Bhartiya Sanskriti Aur Hindutva
Author:
Geetesh SharmaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
गीतेश शर्मा जिन्हें हम उनकी अत्यन्त लोकप्रिय पुस्तक ‘धर्म के नाम पर’ के लिए जानते हैं, देश के उन कुछेक चिन्तकों में थे जिन्हें धर्म और ईश्वर की समाज तथा मनुष्य-विरोधी अवधारणाओं पर ख़ामोश रहना कभी स्वीकार नहीं हुआ। आज जब मुख्यधारा के प्रगतिशील चिन्तन ने सर्वधर्म समभाव के नाम पर हर तरह के धार्मिक अनाचार से आँखें फेर ली हैं, और यही प्रगतिशील का प्रमुख लक्षण हो गया है। गीतेश जी का लेखन हमारे लिए मार्गदर्शन की तरह है।</p>
<p>उन्हें यह देखकर अफ़सोस होता था कि हिन्दू कट्टरपन्थ का खुला विरोध करनेवाले लोग भी इस्लाम तथा अन्य धर्मों की धार्मिक-सामाजिक जड़ता पर एकदम चुप हो जाते हैं, और इस घातक तुष्टीकरण को धर्मनिरपेक्षता कहते हैं; लेकिन वह हिन्दुत्ववादियों के इस प्रचार से भी सहमत नहीं कि भारत के मुसलमानों ने अपने देश और समाज के लिए कुछ नहीं किया, कि वे भारतीयता को स्वीकार नहीं करते। तमाम तरह के सुधारवादी आन्दोलनों से गुज़रते हुए हिन्दू धर्म ने एक उदार स्थिति हासिल की है, यह वे मानते थे; लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों के चलते हिन्दू धर्म जिस कट्टरता की ओर बढ़ रहा है, वह ख़तरा भी उनकी निगाह में था। भारतीय संस्कृति की विराट धारा की आन्तरिक जिजीविषा की पहचान उन्हें थी; लेकिन बाज़ार, धर्म, अन्धविश्वास और आर्थिक पिछड़ेपन के घालमेल से बनी गन्दी नाली की मौज़ूदगी भी उन्हें साफ़ दिखाई देती थी।</p>
<p>वे दरअसल तर्क की प्रतिष्ठा चाहते थे, वे चाहते थे कि कोई भी धर्म, कोई भी ईश्वर, कोई भी सम्प्रदाय सवाल करने की उस मूल मानवीय शक्ति ऊपर न हो जिसके बल पर मनुष्य जाति वहाँ पहुँची है जहाँ आज वह है।</p>
<p>इस पुस्तक में उनके समय-समय पर लिखे आलेख संकलित हैं। गीतेश जी बहुत ज़्यादा और लगातार लिखनेवाले लेखकों में नहीं थे। जो भी उन्होंने लिखा वह भीतर के गहरे दबाव पर लिखा। इसलिए भी ये आलेख और ज़्यादा पठनीय हो जाते हैं और इसलिए भी कि इनमें जो चिन्ताएँ ज़ाहिर हुई हैं, वे आज की राजनैतिक-सामाजिक स्थितियों में निर्णायक अहमियत रखती हैं।
ISBN: 9788126730117
Pages: 100
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: झारखण्ड एक सांस्कृतिक-सामाजिक अवधारणा है। आन्दोलन के दीर्घकालिक इतिहास ने इसे विशिष्ट पहचान दी है। देशज सृजन एवं विचारों के सपने। जिन्दगी की सादगी। व्यवहार की सरलता। जिस तरह झरने पहाड़ों-जंगलों में गुनगुनाते हैं, उसी तरह झारखंडी आकांक्षाएँ प्राकृतिक साहचर्य का जीवन्त संवाद प्रेषित करती हैं। झारखंडी दिसुम की मुक्तिगाथा इन्हीं बोधों का दस्तावेज है। मानवीय सम्मान, देशज जनज्ञान और स्वशासन की अपराजेय चेतना झारखंड का मूल स्वर हैं। झारखण्ड स्त्री-पुरुष समानता, स्वशासी ग्राम-परम्परा, सामुदायिक जीवन, सम्पत्ति पर सामूहिक हक और सर्वानुमति मूलक जनतंत्र का जीवन्त जनबोध है। मानवीय सरोकारों की आदिम चेतना निरन्तर गतिशील व नवीनीकरण की प्रक्रिया से गुजरती भावी दुनिया के लिए अनेक उपहारों को सँजोए है और इनसे संघर्ष और निर्माण की दोहरी प्रक्रिया स्वाभाविक जीवन बनकर उभरती है। झारखण्ड प्रतिरोध संस्कृति का वह दिसुम (इलाका) है, जहाँ अस्मिता एवं स्वशासन एक गम्भीर विमर्श के रूप में सामूहिक चेतना का अभिन्न हिस्सा हैं। रचनात्मकता का एक नया क्षितिज दिखता है। श्रम की प्रतिष्ठा का अद्भुत केन्द्र। इस पुस्तक में झारखंडी दर्शन को व्यापक सन्दर्भ में देखने-समझने की कोशिश की गयी है। आदिवासी संस्कृति के मिथक एवं यथार्थ के विमर्श का विस्तृत फलक यहाँ प्रस्तुत है। समकालीन चुनौतियों एवं संकटों के बीच झारखंडी जनसमाज में अन्तर्निहित देशज विकल्प उम्मीदों से भरे रोशनदान हैं और अद्यतन विमर्श में एक नए अध्याय की तरह उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
Aidu Paise VaradakshiNe
- Author Name:
Vasudhendra
- Book Type:

- Description: ಕತೆಗಾರರೂ, ಬರಹಗಾರರೂ ಆದ ವಸುಧೇಂದ್ರ ಬರೆದಿರುವ ಸುಲಲಿತ ಪ್ರಬಂಧಗಳ ಸಂಕಲನ ಕೃತಿ ’5 ಪೈಸೆ ವರದಕ್ಷಿಣೆ’. ಲೇಖಕರ ಬಾಲ್ಯ, ಮತ್ತು ಅವರ ವೃತ್ತಿ ಬದುಕಿನ ಬಗ್ಗೆಯೂ ಇಲ್ಲಿರುವ ಪ್ರಬಂಧಗಳಲ್ಲಿ ಪ್ರಸ್ತಾಪವಿದೆ. ಚುಕ್ಕಿ ಬಾಳೆಯ ಹಣ್ಣನ್ನು ಕಂಡಾಗಲೆಲ್ಲ ಲೇಖಕರನ್ನು ಕಾಡುವ ನೆನವರಿಕೆ, ವಾರಣಾಸಿಯಲ್ಲಿನ ಪ್ರವಾಸಾನುಭವ, ಚಾರಣಕ್ಕೆ ಹೊರಡುವವರ ಪೀಕಲಾಟ ಹೀಗೆ, ಎಲ್ಲ ನಮೂನೆಯ ವಿಷಯಗಳ ಕುರಿತಾದ ಬರಹಗಳಿವೆ. ಮಹಾಭಾರತದಲ್ಲಿನ ಒಳಸುಳಿಗಳನ್ನು ಬಿಚ್ಚಿಡುವ ಪ್ರಯತ್ನವೂ ಕೆಲ ಪ್ರಬಂಧ ಬರಹಗಳಲ್ಲಿ ನವಿರಾಗಿ ಸಾಗಿದೆ.
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