Chhatrapati Sambhaji Maharaj
Author:
Dr. Ismail PathanPublisher:
Manovikas Prakashan LLPLanguage:
MarathiCategory:
Historical-fiction0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
डॉ. पठाण यांच्या संभाजी चरित्राचे वैशिष्ट्य काय?
या प्रश्नाचे उत्तर शोधण्याचा जेव्हा आम्ही प्रयत्न केला
तेव्हा आमच्या लक्षात आले की,
एका धर्मनिरपेक्षवादी मुस्लीम लेखकाने
लिहिलेले हे महाराष्ट्रातील पहिले संभाजी चरित्र आहे.
आज समाजातील काही विशिष्ट गट
संभाजी महाराजांनी दिलेल्या लढ्यास हिंदू विरुद्ध मुस्लीम
असा रंग देऊन तो धार्मिक लढा होता,
असे भासवून या राजास ‘धर्मवीर' म्हणून घोषित करीतअसताना
या ग्रंथाने या घोषणेला छेद दिला आहे.
औरंगजेबाने सुरु केलेले हे युद्ध
खऱ्या अर्थाने साम्राज्यवादी होते व त्याला विरोध करून
त्याच्याशी लढणाऱ्या मराठ्यांचे युद्ध हे त्याच अर्थाने स्वातंत्र्यवादी होते.
इथे हिंदू विरुद्ध मुस्लीम असा धर्माचा काही प्रश्नच निर्माण होत नाही,
हे ऐतिहासिक सत्य डॉ. पठाण यांच्या या ग्रंथातून दृग्गोचर होते आहे आणि
हेच सत्यकथन या ग्रंथाचे यश आहे असे आम्हांस वाटते.
- डॉ. जयसिंगराव पवार
ज्येष्ठ इतिहासकार
Chhatrapati Sambhaji Maharaj | Dr. Ismail Pathan
छत्रपती संभाजी महाराज । डॉ. इस्माईल पठाण
ISBN: 9789363746237
Pages: 320
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Rahul Sankrityayan
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- Description: ‘कनैला की कथा’ ग्राम केन्द्रित जनपदीय इतिहास को सँजोने का अन्यतम उदाहरण है। सभ्यता–संस्कृति की प्राचीनता ने भारत को इतिहास की विशिष्ट विरासत सौंपी है। अतीत के प्रसिद्ध स्थान और स्मारक ही इस विरासत के अकेले वाहक नहीं हैं। गाँव-गाँव में यह विरासत बिखरी पड़ी है। हाँ, यह अवश्य हुआ है कि प्रायः अज्ञानता और उदासीनता के कारण यह विरासत उपेक्षित पड़ी रही और समय गुजरने के साथ ओझल होती चली गई। यह पुस्तक लिखकर राहुल सांकृत्यायन ने उस विरासत के एक हिस्से को अन्धकार से बाहर निकाला और वह रास्ता दिखाया जिस पर चलकर अन्य ग्रामों–कस्बों की कथाएँ भी सँजोई जा सकती हैं, जिससे हमारा इतिहास समृद्ध हो सकता है। इस पुस्तक में राहुल ने अपने पितृग्राम कनैला का ऐतिहासिक-भौगोलिक चित्र प्रस्तुत किया है, जिसका एक सिरा ईसा से तेरह सौ वर्ष पूर्व से जुड़ता है तो दूसरा सिरा बीसवीं सदी के उत्तरार्ध से। इतनी लम्बी कालावधि को कथा के रूप में समेटते हुए स्थानीय सभ्यता-संस्कृति की ऐतिहासिकता का पूरा ध्यान रखा गया है। इस तरह जो चित्र उभरता है वह पाठक को सामाजिक-सांस्कृतिक रूपान्तरों की एक दिलचस्प शृंखला से रू-ब-रू कराता है। वस्तुतः अपनी दूसरी कृतियों की तरह राहुल ने ‘कनैला की कथा’ में भी लेखन का एक अलग ही प्रतिमान रचा है। इतिहास और कथा का जैसा रोचक संयोग इस पुस्तक में घटित हुआ है वैसा किसी और कृति में देख पाना दुर्लभ है।
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