषण करते हुए पुरुषोत्तम अग्रवाल याद दिलाते हैं कि ‘नारी-निंदक’ कहे गए कबीर प्रेम के पलों में नारी का ही रूप धारण करते हैं। यह पाठक पर है कि वह सम्बन्ध नारी-निन्दा के संस्कार से बनाता है, या नारी रूप धारण करती कवि-संवेदना से। पुस्तक काव्योक्त और शास्त्रोक्त भक्ति की धारणाएँ प्रस्तुत कर भक्ति-संवेदना के इतिहास पर पुनर्विचार की दिशा भी देती है।</p> <p>पुरुषोत्तम जी ने व्यापारियों और दस्तकारों द्वारा रचे जा रहे भक्ति के लोकवृत्त की अभूतपूर्व अवधारणा प्रस्तुत की है, और दिखाया है कि कबीर और अन्य सन्‍तों को ‘हाशिए की आवाज़’ देशज आधुनिकता में रचे गए भक्ति के लोकवृत्त ने नहीं, औपनिवेशिक ज्ञानकांड ने बनाया है।</p> <p>देशभाषा स्रोतों से संवाद किए बिना भारतीय इतिहास को समझना असम्भव है। बीसवीं सदी में गढ़ी गई रामानन्द की संस्कृत निर्मिति के इतिहास को मौलिक शोध के आधार पर, जासूसी कहानी की सी रोमांचकता के साथ प्रस्तुत करते हुए पुरुषोत्तम जी बताते हैं कि ‘साजिश’ और ‘बुद्धूपन’ जैसे बीज-शब्दों के सहारे किसी परम्परा को नहीं समझा जा सकता।</p> <p>इस पुस्तक की स्थापना है कि औपनिवेशिक आधुनिकता ने ग़ैर-यूरोपिय समाजों में ‘मध्यकालीन जड़ता को तोड़नेवाली प्रगतिशील भूमिका’ नहीं, देशज आधुनिकता को अवरुद्ध करने की भूमिका निभाई है। इस अवरोध ने अब तक चला आ रहा जो सांस्कृतिक संवेदना-विच्छेद उत्पन्न किया है, उसे दूर किए बिना हम न तो अपने अतीत का प्रामाणिक आख्यान रच सकते हैं, और न भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार हो सकते हैं।</p> <p>कबीर की कविता और भारतीय इतिहास के जिज्ञासुओं के लिए अनिवार्य पुस्तक।

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