Loktantra Mein Khoya Loktantra
Author:
B. L. GaurPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 636
₹
795
Available
समसामयिक जीवन में विभिन्न परिदृश्यों के माध्यम से जो विडम्बनाएँ उभरती हैं उन पर सहज,स्वाभाविक ढंग से अपनी बेबाक और तीखी अभिव्यक्ति लेखक ने इस पुस्तक में दी है। इसके वैचारिक लेख मानव मन में हलचल पैदा करते हैं। उसकी अन्तर्वेदना को छूकर उसके मर्म से रूबरू कराते हैं। लेखक ने अपने लेखों में जीवन का कोई भी पक्ष नहीं छोड़ा है। यहाँ कश्मीरजैसी कोढ़ बनती पर निराकरण न होनेवाली समस्या है और ‘नंदी ग्राम’ में गरीबों पर जुल्म करने की त्रासदी का मार्मिक चित्रण है। आज़ाद देश के लोकतंत्रमें तंत्र कितना लोक के पास हैं?क्या सिर्फ़ वोट के लिए लोक और तंत्र जुड़ा रहता है?क्या यह लोकतंत्र सचमुच उस आम आदमी द्वारा संचालित है जो इस लोक में शामिल है। इन पर तीखे व्यंग्य भी इस पुस्तक में हैं।
श्री गौड़ ने भूमंडलीकरण के इस दौर में उन विषयों पर अपनी क़लम चलाई है जो भूमंडलीकरण की देन हैं या उसके कारक हैं। मंदी,निवेश, काले धन की समस्याओं पर अपने तीखे विचार उकेरे हैं। और ऐसे कारणों की जानकारी पाठकों को देने की कोशिश की है जो इनके पीछे अपनी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पुस्तक अपनी सहज भाषा के कारण पाठकों से अपना आत्मीय रिश्ता बनाने में भी सक्षम है। इसका हर लेख पाठक को जानकारी ही नहीं देता है बल्कि उन कारणों की पृष्ठभूमि से हमें अवगत कराता है जिनकी वजह से समस्याएँ उभरती हैं।
ISBN: 9788183614016
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Kakori Train Dakaiti Ki Ansuni Kahani | Hindi Translation of Destination of Kakori 9 August 1925 | Freedom Fighter of India
- Author Name:
Smita Dhruv
- Book Type:

- Description: क्या आपको दस वीरों द्वारा रचित 'काकोरी ट्रेन लूट' याद है? यह घटना 9 अगस्त, 1925 की है। भारत के बलिदानियों द्वारा रचित एक वास्तविक जीवन का नाटक, जिसके इर्द-गिर्द यह कथा लिखी गई है। ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारत का असहयोग आंदोलन एक साल के भीतर भारत को स्वतंत्र कराने के वादे के साथ शुरू किया गया था। जब 1922 में इसे अचानक वापस ले लिया गया, तो हजारों युवा स्वतंत्रता सेनानी निराश हो गए। इस धोखे ने बड़ी संख्या में क्रांतिकारियों को जन्म दिया, जिन्होंने भारत में सत्तारूढ़ अंग्रेजों के विरुद्ध अकेले ही अपनी पूरी ताकत से लड़ाई लड़ी। इस दिन दस युवा लड़कों की एक टीम ने लखनऊ की बगल में काकोरी रेलवे स्टेशन के पास भारतीय रेल के खजाने को लूट लिया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के स्वर्णिम इतिहास की एक घटना और इसके इर्द-गिर्द बुनी गई एक काल्पनिक कहानी। यह पुस्तक युवा, साहसी हुतात्माओं व बलिदानियों की वीरता के उन चमकदार क्षणों को जीवंत करती है, जो आज तक हमारे लिए अज्ञात हैं। हमारे देश के नायकों और उनके परिवारों के जीवन में मानसिक पीड़ा, दुविधा और अस्तित्व के मुद्दों का एक शानदार चित्रण काकोरी के वीरों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
TREASURE TROVE OF INDIAN KNOWLEDGE
- Author Name:
Shri Prashant Pole
- Book Type:

- Description: It is well known that the powers that enslaved India tried to systematically erase our history, which revealed our past glory as they wanted to deprive our nation of enjoying pride in its achievements. Considering it our duty to emerge from the illusionary history written by them, this book highlights the glorious and grand achievements of our ancestors. This collection of India’s achievements in the past by Prashant Pole is based on actual facts. Written lucidly this highly readable book is the Treasure Trove of Indian Knowledge.
Hind Swaraj : Nav Sabhyata Vimarsh
- Author Name:
Virendra Kumar Baranwal
- Book Type:

