Vishamta : Ek Punarvivechan
Author:
Amartya SenPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमर्त्य सेन की एक दार्शनिक रचना है—‘विषमता’। उनकी कई एक विश्व-प्रसिद्ध पुस्तकों के बीच इस रचना का शुमार उनकी सोच की कुंजी के बतौर होता है। निस्संदेह यह प्रोफेसर सेन की कुछ सर्वाधिक कठिन पुस्तकों में से भी एक है। कठिन यह इस अर्थ में नहीं है कि कोई लंबी-चौड़ी उलझी हुई लफ़्फ़ाज़ी इसमें की गई है, बल्कि इस अर्थ में कि स्वतंत्रता, समानता, विविधता आदि अवधारणाओं का प्रयोग यहाँ इतने व्यापक संदर्भों में हुआ है कि उनका आदी होने में किसी को भी काफी मेहनत करनी पड़ेगी।</p>
<p>समानता और स्वतंत्रता के बीच का विवाद इस सदी का एक महत्त्वपूर्ण दार्शनिक विवाद रहा है। शीतयुद्ध के चार दशकों ने तो इसे विश्व राजनीति के केंद्रीय विवाद का ही रूप दे दिया था। इस पुस्तक में प्रोफेसर सेन इस विवाद की तह में जाते हैं। समानतावादियों और स्वतंत्रतावादियों के मतों का विश्लेषण करते हुए प्रोफेसर सेन यह सिद्ध करते हैं कि इन दोनों के बीच विवाद दरअसल इस बात पर है ही नहीं कि मनुष्यों के बीच समानता होनी चाहिए या नहीं। विवाद तो इस बात पर है कि मनुष्यों के बीच समानता किस चीज की होनी चाहिए।</p>
<p>इस केंद्रीय प्रश्न ‘समानता किस चीज की?’ का जवाब खोजने के क्रम में प्रोफेसर सेन मनुष्यों के बीच मौजूद भारी विविधताओं को केंद्र में रखते हैं। अपंग व्यक्ति, गर्भवती स्त्री, कालाजार प्रभावित इलाकों में रहनेवाले आदिवासी या स्वेच्छया सारी सुख-सुविधाओं का त्याग कर जनता की सेवा करनेवाले सामाजिक कार्यकर्ता–सभी उनकी नजर में रहते हैं और मनुष्य की किसी भी गढ़ी-गढ़ाई परिभाषा से वे ठोस रूपाकार वाले मनुष्यों का कुछ खास भला होते नहीं देखते। उनका केंद्रीकरण आमतौर पर भिन्न-भिन्न लक्ष्यों के लिए प्रयास करने की मानवीय स्वतंत्रता पर और खासतौर पर विविध मूल्यों को अर्जित करने की अलग-अलग व्यक्तियों के सामर्थ्य पर है।</p>
<p>स्वतंत्रता और समानता को लेकर आपके विचार चाहे जो भी हों और प्रोफेसर सेन के विचारों से उनकी कोई संगति बैठती हो या न बैठती हो पर इसमें कोई संदेह नहीं कि इस विश्लेषण से गुजरने के बाद आपकी सोच का दायरा पहले से बढ़ चुका होगा।
ISBN: 9788119835713
Pages: 210
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Bhavan : Sahitya Aur Anya Kalaon Ka Anushilan
- Author Name:
Mukund Laath
- Book Type:

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Description:
मुकुन्द लाठ भारत के उन बहुत थोड़े लेखकों में से एक हैं जिनके यहाँ साहित्य और कलाओं को लेकर ऐसी गहरी और सूक्ष्म दृष्टि है जो प्राचीन साहित्य और शास्त्र, दर्शन और चिन्तन, संगीत और नाट्य, कविता, परम्परा और आधुनिकता आदि सबको एक संग्रथित समावेश में शामिल कर रूपायित होती रही है। वह परम्परा से जैसे कि आधुनिकता से भी अनाक्रान्त रहकर एक प्रश्नवाचक दूरी रखती है। साहित्य और कलाओं के स्वरूप पर ऐसा मौलिक चिन्तन, कुछ कृतियों की सूक्ष्म समीक्षा, हिन्दी में बहुत कम देखने को मिलता है। हिन्दी में पहले ऐसे लोग थे, जैसे कि वासुदेवशरण अग्रवाल, मोतीचन्द्र, हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि, जो ऐसी समावेशी और आधुनिकता के लिए भेदक दृष्टि रखते थे। मुकुन्द लाठ उस परम्परा में ही दशकों से सक्रिय रहे हैं और उनकी यह संचयिता हम बहुत उत्साह और उम्मीद के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं कि अपने समय, समाज, साहित्य और कलाओं को समझने की यह दृष्टि हिन्दी के विचार-जगत में हस्तक्षेप की तरह पहचानी-गुनी जाएगी। यह निश्चय ही हिन्दी की विचार-सम्पदा का अपेक्षाकृत अब तक का जाना विस्तार है।
—अशोक वाजपेयी
Shubh Vivah
- Author Name:
Rajni Borar
- Book Type:

- Description: Indian weddings are known for their celebration of tradition, rituals and ceremonies. The book with its distinctive narrative style outlines, compiles, streamlines and simplifies the explanation of rituals and their significance in a memorable way to turn the wedding into an unforgettable event for you, your family and your guests. The book with its well written reader friendly step by step planning guide, is detailing every aspect of wedding from selecting a hall to a mehndi design. In addition, the readers will find a special section on Parotna, the hindi word for assimilation of the new bride/groom into the family fold. There is even a practical section on Jewellery, registration of marriage and other events. This book effectively translates old traditions into modern day in a chronological order, all the while taking a refreshingly scathing look at the ostentatiousness of Indian weddings. The usefulness and immense practicality of the book becomes self evident as the wedding moves forward and culminates into a memorable saga for all.
IKKISVIN SEERHI
- Author Name:
Ravindra Kumar
- Book Type:

- Description: ‘‘रविन्द्र कुमार जी की कविताओं में जीवन के विविध रंग मिले हुए हैं। ‘इक्कीसवीं सीढ़ी’, ‘चौराहा’, ‘जड़ से जूझना, लहर से नहीं’, ‘ये चीख’, ‘सियार से भेड़ तक’, ‘सीमित-जीवन’, ‘मन’, ‘बढ़ते चंगुल’ तथा ‘धरती की कोख में’ आदि कविताएँ इन्हीं विविध रंगों की बानगी हैं। कवि के पास जीवन का व्यापक अनुभव है और सच पूछा जाए तो कविता की व्यापकता जीवन की व्यापकता के समानांतर ही चलती है; और चलनी भी चाहिए। रविन्द्र कुमारजी की कविताएँ किसी वाद या विचारधारा की गुलाम न होकर एक शुद्ध झरने की तरह हैं।’’ ‘‘संग्रह की कविता ‘एक सपना’ में कवि के शब्द—‘‘एक सपना/जो मुझे बार-बार कचोटता/मेरे मन को मरोड़ता/जल की सतह के ऊपर नीचे डुबोता’’ और ‘‘कोई ध्वनि घनघनाकर धुएँ सा देता/और अंत में/एक हल्की/छोटी सी ज्वाला दे/खत्म हो जाता/ ...कितना अच्छा होता/ जो तू रहता अभी तक!’’—देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलामजी के उन शब्दों की याद दिलाती है कि सपने वे नहीं होते, जो सोते हुए देखते हैं वरन् सपने वे होते हैं, जो आपको सोने नहीं देते। इसलिए कवि हमेशा सपनों के साथ रहना चाहता है। पाठक को थोड़ी गहराई में जाकर ही ऐसी कविताओं का भावार्थ समझ में आएगा। जीवन की जटिलताओं के बीच भी उम्मीद की कुछ हरियाली सदा मौजूद रहती है और जीवन में कुछ हासिल करने का, सपनों को पाने का यही रास्ता है। व्यक्ति के लिए भी, समाज के लिए भी और देश के लिए भी।’’ —प्रेमपाल शर्मा वरिष्ठ साहित्यकार, पूर्व संयुक्त सचिव, रेल मंत्रालय, नई दिल्ली
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