Kingmakers
Author:
Rajgopal Singh VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
अठारहवीं सदी में भारत ने राजनैतिक अव्यवस्था, प्रशासनिक दुर्बलता, आर्थिक अवनति और सांस्कृतिक पतन की अकल्पनीय परिस्थितियों का सामना किया। उस दौर के कई बादशाह विलासी और निहायत अदूरदर्शी रहे। ऐसे में व्यभिचार एवं भ्रष्टाचार के मामलों में वृद्धि हुई, जबकि जनकल्याण की अवधारणा पृष्ठभूमि में चली गई थी।</p>
<p>ऐसे समय में सैयद बन्धुओं—सैयद अब्दुल्ला ख़ान और सैयद हुसैन अली ख़ान का उत्कर्ष हुआ। अपने पराक्रम और वीरता के लिए विख्यात ये दोनों भाई मुग़लों के वफ़ादार थे। उनको अपनी विवशता का वास्ता देकर, सत्ता-संघर्ष में भावनात्मक रूप से शहज़ादे फ़र्रूखसियर ने उन्हें अपने पक्ष में कर लिया था। अगले सात सालों तक इन भाइयों का ऐसा सिक्का चला कि बादशाह से कहीं बेहतर स्थिति उनकी रही। शाही विरासत के फ़ैसलों के साथ ही रोज़मर्रा के कामों में भी उनकी निर्णायक दख़ल रही। वस्तुत: वे मुल्क की बादशाहत को बनाने और बिगाड़ने वाले बन बैठे थे।</p>
<p>लेकिन इतना शक्ति सम्पन्न होने पर भी सैयद बन्धुओं को क्या मिला? एक की धोखे से हत्या कर दी गई जबकि दूसरे को ज़हर दे दिया गया। शाही सेना की अग्रिम पंक्ति में रहकर, शत्रुओं से टक्कर लेने वाले वे दोनों भाई, मुग़ल बादशाहों के महलों की राजनीति का शिकार तो नहीं हो गए थे? गलतियाँ तो उनकी भी रही होंगी!</p>
<p>इतिहास के उत्तर मुग़लकालीन इन अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर तलाशने की कोशिश करती यह पहली किताब है, जिसमें ‘किंगमेकर्स’ के रूप में मशहूर सैयद भाइयों के व्यक्तित्व और कृतित्व, उनके उत्कर्ष और पराभव की परतों को उघाड़ने के साथ ही मुग़ल वंश के पतन की स्थितियों पर भी पर्याप्त प्रकाश तथ्यसंगत डाला गया है। यह किताब भारतीय इतिहास के उस कालखंड का एक ऐसा दस्तावेज़ है, जिसकी अभी तक प्राय: अनदेखी की गई है। लेखक ने इस किताब को उपन्यास जैसी रोचक शैली में लिखा है, परन्तु इतिहास की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता भी बनाए रखी है।</p>
<p>—प्रो. शशि प्रभा
ISBN: 9789393603982
Pages: 232
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने सदियों से सभी तरह के अधिकार एवं सुविधा से वंचित जनसमूहों में यदि चेतना का संचार किया और उन्हें शिक्षित, संगठित होकर संघर्ष करने का मार्ग बताया तो यह उनका दलित-प्रेम नहीं; बल्कि सभी मूल, कुल, वंश, जाति, गोत्र, नस्ल, सम्प्रदाय, वर्ग, वर्ण के अधिकार-वंचितों की सच्ची सेवा का दुर्लभ उदाहरण है। सुविधा तथा अधिकार-वंचित मात्र दलित ही नहीं हैं, वे भी हैं जिनकी उन्नति तथा समृद्धि के सभी मुहानों को उद्धारक कहलाने वाले मायावी मानवों ने अवरुद्ध कर रखा है। इस पुस्तक का प्रणयन डॉ. अम्बेडकर के इन्हीं अवदानों को रेखांकित करने के लिए किया गया है।
