Gupt Rajvansh Tatha Uska Yug
Author:
Uday Narayan RaiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Unavailable
अपने शिखर काल में गुप्त साम्राज्य गुजरात से लेकर पूरब में बंगाल तक फैला था। सामाजिक, राजनीतिक अव्यवस्था को समाप्त कर, गुप्त राजाओं ने शासन का अनुकरणीय रूप प्रस्तुत किया। यही वजह है कि विदेशी लेखकों ने भी समृद्ध सामाजिक संरचना, बृहत्तर भारत की अवधारणा को क्रियान्वित करने के उनके सफल प्रयासों, धार्मिक सहिष्णुता और अर्थव्यवस्था के सुसंचालन की प्रशंसा की है।</p>
<p>राष्ट्र को विदेशी आक्रान्ताओं से मुक्त करने के लिए भी गुप्त शासकों की उपलब्धियों को उल्लेखनीय माना जाता है। कुषाणों और शकों के उन्मूलन तथा हूणों को पराजित करके उन्होंने अपनी सीमाओं को सुरक्षित किया।</p>
<p>यह पुस्तक विभिन्न ऐतिहासिक और साहित्यिक स्रोतों के साथ-साथ इस समय की पुस्तकों, यात्रा-वृत्तान्तों, शिलालेखों और मुद्राओं से प्राप्त साक्ष्यों की रोशनी में गुप्त सम्राटों और उनके समय का सहायक-सुग्राह्य वर्णन करती है।</p>
<p>विशेष तौर पर छात्रों के लिए तैयार की गई इस पुस्तक में इस समूचे काल को क्रमश: तथा उपलब्ध सूचनाओं को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया गया है। स्कन्दगुप्त की मृत्यु के पश्चात् गुप्त साम्राज्य के पतन के कारणों और उसके बाद की परिस्थितियों पर भी प्रकाश डाला गया है। संस्कृत, पालि, प्राकृत आदि भाषाओं में उपलब्ध सामग्री के आधार पर लिखी गई यह पुस्तक इतिहास के क्षेत्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई है।
ISBN: 9788180315817
Pages: 823
Avg Reading Time: 27 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: સંવેદનશીલ કર્મયોગી નરેન્દ્ર મોદીની ડાયરી રૂપે લખાયેલી આ પ્રાર્થનાઓ છે. 1986ના અંતમાં આ મનવહીનો પ્રારંભ થયો છે. અહીં મનોજગતના સંઘર્ષની કથા, વ્યથા, અને ચિંતન છે। સ્વ સાથેનો સંવાદ, વિસંવાદ, મંથન, મથામણ અને સવાલ -જવાબ છે. મોટી વાત તો એ છે કે આમાં કોઈ દીનહીન ભાવ નથી, કોઈ માંગણી નથી પણ લાગણીનું અગાધ ઊંડાણ છે. માણસ જયારે કોઇપણ પ્રકારની મુશ્કેલીમાં હોય ત્યારે બધું જ જગતમાતાના ચરણમાં મૂકી દેવું અને નિરાધાર થયા વિના માતાની કૃપામાં પૂર્ણ શ્રદ્ધા રાખીને આવી પડેલી અવસ્થાને ઓળંગી જવી . આમ આ જે કઈ ભીતરનો સંવાદ છે તે કોઈ નિરાકારને સંબોધીને નહી પણ દ્રષ્ટિ સમક્ષ દર્શન આપતી જગદંબાને સંબોધીને કહેવાયેલી હ્રદયછૂટી વાત છે.
Chandragupta Maurya Aur Uska Kaal
- Author Name:
Radhakumud Mukherji
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Description:
प्रो. राधाकुमुद मुखर्जी की गणना देश के शीर्षस्थ इतिहासकारों में होती है और परम्परागत दृष्टि से इतिहास लिखनेवालों में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
प्रस्तुत पुस्तक में प्रो. मुखर्जी के वे भाषण हैं, जो उन्होंने सर विलियम मेयर भाषणमाला के अन्तर्गत मद्रास विश्वविद्यालय में दिए थे। इन निबन्धों में भारत के प्रथम सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के जन्म तथा प्रारम्भिक जीवन और उसके विजय-अभियानों की चर्चा करते हुए उन सारे कारकों का गहराई से अध्ययन किया गया है जो एक शक्तिशाली राज्य के निर्माण में और फिर उसे स्थायित्व प्रदान करने में सहायक हुए। चन्द्रगुप्त के कुशल प्रशासन और उसकी सुविचारित आर्थिक नीतियों की परम्परा अशोक के काल तक अक्षुण्ण रहती है। आर्थिक जीवन का राज्य द्वारा नियंत्रण तथा उद्योगों का राष्ट्रीयकरण मौर्यकाल की विशेषता थी।
प्रो. मुखर्जी का यह अध्ययन चौथी शताब्दी ई.पू. की भारतीय सभ्यता के विवेचन-विश्लेषण के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें कौटिल्य के अर्थशास्त्र की बहुत सारी ऐसी सामग्री का समुचित उपयोग किया गया है, जिसके सम्बन्ध में या तो काफ़ी जानकारी नहीं थी या जिसकी तरफ़ काफ़ी ध्यान नहीं दिया गया था। साथ ही, शास्त्रीय रचनाओं—संस्कृत, बौद्ध एवं जैन ग्रन्थों के मूल पाठों और अशोक के शिलालेखों—जैसे विभिन्न स्रोतों से लिए गए प्रमाणों का सम्पादन और तुलनात्मक अध्ययन भी यहाँ मौजूद है। भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति के अन्वेषक विद्वानों ने इस पुस्तक को बहुत ऊँचा स्थान दिया है और यह आज तक इतिहास के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और प्राध्यापकों के लिए एक मानक ग्रन्थ के रूप में मान्य है।
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