Aacharya Ramchandra Shukla ke Itihas ki Rachna Prakriya
Author:
Sameeksha ThakurPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
* आचार्य शुक्ल का "हिंदी साहित्य का इतिहास" उनकी साहित्य साधना की चरम परिणति है। अपने वर्तमान रूप में उनका यह अंतिम ग्रंथ भी है और अन्यतम भी। हिंदी साहित्य के ज्ञान कोश के रूप में यह आज भी सबसे विश्वसनीय संदर्भ ग्रंथ है। एक साथ ही यह इतिहास भी है और आलोचना भी, समालोचना का सिद्धान्त भी और प्रमुख हिंदी साहित्यकारों का तारतमिक मूल्यांकन भी, हिंदी जाति की चित्तवृत्ति का 'संचित प्रतिबिम्ब' भी और हिंदी भाषा की मूल प्रकृति का मानक भी। 'यदिहास्ति तदन्यत्र यन्त्रेहास्ति न तत क्वचित्' (जो यहाँ है वही अन्यत्र है, जो यहाँ नहीं है वह कहीं नहीं है) की उक्ति बहुत कुछ इस कालजयी कृति के विषय में भी चरितार्थ होती है।</p>
<p>* "हिंदी साहित्य का इतिहास" का भी एक इतिहास है। आलोचना की यह एक ऐसी विकासशील कृति है जिसने अनेक चरणों में पूर्णता प्राप्त की है। सौभाग्य से इनमें से प्रत्येक चरण के आलेख प्रकाशित रूप में सुरक्षित हैं। यह और बात है कि वे सभी दस्तावेज सरलता से सुलभ नहीं हैं। किन्तु इतना निश्चित है कि इस 'इतिहास' का इतिहास इन आलेखों में ही छिपा है। उस इतिहास की निर्माण-प्रक्रिया का अनावरण उन सभी आलेखों के तुलनात्मक अनुशीलन से ही सम्भव है।
ISBN: 9788119996841
Pages: 167
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Triveni
- Author Name:
Acharya Ramchandra Shukla
- Book Type:

-
Description:
‘त्रिवेणी’ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की तीन कृतियों मलिक मुहम्मद जायसी, महाकवि सूरदास तथा गोस्वामी तुलसीदास के आलोचनात्मक अंशों का संकलन है।
निबन्धों को इस दृष्टि से संकलित किया गया है कि साहित्य परम्परा की श्रेष्ठता तथा निबन्ध रचना का मानकीकरण हो सके। इनकी शैली, वैयक्तिकता, स्वच्छन्दता तथा भावात्मक पक्ष इन तत्त्वों में समाहित हैं।
प्रस्तुत संकलन निश्चय ही विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
Maithilishran
- Author Name:
Nandkishore Naval
- Book Type:

-
Description:
मैथिलीशरण गुप्त खड़ीबोली के पहले महान कवि हैं। टी.एस. इलियट के अनुसार महान कवि कविता में नई रुचि का निर्माण करता है, उसके अनुरूप काव्य-सृजन करता है और उसमें श्रेष्ठता का प्रतिमान स्थापित करता है। गुप्त जी इन तीनों ही कसौटियों पर खरे उतरनेवाले कवि हैं। खड़ीबोली की कविता में उनके महत्त्व को ऐतिहासिक समझा जाता है, लेकिन साहित्य में ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्त्व दो नहीं होते। वे ऐसे कवि हैं, जिन्होंने हिन्दी कविता में सभी आधुनिक मूल्यों की प्रस्तावना की है और अपने कंठ से सम्पूर्ण युग को वाणी दी है। ‘जयद्रथ-वध’, ‘पंचवटी’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’ और ‘भारत-भारती’ उनकी अविस्मरणीय कृतियाँ हैं।
त्रिलोचन ने लिखा है कि गुप्त जी के रचनात्मक प्रयोगों का पूरी तरह आकलन करके काम होना बाक़ी है। हिन्दी के सुपरिचित आलोचक डॉ. नंदकिशोर नवल ने इस चुनौती को स्वीकार कर प्रस्तुत पुस्तक में उनके युग सहित उनका सामान्य परिचय देते हुए उनकी सबसे सुन्दर ग्यारह कृतियों के रचनात्मक प्रयोगों का पूर्णता से आकलन किया है और इस क्रम में उन्होंने न केवल उनके सौन्दर्य को उन्मीलित किया है, बल्कि कवि के शब्द-संसार को विस्तार भी दिया है।
Gyan Aur Karm
- Author Name:
Vishnukant Shastri
- Book Type:

- Description: ...ईशावास्योपनिषद् अपने लघु कलेवर में अर्थ का विस्तृत आकाश समेटे हुए है।...सन्तों का आश्वासन है कि गुरु कृपा से पिपीलिका भी विहंगम मार्ग की अधिकारिणी हो जाती है। ईशावास्य को प्रवचन-यात्रा के प्रतिपाद में मुझे अपने गुरु ब्रह्मीभूत स्वामी अखंडानन्द सरस्वती की कृपा के सम्बल का अनुभव होता रहा, तभी तो यह वाचिक परिक्रमा पूरी हो सकी।...इस पुस्तक में जो भी है, वह गुरु जी की तथा शंकर, रामानुज, विनोबा सदृश अन्य पूर्वाचार्यों की कृपा का सुफल है...।
Hindi Ghazal Ki Nayi Dishayen
- Author Name:
Sardar Mujavar
- Book Type:

-
Description:
आज हिंदी कवियों का एक बड़ा वर्ग ग़ज़लों की ओर झुकता दिखाई दे रहा है। अपनी संक्षिप्तता, गहराई और क्षिप्रता के कारण इस विधा ने हर किसी को अपनी ओर आकर्षित और प्रभावित किया है। एक विदेशी विधा होने के बावजूद ग़ज़ल भारत की आबोहवा, यहाँ के सांस्कृतिक वातावरण में पूरी तरह घुल-मिल गई है। हिंदुस्तान की मिट्टी में लगाया गया यह ईरानी पौधा आज एक दरख़्त बनकर फैल चुका है।
‘हिंदी ग़ज़ल की नई दिशाएँ’ बीस आलेखों का संकलन है जो हिंदी की नई ग़ज़ल के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है। हिंदी की नई ग़ज़ल क्या है? उसकी तासीर, उसका मिज़ाज क्या है? कौन-सी चुनौतियाँ और क्या-क्या संभावनाएँ उसके सामने हैं? उसकी प्रमुख प्रवृत्तियाँ क्या हैं और आज हिंदी ग़ज़ल किन दिशाओं की ओर अग्रसर है, इन तमाम सवालों का सटीक उत्तर देने की कोशिश इस पुस्तक में की गई है।
Ramrajya Ki Katha
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

-
Description:
इस देश की जनता ने ब्रिटिश साम्राज्यशाही के शोषण और दासता से मुक्ति के लिए बहुत लम्बे समय तक संघर्ष किया है। भारत की जनता के इस संघर्ष का नेतृत्व भारतीय मुख्यतः राष्ट्रीय कांग्रेस के हाथ में था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व प्रकट तौर पर गांधी जी के हाथ में था, इसलिए कांग्रेस की नीति गांधीवाद के सत्य-अहिंसा के सिद्धान्तों के अनुकूल रही है। भारतीय जनता के संघर्ष का उद्देश्य कांग्रेसी राज बना देने के लिए गांधी जी ने उसे 'रामराज्य' का नाम दे दिया था। कांग्रेस के राज्य को रामराज्य का नाम देने का प्रयोजन था—भगवान राम को सत्य, न्याय और अहिंसा द्वारा अपने सभी दफ़्तरों, अदालतों और जेलों में ‘अहिंसा के अवतार’ गांधी जी के चित्र लटकाकर इन चित्रों के ही नीचे निराकुश और निस्संकोच रूप में धाँधली और दमन करना।
सम्भवतः कांग्रेसी सरकार गांधीवाद को सत्य प्रमाणित करने के लिए संसार को यह दिखाना चाहती रही कि रामराज्य की व्यक्तिगत स्वामित्व की और स्वामी वर्ग द्वारा दास वर्ग पर दया कर उसका पालन करने की नीति समाजवाद की अपेक्षा अधिक सत्य है।
Hindi Kavita : Abhi, Bilkul Abhi
- Author Name:
Nandkishore Naval
- Book Type:

-
Description:
अपनी इस पुस्तक में नामवरोत्तर हिन्दी आलोचना के अग्रगण्य आलोचक
डॉ. नंदकिशोर नवल ने अपने समकालीन कवियों की कविता पर विचार किया है। ये वे कवि हैं, जिनके साथ वे उठे हैं, दौड़े हैं और झगड़े हैं; स्वभावत: इन कवियों पर लिखना अग्नि–परीक्षा से गुज़रना था, लेकिन साहित्य की पवित्रता की पूरी तरह से रक्षा करते हुए वे उसमें सफल हुए हैं। कभी–कभी उन्होंने कवियों की त्रुटियों की ओर भी संकेत किया है, लेकिन उसका ज़रूरत से ज़्यादा महत्त्व नहीं है, क्योंकि उनका लक्ष्य कवियों के वैशिष्ट्य का निरूपण रहा है और यह कार्य उन्होंने पूरे वैदग्ध्य से किया है। एक पीढ़ी के कवियों की पारस्परिक भिन्नता को रेखांकित करना आसान नहीं है, लेकिन उनकी कविताएँ उनकी नसों में इस क़दर प्रवाहित रही हैं कि उसमें उन्हें ज़रा भी दिक़्क़त नहीं हुई है।डॉ. नवल आलोचना साधारण पाठकों को सामने रखकर लिखते हैं। इतना ही नहीं, वे उनके साथ चलते हैं, उन्हें प्रासंगिक संस्मरण सुनाते हैं और घुमाते हुए कवि की सम्पूर्ण चित्रशाला का दर्शन करा देते हैं। वे उस आलोचना के सख़्त ख़िलाफ़ हैं, जो कविता की ज़मीन छोड़कर चील की तरह आकाश की गहराइयों में उड़ती है और वहाँ उड़ते कीड़ों की जगह पाठकों का शिकार करती है। ऐसी आलोचना पाठकों को आतंकित जितना कर ले, उसकी मित्र और बन्धु नहीं बन पाती।
निश्चय ही आलोचना कविता को कहानी या यात्रा–वर्णन बना देना नहीं है, लेकिन यदि उसे ‘रचना’ का ओहदा प्रदान करना है, तो उसमें रचना जैसी संवेदनशीलता लानी होगी। संवेदनशीलता के साथ स्पष्टता और आत्मीयता डॉ. नवल की ऐसी विशेषताएँ हैं, जिन्हें सराहते ही बनता है। अन्त में उनके बारे में यही कहा जा सकता है कि ‘अब निर्मल जल–भर है, सेवार नहीं है’।
Hindi Web Sahitya
- Author Name:
Sunilkumar Lawate
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी भाषा और साहित्य की विभिन्न वेबसाइट्स पर प्रकाशित साहित्य का यह पहला व्यवस्थित अनुसन्धान है। इसके अलावा इसमें कम्प्यूटर के उद्भव, वेबसाइटों के निर्माण और पोर्टल्स की बनावट आदि की बुनियादी जानकारी भी दी गई है। सीधे इंटरनेट पर प्रकाशित हिन्दी साहित्य का व्यापक परिचय देनेवाली यह पुस्तक ज्ञानभाषा के रूप में हिन्दी की क्षमता को भी रेखांकित करती है और इंटरनेट जैसे सर्वव्यापी मंच पर हिन्दी के नए उभरते भाषा-वैज्ञानिक स्वरूप को भी स्पष्ट करती है।
यह पुस्तक उन साहित्यकारों, समीक्षकों, अध्यापकों और रचनाकारों के लिए भी ‘आई ओपनर’ का काम करेगी जो अभी तक इंटरनेट से बचते आए हैं और उसकी क्षमता तथा उपयोगिता को नज़रअन्दाज़ करते रहे हैं। हिन्दी के प्रति उपयोजित प्रतिबद्धता (Applied Commitment) की भूमिका के प्रति आगाह कर यह पुस्तक हमें संगणकीय प्रयोग के लिए प्रोत्साहन भी देती है।
हिन्दी को विश्वभाषा के रूप में चिन्हित करती यह पुस्तक इसलिए भी अनूठी है कि इसमें एक भी मुद्रित सन्दर्भ नहीं है, जो है, सब ऑनलाइन बिब्लियोग्राफ़ी है।
Kavita Ka Shahar : Ek Kavi Ki Notebook
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

-
Description:
कविता का नगर चाहे बहुत भिन्न हो, उसमें कल्पना का तत्त्व बहुत अधिक या कम हो, लेकिन बाहर स्थित नगर से उसकी शक्ल थोड़ी-बहुत तो मिलती है। पर हर बार मेरी शक्ल को वास्तविक नगर की शक्ल से मिला-जुलाकर देखने की क़वायद फ़िज़ूल है। कई बार कवियों को भी यह भ्रम हो जाता है कि वे अपनी कविता में वास्तविक शहर के यथार्थ को समेट रहे हैं। उन्हें लगता है कि वो कविता में शब्दों से वो ही शहर बना सकते हैं जो वास्तविक शहर है। लेकिन दोनों के निर्माण में लगनेवाली सामग्री ही भिन्न है। जब भी वास्तविक शहर शब्दों में रूपान्तरित होता है, उसका चेहरा-मोहरा वही नहीं रहता जो उसका वास्तविक चेहरा है। यह शहर का पुनर्रचित चेहरा है। यह कविता का नगर है।
लेकिन मुझे बसाना या बनाना भी कोई आसान काम नहीं है। मेरे भवनों, सड़कों, गलियों, नदियों और सरोवरों को बनाने के लिए एक कवि को भी जाने कितने शब्द, कितने वाक्य, बिम्ब, प्रतीक, छन्द, लय, मिथक-कथाओं और कल्पनाओं की ज़रूरत होती है। कवि का श्रम किसी वास्तुशिल्पी या नगरशिल्पी से किसी बात में कम नहीं होता।
मेरा इतिहास उतना ही पुराना है जितना मनुष्य द्वारा किए गए नगरीकरण का। इसे मेरा दम्भ न समझा जाए तो कई बार तो मुझे लगता है कि मनुष्य द्वारा बसाए गए शहर से भी पहले मैं अस्तित्व में आया होऊँगा। एक शहर में जैसे हमेशा ही कुछ न कुछ जुड़ता रहता है, कुछ टूटता रहता है, इसी तरह मुझमें भी कुछ न कुछ बदलता रहता है। प्राचीन कविता का नगर और आज की कविता का नगर एक-सा तो नहीं है। आधुनिक शहरों की तरह मुझमें भी भीड़ है, शोर है और तेज़ गतियाँ हैं, परिचित और अपरिचित चेहरे हैं। आख़िरकार मैं भी एक नगर हूँ और भीड़ और शोर से मैं भी कैसे बच सकता हूँ।
तो आइए, मैं आपको वास्तविक नगर की भीड़ और शोर से निकालकर कविता के नगर की भीड़ और शोर के बीच लिए चलता हूँ।
Achhi Hindi
- Author Name:
Ramchandra Verma
- Book Type:

- Description: आज-कल देश में हिन्दी का जितना अधिक मान है और उसके प्रति जन-साधारण का जितना अधिक अनुराग है, उसे देखते हुए हम कह सकते हैं कि हमारी भाषा सचमुच राष्ट्र-भाषा के पद पर आसीन होती जा रही है। लोग गला फाड़कर चिल्लाते हैं कि राज-काज में, रेडियो में, देशी रियासतों में सब जगह हिन्दी का प्रचार करना चाहिए, पर वे कभी आँख उठाकर यह नहीं देखते कि हम स्वयं कैसी हिन्दी लिखते हैं। मैं ऐसे लोगों को बतलाना चाहता हूँ कि, हमारी भाषा में उच्छृंखलता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। किसी को हमारी भाषा का कलेवर विकृत करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। देह के अनेक ऐसे प्रान्तों में हिन्दी का ज़ोरों से प्रचार हो रहा है, जहाँ की मात्र-भाषा हिन्दी नहीं है। अतः हिन्दी का स्वरूप निश्चित और स्थिर करने का सबसे बड़ा उत्तरदायित्व उत्तर भारत के हिन्दी लेखकों पर ही है। उन्हें यह सोचना चाहिए कि हमारी लिखी हुई भद्दी, अशुद्ध और बे-मुहावरे भाषा का अन्य प्रान्तवालों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, और भाषा के क्षेत्र में हमारा यह पतन उन लोगों को कहाँ ले जाकर पटकेगा। इसी बात का ध्यान रखते हुए पूज्य अम्बिका प्रसाद जी वाजपेयी ने कुछ दिन पहले हिन्दी के एक प्रसिद्ध लेखक और प्रचारक से कहा था, "आप अन्य प्रान्तों के निवासियों को हिन्दी पढ़ा रहे हैं और उन्हें अपना व्याकरण भी दे रहे हैं, पर जल्दी ही वह समय आएगा, जबकि वही लोग आपके ही व्यकारण से आपकी भूल दिखाएँगे!" यह मानो भाषा की अशुद्धियों वाले व्यापक तत्त्व की और गूढ़ संकेत था। जब हमारी समझ में यह तत्त्व अच्छी तरह आ जाएगा, तब हम भाषा लिखने में बहुत सचेत होने लगेंगे। और मैं समझता हूँ कि हमारी भाषा की वास्तविक उन्नति का आरम्भ भी उसी दिन से होगा। भाषा वह साधन है, जिससे हम अपने मन के भाव दूसरों पर प्रकट करते हैं। वस्तुतः यह मन के भाव प्रकट करने का ढंग या प्रकार मात्र है। अपने परम प्रचलित और सीमित अर्थ में भाषा के अन्तर्गत वे सार्थक शब्द भी आते हैं, जो हम बोलते हैं और उन शब्दों के वे क्रम भी आते हैं, जो हम लगाते हैं। हमारे मन में समय-समय पर विचार, भाव, इच्छाएँ, अनुभूतियाँ आदि उत्पन्न होती हैं, वही हम अपनी भाषा के द्वारा, चाहे बोलकर, चाहे लिखकर, चाहे किसी संकेत से दूसरों पर प्रकट करते हैं, कभी-कभी हम अपने मुख की कुछ विशेष प्रकार की आकृति बनाकर या भावभंगी आदि से भी अपने विचार और भाव एक सीमा तक प्रकट करते हैं, पर भाव प्रकट करने के ये सब प्रकार हमारे विचार प्रकट करने में उतने अधिक सहायक नहीं होते, जितनी बोली जानेवाली भाषा होती है। यह ठीक है कि कुछ चरम अवस्थाओं में मन का कोई विशेष भाव किसी अवसर पर मूक रहकर या फिर कुछ विशिष्ट मुद्राओं से प्रकट किया जाता है और इसीलिए 'मूक अभिनय' भी 'अभिनय' का एक उत्कृष्ट प्रकार माना जाता है। पर साधारणतः मन के भाव प्रकट करने का सबसे अच्छा, सुगम और सब लोगों के लिए सुलभ उपाय भाषा ही है।
Hindi Kahani : Antarvastu ka shilp
- Author Name:
Rahul Singh
- Book Type:

-
Description:
स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानी के महत्त्वपूर्ण रचनाकारों के बहाने यह किताब कहानी आलोचना के इलाके की एक बड़ी कमी को पूरा करती है। कविता और उपन्यासों को लेकर छिटपुट ढंग से ही सही आलोचना का जैसा एक स्टैंड बनता है, कहानी को लेकर वैसा व्यवस्थित विचार अक्सर सामने नहीं आ पाता है। ऐसे में यह पुस्तक अपने तरीके से आजादी बाद के एक अहम कालखंड के कहानीकारों और उनकी रचनात्मकता के साथ कहानी के सामान्य परिदृश्य का एक दिलचस्प और अर्थवान खाका खींचती है।
वे कहानीकार जिन्होंने अपने कौशल से कहानी की क्षमता को बढ़ाया, अपने समय के सवालों से दो-चार हुए, और जो भारतीय समाज के बहुमुखी बदलाव को सफलतापूर्वक पकड़ सके, ऐसे सभी प्रमुख कथाकार यहाँ चर्चा के केन्द्र में हैं। जनवादी विचार से समृद्ध संजीव और स्वयं प्रकाश हों, भाषा को कलात्मक सूझ से बरतने वाले प्रियंवद और आनन्द हर्षुल हों, कहानी विधा की गहरी समझदारी रखनेवाले लेकिन अपेक्षाकृत कम चर्चित रहे अरुण प्रकाश और नवीन सागर हों, दलित स्वानुभव से कहानी को समृद्ध करने वाले ओमप्रकाश वाल्मीकि हों या कहानी के क्षितिज पर परिघटना की तरह प्रकट होने वाले उदय प्रकाश, शिवमूर्ति, अखिलेश और योगेन्द्र आहूजा हों, सभी का एक आस्वादपरक क्रिटीक इस पुस्तक में शामिल है।
इन सभी कथाकारों ने अपने-अपने मोर्चे से मानवीय मूल्यों के पक्ष में लगातार संघर्ष किया, समय को समझने और समझाने के लिए घटनाओं और चरित्रों की एक बड़ी आकाशगंगा रची। निस्सन्देह आने वाले वक्त में उनकी रचनाएँ बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के भारत को समझने में दस्तावेजों की तरह काम आएँगी। प्रखर युवा आलोचक राहुल सिंह ने यहाँ संकलित एक-एक आलेख में प्रयास किया है कि प्रत्येक लेखक की अपनी विशेषताओं के रेखांकन के साथ उनके दौर के सामाजिक-राजनीतिक मिजाज को भी पकड़ा जा सके, और यह वे सफलतापूर्वक कर सके हैं।
Aadhunik Hindi Kavita
- Author Name:
Vishwanath Prasad Tiwari
- Book Type:

- Description: v data-content-type="html" data-appearance="default" data-element="main"><p>प्रस्तुत पुस्तक में प्रसिद्ध कवि-आलोचक डॉ. विश्वनाथप्रसाद तिवारी ने आधुनिक हिन्दी कविता के तेरह प्रमुख कवियों—मैथिलीशरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी, माखनलाल चतुर्वेदी, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, भगवतीचरण वर्मा, सुभद्राकुमारी चौहान, हरिवंशराय बच्चन, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, नरेन्द्र शर्मा और स.ही. वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की कविताओं का विश्लेषण-मूल्यांकन किया है। उपर्युक्त कवियों के काव्य का यह अध्ययन अपने संक्षिप्त रूप में विराट विस्तार को समेटने वाला है। बूँद में समुद्र की तरह। यह उन कवियों की मुख्य काव्य-विशेषताओं को उद्घाटित करता है, साथ ही एक लम्बी कालावधि की काव्य प्रवृत्तियों को भी। पुस्तक में किसी प्रकार का पूर्वग्रह नहीं है, न उखाड़-पछाड़ वाली दृष्टि। लेखक ने पूरी तरह सन्तुलित-तटस्थ दृष्टि से सहृदयता के साथ कवियों के काव्यानुभव और उनकी काव्यभाषा की समीक्षा की है। अवश्य ही यह पुस्तक पाठकों का ध्यान सही निष्कर्षों की ओर आकृष्ट करेगी।</p> <p>इस पुस्तक से हिन्दी कविता के कुछ अत्यन्त विशिष्ट कवियों के माध्यम से कविता के एक महत्वपूर्ण युग की उपलब्धियों के बारे में स्पष्ट जानकारी मिलेगी। इसमें सन्देह नहीं कि आकार में यह लघु पुस्तक साहित्य के अध्येताओं के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।</p>
Alochana Anukramanika
- Author Name:
Neelam Singh +1
- Book Type:

-
Description:
स्वतंत्रता के बाद जिस तरह भारतीय समाज और राजनीति अपना रास्ता टटोल रहे थे; हिन्दी साहित्य की स्थिति बेशक वैसी नहीं थी। उसकी अपनी एक परम्परा थी जो ब्रिटिश भारत में भी विद्यमान और गतिशील रहती आई थी। लेकिन आजादी के बाद के नए भारत में उसके सामने कुछ नए कार्यभार थे; जिसमें सबसे अहम था भारतीय लोकतंत्र को एक सामूहिक बोध के रूप में स्थापित करना और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को आगे बढ़ाना।
इसके लिए सिर्फ साहित्य-सृजन की नहीं, एक वैचारिक नेतृत्व की भी जरूरत थी। हिन्दी समाज के लिए इस काम के लिए आलोचना सामने आई। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस त्रैमासिक पत्रिका का पहला अंक अक्तूबर 1951 में आया; और पहले ही अंक से उसने अपनी क्षमता और उद्देश्यों को स्पष्ट रूप में रेखांकित कर दिया।
आलोचना को सिर्फ साहित्यिक समीक्षाओं की पत्रिका नहीं होना था, और वह हुई भी नहीं। उसकी चिन्ता के दायरे में इतिहास, संस्कृति, समाज से लेकर राजनीति और अर्थव्यवस्था तक सभी कुछ था। विश्व के वैचारिक आन्दोलनों और अवधारणाओं को भी उसने बराबर अपनी निगाह में रखा। इसी विराट दृष्टि के चलते आलोचना हिन्दी मनीषा के लिए एक नेतृत्वकारी मंच के रूप में सामने आई, और धीरे-धीरे मानक बन गई।
आलोचना के सम्पादक बदले, लेकिन उसकी दृष्टि का दायरा और फोकस कभी नहीं बदला। आज भी, वह लोकतांत्रिक प्रगतिशील और समतावादी मूल्यों के पक्ष में साहसपूर्वक खड़ी हुई है। अक्टूबर 1951 में प्रकाशित पहले अंक से लेकर अप्रैल-जून 2019 में प्रकाशित ‘विभाजन के सत्तर साल’ विषयक अंक तक की सामग्री इसकी गवाह है, जिसका विवरण आप इस पुस्तक में देखेंगे।
इस पुस्तक में हर अंक की सामग्री का क्रमबद्ध विवरण है जो स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य की यात्रा का द्योतक भी है; और सामाजिक-सांस्कृतिक चिन्ताओं का भी।
Hindi Kahani Ka Itihas : Vol. 1 (1900-1950)
- Author Name:
Gopal Ray
- Book Type:

-
Description:
यह हिन्दी कहानी का पहला व्यवस्थित इतिहास है और हिन्दी-उर्दू का पहला समेकित इतिहास तो यह है ही। उल्लेखनीय है कि इस अवधि के अनेक कहानीकार एक साथ हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में लिख रहे थे। इनमें प्रेमचन्द प्रमुख हैं। इसके अलावा सुदर्शन, उपेन्द्रनाथ अश्क आदि भी उर्दू और हिन्दी में साथ-साथ लिख रहे थे। इनकी हिन्दी और उर्दू में भी, लिपि को छोड़कर, कोई विशेष अन्तर नहीं है। कथ्य और संरचना में, भाषिक आधार पर तो, कोई अन्तर है ही नहीं। उर्दू की अधिकतर उल्लेखनीय कहानियाँ हिन्दी में रूपान्तरित या देवनागरी में लिप्यन्तरित भी हो चुकी हैं। ...उर्दू कहानियों पर अधिकतर सामग्री उर्दू साहित्य के इतिहास-ग्रन्थों और आलोचना-पुस्तकों से ली गई है, और यथास्थान उनका सन्दर्भ भी दे दिया गया है। इस किताब में हिन्दी और उर्दू के साथ-साथ भोजपुरी, मैथिली और राजस्थानी के कहानी-साहित्य को भी स्थान दिया गया है। इस पुस्तक में जिस अवधि के कहानी-साहित्य का इतिहास प्रस्तुत किया गया है, उस अवधि में अहिन्दीभाषियों और प्रवासी भारतीयों द्वारा लिखित कहानी-साहित्य का कोई सुनियोजित विवरण उपलब्ध नहीं है। इस कारण उस विशाल, और कदाचित् मूल्यवान, साहित्य को इस ‘इतिहास’ में स्थान देना सम्भव नहीं हो सका है।
इस किताब में उर्दू-हिन्दी और मैथिली-भोजपुरी-राजस्थानी के लगभग 100 कहानी-लेखकों और 3000 कहानियों का कमोबेश विस्तार के साथ विवेचन या उल्लेख किया गया है। कहानी-लेखकों और कहानी-संग्रहों की अक्षरानुक्रम सूची अनुक्रमणिका में दे दी गई है। इसके साथ ही जो कहानियाँ किसी भी कारण चर्चित रही हैं, या उल्लेखनीय हैं, उनकी अक्षरानुसार सूची भी उपलब्ध करा दी गई है। आशा है, इससे पाठकों की जिज्ञासाओं की तुष्टि हो सकेगी।
Kutaz
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

- Description: आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी भारतीय मनीषा के प्रतीक और साहित्य एवं संस्कृति के अप्रतिम व्याख्याकार माने जाते हैं और उनकी मूल निष्ठा भारत की पुरानी संस्कृति में है लेकिन उनकी रचनाओं में आधुनिकता के साथ भी आश्चर्यजनक सामंजस्य पाया जाता है। ‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’ और ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ जैसी यशस्वी कृतियों के प्रणेता आचार्य द्विवेदी को उनके निबन्धों के लिए भी विशेष ख्याति मिली। निबन्धों में विषयानुसार शैली का प्रयोग करने में इन्हें अद्भुत क्षमता प्राप्त है। तत्सम शब्दों के साथ ठेठ ग्रामीण जीवन के शब्दों का सार्थक प्रयोग इनकी शैली का विशेष गुण है। भारतीय संस्कृति, इतिहास, साहित्य, ज्योतिष और विभिन्न धर्मों का उन्होंने गम्भीर अध्ययन किया है जिसकी झलक पुस्तक में संकलित इन निबन्धों में मिलती है। छोटी-छोटी चीज़ों, विषयों का सूक्ष्मतापूर्वक अवलोकन और विश्लेषण-विवेचन उनकी निबन्ध-कला का विशिष्ट व मौलिक गुण है। निश्चय ही उनके निबन्धों का यह संग्रह पाठकों के लिए न केवल पठनीय है बल्कि उनकी सोच को एक रचनात्मक आयाम भी प्रदान करता है।
Vichar Ka Aina : Kala Sahitya Sanskriti : Jawaharlal Nehru
- Author Name:
Jawaharlal Nehru
- Book Type:

-
Description:
विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है।
जवाहरलाल नेहरू ऐसे चिन्तक राजनेता हैं जिन्होंने भारत को आधुनिक विश्व परिदृश्य में एक समर्थ देश के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया। जिनके दिखाए रास्ते पर आधुनिक भारत आगे बढ़ा। गांधी की अगुआई में स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय नेहरू लम्बे समय तक जेलों में रहे। स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का सपना देखा जिसने दुनिया भर में भारत का मान बढ़ाया। उनके मन में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और बहुलता के प्रति अथाह सम्मान था। आज जब भारत की सांस्कृतिक बहुलता को खंडित करने का सपना देखनेवाली राजनीतिक ताकतें मजबूत हुई हैं, ऐसे में हमें उम्मीद है कि नेहरू के कला, साहित्य और संस्कृति सम्बन्धी प्रतिनिधि निबन्धों की यह किताब भारत की सांस्कृतिक विरासत और बहुलता को दूर करने और उनकी अपरिहार्य आवश्यकता को समझाने में सहायक होगी।
Aankhan Dekhi Bihar Andolan
- Author Name:
Bajrang Singh
- Book Type:

- Description: "आँखन देखी : बिहार आंदोलन एक आंदोलन दूसरे आंदोलन की याद दिलाता है। हाल के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के कारण 1974 के बिहार (जेपी) आंदोलन की खूब चर्चा हुई है। 1974 के दशक में या उसके बाद की जनमी नई पीढ़ी 1974 के आंदोलन के बारे में जानना-समझना चाहती है, लेकिन उसके लिए पर्याप्त सामग्री की कमी है। हाल में दिल्ली के नृशंस गैंप रेप के विरोध में दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में स्वतःस्फूर्त जन विस्फोट हुआ। बिहार आंदोलन के बाद पहली बार सामाजिक सरोकार के सवाल पर देश के छात्र-छात्राओं की इतनी बड़ी शक्ति दिल्ली के राजपथ (जिन पर आंदोलनात्मक गतिविधियाँ प्रतिबंधित रही हैं) पर अपनी आवाज बुलंद कर रही थी। क्या भारत की यह युवा शक्ति इस पुरुष-प्रधान समाज एवं पूँजीवादी व्यवस्था की गैर-बराबरी, अन्याय एवं अत्याचार को खत्म करने तथा समतामूलक लोकतांत्रिक समाज की स्थापना करने की दिशा में पहल कर पाएगी? प्रस्तुत पुस्तक बिहार आंदोलन की व्यापकता और उसमें बुनियादी परिवर्तन और क्रांति के बीज होने की क्षमता का आँखों देखा प्रामाणिक विवरण पेश करती है। एक पत्रिका में छपे लेखों, रपटों और दस्तावेजों के माध्यम से किसी आंदोलन पर ऐसी पुस्तक शायद ही हिंदी में कोई दूसरी हो। बिहार की संघर्षशीलता, जुझारूपन और आंदोलन-शक्ति को समझने में सहायक एक उपयोगी पुस्तक।
Sahitya Ke Siddhant Tatha Roop
- Author Name:
Bhagwaticharan Verma
- Book Type:

-
Description:
भगतीवचरण वर्मा ने साहित्य की विभिन्न विधाओं को अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियाँ दी हैं। इन कृतियों के पीछे कौन-सी प्रेरक शक्तियाँ रही हैं और कौन-से सिद्धान्त वर्मा जी के लेखकीय जीवन की आधारभूमि हैं, यह जानना भगवती बाबू के असंख्य पाठकों की जिज्ञासा का विषय रहा है। इन तमाम जिज्ञासाओं के समाधान की खोज का परिणाम है : भगवतीचरण का महत्त्वपूर्ण सैद्धान्तिक ग्रन्थ—‘साहित्य के सिद्धान्त तथा रूप’।
इस ग्रन्थ में लेखक की प्रतिज्ञा एकदम भिन्न और नए रूप में प्रकट हुई है। यहाँ साहित्य के सिद्धान्तों का विश्लेषण शुष्क शास्त्रीय ढंग से नहीं, लेखक के आधी शताब्दी के अनुभवों के आधार पर हुआ है। ग्रन्थ में रचना-प्रक्रिया का व्यावहारिक विश्लेषण है और साथ ही लेखक के रचना-संसार की कठिनाइयों से साक्षात्कार भी। यह कृति पाठकों तथा शोधकर्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी।
Ghati
- Author Name:
Dr. Rashmi
- Book Type:

- Description: This Book Doesn't have any Description.
Hindi Sahitya : Ek Parichya
- Author Name:
Fanish Singh
- Book Type:

-
Description:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, ‘प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है, तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अन्त तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य-परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना साहित्य का इतिहास कहलाता है।’ आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का मत है कि ‘साहित्य का इतिहास ग्रन्थों और ग्रन्थकारों के उद्भव और विलय की कहानी नहीं है, वह काल स्रोत में बहे आते हुए जीवन्त समाज की विकास कथा है।’ हिन्दी के इन दोनों मूर्धन्य विचारकों की परिभाषाओं से स्पष्ट है कि साहित्य जनता की चित्तवृत्तियों का संचित प्रतिबिम्ब है।
चित्तवृत्तियाँ समय एवं काल के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं। अतएव साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता रहता है। इन परिस्थितियों के आलोक में साहित्य की इस विकासशील प्रवृत्ति को प्रस्तुत करना ही साहित्य का इतिहास कहलाता है। कहना न होगा कि साहित्य का विश्लेषण, अध्ययन केवल साहित्य एवं साहित्यकार तक सीमित रखकर नहीं किया जा सकता। साहित्य की विभिन्न प्रवृत्तियों की प्रस्तुति के लिए उससे सम्बन्धित राष्ट्रीय परम्पराओं, सामाजिक परिस्थितियों, आर्थिक परिस्थितियों, उस युग की चेतना, साहित्यकार की प्रतिभा तथा प्रवृत्ति का विश्लेषण आवश्यक है। देशकाल परिस्थिति भेद से समाज का स्वरूप परिवर्तित होता रहता है, साहित्य समाज का ही प्रतिबिम्ब होता है। स्पष्टतः समाज के स्वरूप के परिवर्तन का प्रभाव साहित्य पर पड़ता है। इस प्रकार साहित्य का इतिहास न केवल विकासशील प्रक्रिया का उद्घाटन करता है, बल्कि इस क्रम में नए और पुराने संघर्ष को भी रेखांकित करता चलता
है।इसके अतिरिक्त इसमें साहित्य एवं समाज को प्रभावित करनेवाले विभिन्न आन्दोलनों, परिवर्तनों और प्रयोगों के सम्बन्ध का भी विवेचन होता है। साहित्य के इतिहास में रचना और रचनाकार की सृजनात्मक क्षमता को वर्तमान की कसौटी पर कसा जाता है। विश्वम्भर मानव के शब्दों में, ‘किसी भाषा में उस साहित्य का इतिहास लिखा जाना उस साहित्य की समृद्धि का परिणाम है। साहित्य के इतिहास को वह भित्तिचित्र समझिए जिसमें साहित्यिकों के आकृति-चित्र नहीं होते, हृदय-चित्र और मस्तिष्क-चित्र ही होते हैं।’
—इसी पुस्तक से
Taar Saptak : Siddhant Aur Kavita
- Author Name:
Bodhisatwa
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी कविता के इतिहास में तार सप्तक का ऐतिहासिक महत्त्व है। काव्य-चेतना के दो युगों के सन्धि-बिन्दु पर मौजूद इस संकलन से गुज़रे बिना छायावाद, प्रगतिवाद और छायावादोत्तर कविताओं के बाद की हिन्दी कविता को नहीं समझा जा सकता। लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक इसका कोई व्यवस्थित अध्ययन नहीं हो पाया। हिन्दी के सुपरिचित कवि और अध्येता बोधिसत्व का यह शोध-प्रबन्ध इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
पाँच विस्तृत अध्यायों में सुनियोजित इस पुस्तक में तार सप्तक के इतिहास, उसकी युगीन आवश्यकता, सम्पादन-प्रक्रिया और उससे जुड़े विवादों से आरम्भ करके हिन्दी के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में उसका चरणबद्ध विवेचन किया गया है। तार सप्तक में शामिल कवियों के काव्य-चिन्तन का विस्तृत अध्ययन-सर्वेक्षण और उनकी काव्यगत विशेषताओं पर शोधकर्ता ने अपनी कवियोचित अन्तर्दृष्टि का प्रयोग करते हुए कई मूल्यवान निष्कर्ष प्राप्त किए हैं।
सप्तक के पहले और दूसरे संस्करणों में प्रकाशित कवि-वक्तव्यों में आए परिवर्तनों की तरफ़ भी लेखक की जिज्ञासा गई है, और उनके सूक्ष्म अध्ययन से उसने जानने की कोशिश की है कि कवियों के वक्तव्यों में आए ये बदलाव किस प्रवृत्ति के सूचक हैं—अन्विति के, अन्तर्विरोध के या विकास के।
कहने की आवश्यकता नहीं कि हिन्दी कविता के एक ऐतिहासिक मोड़ पर केन्द्रित यह गम्भीर अध्ययन न सिर्फ़ छात्रों, बल्कि कविता के इतिहास में रुचि रखनेवाले हर पाठक के लिए उपादेय सिद्ध होगा।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...