LAHAREN
Author:
Gayatri GuptaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Unavailable
"मानव मन एक समुद्र की भाति है,
इसमें लहरें उठती रहती हैं; कभी तट पर आकर सिर धुन-धुनकर वापस चली जाती हैं, कभी अपने अंदर ही समा जाती हैं। कभी इनमें कलयुग आता है, कभी सतयुग आता है। मनुष्य का हृदय कभी इन भावनाओं को स्पर्श नहीं कर पाता और कभी इनमें ओत-प्रोत हो जाता है, कभी प्राकृतिक सौंदर्य मन को लुभा लेता है और कभी सांसारिक वासनाओं में फँस दु:ख-सुख आते हैं | यही वे लहें है जो पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत हैं।"
ISBN: 9789392573149
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: जहाँ तक 'हिन्दू संस्कृति' का प्रश्न है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरोधाओं ने जिस रूप में इसकी व्याख्या की, पहले भी लिखा जा चुका है कि वह बहुत ही संकुचित और विकृत व्याख्या है, जो लोगों में इस संस्कृति के प्रति एक भ्रम पैदा करती है। जिन विद्वानों ने वास्तविकता पर आधारित तथ्यपरक व्याख्या की, उनको यह कहकर सिरे से ख़ारिज कर दिया गया कि उन पर पश्चिम के विद्वानों का प्रभाव है और वे एकांगी दृष्टि से संस्कृति को देखते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि वेदों से प्रारम्भ कर भारतीय संस्कृति का समग्र रूप मनुष्य की समस्त जीवन-शैली के अच्छे-बुरे पक्ष को ज़ाहिर करता है, जो समय के अनुसार बदलती रही है। हमारे देश में एक प्रचलन यह भी रहा है कि हम प्राचीन धार्मिक ग्रन्थों पर तिलक-चंदन चढ़ाते हैं, उनकी पूजा करते हैं, पर उन्हें पढ़ते नहीं हैं। पढ़ते तो संस्कृति के नाम पर जो दुष्प्रचार किया जाता रहा है, वह सम्भव नहीं था।
Devrukhchya Savitribai
- Author Name:
Abhijit Hegshetye
- Book Type:

- Description: इंदिराबाई हळबें यांच्या आयुष्यात बरेच योगायोग आले. त्यातून त्यांच्या जीवनाला एक अनोखे वळण लागत गेले. गांधीविचाराच्या, सेवादलाच्या, सोशालिस्ट विचाराच्या हळुवार लाटा त्यांच्या जीवनाला स्पर्श करत गेल्या; पण त्यांचे वेगवेगळ्या वेळचे निर्णय त्यांचे स्वत:चे होते. 1940 आणि 1950 ही दोन दशके त्यांच्या जीवनात अनेक उलथापालथी होत राहिल्या. त्यात यत्किंचितही खचून न जाता स्वत:ला सावरण्याचे साहस हे त्यांचे होते. ते उद्भवले त्यांच्या आत्मबळातून आणि सद्सदविवेकातून, त्यांच्या मानव- वात्सल्यातून आणि कार्यश्रद्धेतून. म्हणून त्यांचा स्वत:च्या आयुष्याला नवे वळण देणारा प्रत्येक निर्णय अगदी सहजासहजी, ऑरगॅनिकली, जितक्या सहजतेने झाडांना पालवी फुटते, तितक्या खळखळाटाशिवायच्या नि:शब्दतेत घेतला गेला. ही त्यांची किमया, इंदिराबाईंना त्यांच्या काळातील स्त्रीवादी चळवळीसाठी एक अत्यंत महत्त्वाचा आदर्श बनवते, जणू त्या देवरुखच्या सावित्रीबाईच! एका कर्तृत्ववान स्त्रीची ही प्रेरक गाथा अभिजित हेगशेट्ये यांनी तितक्याच ताकदीने आपल्यासमोर ठेवली आहे. ती प्रत्येकाने एकदा तरी वाचायलाच हवी. पद्मश्री डॉ. गणेश देवी भाषाशास्त्रज्ञ आणि साहित्य समीक्षक Devrukhchya Savitribai | Abhijeet Hegshetye देवरुखच्या सावित्रीबाई | अभिजित हेगशेट्ये संपादन : विलास पाटील
Stree Kavita : Pahachan Aur Dwandwa -2-Hardcover
- Author Name:
Rekha Sethi
- Book Type:

- Description: एक मानवीय इकाई के रूप में स्त्री और पुरुष, दोनों अपने समय व यथार्थ के साझे भोक्ता हैं लेकिन परिस्थितियाँ समान होने पर भी स्त्री-दृष्टि दमन के जिन अनुभवों व मन:स्थितियों से बन रही है, मुक्ति की आकांक्षा जिस तरह करवटें बदल रही है, उसमें यह स्वाभाविक है कि साहित्यिक संरचना तथा आलोचना, दोनों की प्रणालियाँ बदलें। स्त्री-लेखन स्त्री की चिन्तनशील मनीषा के विकास का ही ग्राफ़ है जिससे सामाजिक इतिहास का मानचित्र गढ़ा जाता है और जेंडर तथा साहित्य पर हमारा दिशा-बोध निर्धारित होता है। भारतीय समाज में जाति एवं वर्ग की संरचना जेंडर की अवधारणा और स्त्री-अस्मिता को कई स्तरों पर प्रभावित करती है। स्त्री-कविता पर केन्द्रित प्रस्तुत अध्ययन जो कि तीन खंडों में संयोजित है, स्त्री-रचनाशीलता को समझने का उपक्रम है, उसका निष्कर्ष नहीं। पहले खंड, 'स्त्री-कविता : पक्ष और परिप्रेक्ष्य' में स्त्री-कविता की प्रस्तावना के साथ-साथ गगन गिल, कात्यायनी, अनामिका, सविता सिंह, नीलेश रघुवंशी, निर्मला पुतुल और सुशीला टाकभौरे पर विस्तृत लेख हैं। एक अर्थ में ये सभी वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य में विविध स्त्री-स्वरों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। उनकी कविता में स्त्री-पक्ष के साथ-साथ अन्य सभी पक्षों को आलोचना के केन्द्र में रखा गया है, जिससे स्त्री-कविता का बहुआयामी रूप उभरता है। दूसरा खंड, 'स्त्री-कविता : पहचान और द्वन्द्व' स्त्री-कविता की अवधारणा को लेकर स्त्री-पुरुष रचनाकारों से बातचीत पर आधारित है। इन रचनाकारों की बातों से उनकी कविताओं का मिलान करने पर उनके रचना-जगत को समझने में तो सहायता मिलती ही है, स्त्री-कविता सम्बन्धी उनकी सोच भी स्पष्ट होती है। स्त्री-कविता को लेकर स्त्री-दृष्टि और पुरुष-दृष्टि में जो साम्य और अन्तर है, उसे भी इन साक्षात्कारों में पढ़ा जा सकता है। तीसरा खंड, 'स्त्री-कविता : संचयन' के रूप में प्रस्तावित है...। इन सारे प्रयत्नों की सार्थकता इसी बात में है कि स्त्री-कविता के माध्यम से साहित्य और जेंडर के सम्बन्ध को समझते हुए मूल्यांकन की उदार कसौटियों का निर्माण हो सके जिसमें सबका स्वर शामिल हो।
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