Aadhunik Kavi
Author:
Vishvambhar 'Manav'Publisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 440
₹
550
Available
बीसवीं शताब्दी में खड़ी बोली का काव्य इतना समृद्ध हो गया है कि उसे संसार के किसी भी सभ्य देश के काव्य की तुलना में रखा जा सकता है। इस युग में विभिन्न साहित्यिक वादों और आन्दोलनों का प्रचार हुआ, इस युग ने हमें प्रथम श्रेणी के अनेक महाकाव्य और खंड-काव्य दिए और इसी युग में एक ओर गीति-काव्य और दूसरी ओर मुक्त छंद का ऐसा प्रसार हुआ, जिसकी समता अतीत के सम्पूर्ण इतिहास में नहीं मिलती। अत: समय की माँग है कि आधुनिक काव्य के भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का लेखा-जोखा अब लिया जाए।</p>
<p>औद्योगीकरण एवं उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव केवल निम्न वर्ग पर ही नहीं, बल्कि उसकी गिरफ़्त में सम्पूर्ण मानवीय समाज है। धर्म की अमानवीय व्याख्या स्वार्थपरकता, अर्थलोलुपता, विज्ञान के द्वारा विकसित विनाश के विभिन्न साधन आदि के कारण सम्पूर्ण मनुष्यता के लिए ही संकट पैदा हुआ। मनुष्य का बचना बहुत प्राथमिक है। अभी भी मनुष्य जीवन और मृत्यु के अनेक प्रश्नों से टकरा रहा है। परिवर्तन की गति इतनी तेज है कि यह आशंका होने लगती है कि मनुष्य की पहचान करानेवाले लक्षण ही न लुप्त हो जाएँ। अशोक वाजपेयी ऐसे रचनाकार हैं जो मनुष्यता के व्यापक प्रश्नों से टकराते हैं और नई परिस्थितियों में मानवीय सभ्यता को रचना के माध्यम से स्थापित करते हैं।</p>
<p>नयी कविता से जुड़े अनेक कवियों ने अपनी निजी अनुभूति और शिल्प के द्वारा रचनात्मक ऊँचाई हासिल की, उनकी रचनाधर्मिता को काव्यधारा के दायरे में पूरी तरह से नहीं समझा जा सकता है, बल्कि उनका अलग-अलग विवेचन अपेक्षित है।</p>
<p>इस ग्रन्थ में भारतेन्दु से लेकर अरुण कमल तक ऐसे चौवालीस प्रतिनिधि कवियों के काव्य का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है जिनका साहित्य के इतिहास में विशेष महत्व है और जिन्होंने अपनी साधना से अपने व्यक्तित्व की छाप इस युग पर किसी न किसी रूप में छोड़ी है।
ISBN: 9788180312762
Pages: 360
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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