Bahas Ke Muddey

Bahas Ke Muddey

Language:

Hindi

Pages:

161

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

322 mins

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Book Description

इस पुस्तक में आजकल चल रहे बहस के मुद्दों पर लेख संकलित है। ये मुद्दे लम्बे समय से बने रहे हैं, किन्तु केन्द्र में अभी आए हैं। 2014 से पहले राजनीति पर समाज हावी रहता था, उसके बाद समाज पर राजनीति हावी हो गई है। इसका आरम्भ आपातकाल के दौरान ही हो गया था पर वर्चस्व अब बना है। जब समाज हावी था, तब समाजवाद निश्चित अर्थव्यवस्था, धर्मनिरपेक्षता, समानता, स्वतंत्रता, दलितवाद, पिछड़ावाद, आदिवासी विमर्श, स्त्रीवाद आदि का बोलबाला था। (इसमें आदिवासी विमर्श का पूरा विकास नहीं हो पाया था, अब हो रहा है।) अयोध्या की घटना के बाद सांस्कृतिक राष्ट्रवाद आया और उससे जुड़े तमाम दीगर मुद्दे। अब माना जाने लगा है कि कोई एक बात वर्चस्व बनाकर चल सकती है तो वह है ‘हिन्दुत्व’। उसके लिए निर्वचन और उत्तर सत्य का सहारा लिया जा रहा है। भुला दिया जा रहा है कि इस बहुलता वाले देश में कोई बात देशकाल-परिस्थिति के अनुसार प्रमुख तो हो सकती है, ‘डॉमिनेंट’ नहीं।</p> <p>इधर सरकार बदलने के बाद जो बहस के मुद्दे पीछे चले गए थे, वे फिर केन्द्र में आ गए हैं और कुछ नए मुद्दे उभर आए हैं। ऐसे ही नौ मुद्दे, जैसे हिन्दुइज्म, हिन्दुत्व, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, सामाजिक अभियंत्रण, उत्तर सत्य का प्रभाव, विकास का गुजरात मॉडल, जनजातीय विमर्श का आधार वग़ैरह की चर्चा इस पुस्तक में है। वहाँ जो तर्क-वितर्क  रखे गए हैं, वे पाठकों को प्रबुद्ध तो करेंगे ही, अपना पक्ष चुनने में भी मदद करेंगे। उम्मीद है, यह पुस्तक प्रबुद्ध और सामान्य दोनों ही तरह के पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

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