Bharatiya Pariprekshya
Author:
Anil Joshi, Rajendra AryaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
संकल्प’ संस्था सिविल सेवा के विद्यार्थियों में सामाजिक प्रतिबद्धता और समाज-परिवर्तन का दृष्टिकोण और भाव जाग्रत कर रही है। यह उसकी तीन दशक से ज्यादा की साधना है। इसके सूत्रधार श्री संतोष तनेजा हैं। यह तथ्य प्राय: ज्ञात है, परंतु साथ ही संकल्प संस्था वैचारिक यज्ञ भी कर रही है। इसी कड़ी में वर्ष 2015 से ‘संकल्प व्याख्यानमाला’ प्रारंभ हुई। इसका उद्देश्य सांस्कृतिक बोध के लेखकों, चिंतकों और विचारकों के माध्यम से देश के प्रबुद्ध समाज में विचारशील लोगों तक एक विमर्श (डिस्कोर्स ) और आख्यान (नैरेटिव) को स्थापित करना था।
इन व्याख्यानों का संकलन कर प्रकाशित किया जाए, यह विचार और सुझाव आदरणीय डॉ. कृष्ण गोपालजी का था। व्याख्यानमाला के इन कार्यक्रमों के आयोजन और इन महत्त्वपूर्ण विचारों की प्रस्तुति तथा प्रकाशन के प्रयत्नों को दिशा श्री संतोष तनेजा द्वारा दी गई। इसके लिए पहल एवं सतत प्रयत्न श्री राजेंद्र आर्य ने किया। यह पुस्तक वास्तव में उनके अथक प्रयासों का फल है।
अनुक्रम
श्रीराम जन्मभूमि और व्यापक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य — डॉ. कृष्ण गोपाल
राष्ट्रीय सुरक्षा : वर्तमान परिप्रेक्ष्य जम्मू-कश्मीर और धारा 370 — अमित शाह
अद्वितीय प्रशासक थे छत्रपति शिवाजी महाराज — स्व. अनिल माधव दवे
भारतीय संस्कृति के माध्यम से विश्व की चुनौतियों का समाधान — स्व. सुषमा स्वराज
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अल्पसंख्यकों के प्रति दृष्टिकोण — रमेश पतंगे
संस्कृति, अध्यात्म और प्रशासन — आदित्यनाथ योगी
सामाजिक समरसता एवं भारत की संत परंपरा — डॉ. कृष्ण गोपाल
व्यावसायिक शिक्षा का माध्यम बनें भारतीय भाषाएँ — संतोष तनेजा
हमने भारतीय भाषाओं को व्यावसायिक पाठ्यक्रम में लाने की पहल कर दी है — डॉ. अनिल सहस्रबुद्धे
भारतीय भाषाओं के संबंध में चुनौतियां — अनिल जोशी
विदेश नीति : भारत एवं पड़ोसी देश — विष्णु प्रकाश
विकास के इस तथाकथित मॉडल पर प्रश्नचिन्ह हैं — डॉ. मुरली मनोहर जोशी
नई शिक्षा नीति — डॉ. ओमप्रकाश कोहली
ISBN: 9789355213303
Pages: 196
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व यह क्षेत्र अत्यंत वनाच्छादित था जिसके चलते स्वतंत्रता आंदोलन में श्रावस्ती एक प्रमुख पड़ाव हुआ करता था और आंदोलनकारियों के लिए विशेष रूप से सुरक्षित माना जाता था। इस कारण और यहाँ के सामान्य जन की स्वातंत्र्य-चेतना के कारण आजादी के आंदोलन में इसकी महती भूमिका रही। 1857 में अंग्रेजों को बहराइच में कड़ा विरोध झेलना पड़ा। यहाँ के सभी छोटे ताल्लुकेदार खुलकर उनके विरुद्ध खड़े हो गए थे। इकौना रियासत का योगदान इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में दर्ज है। वीरांगना रानी ईश्वरी देवी का संघर्ष भी एक उल्लेखनीय घटना थी।
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प्रस्तुत ग्रन्थ ख़लज़ी बादशाहों के, समय के लिहाज़ से अल्प किन्तु महत्त्व की दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक शासनकाल (1290-1320 ई.) से सम्बन्धित है।
