Pracheen Bharat Mein Bhautik Pragati Evam Samajik Sanrachnayen
Author:
Ramsharan SharmaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 600
₹
750
Available
प्राचीन भारतीय इतिहास के अन्यतम विद्वान प्रो. रामशरण शर्मा ने अपनी प्रस्तुत पुस्तक में वैदिक और वैदिकोत्तर काल के भौतिक जीवन के विविध रूपों और समाज की विभिन्न अवस्थाओं के आपसी सम्बन्धों के स्वरूप का अध्ययन किया है। उनका मानना है कि वैदिक युग के मध्यभाग में जिस समाज का स्थान-स्थान पर उल्लेख मिलता है, वह मूलतः पशुपालक समाज है। उत्तर वैदिक काल तक आते-आते कृषिकर्म तथा लोहे के सीमित प्रयोग के दर्शन होने लगते हैं। इस काल का कृषक अपने राजा या मुखिया को कर देने की स्थिति में नहीं पहुँच पाया था, लेकिन इसी काल में जनजातीय समाज का वर्गों एवं व्यावसायिक समूहों में परिवर्तन आरम्भ हो गया था। इसमें पुरोहित वर्ग के क्रमिक वर्चस्व के लक्षण दिखने लगते हैं।</p>
<p>बुद्ध के समय तक आते-आते यह प्रक्रिया अधिक जटिल रूप धारण कर लेती है, उत्पादन के साधनों और सम्बन्धों में अप्रत्याशित बदलाव आ जाता है। समाज में वर्ण-व्यवस्था का आरम्भिक रूप इस काल तक आते-आते स्पष्ट आकार ग्रहण करने लगता है। असमानता का विकास, सिक्कों का प्रचलन इस युग की बदली भौतिक स्थिति की सूचना देते हैं।</p>
<p>इसी प्रकार की कुछ और बातें हैं जो सामाजिक स्तरीकरण और भौतिक प्रगति के युगपत सम्बन्धों को दर्शाती हैं। प्रो. शर्मा ने प्रारम्भ से अन्त तक इस विकास को द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी दृष्टि से देखा-परखा है। वैज्ञानिक दृष्टि से इतिहास-लेखन का यह ग्रन्थ सर्वोत्तम उदाहरण है और भारतीय इतिहास में दिलचस्पी रखनेवाले हर व्यक्ति के लिए अपरिहार्य भी।
ISBN: 9788171780846
Pages: 283
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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R.D. Pradhan
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- Description: 1965 भारत-पाक युद्ध की अनकही कहानी 1965 का युद्ध वर्ष 1947 में हुए विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पहला पूर्ण युद्ध था। भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री वाई.बी. चह्वाण ने 22 दिन तक चले इस युद्ध का विवरण स्वयं अपनी डायरी में दर्ज किया था। इस पुस्तक में बताई गई अंदरूनी बातों से पता चलता है— • पाकिस्तानी हमले के समय का पता करने में भारत का खुफिया विभाग बिलकुल विफल रहा। • कैसे और क्यों चह्वाण ने प्रधानमंत्री को सूचित किए बिना ही वायुसेना को हमला करने का आदेश दे दिया। • कैसे एक डिवीजन कमांडर को अभियान से अलग कर दिया गया। • कैसे एक सेना कमांडर ने अपनी ‘रेजीमेंट के महान् गौरव’ के लिए 300 से अधिक लोगों को कुरबान कर दिया। • भारतीय सेना ने लाहौर के अंदर कूच क्यों नहीं किया? • कैसे प्रधानमंत्री ने अपना धैर्य बनाए रखा और युद्ध के समय एक महान् नेता बनकर उभरे। • क्या यह युद्ध निरर्थक था, भारत ने युद्ध के मोर्चे पर जो कुछ जीता था, क्या वह सब ताशकंद में गँवा दिया था? और अंत में, राजनीतिक नेतृत्व ने कैसे रक्षा बलों के नेतृत्व के साथ फिर से अपने समुचित संबंध बहाल कर लिये और 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय पैदा हुई कड़वाहट को मिटा दिया। यह पुस्तक वायुसेना के सम्मान में लिखी गई है, जिसे स्वतंत्रता के बाद पहली बार युद्ध में लगाया गया था। यह उन बख्तरबंद रेजीमेंटों को भी श्रद्धांजलि है, जो इस युद्ध में बड़ी वीरता से लड़ीं और पैटन टैंकों के सर्वश्रेष्ठ होने के मिथक को तोड़ दिया।
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