1857 : Bihar Jharkhand Main Mahayuddh
Author:
Prasanna Kumar ChoudhariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Unavailable
सन् 1857 के विद्रोह का क्षेत्र विशाल और विविध था। आज़ादी की इस लड़ाई में विभिन्न वर्गों, जातियों, धर्मों और समुदाय के लोगों ने जितने बड़े पैमाने पर अपनी आहुति दी, उसकी मिसाल तो विश्व इतिहास में भी कम ही मिलेगी। इस महाविद्रोह को विश्व के समक्ष, उसके सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने का महत् कार्य कार्ल मार्क्स और फ़्रेडरिक एंगेल्स कर रहे थे। ‘1857 : बिहार-झारखंड में महायुद्ध’ पुस्तक बिहार और झारखंड क्षेत्र में इस महायुद्ध का दस्तावेज़ी अंकन करती है।</p>
<p>1857 की सौवीं वर्षगाँठ पर, 1957 में बिहार के कतिपय इतिहासकारों-काली किंकर दत्त, क़यामुद्दीन अहमद और जगदीश नारायण सरकार ने बिहार-झारखंड में चले आज़ादी के इस महासंग्राम की गाथा प्रस्तुत करने का कार्य किया था। लेकिन तब इनके अध्ययनों में कई महत्त्वपूर्ण प्रसंग छूट गए थे। कुछ आधे-अधूरे रह गए थे। वरिष्ठ और चर्चित लेखक-पत्रकारों प्रसन्न कुमार चौधरी और श्रीकांत के श्रम-साध्य अध्ययन-लेखन के ज़रिए इस पुस्तक में पहले की सारी कमियों को दूर करने का सुफल प्रयास किया गया है। बिहार और झारखंड के कई अंचलों में इस संघर्ष ने व्यापक जन-विद्रोह का रूप ले लिया था। बाग़ी सिपाहियों और जागीरदारों के एक हिस्से के साथ-साथ ग़रीब, उत्पीड़ित दलित और जनजातीय समुदायों ने इस महायुद्ध में अपनी जुझारू भागीदारी से नया इतिहास रचा था। यह पुस्तक मूलतः प्राथमिक स्रोतों पर आधारित है। बिहार-झारखंड में सन् सत्तावन से जुड़े तथ्यों और दस्तावेज़ों का महत्त्वपूर्ण संकलन है। आम पाठकों के साथ-साथ शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी पुस्तक।
ISBN: 9788126714889
Pages: 463
Avg Reading Time: 15 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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पुस्तक हमारे मन-मस्तिष्क में बनी मुसलमानों के प्रति उन सभी भ्रान्त धारणाओं को वैचारिक स्तर पर तोड़ती है जिन्हें हम तथाकथित ‘इतिहास’ के रूप में जानते आए हैं। हिन्दू और मुस्लिम समुदाय की मानसिक संरचना में कितनी एकरूपता है और कितनी भिन्नता तथा दोनों ही समुदाय हर पहलू से कितने एक-दूसरे के नज़दीक हैं, पुस्तक हमें विस्तार से बताती है।
‘अंडरस्टैंडिंग दि मुस्लिम माइंड’ अंग्रेज़ी पुस्तक से अनूदित राजमोहन गांधी की यह पुस्तक हमें अत्यन्त विनम्रता से उन ज़िन्दगियों को समझाने का प्रयत्न करती है, जिनके विषय में हम जानते हुए भी बहुत कम जानते हैं।
Johar Jharkhand
- Author Name:
Amar Kumar Singh
- Book Type:

-
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प्रोफ़ेसर अमर कुमार सिंह देश के प्रमुख मनोवैज्ञानिकों में से एक रहे। वे देश के उन थोड़े से समाजशास्त्रियों में थे, जिन्होंने अकादमिक दुनिया से बाहर आकर समाचार-पत्रों में मानवीय विकास, धर्मनिरपेक्षता, महिलाओं, आदिवासियों, दलितों और वंचित समूहों की समस्याओं पर गम्भीर लेकिन लोकप्रिय शैली में लेखन किया। उनके इन लेखों ने राजनीतिक–सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप एवं विमर्श पैदा किया है। झारखंड आन्दोलन के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में डॉ. सिंह के लेखों में एक ख़ास क़िस्म का अनुभव है। डॉ. सिंह ने झारखंड विषयक समिति के सदस्य के रूप में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई, इस कारण आलेखों में एक ‘इनसाइडर’ जनदृष्टि की झलक मिलती है। डॉ. सिंह के नेतृत्व में झारखंड की आर्थिक–सामाजिक समस्याओं पर पिछले दशक में अनेक शोधकार्य हुए। इन शोध निष्कर्षों से आदिवासी भूमि, आदिवासी सशक्तिकरण, आदिवासी महिलाओं की स्थिति, झारखंड में सत्ता में विकेन्द्रीकरण के सवालों को व्यापक परिप्रेक्ष्य मिलता है।
डॉ. सिंह के आलेखों का यह प्रतिनिधि संग्रह है, जिसमें झारखंड सम्बन्धी उनकी चिन्ता तो ज़ाहिर होती है, साथ ही झारखंड की सम्भावनाओं, अन्तर्विरोधों और संकटों को समझने में मदद मिलती है। ये आलेख ‘प्रभात ख़बर’ तथा ‘सोशल चेंज’ में प्रकाशित हुए तथा इनसे झारखंड आन्दोलन में बहस को गति एवं दिशा मिली। आन्तरिक उपनिवेशवाद की अवधारणा को डॉ. सिंह ने झारखंड के उद्धरण के साथ राष्ट्रीय बहस का केन्द्र भी बनाया। विकास के साम्प्रतिक दृष्टिकोण में यह बहस कई शंकाओं एवं यथार्थों का रेखांकन करते हुए विकल्पों का क्षितिज खोलती है। डॉ. सिंह ने झारखंडी कार्यकर्ता के अनुभवों के आधार पर राजनीतिक विमर्श के अनेक अनछुए पहलुओं को उठाया है। आदिवासियों के प्रति वंचन एवं अन्याय उनके आलेखों के गहरे सरोकारों में हैं, लेकिन इनमें यह भी दृष्टि मौजूद है कि ग़ैर-आदिवासियों के साथ अन्याय न हो।
कई ज़मीनी विशेषताओं के कारण झारखंड नवनिर्माण से लेकर आज तक इन आलेखों का महत्त्व अपनी भूमिका में प्रमुखता से बना हुआ है।
Pracheen Bharat Ka Samajik Evam Arthik Itihas
- Author Name:
Om Prakash Prasad +1
- Book Type:

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Description:
परम्परागत इतिहास लेखन राजनीतिक उथल-पुथल तक ही सीमित था। परन्तु पिछले कुछ दशकों से अतीत के समाज में झाँकने की कोशिशें तेज़ हुई हैं। राजा-महाराजाओं की जगह वंचितजनों को केन्द्र में रखकर इतिहास लिखने के जो प्रयत्न इधर हो रहे हैं, उनमें ओम् प्रकाश प्रसाद का योगदान भी उल्लेखनीय है। इस पुस्तक में उन्होंने प्राचीन भारत की सामाजिक स्थिति, आर्थिक दशा और सांस्कृतिक उपलब्धियों पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला है। लेखक ने वर्णव्यवस्था और ब्राह्मण-क्षत्रिय संघर्ष के साथ-साथ प्राचीन भारत में शूद्रों की दशा पर भी विचार किया है और नगरीकरण तथा भारत-रोम व्यापार आदि के माध्यम से तत्कालीन आर्थिक हालात को सामने लाने का प्रयत्न किया है।
लेखक ने इतिहास के विपुल स्रोतों और शोध-सन्दर्भों का उपयोग करते हुए ‘प्राचीन भारत का सामाजिक और आर्थिक इतिहास’ को व्यापक जानकारियों वाला बहुपयोगी ग्रन्थ बनाने का प्रयत्न किया है। कोई दो हज़ार वर्षों के भारतीय जनजीवन को जानने-समझने के लिए यह एक ज़रूरी पुस्तक है।
Apane Bheetar Ka Meghdoot
- Author Name:
Amarendra Khatua
- Book Type:

- Description: " ‘आत्मा बेचारी कितनी गहराई में होती है हाड़-मांस-चर्म की पोशाक पहन, इंद्रियों का साम्राज्य बना सामने की दुनिया में खुद को प्रकट और नामित कर।’ ‘याद रखो जो सुख का है वह सबका है जो दु:ख का है सिर्फ अपना है।’ ‘वजह हो या न हो मेरी कविता में मेरे समय के और बाद के हर कवि की कविता के अणुओं और परमाणुओं में हो प्रचुर शक्ति।’ ‘अपनी अंगिक असफलता समझने को कवि के पास नहीं होते शब्द।’ ‘अभव के इस चकित महापर्व से ही तो जन्म लेते हैं हमारे अल्पायु संबंध। ‘इतनी गहरी यातना को क्या घाव की तरह नहीं पहना जा सकता रोजाना की पोशाक के नीचे?’ "
Congress-Mukt Bharat
- Author Name:
Amit Bagaria
- Book Type:

- Description: अब 80 महीने से भी अधिक का समय बीत चुका है, जब भारतीय राजनीति की ‘वयोवृद्ध पार्टी’, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 2014 के चुनावों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी/एनडीए के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था। पाँच साल बाद 2019 में मोदी ने अपने नेतृत्व में बीजेपी/एनडीए को उससे भी बड़ी जीत दिलाई, भले ही कांग्रेस को इस बार कुछ अधिक सीटें मिलीं। अगस्त 2019 में ‘इंडिया टुडे’ के सर्वे में 57.5 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कांग्रेस अपने अंत की ओर बढ़ रही है, 71.4 प्रतिशत ने कहा कि भारतीय मतदाताओं ने निर्णायक रूप से वंशवादी राजनीति को खारिज कर दिया है, और मात्र 32.6 प्रतिशत ने कहा कि सिर्फ एक गांधी ही पार्टी को पुनर्जीवित कर सकता है। जनवरी 2020 में कराए गए ऐसे ही सर्वे में 68.2 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कांग्रेस अपने सबसे बड़े नेतृत्व संकट से गुजर रही है। अगस्त 2020 में 55.3 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कांग्रेस अपने अंत के करीब है। लेकिन अब तक भी 135 साल पुरानी पार्टी के पुनर्जीवित होने के संकेत नहीं दिखते। 7 अगस्त, 2020 को 23 वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के अध्यक्ष पद समेत विभिन्न संगठनों के चुनाव कराए जाने की माँग के साथ ही नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इतने महीने बाद भी पार्टी में नेतृत्व के संकट को दूर करने की दिशा में कोई ठोस कदम उठता नहीं दिखता। ‘बागियों’ और ‘परिवार के तथाकथित वफादारों’ के बीच की दरार कांग्रेस पार्टी को लगातार डरा रही है।
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