Best of Kaka Hatharasi
Author:
Kaka HatharasiPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Unavailable
"हास्यऋषि काका हाथरसी ने न केवल हिंदी कवि सम्मेलन के मंच पर हास्य को स्थापित किया, बल्कि उसको बहुत ऊँचा स्थान भी दिलाया। लोकप्रियता के शिखर पुरुष काका ने अपनी तुकांत एवं अतुकांत कविताओं के साथ अपने हास्य में जीवन की व्यापक विसंगतियों को समेटा। काकी के माध्यम से उन्होंने नारी को गरिमा प्रदान की। ‘नाम बड़े और दर्शन छोटे’ या ‘लिंग भेद’ जैसी कविताएँ उनकी गहरी निरीक्षण क्षमता और खोजपूर्ण दृष्टि की परिचायक हैं।
प्रस्तुत संकलन में उनकी वे कविताएँ हैं, जो कविता प्रेमियों के हृदयपटल पर राज करती आई हैं। यों काका की श्रेष्ठ कविताएँ एक संकलन के लिए छाँटना कठिन कार्य था, लेकिन इन कविताओं ने हास्य का इतिहास बनाया है। निर्मल हास्य द्वारा समाज में कैसे सुधार किया जा सकता है, ये कविताएँ हमें हँसाती हैं और यही सब सिखाती हैं।
ISBN: 9789351862888
Pages: 176
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: अफ़गान-संकट पर दुनिया की अनेक भाषाओं में सैकड़ों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं लेकिन यह ग्रन्थ ज़रा लीक से हटकर है। यह अफ़ग़ानिस्तान के वर्तमान संकट की जड़ों को खोजने के लिए उसके अतीत को खँगालता है और अतीत की व्याख्या उसके वर्तमान के सन्दर्भ में करता है। अफ़ग़ानिस्तान के अतीत और वर्तमान इस ग्रन्थ में सतत संगोष्ठी करते हुए दिखाई पड़ते हैं। यह ग्रन्थ अफ़ग़ानिस्तान का कोरा इतिहास नहीं है। उसके इतिहास, वर्तमान और भविष्य का दर्शन है। यह अफ़ग़ानिस्तान के त्रिकाल की जीवन्त और सरस व्याख्या है। हिन्दी में ही नहीं, दुनिया की किसी भी भाषा में समसामयिक अफ़ग़ानिस्तान पर प्रस्तुत किया जानेवाला यह सर्वप्रथम मौलिक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ से पाठकों को पता चलेगा कि आर्यों, बौद्धों और हिन्दुओं का यह देश कभी ‘आर्याना’ कहलाता था। पाणिनी, गांधारी और गोरखनाथ का यह देश इस्लामी कैसे बना? यह देश अब भी इस्लाम से संचालित होता है या उसके पहले से चली आ रही जातीय परम्पराओं से? अफ़ग़ानिस्तान में ऐसे कौन-से ख़ज़ाने छिपे हुए हैं, जिन्हें पाने के लिए ब्रिटिश और रूसी साम्राज्यों ने काबुल में अपने घुटने तुड़वाए और विश्व-विजेता सिकन्दर, सम्राट अशोक तथा चंगेज़ ख़ान ने हिन्दुकुश के गगनचुम्बी हिम-शिखरों को पार किया? पिछले दो सौ वर्षों में महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा ने अफ़ग़ानिस्तान में क्या-क्या विविध और विलक्षण रूप धारण किए और आगामी समय में उसका हश्र क्या हो सकता है, इसका विवेचन डॉ. वेदप्रताप वैदिक जैसे अधिकारी विद्वान से बेहतर कौन कर सकता है? रूसी और फ़ारसी भाषा के जानकार तथा कई दशकों से अफ़ग़ानिस्तान की शोध-यात्राएँ करनेवाले डॉ. वैदिक ने अफ़ग़ान राजवंशों की अन्दरूनी खींचतान और सत्तारूढ़ गुटों की राजनीति के अनेक अनजाने पहलुओं को भी इस ग्रन्थ में उजागर किया है। अफ़ग़ानिस्तान आतंकवाद का अड्डा कैसे बना और उससे मुक्त कैसे हुआ, इसका चित्रोपम वर्णन तो इस ग्रन्थ में है ही, भारत-पाक-अफ़ग़ान सम्बन्धों के अनेक रहस्यमय और रोचक पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है। यह ग्रन्थ प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों, शोधकर्त्ताओं और नीति-निर्माताओं के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगा।
Nehru Ki 127 Aitihasik Galtiyan
- Author Name:
Rajnikant Puranik
- Book Type:

