Bharatvarsh ka Brihat Itihas : Vols. 1- 2
Author:
Shrinetra PandeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 880
₹
1100
Unavailable
भारतवर्ष का बृहत् इतिहास बड़ा ही लोकप्रिय ग्रन्थ बन गया है। इसकी रचना दशकों पूर्व की गई थी किन्तु इसकी मान्यता तथा लोकप्रियता आज भी पूर्ववत् बनी है। इस नवीन संस्करण का संशोधन तथा परिवर्द्धन उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार कर दिया गया है जिसके फलस्वरूप कुछ नए प्रकरणों का समावेश हो गया है।</p>
<p>पुस्तक के अन्त में कुछ परिशिष्टियाँ भी जोड़ दी गई हैं। जिससे पुस्तक की अनुकूलता तथा उपयोगिता में वृद्धि हो गई है। आशा है, यह नवीन संस्करण विद्यार्थियों तथा अध्यापकों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सक्षम होगा।
ISBN: 9788180318238
Pages: 570
Avg Reading Time: 19 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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सन् सत्तावन के स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी करनेवाली रानी तुलसीपुर का उल्लेख कहीं-कहीं ऐश्वर्य राजेश्वरी देवी के रूप में भी मिलता है और ईश्वरी कुमारी के रूप में भी। इस पुस्तक में उनके और अन्य स्वतंत्रता-सेनानियों के संघर्ष को रेखांकित किया गया है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपने-अपने समय पर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले ऐसे अनेक सेनानी हैं जिनके बारे में आज बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है। रानी तुलसीपुर भी उनमें से एक हैं। उनके बारे में अभी तक इतना ही ज्ञात था कि विद्रोह के दौरान वे बेगम हजरत महल के साथ नेपाल चली गई थीं। यह पुस्तक उनकी पूरी वीरगाथा को सामने लाती है जिसके लिए लेखक ने लिखित इतिहास के अलावा सैकड़ों गाँवों में घूम-घूमकर बुजुर्गों से कहानियाँ भी सुनीं और फिर वास्तविक तथ्यों के आधार पर यह पुस्तक लिखी।
रानी तुलसीपुर के साथ-साथ इसमें स्वतंत्रता आंदोलन में बलरामपुर जिले की भूमिका भी स्पष्ट होती है।
Shivaji The Grand Rebel — Chhatrapati Shivaji Maharaj: Father of The Indian Navy and Sambhaji Maharaj Chhaava
- Author Name:
Dennis Kincaid
- Book Type:

- Description: Witness the thrilling saga of a 17th-century Indian rebel who defied empires and ignited the flames of Hindu nationalism. In “Shivaji The Grand Rebel,” Dennis Kincaid paints a vivid portrait of Shivaji, the founder of the Maratha state, a figure revered by millions as a hero and a thorn in the side of the mighty Mogul Empire. From a childhood spent in fear and hiding to his audacious seizure of forts, Shivaji's early life was a testament to his unwavering ambition and resolute confidence. Discover how this charismatic leader, with the guidance of his devoted tutor Dadaji Kondadev and inspired by the burgeoning Marathi literature and spiritual leaders like Tukaram and Ramdas, began his audacious rebellion against the established Muslim powers. Experience the tension and intrigue of Shivaji's encounters with formidable foes, from the Bijapur Sultanate, who imprisoned his father Shahaji, to the cunning Mogul emperor Aurangzeb, who branded him a “Mountain Rat"". Marvel at Shivaji's strategic brilliance, his daring escape from captivity, and his complex relationship with the English East India Company. More than just a biography, this book delves into the cultural and political landscape of 17th-century India, revealing the opulence of Bijapur, the grandeur of the Mogul court, and the simple yet resilient spirit of the Maratha people. Explore the motivations behind Shivaji's relentless pursuit of Hindu independence, a dream that against all odds, began to materialize into a formidable Maratha state. “Shivaji The Grand Rebel” is a captivating journey into the life of a legendary figure whose legacy continues to inspire, offering a nuanced understanding of his military genius, political acumen, and the enduring impact of his rebellion on the history of India.
Badhti Duriyan Gaharati Darar
- Author Name:
Rafiq Zakaria
- Book Type:

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Description:
भारत–विभाजन के बाद, इन क़रीब पचास सालों में, हिन्दू–मुस्लिम रिश्तों में सबसे ज़्यादा गिरावट आई है। प्रस्तुत गवेषणापूर्ण अध्ययन में डॉ. रफ़ीक़ ज़करिया ने दोनों समुदायों के बीच आई टूटन के कारणों पर गहन विचार किया है।
अपने विश्लेषण की शुरुआत उन्होंने भारत पर मुहम्मद बिन कासिम (सन् 711) और महमूद गज़नवी (सन् 1020) के हमलों के परिणामों से की है। उसके बाद उन्होंने दिल्ली के सुल्तानों और बाद में मुग़लों के अधीन भारत की स्थितियों पर और दोनों समुदायों के समन्वित हितों के लिए की गई पहलक़दमियों पर नज़र डाली है। फिर वे, हिन्दुस्तान पर अंग्रेज़ी हुकूमत, उसकी ‘फूट डालो, राज करो’ की नीति और मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा प्रस्तावित ‘दो–राष्ट्र सिद्धान्त’ का परीक्षण करते हैं। विभाजन की वजहों पर उन्होंने बड़ी गहराई से चिन्तन किया है और उसके दूरगामी परिणामों पर बड़े विस्तार से चर्चा की है। वे, अपने अध्ययन का समापन, एक चुनावी–शक्ति के रूप में हिन्दुत्व के उभार, 1992 में बाबरी मस्जिद की शहादत के परिणाम और भारत के वित्तीय नाड़ी–तंत्र मुम्बई में भाजपा–शिवसेना गठबन्धन की जीत से करते हैं। अपने प्रमेय का विकसन करते–करते डॉ. ज़करिया, दोनों समुदायों के बारे में प्रचलित अनेक ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनीतिक भ्रमों–मिथकों को ध्वस्त करते चलते हैं।
डॉ. ज़करिया बड़े गम्भीर विद्वान और वरिष्ठ राजनेता हैं। ज़मीन से जुड़े होने की वजह से उन्हें यथार्थ की प्रत्यक्ष जानकारी है। अपने व्यापक ज्ञान और अनुभव का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने ऐसी पुस्तक की रचना की है जो नए मार्ग प्रशस्त करती है, सत्याग्रही अन्तर्दृष्टि प्रदान करती है और हिन्दुस्तान के हिन्दुओं और मुसलमानों को अलग–अलग बाँटनेवाली समस्याओं के सही स्वरूप से जुड़े अहम सवालों का जवाब देती है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि यह पुस्तक बड़े व्यावहारिक सुझाव देकर यह बताती है कि दोनों समुदायों के बीच की गहरी दरारों को कैसे पाटा जा सकता है।
Nagvansh Ki Purakathayein
- Author Name:
Shivkumar Tiwari
- Book Type:

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Description:
‘नागवंश की पुराकथाएँ’ ऐतिहासिक भारत के उस आदि समाज की कथाएँ हैं जिनके सूत्र संस्कृत, पालि एवं प्राकृत भाषाओँ में लिखे प्राचीन ग्रन्थों में मिलते हैं। वस्तुतः नाग संस्कृति मानव समाज की उन गिनी-चुनी विश्व-संस्कृतियों में से एक है, जिसका अविच्छिन्न प्रवाह विगत चार या पाँच सहस्राब्दियों से अब तक गतिमान है। भारत में नागों के नाम पर नदियाँ हैं, क्षेत्र हैं, नगर हैं तथा व्यक्तियों के उपनाम हैं, ये नाग संस्कृति की जीवन्तता के प्रमाण हैं।
‘नागवंश की पुराकथाएँ’ भारत की एक अति प्राचीन किन्तु दीर्घजीवी विस्मृत-से पुरातन नाग संस्कृति के कुछ तिनकों को साथ रखकर रूपायित करने का प्रयास है। ग्रन्थ में संकलित कथाओं को सर्गों में विभाजित किया गया है। स्थापित कथाओं की चर्चा न करते हुए यह ग्रन्थ अल्पज्ञात पौराणिक संकेतों और लोककथाओं में प्रचलित आख्यानों के आधार पर नाग समाज की संस्कृति और सामाजिक विशेषताओं को कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत करने का यत्न करता है। यह प्रयास अपने आप ही इस ग्रन्थ को दूसरे ग्रन्थों के मुक़ाबले अग्रिम भूमिका में लाकर खड़ा कर देता है। नागों की संस्कृति के अध्ययन में निश्चय ही यह एक उल्लेखनीय ग्रन्थ है।
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