श्रम-समस्या, नारी-उत्थान, धर्म, सामाजिक न्याय, उद्योग, कृषि, मानव-संसाधन, जल-संसाधन, बीमा उद्योग, मद्यनिषेध, शिक्षा, लोकतंत्र, कार्यपालिका, न्यायपालिका, व्यवस्थापिका, संघीय शासन प्रणाली, भाषायी प्रान्त और राष्ट्रभाषा आदि विषयों पर डॉ. अम्बेडकर के चिन्तन तथा सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक हैं।
पुस्तक में इन विषयों के सन्दर्भ में उनके विचारों पर सविस्तार विचार किया गया है जिससे स्पष्ट होता है कि बाबा साहब के विचार समष्टिभावी हैं, व्यष्टिभावी नहीं।
Jab Neel Ka Daag Mita : Champaran-1917
- Author Name:
Pushyamitra
- Book Type:

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सन् 1917 का चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में महात्मा गांधी के अवतरण की अनन्य प्रस्तावना है, जिसका दिलचस्प वृत्तान्त यह पुस्तक प्रस्तुत करती है।
गांधी नीलहे अंग्रेज़ों के अकल्पनीय अत्याचारों से पीड़ित चम्पारण के किसानों का दु:ख-दर्द सुनकर उनकी मदद करने के इरादे से वहाँ गए थे। वहाँ उन्होंने जो कुछ देखा, महसूस किया वह शोषण और पराधीनता की पराकाष्ठा थी, जबकि इसके प्रतिकार में उन्होंने जो कदम उठाया वह अधिकार प्राप्ति के लिए किए जानेवाले पारम्परिक संघर्ष से आगे बढ़कर 'सत्याग्रह’ के रूप में सामने आया। अहिंसा उसकी बुनियाद थी।
सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह का प्रयोग गांधी हालाँकि दक्षिण अफ़्रीका में ही कर चुके थे, लेकिन भारत में इसका पहला प्रयोग उन्होंने चम्पारण में ही किया। यह सफल भी रहा। चम्पारण के किसानों को नील की ज़बरिया खेती से मुक्ति मिल गई, लेकिन यह कोई आसान लड़ाई नहीं थी।
नीलहों के अत्याचार से किसानों की मुक्ति के साथ-साथ स्वराज प्राप्ति की दिशा में एक नए प्रस्थान की शुरुआत भी गांधी ने यहीं से की। यह पुस्तक गांधी के चम्पारण आगमन के पहले की उन परिस्थितियों का बारीक ब्यौरा भी देती है, जिनके कारण वहाँ के किसानों को अन्तत: नीलहे अंग्रेज़ों का रैयत बनना पड़ा।
इसमें हमें अनेक ऐसे लोगों के चेहरे दिखलाई पड़ते हैं, जिनका शायद ही कोई ज़िक्र करता है, लेकिन जो सम्पूर्ण अर्थों में स्वतंत्रता सेनानी थे।
इसका एक रोचक पक्ष उन किंवदन्तियों और दावों का तथ्यपरक विश्लेषण है, जो चम्पारण सत्याग्रह के विभिन्न सेनानियों की भूमिका पर गुज़रते वक़्त के साथ जमी धूल के कारण पैदा हुए हैं।
सीधी-सादी भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में क़िस्सागोई की सी सहजता से बातें रखी गई हैं, लेकिन लेखक ने हर जगह तथ्यपरकता का ख़याल रखा है।
Mera Lahuluan Punjab
- Author Name:
Khushwant Singh
- Book Type:

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बैसाख की पहली तिथि पंजाबी पंचांग के अनुसार नववर्ष दिवस के रूप में मनाई जाती है। इसी दिन 13 अप्रैल, 1978 को जरनैल सिंह भिंडरावाले ने धूम-धड़ाके से पंजाब के रंगमंच पर पदार्पण किया। इस घटना से न केवल पंजाब के जन-जीवन में तूफ़ान आया बल्कि पूरे देश के लिए इसके दूरगामी परिणाम हुए। पूरा पंजाब अशान्त और आतंकवाद के हाथों क्षत-विक्षत हो गया और धीरे-धीरे यह समस्या इतनी पेचीदा बन गई कि देश की अखंडता के लिए यह सचमुच का ख़तरा बनती दिखाई दी। सुप्रसिद्ध लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह की प्रस्तुत पुस्तक सुस्पष्ट रूप से इस समस्या का इतिहास दर्शाती है, स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद पंजाबियों के गिले-शिकवों और असन्तोष का विवरण देती है, और सभी प्रमुख घटनाओं पर रोशनी डालती है।
लेखक का व्यक्तिगत जुड़ाव पुस्तक को विशेष प्रामाणिकता प्रदान करता है, जो लगभग इसके प्रत्येक पृष्ठ पर प्रकट है। इसमें लेखक ने एक तरफ़ पंजाब की राजनीति तथा दूसरी ओर केन्द्र सरकार द्वारा जानबूझकर खेले जानेवाले शरारतपूर्ण राजनीतिक खेलों पर अपने विचार प्रकट किए हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत के सबसे उन्नतिशील राज्य की प्रगति के मार्ग में गत्यवरोध आ गया, यहाँ की कृषि और औद्योगिक अर्थव्यवस्था तहस-नहस होने लगी, इसका प्रशासन और न्यायपालिका पंगु बनकर रह गए। जो लोग इस गत्यवरोध को अधिक गहराई से समझना चाहते हैं, उनके लिए यह पुस्तक अवश्य पठनीय है।
Hind Swaraj
- Author Name:
Mohandas Karamchand Gandhi
- Book Type:

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'हिन्द स्वराज’ पाठक और सम्पादक के बीच बातचीत की शैली में लिखा गया है। लन्दन प्रवास के दौरान गांधी जिन क्रान्तिमार्गी अराजकतावादियों से मिले थे उनमें दामोदर विनायक सावरकर, टी.एस.एस. राजन, वीरेन्द्र नाथ चट्टोपाध्याय, वी.वी.एस. अय्यर और डॉ. प्राणजीवन मेहता प्रमुख थे। वस्तुत: 'हिन्द स्वराज’ स्वयं गांधी के शब्दों में डॉ. प्राणजीवन मेहता से हुई बातचीत की लगभग जस की तस प्रस्तुति है। इस रहस्य का उद्घाटन उन्होंने 21 फरवरी, सन् 1940 को बंगाल की मलिकंदा की बैठक में किया था। डॉ. प्राणजीवन दास जगजीवन दास मेहता (1864-1932) बम्बई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज के स्नातक थे। बू्रसेल्स से एम.डी. और लन्दन से बैरिस्टरी की उपाधियाँ अर्जित करने के बाद सन् 1889 में हिन्दुस्तान लौट आए थे। यहाँ गुजरात के ईडर रियासत के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और बाद में दीवान के पद पर रहने के बाद वह रंगून (बर्मा) चले गए थे।
जब सन् 1909 में गांधी लन्दन पहुँचे थे तो डॉ. मेहता संयोग से वहीं थे। एक महीने दोनों साथ एक होटल में रहे थे। गांधी से डॉ. मेहता लगभग पाँच साल बड़े थे और उनके प्रति गहरा स्नेह भाव रखते थे। स्वयं गांधी के शब्दों में वह उन्हें (गांधी को) मूर्ख और भावुक मानते थे। अपने समय की चिकित्सा और क़ानून की उच्चतम उपाधियों से लैस डॉ. मेहता एक प्रबल बुद्धिवादी तार्किक थे। गांधी उन्हें क्रान्तिकामी अराजकतावादियों में प्रमुख मानते थे। जो विचार बिन्दु 'हिन्द स्वराज’ के विषय बने, उन पर दोनों के बीच लगभग एक माह तक विचार-विमर्श चलता रहा। अन्तत: डॉ. मेहता गांधी के विचारों से सहमत हो गए। गांधी को पहले मूर्ख और भावुक समझनेवाले उन्हीं डॉ. प्राणजीवन मेहता ने 28 अगस्त, सन् 1912 को रंगून के लिए पोर्ट सईद पर जहाज़ की प्रतीक्षा करते हुए हिन्दुस्तान में गोपाल कृष्ण गोखले को लिखा कि मनुष्यता और मातृभूमि के उत्थान के लिए गांधी जैसे विरल व्यक्तित्व इस पृथ्वी पर यदा-कदा ही अवतरित होते हैं।