-
Description:
गांधी के ‘हिन्द स्वराज’ का प्रखर उपनिवेश विरोधी तेवर सौ साल बाद आज और भी प्रासंगिक हो उठा है। नव उपनिवेशवाद की विकट चुनौतियों से जूझने के संकल्प को लगातार दृढ़तर करती ऐसी दूसरी कृति दूर–दूर नज़र नहीं आती। उसकी शती पर हुए विपुल लेखन के बीच उस पर यह किताब थोड़ा अलग लगेगी। इसकी मुख्य वजह गांधी के बीज–विचारों को अपेक्षाकृत व्यापकतर परिप्रेक्ष्य में समझने की इसकी विशद–समावेशी और संश्लिष्ट दृष्टि है।
इसमें गांधी के सोच और कर्म के मूल में सक्रिय विचारकों और इतिहास नायकों—मैज़िनी, टॉलस्टॉय, रस्किन, एमर्सन, थोरो, ब्लॉवत्स्की, ह्यूम, वेडेनबर्न, नौरोजी, रानाडे, आर.सी. दत्त, मैडम कामा, श्याम जी कृष्ण वर्मा, प्राणजीवन दास मेहता और गोखले आदि के अद्भुत जीवन और चिन्तन की संक्षिप्त पर दिलचस्प बानगी तो है ही, साथ ही गांधीमार्गी मार्टिन लूथर किंग जू., नेल्सन मंडेला, क्वामेन्क्रूमा, केनेथ क्वांडा, जूलियस न्येरेरे, डेसमंड टूटू और सेज़ार शावेज़ आदि के विलक्षण अहिंसक संघर्ष की प्रेरक झलक भी।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की भ्रष्ट सरकारों के साथ निर्लज्ज दुरभिसन्धि को उजागर कर उनके पर्यावरण और मानवद्रोही चरित्र के विरुद्ध गांधी की परम्परा में संघर्षरत और शहीद नाइजीरिया के अदम्य केन सारो वीवा और उनके साथियों के मार्मिक प्रसंग इसमें गहराई से उद्वेलित करते हैं। आधुनिक सभ्यता की जड़ें मशीन और उससे प्रेरित अन्धाधुन्ध औद्योगीकरण में हैं। उनके प्रबल प्रतिरोध का गांधी का जीवट जगज़ाहिर है। अकारण गांधी उत्तर–आधुनिकता के प्रस्थान–बिन्दु नहीं माने
जाते।पुस्तक सोवियत रूस की कम्युनिस्ट तानाशाही के ख़िलाफ़ हंगरी, चेकोस्लोवाकिया और पोलैंड के आत्मवान राज नेताओं इमरे नागी, वैक्लाव हैवेल और लेस वालेश के अहिंसक प्रतिरोध की गौरव–झाँकी के साथ गांधी की सोच के वैश्विक और उत्तर–आधुनिक आयाम को बख़ूबी उद्घाटित करती है। ‘हिन्द स्वराज’ का गुजराती मूल इस पुस्तक के ज़रिए पहली बार देवनागरी में आया है। कई अनुशासनों से रस ग्रहण करता ‘हिन्द स्वराज’ पर इस अनूठे विमर्श का प्रांजल–ललित गद्य इसे बेहद पठनीय बनाता है।
Bharatiya Sabhyata Ki Nirmiti
- Author Name:
Bhagwan Singh
- Book Type:

- Description: भारतीय सभ्यता की निर्मिति’ भारतीय सभ्यता के इतिहास की उस बड़ी कमी को दूर करने का सुचिन्तित प्रयास है, जो सभ्यता के निर्माताओं के बजाय भोक्ताओं को केन्द्र में रख कर लिखने से पैदा हुई है। वास्तव में भोक्ताओं को केन्द्र में रखकर लिखा गया इतिहास दमन के औजारों, हथियारों, संस्थाओं और वर्चस्व के रूपों का इतिहास होता है, जिसमें अर्थव्यवस्था और सामाजिक सम्बन्धों के बजाय अधिरचना को प्रमुखता दी जाती है। इससे इतिहास में समाज के वही तबके अनुल्लिखित रह जाते हैं जिनके बिना सभ्यता ही सम्भव नहीं हो पाती। यह समस्या केवल भारतीय सभ्यता के इतिहास की नहीं, बल्कि समूचे ‘सभ्य’ संसार की रही है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए यह पुस्तक इतिहास के उन अनदेखे-ओझल-पक्षों की सूक्ष्मता से और सप्रमाण विवेचना करती है, जिनके बिना भारतीय सभ्यता की महायात्रा से परिचित होना सम्भव नहीं है।
Aaj Ka Hind Swaraj
- Author Name:
Sandeep Joshi
- Book Type:

-
Description:
महात्मा गाँधी को सिरे से ख़ारिज करने या उनका अवमूल्यन करने की मुहिम, इन दिनों, सुनियोजित ढंग से चलायी जा रही है। हमारा समय, कम से कम इस समय सत्तारूढ़ शक्तियों के किये-लेखे, गाँधी के अस्वीकार का, गाँधी-विरोध का समय है। यह विरोध या अस्वीकार गाँधी को एक नयी और तीक्ष्ण प्रासंगिकता देता है। उस प्रासंगिकता का ही हिस्सा है प्रश्नवाचकता जबकि प्रश्न पूछना लगभग गुनाह क़रार दिया जा रहा है। गाँधी ने अपने समय में निर्भयता से प्रश्न उठाये और उनके समुचित उत्तर देने की कोशिश की। युवा चिन्तक और कर्मशील संदीप जोशी हमारे समय के कुछ ज़रूरी प्रश्न और उसके बेचैन उत्तर खोजने की 'गुस्ताख़ी' कर रहे हैं। यह गाँधी की दृष्टि का हमारे कठिन समय के लिए पुनराविष्कार है।
—अशोक वाजपेयी
Itihas, Sanskriti Aur Sampradayikta
- Author Name:
Gunakar Muley
- Book Type:

-
Description:
गुणाकर मुळे को हम विज्ञान विषयों के लेखक के रूप में जानते हैं। उन्होंने हिन्दी पाठकों को सरलतम शब्दावली में विज्ञान की कठिन अवधारणाओं, आविष्कारों और खोजों से परिचित कराया। लेकिन उनके लेखन का उद्देश्य वैज्ञानिक दृष्टि को आमजन की जीवन-शैली और विचार का हिस्सा बनाना था। इसीलिए उन्होंने शुद्ध सूचनात्मक वैज्ञानिक लेखक के साथ संस्कृति, समाज, धर्म, अंधविश्वास आदि पर भी हमेशा लिखा। मार्क्सवाद उनकी वैचारिक भूमि रहा और आधुनिक जीवन-मूल्य उनके अभीष्ट। यह किताब उनके ऐसे ही लेखन का संकलन है जिसमें संस्कृति, धर्म, हिन्दुत्व की राजनीति, आर्यों का मूल आदि विभिन्न विषयों पर उनका लेखन शामिल है। पाठक इन लेखों में काफ़ी कुछ नया पाएँगे।
रामकथा को लीजिए। आज राम को लेकर देश में साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने के प्रयास जारी हैं। मगर राम काफ़ी हद तक एक मिथकीय चरित्र है, इस बात के पर्याप्त सबूत वाल्मीकि-रामायण में ही मौजूद हैं।
शिवाजी जैसे कई ऐतिहासिक चरित्रों को विकृत रूप में पेश करके मुस्लिम-द्वेष को उभारने के प्रयास हो रहे हैं। मगर प्रामाणिक इतिहास इस बात की गवाही देता है कि शिवाजी रत्ती-भर भी मुस्लिम-द्वेषी नहीं थे। इस बात को 'ऐसा था शिवाजी का राजधर्म' लेख में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
इधर के वर्षों में देश में धार्मिक असहिष्णुता और साम्प्रदायिकता में तेज़ी से वृद्धि हुई है। इस पर रोक लगाने के लिए आम जनता को शिक्षित करना अत्यावश्यक है—उनकी अपनी भाषा में। साम्प्रदायिकता अपने प्रचार-प्रसार के लिए आम जनता की भाषा का भरपूर उपयोग कर रही है। साम्प्रदायिकता के प्रतिकार के लिए भी जनता की भाषा का ही उपयोग होना चाहिए। इस तरह गुणाकर मुळे की यह पुस्तक तमाम मुद्दों से टकराते हुए ऐसे कैनवस की रचना करती है, जहाँ विचार-विमर्श अपने सृजनात्मक रूप में सम्भव हो सके।
Bharat Ke Chakravarti Samrat
- Author Name:
Devraj Singh Jadaun
- Book Type:

- Description: "यह पुस्तक विशेष रूप से भारत के चक्रवती सम्राटों पर है। विषय की व्यापकता को ध्यान में रखकर अत्यंत प्राचीनकाल से आरंभ कर पांडववंशी जनमेजय तक के चक्रवर्तियों को ही विषय-वस्तु में सम्मिलित किया गया है। भारत की नई पीढ़ी इस इतिहास से प्रायः अनभिज्ञ है। इतना ही नहीं, वह अपने भारतीय ज्ञान-संपदा के ग्रंथों से भी अनभिज्ञ है। उसको इस इतिहास, भारत की सार्वभौमिकता, दर्शन, संस्कृत वाङ्मय, आर्ष साहित्य आदि से परिचय कराना हमारा दायित्व है। भारत निर्माता संतों, ऋषियों, मुनियों, आविष्कारकों व विदुषी वेदज्ञ मातृशक्ति से परिचय हमारे गौरवबोध को जाग्रत् करेगा। संपूर्ण पृथ्वी पर भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का संदेश 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम्' लेकर, 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का विचार लेकर, 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' का मंत्र लेकर, 'मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत्, आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पण्डितः' का आचरण लेकर तथा 'राष्ट्र सर्वोपरि' की दृष्टि लेकर जो लोग चले, जिनमें बड़े-बड़े राजपरिवार तथा व्यापारी व समाज-सुधारक शामिल हैं; उनसे आज की पीढ़ी परिचित हो, इस हेतु से प्रस्तुत पुस्तक का सृजन हुआ है।"
Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Shravasti
- Author Name:
Pawan Bakshi
- Book Type:

-
Description:
श्रावस्ती कोसल का प्रमुख नगर था। इसे बुद्धकालीन भारत के छह महानगरों—चंपा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कोशांबी और वाराणसी में से एक माना जाता था।
आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व यह क्षेत्र अत्यंत वनाच्छादित था जिसके चलते स्वतंत्रता आंदोलन में श्रावस्ती एक प्रमुख पड़ाव हुआ करता था और आंदोलनकारियों के लिए विशेष रूप से सुरक्षित माना जाता था। इस कारण और यहाँ के सामान्य जन की स्वातंत्र्य-चेतना के कारण आजादी के आंदोलन में इसकी महती भूमिका रही। 1857 में अंग्रेजों को बहराइच में कड़ा विरोध झेलना पड़ा। यहाँ के सभी छोटे ताल्लुकेदार खुलकर उनके विरुद्ध खड़े हो गए थे। इकौना रियासत का योगदान इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में दर्ज है। वीरांगना रानी ईश्वरी देवी का संघर्ष भी एक उल्लेखनीय घटना थी।
इस पुस्तक में स्वतंत्रता आंदोलन में श्रावस्ती जिले की भूमिका को तथ्यों के साथ स्पष्ट किया गया है। साथ ही यहाँ के भौगोलिक व सांस्कृतिक महत्त्व को भी रेखांकित किया गया है।
KALKI : Dasaven Avatar Ka Udaya
- Author Name:
Ashutosh Garg +1
- Book Type:

- Description: संभल गाँव का निवासी और फौज में सूबेदार बिंदेश्वरनाथ त्रिवेदी, प्रथम विश्व-युद्ध के लिए यूरोप जाता है लेकिन युद्ध खत्म होने पर भी घर नहीं लौटता। इस बीच उसके बेटे रमानाथ को संभल का एक रहस्यमयी व्यक्ति मिलता है जो रमानाथ के लापता पिता के बारे में सब जानता है। वह रमानाथ को यूरोप में फैली स्पैनिश फीवर नामक महामारी और उसका वायरस तैयार करने वाले के बारे में भी बताता है! इस घटना के सौ वर्ष बाद, सन् 2020 में म्यूविड-20 नामक एक नई महामारी फैलती है, तो वही रहस्यमयी व्यक्ति फिर प्रकट होता है। इस बार उसकी मुलाकात रमानाथ के पोते गौरव त्रिवेदी से होती है। गौरव को जब उस व्यक्ति की असलियत का पता लगता है तो उसके होश उड़ जाते हैं! कौन है संभल का वह रहस्यमयी व्यक्ति? त्रिवेदी परिवार से उसका क्या संबंध है? क्या स्पैनिश फीवर और म्यूविड-20 महामारियाँ सिर्फ संयोग हैं? या 100 साल के भीतर मानव-समाज पर आई इन दो भयानक विपदाओं के पीछे कोई अज्ञात शक्ति है? क्या भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि का जन्म हो चुका है? यदि हाँ, तो कल्कि, आधुनिक समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं? यह पुस्तक, कल्कि और कलियुग के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इसमें आशुतोष ने जहाँ अपनी परिपक्व कलम से विश्व-इतिहास, उच्च जीवन-दर्शन और पौराणिक पृष्ठभूमि के जीवंत चित्र खींचे हैं, वहीं अत्रि ने अपनी जबर्दस्त कल्पना-शक्ति से साइंस फिक्शन का रोमांचक और अनूठा संसार रचा है।
Kaushambi : Prachin Bharat Ka Ek Gauravshali Nagar
- Author Name:
Kumar Nirmalendu
- Book Type:

- Description: प्राचीन भारत का एक गौरवशाली नगर कौशाम्बी ऐतिहासिक दृष्टि से अशोक, कनिष्क, समुद्रगुप्त, हर्षवर्द्धन आदि प्रतापी शासकों की महत्वाकांक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था। उत्तर वैदिक काल से मुग़लकाल तक कौशाम्बी का पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक महत्त्व भारतीय ग्रन्थों में प्रतिबिम्बित है। कौशाम्बी के उत्खनन के दौरान प्रथम सहस्राब्दी ई.पू. की आरम्भिक शताब्दियों में नगरीकरण और नगर के दुर्गीकरण के स्पष्ट संकेत मिले हैं। यहाँ यमुना नदी के बाएँ तट पर उदयिन का बनवाया हुआ एक क़िला था, जिसके भग्नावशेष एक विशाल टीले के रूप में कोसम और गढ़वा नामक ग्रामों के बीच में स्थित है। गुप्त-साम्राज्य के विघटन के साथ ही कौशाम्बी नगर भी पतनोन्मुख हो गया। गुप्त-साम्राज्य के बाद छोटे-बड़े कई राजवंशों का प्रादुर्भाव हुआ। नए राजधानी नगरों के उदय के कारण कौशाम्बी का महत्त्व स्वाभाविक रूप से कम हो गया। इसी बीच हूण हमलावरों के आक्रमण के कारण कौशाम्बी नगर तहस-नहस हो गया। इतिहास की एक समृद्ध थाती को अपने सीने में सँजोए यह पुरातन नगर अपने गौरवशाली अतीत को पुनर्जीवित करने के लिए मानो आकुल है। यह पुस्तक कौशाम्बी की उसी अकुलाहट से उपजा एक क्षीण-मन्द राग है। इसमें इतिहास के तमाम आरोहों-अवरोहों को यथासम्भव स्वर देने का प्रयास किया गया ह
Gandhi : Rise of a Mahatma and Diaspora
- Author Name:
Dr. Ruchi Verma +2
- Book Type:

- Description: The year 2019-2020 marked the 150 birth anniversary of Mahatma Gandhi that was widely commemorated in India and in many parts of the world remembering Gandhiji’s philosophy and teachings. During his education of law in the UK, Gandhiji developed firm faith in the principles and merits of the rule of law. Ironically, this faith was severely challenged when he moved as a lawyer to assist some Indian origin businessmen in South Africa. There, Gandhiji came face to face not only with violations of the sacrosanct principles of the rule of law but also the discrimination built in the laws themselves. This shock laid the foundation of barrister Gandhi’s journey in the process of making of a mahatma. Though Gandhiji’s commitment to Swaraj through Satyagraha has a much wider global appeal, his path to sainthood was inseparably intertwined with his experiences with the Indian diaspora. In keeping with Antar Rashtriya Sahayog Parishad (ARSP’s) pioneering work with Indian diaspora, Diaspora Research and Resource Centre of ARSP, in collaboration with Gandhi Smriti and Darshan Samiti, New Delhi organised a series of conferences on the theme ‘Gandhi and diaspora’, which were attended by over 100 experts from India and abroad. This book is a compilation of the proceedings, presentations and the outcomes of these important events. We hope, this publication would be useful to academics and scholars dealing with Gandhian teachings, ideology and diaspora studies.
Vande Matram
- Author Name:
Milind Prabhakar Sabnees
- Book Type:

- Description: वंदे मातरम् ऋषि बंकिमचंद्र की अलौकिक काव्य प्रतिभा की अभिव्यक्ति है। वैदिक काल से अर्वाचीन काल तक मातृभूमि के प्रति हमारे मन में बसनेवाले अनन्य प्र्रेम का अव्यक्त रूप यानी वंदे मातरम्! मातृभूमि के प्रति यह प्रेम शाश्वत है, चिरंतन है। जिस भूमि ने मुझे जन्म दिया, जिसने मेरा पालन-पोषण किया, मुझे समृद्धता दी और अंत में जिस भूमि में मैं मिल जाने वाला हूँ, वह भूमि यानी यह हमारी भूमाता, मातृभूमि! उसे हमारा शत-शत प्रणाम! भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त मातृपूजन, भूमिपूजन, इस जगन्माता का पूजन इन सबके प्रतीक बने शब्द हैं ‘वंदे मातरम्’! मातृभूमि के प्रति यह प्रेम प्रत्येक व्यक्ति के मन में सहज-स्वाभाविक होता है। जैसा अपनी जननी-माता के प्रति होता है ठीक वैसा ही! वह प्रेम हम प्रत्येक के हृदय में है। उस पर केवल निराशा के पुट चढ़े हैं, जिन्हें दूर हटाना होगा। अंतरतम की तह से ‘वंदे मातरम्’ के उच्चारण से उन्हें निश्चय ही दूर किया जा सकता है। वंदे मातरम्!!
Corona Kaal
- Author Name:
Akash Mathur
- Book Type:

- Description: This book has no description
Santal Hool Santal-Vidroh : 1854-55
- Author Name:
Dr. S.P. Sinha
- Book Type:

- Description: सन्ताल हूल झारखंड में हुए महान उपनिवेश-विरोधी विद्रोह के वास्तविक स्वरूप और भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में उसके समुचित स्थान को रेखांकित करनेवाली पुस्तक है। भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आदिवासी प्रतिरोध का लम्बा सिलसिला रहा है। छोटानागपुर और सन्ताल परगना के आदिवासियों ने पहाड़ियों और घने जंगलों के अपने गढ़ में अंग्रेजों को कभी भी चैन से नहीं रहने दिया। वे ईस्ट इंडिया कम्पनी की शोषणकारी नीति और भेदभावपूर्ण व्यवस्था से असन्तुष्ट थे। उन्हें उसकी अधीनता स्वीकार नहीं थी। वे अपना राज चाहते थे, इसलिए उन्होंने बार-बार विद्रोह किया। उन्हीं विद्रोहों में से एक था सन्ताल हूल, जो 1857 के बहुचर्चित प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के ठीक पहले 1854-55 में हुआ था। इस विद्रोह के नेता थे सिदो, कानू, चाँद और भैरव। सन्ताल हूल का–जैसा कि अन्य आदिवासी विद्रोहों में भी दिखता है—उपनिवेशवाद विरोधी तेवर और स्वाधीनता का उद्देश्य स्पष्ट था। उसके नेताओं और भागीदारों की शहादत भी असंदिग्ध थी। बावजूद इसके उसके बारे में भ्रम बना रहा और बौद्धिक-अकादमिक जगत में ‘इतिहास को नीचे से देखने’ का विचार पनपने के वर्षों बीत जाने के बाद तक सन्ताल हूल को भारतीय इतिहास की मुख्यधारा में समुचित स्थान नहीं दिया गया। इसी स्थिति के मद्देनजर आदिवासी इतिहास और संस्कृति के अधिकारी विद्वान डॉ. एस.पी. सिन्हा ने इस पुस्तक में सन्ताल हूल के बारे में उपलब्ध तमाम दस्तावेजों, परम्परागत और मौखिक स्रोतों को आधार बनाकर सन्तालों की अपनी व्यवस्था, अंग्रेजी व्यवस्था से उनके असन्तोष, हूल के नेताओं के व्यक्तित्व और नेतृत्व-क्षमता, हूल के उद्देश्य और आदर्श आदि के वास्तविक स्वरूप को सामने रखा है। यह पुस्तक एक ओर सन्ताल हूल सम्बन्धी पहले के अध्ययनों की समीक्षा करती है तो भावी अध्ययनों के लिए एक प्रासंगिक दिशा निर्देश भी प्रस्तावित करती है। सिदो, कानू, चाँद और भैरव जैसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आरम्भिक सूत्रधारों को उनका श्रेय प्रदान करते हुए यह पुस्तक इतिहास के अधूरे परिप्रेक्ष्य को पूरा करती है।
1857 : Itihas Kala Sahitya
- Author Name:
Chanchal Chauhan +1
- Book Type:

- Description: 1857 आधुनिक भारतीय इतिहास की ऐसी परिघटना है जिस पर सैकड़ों पुस्तकें लिखी गई हैं। इसके बावजूद इतिहास, कला और साहित्य के क्षेत्र में पिछले 150 वर्षों के अनुसंधानों पर आधारित नवोन्मेषकारी विवेचनाओं और उद्भावनाओं से हिन्दी-उर्दू भाषी समुदाय की चेतना में मंथन उत्पन्न करनेवाली पुस्तक का नितान्त अभाव है। इसी ज़रूरत को ध्यान में रखकर इस पुस्तक की सम्पूर्ण सामग्री में श्रमसाध्य और नए ढंग के संचयन का प्रयास किया गया है। इस पुस्तक में पूर्व प्रकाशित सामग्री अल्पतम है—सिर्फ़ सन्दर्भ बताने के उद्देश्य से। अंग्रेज़ी और हिन्दी-उर्दू में अभी तक अप्रकाशित अनेक महत्त्वपूर्ण आलेखों और सृजनधर्मी रचनाओं को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया गया है—इस व्यवस्था में एक वैचारिक अन्विति का होना स्वाभाविक है। चूँकि अन्विति ही वह विधि है जिसके माध्यम से अत्याधुनिक प्रक्रियाओं को समझने और इतिहास से संवाद कर रही कलात्मक और साहित्यिक सृजनशीलता के सन्दर्भ का खुलासा करने में मदद मिलती है। रंगकर्म, फ़िल्म, चित्रकला, उर्दू शायरी तथा हिन्दी साहित्य के परिदृश्यों के विवेचन से इसे समृद्ध किया गया है ताकि इतिहास, कला और साहित्य की परस्पर सम्बद्धता की अन्तःक्रिया भी स्पष्ट हो सके। 1857 पर इतिहास लेखन यद्यपि दो प्रतिध्रुवों में विभक्त रहा, इसके बावजूद सन् सत्तावन की जंगे-आज़ादी को समकालीन समाजवैज्ञानिक, चिन्तक और रचनाकार जिस दृष्टि से देखते हैं, उस ऐतिहासिक प्रक्रिया का तात्पर्य जिस तर्कव्यवस्था से आलोकित करते हैं—इस पूरी पद्धति के लिहाज से इस संकलन में इरफ़ान हबीब, एजाज़ अहमद, सव्यसाची भट्टाचार्य, सूरजभान, रजत कांत रे, एस.पी. वर्मा, शीरीं मूसवी, पी.के. शुक्ला, देवेन्द्र राज अंकुर, इम्तियाज़ अहमद, अमर फ़ारूक़ी, नुज़हत काज़मी, मुहम्मद हसन, शिवकुमार मिश्र, कमलाकान्त त्रिपाठी, खगेन्द्र ठाकुर, विजेन्द्र नारायण सिंह, सीताराम येचुरी, नलिनी तनेजा, मनमोहन, असद ज़ैदी, संजीव कुमार आदि के आलेख ग़ौरतलब हैं। 1857 के साथ मैत्रेयी पुष्पा, कुमार अंबुज, योगेन्द्र आहूजा, दिनेश कुमार शुक्ल, सुल्तान अहमद, वंदना राग, विमल कुमार का रचनात्मक संवाद अतीत के साथ वर्तमान को भी आन्दोलित करता है। इतिहास, कला और साहित्य की घटनाओं और रचना प्रक्रियाओं का अन्तर्विरोध समझने के लिहाज़ से ही बीसवीं सदी के महान फ़्रांसीसी इतिहासकार मार्क ब्लाख की यह टिप्पणी स्मरणीय है कि ‘राजनीति, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के क्षेत्र की परिघटनाएँ एक ही वक्र पर उपस्थित हों, यह आवश्यक नहीं है।’ इस पुस्तक के माध्यम से इसे 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध के भारतीय इतिहास और संस्कृति के सन्दर्भ में बख़ूबी समझा जा सकता है। अंग्रेज़ी में प्रकाशित होने से पहले ही अनेक आलेखों को हिन्दी में उपलब्ध कराने के सराहनीय प्रयास के साथ 1857 की जनक्रान्ति पर अभी तक हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकों के बीच निस्सन्देह यह पुस्तक अनूठी और विचारोत्तेजक है।
Sakshibhav
- Author Name:
Narendra Modi
- Book Type:

- Description: સંવેદનશીલ કર્મયોગી નરેન્દ્ર મોદીની ડાયરી રૂપે લખાયેલી આ પ્રાર્થનાઓ છે. 1986ના અંતમાં આ મનવહીનો પ્રારંભ થયો છે. અહીં મનોજગતના સંઘર્ષની કથા, વ્યથા, અને ચિંતન છે। સ્વ સાથેનો સંવાદ, વિસંવાદ, મંથન, મથામણ અને સવાલ -જવાબ છે. મોટી વાત તો એ છે કે આમાં કોઈ દીનહીન ભાવ નથી, કોઈ માંગણી નથી પણ લાગણીનું અગાધ ઊંડાણ છે. માણસ જયારે કોઇપણ પ્રકારની મુશ્કેલીમાં હોય ત્યારે બધું જ જગતમાતાના ચરણમાં મૂકી દેવું અને નિરાધાર થયા વિના માતાની કૃપામાં પૂર્ણ શ્રદ્ધા રાખીને આવી પડેલી અવસ્થાને ઓળંગી જવી . આમ આ જે કઈ ભીતરનો સંવાદ છે તે કોઈ નિરાકારને સંબોધીને નહી પણ દ્રષ્ટિ સમક્ષ દર્શન આપતી જગદંબાને સંબોધીને કહેવાયેલી હ્રદયછૂટી વાત છે.
Loktantra Ki Chaukidari
- Author Name:
Steven Levitsky and Daniel Ziblatt
- Rating:
- Book Type:

- Description: लोकतंत्र कैसे ख़त्म होता है? अपने लोकतंत्र को बचाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? इतिहास हमें क्या सिखाता है? इक्कीसवीं सदी में लोकतंत्र जितना ख़तरे में है, पहले कभी नहीं रहा। समूचे इतिहास से सबक लेते हुए—चिली में पिनोशे की ख़ूनी सत्ता से लेकर चुपचाप ढहते तुर्की में एर्दुआं की सरकार तक—हार्वर्ड के प्रोफ़ेसर स्टीवेन लेवित्सकी और डेनियल ज़िब्लाट यह समझाते हैं कि लोकतंत्र क्यों नाकाम हो जाते हैं, ट्रम्प जैसे नेता कैसे उसे नष्ट करते हैं और अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए हम में से हर एक व्यक्ति क्या कर सकता है। विशेषज्ञों की राय जो भी लोकतंत्र के भविष्य को लेकर चिन्तित है उसे यह सहज, सरल किताब पढ़नी चाहिए। जो चिन्तित नहीं हैं, उन्हें तो ज़रूर पढ़नी चाहिए। दारोन एसेमोगलू ‘व्हाई नेशंस फ़ेल’ के लेखक और 2024 के नोबेल पुरस्कार विजेता लेवित्सकी और ज़िब्लाट ने कितनी कुशलता से यह दलील रखी है कि हम सबको इस देश के रुझानों पर चिन्तित होना चाहिए, अमेरिकी संविधान का ज़बर्दस्त प्रशंसक होने के नाते मेरे लिए यह पढ़ना हताशाजनक था। ‘यह यहाँ नहीं हो सकता’ वाली धारणा लेवित्सकी और ज़िब्लाट के विश्लेषण में नहीं टिकती...क्या शानदार लिखा है। डेनियल डब्ल्यू. ड्रेज़नर ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ उत्कृष्ट, विद्वत्तापूर्ण, पठनीय, चिन्ताजनक और सन्तुलित निक कोहेन ‘ऑब्ज़र्वर’
IAF Strikes @ 0328 Hours
- Author Name:
Mukesh Kaushik +1
- Book Type:

- Description: ‘IAF Strikes @ 0328 hours’ is a comprehensive account of the events that unfolded that night. I want to express that whatever surfaced following the attacks in the Indian media is largely true. On the other hand, whatever surfaced in Pakistan is imaginative, at best. I want to congratulate Mr. Mukesh Kaushik and Mr. Sanjay Singh, for this book. Their efforts and attention to detail is highly commendable. —Air Marshal C. Hari Kumar Former Chief of Western Air Command
Nai Bhajapa Ke Shilpakaar
- Author Name:
Ajay Singh +1
- Book Type:

- Description: "अपनी स्थापना के लगभग 40 वर्षों में भारतीय जनता पार्टी विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई है और भारतीय राजनीति में अपनी स्थिति को निरंतर अधिक सुदृढ़ बनाती जा रही है। इस पार्टी का ऐतिहासिक अभ्युदय कुछ लोगों को सहज और स्वत:स्फूर्त लग सकता है, लेकिन 18 करोड़ सदस्यों के इस संगठन का मार्ग प्रशस्त करने के पीछे गहन आंतरिक विचार-विमर्शों और योजनाओं का योगदान रहा है। गहरे शोध तथा ठोस उदाहरणों के माध्यम से 'नई भाजपा के शिल्पकार' में पिछले दशकों के दौरान हुए पार्टी के कायाकल्प की व्याख्या की गई है। इस प्रसंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐसे योगदानों पर प्रकाश डाला गया है, जिनके बारे में लोग कम जानते हैं। संगठन निर्माण के पारंपरिक तरीकों से परे जाकर किए गए उनके प्रयोग, सूक्ष्मता के साथ हर आयाम पर उनकी पैनी नजर और पार्टी के जनाधार का विस्तार करने के लिए उनकी अभिनव पद्धतियों को यह पुस्तक उजागर करती है। पार्टी के संस्थापकों द्वारा सन् 1951 में अपनाई गई दृष्टि पर आधारित अतीत के विश्लेषण के साथ-साथ अजय सिंह ने भाजपा के भविष्य की झलक भी दिखाई है। अनेक पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं और समीक्षकों के साथ विस्तृत साक्षात्कारों पर आधारित विवरणों से पता चलता है कि किस प्रकार कैडर पर आधारित इस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए एक नितांत भारतीय मॉडल को विकसित किया, जिसके आधार पर अंतत: भाजपा चुनाव जीतने वाली एक मशीन के रूप में स्थापित हो गई है।"
Chakravarty Samrat Ashok
- Author Name:
Rachna Bhola Yamini
- Book Type:

- Description: इतिहास में सम्राट् अशोक को दो चीजों के लिए याद किया जाता है—एक, कलिंग के युद्ध के लिए और दूसरा, भारत के बाहर की दुनिया में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए। अपने आरंभिक दिनों में अशोक बहुत क्रूर राजा था। अपने निष्कंटक राज्य के लिए उसने अपने सौतेले भाइयों को मरवा दिया था। उसके इन क्रूर कारनामों के कारण उसे ‘चंड अशोक’ कहा जाने लगा था। उसने एक के बाद एक राज्य जीता और साम्राज्यवाद की अपनी महत्त्वाकांक्षा को सींचता रहा। उसका राज्य भारत के पार दक्षिण एशिया और पर्शिया तक को छूने लगा। आखिर कलिंग का युद्ध हुआ। इसमें भी अशोक को जीत मिली। लेकिन इस युद्ध में दोनों पक्षों के एक-एक लाख लोग मारे गए और इससे भी ज्यादा बेघर हो गए। कलिंग युद्ध में हुए महाविनाश से विचलित हो गया। उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। उसने जनकल्याण के कार्य आरंभ कर दिए और राजसी भोग-विलास का परित्याग कर दिया। उसने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। सम्राट् अशोक के शौर्य, युद्धकौशल विजय अभियानों और दानव से मानव बनने की मार्मिक कथा प्रस्तुत करनेवाली एक पठनीय पुस्तक।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...