डॉ. अतहर अब्बास रिज़वी ने इस पुस्तक में जिन तत्कालीन ग्रन्थों के परम आवश्यक उद्धरणों का समावेश किया है उनमें हैं—ज़ियाउद्दीन बरनी की ‘तारीख़े फ़ीरोज़शाही’, ‘अमीर ख़ुसरो’ के पाँच ऐतिहासिक ग्रन्थ (‘मिफ़ताहुल फ़ुतूह’, ‘ख़ज़ाइनुल फ़ुतूह’, ‘दिवलरानी ख़िज्र ख़ानी’, ‘नुह सिपेहर’ और ‘तुग़लक़नामा’), साथ ही मुहम्मद बिन तुग़लक़ की मृत्यु से कुछ ही पहले लिखनेवाले एसामी की ‘फ़ुतूहुस्सलातीन’।
इब्ने बतूता की यात्रा के उल्लेख से भी ख़लज़ी वंश से सम्बन्धित उद्धरण दिए गए हैं। कुछ काल पीछे के लिखे हुए तीन अन्य ग्रन्थों का भी समावेश इसलिए कर लिया गया है कि जिन मूल ग्रन्थों के आधार पर वे लिखे गए हैं, उनके अप्राप्य हो जाने के कारण उनकी अहमियत बढ़ गई है। ये ग्रन्थ हैं यहया बिन अहमद का ‘तारीख़े मुबारक शाही’, अबुल क़ासिम हिन्दू शाह फ़रिश्ता अस्तराबादी का ‘गुलशने इब्राहीमी’ जिसकी प्रसिद्धि ‘तीरीख़े फ़रिश्ता’ के नाम से है, और जफ़रुलवालेह के नाम से प्रचलित अरबी में लिखा हुआ गुजरात का इतिहास।
विद्वान अनुवादक ने इन ग्रन्थों का आलोचनात्मक विवेचन किया है जिसके चलते यह पुस्तक इतिहासज्ञों के साथ-साथ सामान्य पाठकों के लिए भी सुग्राह्य हो गई है।
Bharat Mein Digital Kranti
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Gandhi Banam Bhagat : Ek Sant, Ek Sainik
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Gandhi Aur Unke 'Satyagrah' Ki Yatra
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- Description: जब तक मानव सभ्यता का अस्तित्व है तब तक गाँधी की प्रासंगिकता बनी रहेगी, क्योंकि गाँधी ने मानवता के साथ मानव सभ्यता के मौलिक मूल्यों और मानवता के आदर्शों, प्रतिमानों पर ही अपना दर्शन आधारित किया और उसे क्रियान्वित करते हुए अपना जीवन भी जी कर दिखा दिया। जब तक विश्व में युद्ध और युद्धपरक परिस्थितियाँ बनी रहेंगी, मानव-समाज और विश्व में उनके दर्शन का महत्त्व सदैव बना रहेगा। गाँधी मानवता, शान्ति, शान्तिपूर्ण अस्तित्व के साथ विकास के समर्थक थे और सत्य शाश्वत मूल्य अधारित हो अर्थात् सृष्टि, विश्व और समाज के मध्य भी सामंजस्य, सन्तुलन और सहभाग का भाव स्थायी हो, इसके इच्छुक थे। इसलिए किसी एक आयाम को लेकर गाँधी को समझने के लिए अध्ययन करना ख़तरा मोल लेना ही है। उनके व्यक्तित्व के समस्त आयामों के बिना उनका समावेशी अध्ययन सम्भव नहीं है। अत: गाँधी जी का हर अध्ययन उनकी जीवन-यात्रा का ही अध्ययन हो जाता है और इसलिए उन 'संस्कारों' और उनके व्यक्तित्व के मनोवैज्ञानिक विकास को भी विश्लेषित करना पड़ेगा तब हम उनको एवं उनके विचारों को समझ सकेंगे। बिना वांग्मय के अध्ययन के किसी लेखक, विचारक, ऐतिहासिक व्यक्तित्व को पूर्णता में समझा ही नहीं जा सकता। अत: गाँधी के 'सत्याग्रह' की यात्रा भी उनकी जीवन-यात्रा ही हो जाती है।
Aadhunik Kaal : Paryavaran, Arthvyavstha, Sanskriti (Bharat 1880 to 1950)
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