Manohar Shyam Joshi
Author:
Prabhat RanjanPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Ratings
Price: ₹ 140
₹
175
Available
मनोहर श्याम जोशी ने अनेक फिल्मों के लिए पटकथा और संवाद-लेखन का काम किया। यहाँ उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसका एक कारण शायद यह भी है कि सिनेमा में पूरी तरह निर्देशक ही माध्यम होता है और उसमें लेखक की कहानी को निर्देशक अपने किसी खास कोण से सिनेमा में ढालता है और इस क्रम में लेखक का संदेश कई बार कहीं पीछे छूट जाता है। ‘हे राम’, ‘भ्रष्टाचार’, ‘पापा कहते हैं’ उनकी लिखी कुछ ऐसी फिल्में हैं, जिनकी चर्चा की जा सकती है।
मनोहर श्याम जोशी का व्यक्तित्व बहुआयामी कहा जा सकता है। उनके इस बहुआयामी व्यक्तित्व का केंद्रीय आयाम लेखन था। उनको एक ऐसे लेखक के रूप में याद किया जाएगा, जो अनेक माध्यमों में लेखन की कसौटी पर खरे उतरे। यही कारण है कि हिंदी पत्रकारों-लेखकों में उनका व्यक्तित्व सबसे अलग दिखाई देता है। वे एक ऐसे पत्रकार थे, जिनका पत्रकारिता और साहित्य से समान नाता रहा।
हमें विश्वास है कि विश्वविद्यालय द्वारा मूर्धन्य पत्रकार-संपादकों की इस मोनोग्राफ श्रृंखला से पत्रकार जगत् और पत्रकारिता के विद्यार्थी लाभान्वित होंगे और विरासत की इस समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रवृत्त होंगे।
ISBN: 9789350482568
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: Only an awakened person can be a true leader. He will share his experiences rather than imposing them on others. A leader should have clarity and capacity to explain any situation before the others and give them freedom to choose according to their own understanding. That knowledge is a true knowledge which is able to eradicate completely the venomous diseases, like unrealistic desires, anger, laziness, greed, pride, tension and depression from its root. When the source of the problem has been identified and salvaged, the solution comes automatically because alertness is the only key and the final solution to any problem. A person can truly love only when from the core of his heart, he eradicates all negativities, jealousy, hatred, inferiority complex, false hopes and fills himself with immense love. If a person really desires to become strong, there should be a balance and synchronisation of all the three qualities — traditions, thoughts and behavior. —from this book These gems of thoughts will inspire you and transform your life, thus giving contentment, satisfaction, happiness and all the good virtues.
Stritvavadi Vimarsh : Samaj Aur Sahitya
- Author Name:
Kshama Sharma
- Book Type:

- Description: किसी बुज़ुर्ग के पाँव छुइए और आशीर्वाद पाइए—‘मेरे पूत बने रहें,’ या कि ‘अखंड सौभाग्यवती रहो,’ यानी कि जब मरो तो सुहागिन मरो। यह जीवन का नहीं, मृत्यु का वरदान है। इस प्रकार के वरदानों से हमारा प्राचीन साहित्य भरा पड़ा है। जहाँ एक ओर नायिका–भेद पढ़ाए जाते हैं तो दूसरी ओर स्त्रियों से बचने के तरीक़े। ‘औरत पर कभी भरोसा न करो।’—यह इन महान ग्रन्थों का सूत्र–वाक्य है। स्त्रियों और दलितों से इस समय का समाज इतना आक्रान्त है कि उन्हें पीटने का कोई तरीक़ा नहीं छोड़ता। चूँकि सारे विधान, सारी संहिताएँ, सारे नियम, धर्म, क़ानून पुरुषों ने रचे हैं, इसलिए हर क़ानून, हर रीति–रिवाज और परम्परा का पलड़ा उनके पक्ष में झुका हुआ है। माफ़ कीजिए, साहित्य भी इससे अछूता नहीं है। एक भारतीय नारी जो त्यागमयी है, सती–सावित्री है, जिसके मुँह में ज़ुबान नहीं है, जो सबसे पहले उठती है, दिन–भर घर की चक्की में पिसती है, सबसे बाद में सोती है, जो कभी शिकायत नहीं करती और इसी के बरक्स एक पश्चिमी नारी जो स्कर्ट पहनती है, सिगरेट पीती है, मर्दों के साथ क्लबों में नाचती है, एक नहीं, बहुत सारे प्रेमी पालती है—इन दो स्टीरियो टाइप में हर कठिन परिस्थिति के बाद भारतीय नारी की विजय होती है और पश्चिमी संस्कृति की प्रतीक नारी या तो किसी की गोली का शिकार होती है अथवा भारतीय नारी अपने पति, जो इस ‘कुलटा’ द्वारा फँसा लिया गया था, के द्वारा झोंटा पकड़कर बाहर निकाल दी जाती है। जितनी दूर तक उसे घसीटा जाता है, उतनी ही दूर और देर तक पश्चिमी संस्कृति पर भारतीय संस्कृति की विजय की तालियाँ आप सुन सकते हैं। ऐसे ही समाज और साहित्य के विभिन्न आयामों से गुज़रती यह पुस्तक स्त्री-परिदृश्य में एक बड़े विमर्श को जन्म देती है, और कई अनदेखी चीज़ों को देखने की दृष्टि भी। आज के दौर में एक बेहद ही महत्त्वपूर्ण कृति है ‘स्त्रीवादी-विमर्श : समाज और साहित्य’।
Sanlap
- Author Name:
Bhagwandas Morwal
- Book Type:

- Description: अपनी साफ़गोई, कथा-विषयों की विविधता और अपनी रचनाओं के लिए श्रम-साध्य शोध और उद्यमिता के लिए सुपरिचित कथाकार भगवानदास मोरवाल इस पुस्तक में उन मुद्दों पर बात कर रहे हैं, जिनका ताल्लुक उनके लेखन, उनकी पुस्तकों, और पात्रों के अलावा हमारे समय, समाज और हिन्दी साहित्य के परिदृश्य से भी है। इस पुस्तक में उनके साक्षात्कार संकलित हैं। ये साक्षात्कार न सिर्फ़ उनके बारे में बताते हैं, बल्कि इन प्रश्नोत्तरों के माध्यम से भारतीय समाज के विरोधाभासों, उसकी बेचैनियों और बतौर एक नागरिक लेखक की ज़िम्मेदारियों पर भी रौशनी डालते हैं। ‘काला पहाड़’ जैसे चर्चित उपन्यास से हिन्दी क्षितिज पर उभरे मोरवाल यहाँ इसके अलावा अन्य उपन्यासों की रचना-प्रक्रिया और उनके साथ जुड़े अपने सरोकारों को भी रेखांकित करते हैं। अपने समाज और ख़ासतौर पर, मेवात क्षेत्र की सामाजिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक बनावट से उनका गहरा परिचय रहा है, जो उनके कई उपन्यासों में भी प्रकट हुआ है, यहाँ इस बारे में वे और विस्तार से बात करते हैं; समाज और साहित्य के विभिन्न मुद्दों पर उनकी बेलाग अभिव्यक्ति तो इन साक्षात्कारों का आकर्षण है ही।
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