- Description: चीन की सरकार के लिए भारत पर आक्रमण करने जैसी बात सोचना भी पूरी तरह से अव्यावहारिक है। इस कारण, मैं इसे खारिज करता हूँ...जवाहरलाल नेहरू (एएस/103) किसी ने ठीक ही कहा है : नेहरू अनभिज्ञता के नवाब थे। अगर नेहरू ने तमाम किस्म की बड़ी गलतियाँ नहीं की होतीं; और यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उन्होंने बेहिसाब गलतियाँ कीं, नहीं तो भारत तेजी से तरक्की की राह पर होता और उनके कार्यकाल के अंत तक एक प्रभावशाली, समृद्ध, विकसित देश होता। और निश्चित रूप से ऐसा 1980 के दशक की शुरुआत में ही हो गया होता, बशर्ते, नेहरू के बाद उनका वंश सत्ता में नहीं आया होता। दुर्भाग्य से, नेहरू युग ने ही भारत में गरीबी और दरिद्रता की नींव रखी, जिसने हमेशा के लिए इसे एक विकासशील, तीसरे दर्जे का, पिछड़ा देश बनाकर रख दिया। इन मूर्खतापूर्ण भूलों का ब्योरा रखकर, यह पुस्तक दिखावे के पीछे का सच दिखाती है। इस पुस्तक में नेहरू की मूर्खतापूर्ण भूलों का प्रयोग एक सामान्य शब्द के रूप में विफलताओं, लापरवाहियों, गलत नीतियों, खराब फैसलों, निंदनीय या अशोभनीय कृत्यों, अनर्जित पदों को हड़पने आदि के लिए भी किया गया है। इस पुस्तक का उद्देश्य नेहरू की आलोचना करना नहीं है, बल्कि उन ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी को, जिन्हें अकसर तोड़ा-मरोड़ा गया या छिपाया गया या दबा दिया गया, व्यापक करना है, ताकि वही गलतियाँ दोबारा न हों, और भारत का भविष्य उज्ज्वल बन सके। हो सकता है कोई कहे : नेहरू पर हायतौबा मचाने की जरूरत क्या है? उन्हें गए तो बरसों हो गए। बरसों हो गए शारीरिक रूप से, किंतु दुर्भाग्य से उनकी अधिकतर सोच और नीतियाँ अब भी जीवित हैं। यह समझना जरूरी है कि उन्होंने गलत रास्ते को चुना। पर देश को उन विचारों से मुक्त होकर आगे बढ़ना पड़ेगा, जिनमें से अधिकांश अब भी जारी हैं।
Chandrashekhar Azad : Mithak Banam yatharth
- Author Name:
Pratap Gopendra
- Book Type:

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Description:
असहयोग आन्दोलन के स्थगन से निराश युवा गुप्त संगठनों से जुड़कर अपनी विचारधारा एवं कार्यक्रमों के द्वारा ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिलाने लगे। इन संगठनों में ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ यानी एच.एस.आर.ए. का स्थान सर्वोपरि है और उतना ही विशिष्ट है— एच.एस.आर.ए. के शीर्षस्थ नेता अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद का स्थान। मिथकों के ढेर में दबी क्रान्तिकारी विचारधारा भारत के आधुनिक इतिहास लेखन में जितनी दुर्बोध बनी हुई है, उतना ही अज्ञात है आज़ाद का जीवन। सुदूर भाबरा के जंगलों में भील समुदाय के बीच पला-बढ़ा सामान्य शिक्षा-दीक्षा और साधारण शक्ल-ओ-सूरत का एक निर्धन बालक, काशी आकर कैसे एक प्रचण्ड राष्ट्रभक्त में विकसित हुआ और अन्तत: अपनी आहुति देकर राष्ट्र का अभिमान बन गया, इसे समझे बिना स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास को पूर्णत: नहीं समझा जा सकता।
यह कृति विश्वसनीय एवं प्राथमिक अध्ययन स्रोतों के गहन विश्लेषण के आधार पर चन्द्रशेखर आज़ाद के जीवन को और सम्पूर्ण क्रान्तिकारी विचारधारा को मिथकों से अलग कर ऐतिहासिक सन्दर्भों में समझने का एक विनम्र प्रयास है।
Meri Vichar Yatra ( Samajik Nyay : Antaheen Pratiksha )
- Author Name:
Ramvilas Paswan
- Book Type:

- Description: सामाजिक ताने-बाने को बदलने की दिशा में संघर्षरत रामविलास पासवान के वैचारिक लेखों का महत्त्वपूर्ण संकलन है: 'मेरी विचारा यात्रा' ! ये लेख नियमित रूप से मासिक पत्रिका 'न्याय चक्र में सम्पादकीय रूप में छपते रहे हैं, अब पहली बार पुस्तकाकार में !दो जिल्दों में प्रकाशित 'मेरी विचार यात्रा' के इस प्रथम भाग को छह अध्यायों में विभक्त किया गया है। प्रथम अध्याय में जहाँ 1991 से 2003 के बीच दलित उत्पीड़न और उसके खिलाफ वैचारिक संघर्ष को बल मिलता है, वहीं महिला आरक्षण तथा निजी क्षेत्र के आरक्षण सम्बन्धी उनके विचार नई सोच पैदा करते हैं। दूसरे अध्याय में रामविलास पासवान अपने लेखों के माध्यम से साम्प्रदायिकता फैलाने की कोशिशों को बेनकाब करते हैं। तीसरे अध्याय में संसदीय लोकतन्त्र के विभिन्न पक्षों पर उनकी सार्थक टिप्पणियां हैं। ये टिप्पणियां बताती हैं कि यदि हम अब भी चेते नहीं तो लोकतन्त्र का स्वरूप विकृत हो सकता है। चौथे, पांचवें और छठे अध्यायों में भारतीय आजादी की वास्तविकता, देश में मीडिया की स्थिति के रेखांकन के साथ बाबा साहेब अम्बेडकर, महात्मा गांधी, लोकनायक जयप्रकाश, मधु लिमए, विश्वनाथ प्रताप सिंह, एपीजे अब्दुल कलाम तथा अपने पिताजी के प्रति उनकी भावभीनी श्रद्धांजलि है। 'मेरी विचार यात्रा' रामविलास पासवान के वैचारिक लेखों का ऐसा संकलन है, जो हमें देश में व्याप्त ज्वलन्त समस्याओं से रू-ब-रू ही नहीं कराता, बल्कि उस दिशा में सोचने के लिए भावोद्वेलित भी करता है।
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