Chashme Wale Masterji
Author:
Prakash ManuPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
"बरसों तक ‘नंदन’ के संपादन से जुड़े रहे प्रकाश मनु बच्चों के चहेते कथाकार हैं। उन्होंने बच्चों के लिए खूब लिखा है— एक-से-एक सुंदर गीत, कहानियाँ, नाटक और उपन्यास, जिन्हें बच्चे चाव से पढ़ते और उनके साथ-साथ हँसते-गाते, चहकते, खिलखिलाते हैं। ‘चश्मेवाले मास्टरजी’ प्रकाश मनु की पिछले कुछ अरसे में लिखी गई ताजा बाल कहानियों का संग्रह है। इसमें नन्हे-मुन्नों के नन्हे सपनों की कहानियाँ हैं, तो दूसरी ओर किस्सागोई से भरपूर ऐसी दिलचस्प कहानियाँ भी, जो बच्चों को एक निराली दुनिया में ले जाएँगी। ये ऐसी बाल कहानियाँ हैं, जिनमें बचपन का हर रंग, हर अंदाज है और नटखटपन से भरी कौतुकपूर्ण छवियाँ भी, जो बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी मुग्ध करती हैं। इनमें बच्चे हैं, बच्चों के सुख-दु:ख और सपने हैं तो उनके छोटे से संसार की बड़ी मुश्किलें भी हैं, और इन्हें लिखा गया है बेहद चुस्त, सधे, खिलंदड़े अंदाज में। कुछ कहानियों में बच्चों को एक भोले और अलमस्त बच्चे कुक्कू की नटखट शरारतें, खेल और मस्ती की रेल-पेल लुभाएगी तो कुछ में वे निक्का, तान्या, निक्की, साशा, मीशा, खुशी और मिली के संग खूब हँसेंगे, खिलखिलाएँगे और खेल-खेल में बहुत कुछ सीखेंगे भी। साथ ही अपनी मुश्किलों से निकलने की राह पाएँगे।
‘चश्मेवाले मास्टरजी’ पुस्तक की हर कहानी में बचपन की एक अलग छवि है और नटखटपन से भरी एक हँसती-खिलखिलाती दुनिया! इसीलिए ये कहानियाँ बच्चों को अपने दोस्त सरीखी लगेंगी। एक बार पढ़ने के बाद वे इन्हें कभी भूलेंगे नहीं और हमेशा एक ‘बहुमूल्य उपहार’ की तरह सँजोकर रखेंगे।
"
ISBN: 9788189573805
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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प्रसिद्ध इतिहासकार इरफ़ान हबीब द्वारा सम्पादित यह पुस्तक ऐसे कई महत्त्वपूर्ण अध्ययनों को हमारे सामने रखती है, जिनमें अकबर, उसके साम्राज्य और तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक व आर्थिक वातावरण पर प्रकाश पड़ता है। मध्यकालीन भारतीय इतिहास के अधिकारी विद्वानों द्वारा लिखित इन गवेषणात्मक आलेखों से पाठक चार सदी पूर्व के भारत की राजनीति और सांस्कृतिक स्थिति की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं।
अकबरकालीन प्रशासनिक व्यवस्था, राजनीतिक इतिहास, धार्मिक रीति तथा विचार, विज्ञान और तकनीकी की स्थिति, समाजार्थिक स्थितियाँ आदि कुछ विषय हैं जिनके बारे में ये निबन्ध हमें प्रामाणिक तथ्य उपलब्ध कराते हैं तथा मौजूदा अवधारणाओं का परिष्कार करते हुए तत्कालीन इतिहास के क्षेत्र में नई चुनौतियों और क्षेत्रों को चिह्नित करते हैं।
आज भारतीय जन-गण के लिए यह जानना भी बहुत ज़रूरी हो गया है कि एक राष्ट्र के रूप में हम एक संगठित राजनीतिक और सांस्कृतिक परम्परा के वारिस हैं। इस अर्थ में भी अकबर का राजनीतिक और सांस्कृतिक विज़न फ़ौरी तौर पर हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी साबित हो सकता है।
Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Gautam Buddh Nagar
- Author Name:
Baljinder Nasrali
- Book Type:

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आज जब हम चारों ओर नजरें दौड़ाते हैं तो एक अजीब विडम्बना से साक्षात्कार होता है। हम सब एक ऐसी विदेशी सभ्यता के लिए जिम्मेदारी महसूस करते हैं, जिसने आजादी से पहले के लगभग दो सौ वर्षों में हमारी संस्कृति की लय को बुरी तरह से विकृत कर दिया था।
अंग्रेज विद्वानों ने हमारे शास्त्रों और पुराणों का विश्लेषण किया तो हम शायद अतिरिक्त चौकन्ने होकर ऐसी परम्परा के प्रति सजग हुए, जिसे आज तक हम बिना परिभाषित किये सहज भाव से अपने जीवन में अपनाते रहे थे। शास्त्रों और पुराणों में हमारी जिन्दगी थी। इस तरह के इतिहास के दखल होने से पहले, इस तरह की सामाजिक व्याख्या से पहले भी हमारा अपनी संस्कृति के साथ एक सहज और स्पष्ट लगाव था। वह परिभाषित नहीं था, उसे परिभाषित होने की जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि वह हमारी धड़कनों में था। एक भारतीय कभी अपनी संस्कृति को बाहर से नहीं देखता। संस्कृति तो उसके अंदर बसी होती है। अतिरिक्त सजगता तभी उत्पन्न होती है, जब मनुष्य का अपने अतीत और परम्परा से अलगाव हो जाता है। एक भारतीय की परम्परा कहीं बाहर नहीं, उसके भीतर रहती है, इसलिए सजग रूप से उससे स्वयं को जोड़ने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। इसलिए यह पुस्तक गौतम बुद्ध नगर की परम्परा, संस्कृति, स्वाभिमान, सभ्यता और आजादी पर जब कुछ बातों को आपके सामने लाती है तो एक पाठक होने के नाते आप एक सहज लगाव, एक सहज भारतीय बोध स्वाभाविक रूप से महसूस करते हैं। साथ ही, गौतम बुद्ध नगर के स्वाभिमान भरे इतिहास को पढ़ते हुए आपको गर्व का अनुभव होगा। समय की धारा में ठहरे हुए संकेत और सूत्र इस पुस्तक में स्वाभिमान की एक नई कहानी कह रहे हैं।
Rashtriya Mahattva Ke 100 Bhashan
- Author Name:
Fanish Singh
- Book Type:

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स्वतंत्रता आन्दोलन से लेकर अब तक के सौ चर्चित भाषणों के इस संग्रह का उद्देश्य एक तरफ़ नई पीढ़ी को भारतीय इतिहास के महत्त्वपूर्ण पड़ावों से अवगत कराना है तो दूसरी तरफ़ उन मूल्यों को रेखांकित करना है जो हमारी राष्ट्रीय चिन्तन-धारा में निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं।
आज सारा भारतीय समाज विखंडित होने की ओर अग्रसर है, यद्यपि हमारा विश्वास है कि राष्ट्रीयता की वह भावना जो विगत 160 वर्षों में उदित एवं पल्लवित हुई, कमज़ोर नहीं हो पाएगी। जातीय पार्टियाँ भले ही इस संकुचित भावना को उद्वेलित करती रहती हैं, किन्तु अपनी लाख कोशिशों के बावजूद वे कमज़ोर पड़ रही हैं। पिछले कई चुनावों से यह धारणा पुष्टि हुई है कि राष्ट्रीयता सदैव जातीयता पर भारी पड़ेगी जिसका उल्लेख आर.आर. दिवाकर ने संविधान सभा में अपने भाषण में 17 फरवरी, 1948 को किया था।
प्रस्तुत पुस्तक में 1858 से 2008 तक के प्रमुख भाषणों को संगृहीत करने की कोशिश की गई है। काल-विभाजन के अनुसार पुस्तक को दो भागों में रखा जा सकता है : 1858 से 1946 एवं 1946 से 2008। कांग्रेस के निर्माताओं, राष्ट्रीय आन्दोलन के नेताओं, विभिन्न राष्ट्रीय पार्टियों के नेताओं, राजनीतिज्ञों के साथ-साथ इस युग के समाज सुधारकों, वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों के भाषणों का भी समावेश इसमें किया गया है जिन्होंने समाज के लिए बहुत कुछ सोचा और किया। यह संकलन आज के संक्रमण-काल में व्यापक पाठक समुदाय के लिए निस्सन्देह एक बेहद महत्त्वपूर्ण कृति है।
Papa Restart Na Hue
- Author Name:
Aalok Puranik
- Book Type:

- Description: ज़िंदगी जीने की तकनीक भले ही सबको समझ न आई हो, पर तकनीक बहुत गहराई से जिंदगी में घुस गई है। मोबाइल फोन जीवनसाथी से भी बड़ा जीवनसाथी हो गया है—24×7 का साथ है। नई पीढ़ी को फ्रेंडशिप के नाम पर फेसबुक याद आने लगता है। बहुत चीजें बदली हैं, पर बहुत चीजें नहीं भी बदली हैं। यह असंभव है कि जिसके फेसबुक पर पाँच हजार फ्रेंड हों, मौकेजरूरत पर उसे चार फ्रेंड का साथ भी उपलब्ध न हो। नई पीढ़ी नए फेसबुक के संदर्भ में नई फ्रेंडशिप के आशय को बखूबी समझने की कोशिश कर रही है। यह व्यंग्यसंग्रह बदलती तकनीक के संदर्भ में बुनियादी मानवीय रिश्तों को जाननेसमझने की कोशिश करता है। बाजार, तकनीक के बदलावों ने इनसान को किस तरह से बदला है और कहाँ से न बदल पाया है, इसका लेखाजोखा इस संग्रह में है। बदलते समाजशास्त्रअर्थशास्त्र को पकड़ने की कोशिश आलोक पुराणिक ने इस व्यंग्यसंग्रह में की है। वे इस काम को बेहतर तरीके से इसलिए कर पाते हैं कि वे एक तरफ कॉमर्स के एसोसिएट प्रोफेसर हैं, तो दूसरी तरफ समाज, तकनीक के महीन बदलावों पर पैनी नजर रखनेवाले व्यंग्यकार। बदलती तकनीक, बदलते बाजार के आईने में बदलते समाज को समझने के लिए यह व्यंग्यसंग्रह पढ़ना जरूरी है। व्यंग्यसंग्रह पूरा पढ़ने के बाद सिर्फ हँसी ही आपके साथ नहीं होगी, बल्कि अपने वक्त के बारे में ज्यादा समझदारी भी आप पैदा कर चुकेंगे।
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