—वीरेन्द्र कुमार बरनवाल
Yashpal Ka Viplav Vol. 1-4
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

- Description: संकलित लेख स्वातंत्र्योत्तर भारत के लगभग सभी पहलुओं पर मंत्रणा करते दिखते है। फिर चाहे मुद्दा साहित्य, संस्कृति और भाषा का हो, कांग्रेसवाद बनाम मार्क्सवाद का हो, या एक नयी वैश्विक व्यवस्था में भारत की छवि और कर्तव्यों का हो। यहाँ एक ऐसी विस्तृत और समावेशी तस्वीर उभरती है जिसे किसी एक उपन्यास या कई कहानियों में भी समेटना नामुमकिन है। इस लिहाज़ से 'विप्लव' का चौथा भाग भारत के बौद्धिक इतिहास की प्रस्तावना उकेरता है—एक ऐसी पृष्ठभूमि जो आजादी से लेकर अबतक हमारे सामाजिक जीवन को प्रभावित-पोषित करता आई है। इन लेखों में यशपाल एक दुस्साहसी संपादक के रूप में निखरते हैं जो अपनी लेखनी में तटस्थ पत्रकारिता, तथ्यपरक विवेचना और साहित्यिक स्वायत्तता की एक अनूठी मिसाल प्रस्तुत करता है। शैली और भाषा का एक ऐसा नमूना जो आज के दौर में बेहद प्रासंगिक है। यह कहना उचित होगा कि यशपाल का साहित्य और उनकी पत्रकारिता, दोनों क्रांतिकारी संघर्ष की बौद्धिक उपज हैं। और एक दूसरे के पूरक भी हैं। इसलिए यह किताब हिंदी साहित्य और भारतीय इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए अनिवार्य है।
Mughal Kaleen Bharat : Humayun : Vol. 2
- Author Name:
Saiyad Athar Abbas Rizvi
- Book Type:

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हुमायूँ से सम्बन्धित फ़ारसी स्रोतों का अनुवाद ‘मुग़लकालीन भारत’ भाग-1 और भाग-2 में प्रकाशित किया गया है। इन दोनों भागों में भी पूर्व ग्रन्थों की भाँति हुमायूँ के समकालीन फ़ारसी स्रोतों का हिन्दी भाषान्तर प्रस्तुत किया गया है। ‘मुग़लकालीन भारत’ भाग-2 में डॉ. रिज़वी ने निम्न ग्रन्थों के हिन्दी भाषान्तर सम्मिलित किए हैं, जो हैं : ‘तारीख़े इबराहीमी’, ‘तारीख़े एलचीए निजामशाह’, ‘तारीख़े अलफ़ी’, ‘मुन्तख़बुत्तवारीख़’ भाग-1, ‘तबकाते अकबरी’ भाग-2, ‘तारीख़े फ़िरिश्ता’, मोतमद ख़ाँ के ‘इकबाल नामये जहाँगीरी’ भाग-1 एवं ‘मिराते सिकन्दरी’ आदि मुख्य हैं।
जिन ग्रन्थों के संक्षिप्त अनुवाद किए गए हैं, उनका अनुवाद करते समय इस बात का प्रयत्न किया गया है कि कोई भी महत्त्वपूर्ण घटना अथवा सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक महत्त्व की बात छूटने न पाए।
अन्य ग्रन्थों की तरह यह ग्रन्थ भी हुमायूँकालीन इतिहास के अध्ययन के लिए अत्यन्त उपयोगी है, विशेषत: उनके लिए, जो फ़ारसी से अनभिज्ञ हैं लेकिन इस काल पर शोध करना चाहते हैं, उनको एक ही स्थान पर सम्पूर्ण सामग्री उपलब्ध हो जाती है।
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