Chandayan Vol. 1-2
Author:
Shyam Manohar PandeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 1432
₹
1790
Unavailable
चंदायन हिजरी 781 (1379 ई.) की रचना है। इसकी रचना मौलाना दाऊद ने फीरोज़शाह तुगलक के युग में की थी। चंदायन काव्य की दृष्टि से ही नहीं, सांस्कृतिक और भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। चंदायन की कथा का मूल स्रोत लोरिकी, लोरिकायन या चनैनी है। ये तीनों नाम एक ही लोक महाकाव्य के हैं। लोरिकी को ही चनैनी भी कहा जाता है। अवधी क्षेत्र में चनैनी इस महाकाव्य को नायिका चनवा (चंदा ) के नाम पर दिया गया है। चंदायन के कवि मौलाना दाऊद ने लोक महाकाव्य से कथा लेकर चंदा का नख-शिख, नगर वर्णन, बारहमासा में विरह का गम्भीर चित्र जोड़कर इस काव्य को एक श्रेष्ठ साहित्यिक काव्य बना दिया है। चंदायन के नाम से अब हिन्दी साहित्य के विद्यार्थी अपरिचित नहीं रह गये हैं। हिन्दी और अंग्रेजी में लिखे गये निबन्धों में मौलाना दाऊद की कृति चंदायन पर विस्तार से विचार किया है।
ISBN: 9789389742367
Pages: 480
Avg Reading Time: 16 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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“ज्ञानेन्द्रपति ने यदि कोई सभ्यता-विमर्श सम्भव किया है तो उसे समकालीन सन्दर्भों में, वैश्वीकरण की चपेट में आ चुके समाज के जीवन का भाष्य जानकर समझा जा सकता है। प्रसाद-निराला-मुक्तिबोध हों या ज्ञानेन्द्रपति, भिन्न-भिन्न सन्दर्भों में ये सभी कवि अपने समाज में वर्चस्व की शक्तियों का चारित्रिक भाष्य ही रचते हैं। ज्ञानेन्द्रपति इतिहास, मिथक या फैंटेसी की जटिल पद्धतियों की तरफ जाने के बजाय ठेठ विवरण की यथार्थवादी पद्धति को अपनाते हैं। वे पर्यवेक्षण को ही सीधे, कविता में बदल देते हैं। उनकी कविता, देखे गए दृश्य की कविता है, यथार्थ का प्रत्यक्ष आख्यान है। ज्ञानेन्द्रपति के प्रेक्षण की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि वे किसी दृश्य को फोटोग्राफिक प्रेक्षण की तरह निर्विकार या प्रकृतिवादी तरीके से नहीं, बल्कि उसकी समूची आन्तरिक द्वंद्वात्मकता में पकड़ते हैं। इस प्रयत्न में दृश्य के परस्पर पूरक या विरुद्धार्थी आशयों को अगल-बगल रखकर उनके बीच उत्पन्न विसंगति को उभार देते हैं। यह विसंगति अपने आप में एक काव्यात्मक आशय बन जाती है। इस तरह वे विलोम प्रत्ययों के युग्म से कविता का कथ्य निर्मित करते हैं। ज्ञानेन्द्रपति के लिए विडम्बना का स्रोत भाषा नहीं, जीवन है जिसे वे प्रेक्षण के जरिये जीवन से उठाते हैं, सिर्फ शब्दों के कौतुक से उसे उत्पन्न नहीं करते। उनके यहाँ विडम्बना बिम्ब में प्रत्यक्ष होती है, वक्र कथन में नहीं। वह नई कविता के दौर में लक्षित किए गये ‘शरारतपूर्ण सह-संयोजन’ सरीखा भी नहीं, बल्कि सचेत समाज-प्रेक्षण है।”
—जयप्रकाश, सुपरिचित आलोचक
Niyati Ka Yayawar
- Author Name:
Harish Anand
- Book Type:

- Description: कोई भी रचनाकार अन्ततः अपने समय को समझने और उसे व्याख्यायित करने का शब्दयोग ही तो साधता है। ‘अपने समय’ की परिभाषा हर रचनाकार के लिए अलग-अलग होती है। ...यही ‘समय’ कवि हरीश आनंद की रचनाओं का बीज शब्द है। ‘नियति का यायावर’ संग्रह की कविताओं में समय के अनेक आयामों से साक्षात्कार किया गया है। इस प्रक्रिया में कवि व्यक्ति और समाज के बीच मंडित विखंडित सभ्यता के प्रारूपों का विश्लेषण करता रहता है। ‘यायावर’ अज्ञेय का प्रिय शब्द है।...और हरीश आनंद का भी। उन्हें क्षण की चेतावनी याद रहती है ‘अरे यायावर, रहेगा याद!’ हरीश की कविताएँ वस्तुतः वे सघन अन्तःयात्राएँ हैं जिनकी कुछ स्मृतियाँ शब्दों में समा गई हैं। यही कारण है कि ये कविताएँ विवरणों के अरण्य में भटकती नहीं हैं। संकेतों, बिम्बों, अनुभूतियों व व्यंजनाओं से समृद्ध ये कविताएँ आत्म से आत्मीय संवाद स्थापित करती हैं। इनमें विषय-वैविध्य है। जीवन-दर्शन की अबूझ सच्चाइयों से लेकर उत्तर-आधुनिकता की सभ्यता-समीक्षा तक हरीश आनंद की कविताओं की आवाजाही है। हरीश आनंद का कवि स्वभाव है कि वे शब्दों को उनके प्रचलित अर्थों से विचलित करते हुए नए निहितार्थों का उत्खनन करते हैं। ‘अर्थ’ कविता में वे शब्दों की ओर से एक गुहार लगाते हैं कि ‘हम तुम्हारी कुंठाओं की/परिभाषाएँ नहीं हैं।’ कवि के स्वभाव में दार्शनिकता सहज रूप से समाविष्ट है, अमूर्तन और पारिभाषिक पुनर्कथन वाले अर्थ में नहीं। हरीश आनंद की दार्शनिकता जीवन की सार्थकता का अनुसंधान करती है। ‘नियति का यायावर’ इसलिए भी एक महत्त्वपूर्ण कविता-संग्रह है क्योंकि इसमें संवेदनाओं के कई मन्द्र स्वर सुनने को मिलते हैं। कवि ने रंगमंचीय सन्दर्भों का भी अच्छा उपयोग किया है। यह सब सम्भव हुआ है एक प्राणवान, अर्थसम्पन्न और अनवरुद्ध भाषा में। हरीश आनंद शब्दों में निहित गतिशीलता व अर्थसम्भावना के पारखी रचनाकार हैं। स्वाभाविक रूप से यह संग्रह किसी भी पाठक का सहचर बन सकता है।
Chaunsath Sutra Solah Abhiman : Kamsutra Se Prerit
- Author Name:
Avinash Mishra
- Book Type:

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Description:
अविनाश मिश्र कविता के अति विशिष्ट युवा हस्ताक्षर हैं। इस संग्रह में शामिल कविताएँ एक लम्बी कविता के दो खंडों के अलग-अलग चरणों के रूप में प्रस्तुत की गई हैं। कवि प्रेम में आता है और साथ लेकर आता है—‘कामसूत्र’। ‘वात्स्यायन’ कृत कामसूत्र। इसी संयोग से इन कविताओं का जन्म होता है। कवि प्रेम और कामरत प्रेमी भी रहता है और दृष्टाकवि भी। वात्स्यायन की शास्त्रीय शैली उसे शायद अपने विराम, और अल्पविराम पाने, वहाँ रुकने और अपने आप को, अपनी प्रिया को, और अपने प्रेम को देखने की मुहलत पाना आसान कर देती है, जहाँ ये कविताएँ आती हैं और होती हैं। यह शैली न होती तो वह प्रेम में डूबने, उसमें रहने, उसे जीने-भोगने की प्रक्रिया को शायद इस संलग्नता और इस तटस्थता से एक साथ नहीं देख पाता।
कोई इन कविताओं को सायास रचा गया कौतुक भी कह सकता है, लेकिन इनका आना और होना इन कविताओं के शब्दों और शब्दान्तरालों में इतना मुखर है कि आप इनकी अनायासता और प्रामाणिकता से निगाह नहीं बचा सकते। ये उतनी ही प्राकृतिक कविताएँ हैं, जितना प्राकृतिक प्रेम होता है, जितना प्राकृतिक काम होता है।
काम की चौंसठ कलाएँ और स्त्री के सोलह शृंगार– इस संग्रह की 80 कविताओं के आलम्बन यही हैं।
इन कविताओं को पढ़ना प्रेम में होने, उसे जीने, अनुभूत करने की प्रक्रिया से गुज़रने या स्मृति-आस्वाद को दुहराने जैसा है। कवि का अनुभव-सत्य पाठक के जीवनानुभव के आस्वाद को नया अर्थ देने जैसा है।
किताब संग्रहणीय भी है, सुन्दर प्रेम-उपहार भी।
Jidhar Kuchh Nahin
- Author Name:
Devi Prasad Mishra
- Book Type:

- Description: ‘जिधर कुछ नहीं’ की विशिष्टता यह नहीं है कि यह हिन्दी की सबसे लम्बी कविताओं में एक है बल्कि यह कि यह एक नई तरकीब से लिखी गई है और वैकल्पिक नागरिकता को आविष्कृत करने के लिए एक दुष्कर और लम्बी अन्तर्यात्रा पर निकली हुई है। यह वैकल्पिक सृष्टि को खोजना तो है लेकिन इसके लिए भारतीय पृथ्वी के कोलाहल, वैषम्य और क़ैद से गुज़रने से कोई निज़ात नहीं है। दरअस्ल, जो शोर, दिग्भ्रम, अमर्ष, धुंध और अँधेरा मौजूद है, उसी के पीछे और नीचे वैकल्पिक नागरिकता छिपी हुई है। तो खोज का प्रश्न राजनीतिक प्रबोध और बड़ी समाजार्थिक परिकल्पना से जुड़ा हुआ है। देवी एक ऐसी सामाजिक सुरंग से गुज़रने और पाठक को गुज़ारने का चयन करते हैं जिसके कितने ही स्टेशन और अड्डे ढहा दिये गये हैं या जला दिये गये हैं। यह कठिन समय में लिखी गई कविता है जब राज्य के चरित्र को बदल दिया गया है, जब उत्तर-सत्य का बोलबाला है, जब बड़ी संकल्पनाएँ नष्ट की जा रही हैं, जब ज्ञान की जगह अंधी आस्था को स्थापित किया जा रहा है, जब अपराध को वैधता दी जा रही है, जब सामाजिक रचना के लिए मानवीय अन्तर्दृष्टि की जगह घृणादृष्टि ले रही है, जब ज्ञान को संदेहास्पद बनाया जा रहा है और इतिहास का विभाजक पाठ तैयार किया जा रहा है। उजाड़ने का यह काम भले ही बहुत क्रूर तरीक़े से किया गया दिख रहा हो, इस अमानवीय और नागरिकता विरोध की दीर्घ और सत्तात्मक परंपरा है। इस रौशनी में देखने पर यह साफ़ होगा कि यह कविता किसी भी तरह से प्रतिक्रियात्मक संरचना भर नहीं है बल्कि एक दस्तावेज़ी और ऐतिहासिक कामकाज है जिसकी प्रासंगिकता असमाप्य है क्योंकि ताक़त का दुरुपयोग ख़त्म होता नहीं दिखता। इस कविता में देवी कहन का अप्रतिम हुनर दिखाते हैं, हिन्दवी की तमाम प्रविधियों से लेन-देन शुरू कर देते हैं और इस कारोबार की अनायासता में एक नयी काव्य तकनीक हासिल कर लेते हैं। वह अनुभव की विपुलता से गुज़रते हुए कितनी ही बार रेटरिक को काव्यात्मक विज़न और परानुभूति की बड़ी सूझ में बदल देते हैं। इस महाकविता का पाठ उतना कठिन नहीं है जितना वह अपनी संरचना में दिखता है जो भले ही समकालीनता के कोने में किये गये एकांतिक दुस्साहस का नतीजा हो या किसी फक्कड़ के हाथ लग जाने वाली मौलिकता की जादुई भभूत। वैकल्पिक की खोज में भटकती कविता की परिकल्पना और संरचना दोनों अपूर्व हैं जो भारतीय और विश्व कविता के बीच गर्दन बहुत ऊँची करके खड़ी हो सकती हैं। किताब के अन्त में आता उत्तर कथन इस कविता के आलोक में राजकीय दमन और रचना के बीच के जटिल सम्बन्ध को जिस तरह से देखता है, हिन्दी विचार जगत में वह विरल है।’
Sulagti Huyi Chingari
- Author Name:
Dilip Kumar Chauhan 'Baaghi'
- Book Type:

- Description: लोकप्रिय कवि दिलीप कुमार चौहान 'बाग़ी' की कृति 'चाँद में भी दाग़ है' को पाठकों का असीम प्यार मिला । इस कृति में जीवन के उल्लास, उमंग एवं रोमानिया का ऐसा संयोजन था कि वह कृति सबके मन को स्पंदित कर गई। ' सुलगती हुई चिंगारी ' उसी श्रृंखला की अगली कड़ी है , जो अपने कहन एवं शिल्प में अपनी पहली कृत से सर्वथा भिन्न एवं नवीन है। इसमें पाठक को जीवन के विभिन्न अनुभवों, प्रश्नों एवं चुनौतियों से जुड़ी कविताएं पढ़ने को मिलेंगी। सुलगली हुई चिंगारी संकलन की कविताएं जितना खुद से प्रश्न करती हैं उतना ही वह पाठकों के समक्ष भी प्रश्न खड़ी करती हैं। भाषा के प्रवाह एवं शैली की सहजता में कवि ने इस जीवन और जीवन से परे के सत्य को बहुत ही स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत किया है । यह एक ही भाव एवं शैली में लिखी गई कवि दिलीप कुमार चौहान की अनूठी कृति है। इस संकलन का हर छंद एक दूसरे से जुड़ते हुए भी अपना स्वतंत्र अर्थ लिए हुए हैं। कवि दिलीप कुमार चौहान की संवेदनाएं, विचारों, भावों एवं कल्पनाओं की चिंगारी किस हद तक ज्ञान की लौ के रूप में प्रस्फुटित होकर समाज को प्रकाशमान करती है इसको परखने के लिए पाठकों को यह कृति अवश्य पढ़नी चाहिए।
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