Constitution, Culture and Nation
Author:
Kalraj MishraPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
Through this book, I am handing over the articles which I had written from time to time on the issues related to the Constitution, Indian Culture, and the nation to the readers out there.
The Constitution of the country that was written after the independence of the country has the echo of this very culture of the nation. The Indian Constitution is based on the values of equality and liberty to all irrespective of caste, religion, class, etc. This is our culture. The Constitution, the culture, and nation are actually intertwined.
I believe that the nation becomes stronger only when its people are committed to following the values associated with the Constitution and culture. Even though we got freedom from the British in 1947, the real freedom of the country means writing our own destiny. It is also important to uphold freedom. Upholding freedom means committing to fulfilling one’s duties towards its nation and enjoying the rights written in our Constitution.
I like to call the ‘Indian Constitution’ a ‘global document of human rights’. The reason being the perfect blend of rights and duties consisting the lofty values allied with life on which the development of humanity is founded.
ISBN: 9789394534254
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: भारतीय कलाओं, उनकी परम्पराओं और भाव-पक्ष पर सुनियोजित ढंग से विचार करने वाली ‘गांधी और कला तथा अन्य निबन्ध’ पुस्तक डॉ. रमण सिन्हा के समय-समय पर लिखे गए निबन्धों और व्याख्यानों का संकलन है। ‘गांधी और कला’ शीर्षक सुदीर्घ निबन्ध इसकी विशेष उपलब्धि है जिसमें कलाओं को लेकर गांधी की दृष्टि और विभिन्न कलाओं में गांधी व उनके विचारों के अंकन को अलग-अलग कोणों से देखा गया है। कलाओं की आन्तरिक परस्परता को भारतीय कला-दृष्टि की विशिष्टता बताते हुए यह पुस्तक उन कला-रूढ़ियों को भी रेखांकित करती चलती है जो वक़्त-वक़्त पर विदेशी लोगों के आगमन के साथ भारत की कला-धारा में समाहित होती रहीं, और उसे नया रूप देती रहीं। मध्यकालीन भारतीय कला और संस्कृति पर विचार करते हुए लेखक कहते हैं कि भारतीय चित्रकला के इतिहास में मुग़ल शैली का उद्भव एक युगान्तरकारी घटना सिद्ध हुई, जिसमें दो संस्कृतियों ने एक-दूसरे के साथ आदान-प्रदान का सम्बन्ध कायम किया तथा देशी का विदेशी के साथ व परम्परा का नवाचार के साथ संवाद बना। ‘तुलसीदास का प्रतिमा-निरूपण’, ‘कविता और राग’ तथा ‘हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत : लौकिक या पारलौकिक?’ आदि निबन्धों के अलावा अभिनय के माध्यम से अपने आत्म का अन्वेषण करनेवाले फ़िल्मकार ऋतुपर्ण घोष पर केद्रित एक आलेख भी इसमें शामिल है जो इस कला-विवेचन को हमारे आज के कला-बोध से जोड़ता है।
Upanyason Ke Rachna Prasang
- Author Name:
Kushum Vashney
- Book Type:

- Description: ी भी कृति की रचना-प्रक्रिया को जानना बेहद दिलचस्प और रोमांचक होता है। मानस की कितनी ही गूढ़ और अनजानी परतों से होकर कोई रचना जन्म लेती है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखिका ने विभिन्न महत्त्वपूर्ण उपन्यासों की रचना-प्रक्रिया की परख-पड़ताल की है। पुस्तक के पहले दो अध्याय— ‘अंकुरण : अनुभूति से अभिव्यक्ति बिन्दु तक की प्रक्रियाएँ’ और ‘अवतरण : अभिव्यक्ति की प्रक्रियाएँ’ में रचना-प्रक्रिया को समझने और विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है। इसमें देश-विदेश के बहुत से उपन्यासकारों के वक्तव्यों और विचारों को इसीलिए संकलित किया गया है ताकि भिन्न-भिन्न परिवेश और देश, विभिन्न संस्कृति और सभ्यता, विभिन्न भाषायी उपन्यासकारों के वक्तव्यों को आमने-सामने रखकर रचना-प्रक्रिया का सार्थक विश्लेषण किया जा सके। पुस्तक में संकलित ‘नाच्यौ बहुत गोपाल’ के अवतरण की कहानी विशेष उपलब्धि है जिसमें अमृतलाल नागर के इस महत्त्वपूर्ण उपन्यास के रचना-प्रसंग की कथा बयान की गई है। पाठकों के लिए हमेशा ही काम आनेवाली एक महत्त्वपूर्ण कृति।
Bhasha Vigyan Ki Bhumika
- Author Name:
Aacharya Devendranath Sharma
- Book Type:

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Description:
इस पुस्तक की उपादेयता, लोकप्रियता एवं सामयिकता का प्रमाण यह है कि गत चैंतीस वर्षों में इसके चार संस्करण और बीस से अधिक पुनर्मुद्रण हो चुके हैं। नवीन संस्करण में ग्रन्थ की आत्मा को अक्षुण्ण रखते हुए संशोधन एवं परिवर्धन का प्रयास किया गया है।
‘भाषाविज्ञान का इतिहास’ नामक अध्याय में बीसवीं शताब्दी में भाषाविज्ञान के विकास का प्रकरण ग्रन्थ को समसामयिक बनाए रखता है। इसके अतिरिक्त भाषाविज्ञान, मनोभाषाविज्ञान, अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, व्यतिरेकी भाषाविज्ञान और संगणक भाषाविज्ञान का परिचय इस नवीन संस्करण की अन्यतम विशेषता है। इससे पाठकों को न केवल इन विषयों की जानकारी मिलेगी, अपितु भाषाविज्ञान के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति को दिशा–चयन में भी सहायता मिलेगी।
Samkaleen Sabhyata Ke Sankat Ki Mahagatha_Nirvasan
- Author Name:
Rajeev kumar
- Book Type:

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Description:
किसी कृति का महत्त्व इससे तय होता है कि उसे विभिन्न दृष्टिकोणों से परखा जा सकता है या नहीं। इस सन्दर्भ में यह देखना भी आवश्यक है कि उसकी विविध व्याख्याएँ हो सकती हैं, और हर व्याख्या-विश्लेषण से आगे उसे और नये आयामों/सन्दर्भों में परखने की राह निकलती है या नहीं। इस पुस्तक के लेखों में अखिलेश के ख्यात उपन्यास ‘निर्वासन’ को इन्हीं आधारों पर देखा-परखा गया है। उपन्यास में वर्णित वस्तुस्थितियों, प्रतिरोध के विभिन्न पहलुओं तथा जीवन के धूसर रंग के साथ चटख रंग जैसे विभिन्न आयामों को लेखकों ने विवेचित-विश्लेषित किया है। ‘समकालीन सभ्यता के संकट की महागाथा : निर्वासन’ में संकलित लेखों में उपन्यास के कथ्य में निहित दुश्चिन्ताओं से लेकर इसके सौन्दर्य पक्ष तक पर विचार किया गया है। यहाँ उचित ही यह रेखांकित किया गया है कि ‘निर्वासन’ में वर्णित संकट सिर्फ इसके पात्रों का संकट नहीं है बल्कि यह वर्तमान मनुष्य का संकट है। इस तरह यह पुस्तक उपन्यास के व्यापक परिप्रेक्ष्य को सप्रमाण प्रस्तुत करती है। मनुष्यता के ऊपर आए संकटों की शिनाख़्त करने के क्रम में लेखकगण जीवन के उन सुन्दर क्षणों को रेखांकित करना नहीं भूले हैं जिनसे तमाम प्रतिकूलताओं के बीच भी मनुष्य की उम्मीद खत्म नहीं होती।
उम्मीद है कि ‘समकालीन सभ्यता के संकट की महागाथा : निर्वासन’ पाठकों के समक्ष ‘निर्वासन’ में अन्तर्निहित आयामों के विविध पक्षों को उद्घाटित कर उसकी श्रेष्ठता का साक्षात्कार कराने में सहायक होगी।
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