1000 Paryavaran Prashnottari
Author:
Dilip M. SalwiPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Available
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ISBN: 9788177213409
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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चिन्तन और कर्म की एकता पर बल देनेवाले चिन्तन को रवीन्द्रनाथ ठाकुर और महर्षि अरविंद ने नए आयाम दिए तो गांधी का दर्शन निकला ही कर्म से। महात्मा के दर्शन ने समकालीन दुनिया को प्रभावित किया। सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने भारतीय दर्शन परम्परा को और माँजने का प्रयास किया। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए डॉ. नरवणे कुमारस्वामी और इक़बाल की चिन्तनधारा तक आते हैं।
डॉ. नरवणे की पद्धति सिर्फ़ चिन्तनपरक लेखन या कथन के विश्लेषण तक सीमित नहीं रहती। पिछले डेढ़ सौ वर्षों में भारतीय मानस को प्रभावित करनेवाले चिन्तकों की जीवनियों, उनके साहसपूर्ण संघर्षों और दुर्गम यात्राओं के विवरण तक का उपयोग स्रोत सामग्री के रूप में किया गया है।
महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, रामकृष्ण और विवेकानंद जैसे चिन्तक पाश्चात्य चिन्तनधारा के समक्ष हीनभाव से नतमस्तक नहीं होते। वे अपने विश्वासों, आस्थाओं, भावनाओं या अविश्वास के लिए लज्जित नहीं होते। वहीं उनमें पाश्चात्य दर्शन के प्रति उपेक्षा भाव भी नहीं है। भारतीय चिन्तनधारा में इतिहास ही नहीं, भूगोल विशेषकर हिमालय, समुद्र और सदानीरा नदियों के योगदान का पता भी इस पुस्तक से चलता है।
कला और संगीत पर कम, पर साहित्य-चिन्तन पर अनेक उच्चस्तरीय कृतियाँ हैं पर उन आधुनिक चिन्तनधाराओं के अध्ययन का सार्थक प्रयास नहीं दीखता जिनके ऊपर हमारी सांस्कृतिक प्रगति टिकी हुई है। यह शायद इसलिए कि चिन्तन का विवेचन करना अत्यन्त कठिन काम है।
इस चुनौती का वरण डॉ. नरवणे ने किया है। वे आधुनिक भारतीय चिन्तन की बारीकियों और गुत्थियों को सुलझाने में कामयाब हुए हैं।
इस पुस्तक को न केवल भारतीय बौद्धिकता बल्कि दुनिया-भर के विद्वानों की सराहना मिली है। अरसे से अनुपलब्ध इस बहुचर्चित पुस्तक के प्रकाशन का अपना विशेष महत्त्व है।
Footprints of Jagadev Ramji
- Author Name:
Vanvasi Kalyan
- Book Type:

- Description: The observations of Jagdev Ram ji encircle the Hindu philosophy along with academic research and study of contemporary social currents. He emphatically proclaimed that the soul of ‘Janjati’ way of life is intrinsically connected to the Hindu way of life. He dedicated his life for the emancipation of the janjati society and his teachings serve as guidance towards adoption of ethical practices to lead better lives.
Monasticism and Devotion to God
- Author Name:
Suhail Ahmad Farooqi +1
- Rating:
- Book Type:

- Description: Tanqidi aur Taqaabuli Mutaalena is the first of its kind in Urdu Language where tasawwuf and bhakti have been dealt with simultaneously, and that too in the real perspective of both trends. It reveals, in nutshell, that there may be apparent similsarities among tasawwuf , mysticism or surrealism and bhakti but they all have different concepts or no concept of God. Therefore, they are not one and the same indeed. However, all the three spritual courses emphasize on benevolence and doing good to humanity and rendering service Tanqidi aur Taqaabuli Mutaalena is the first of its kind in the Urdu language where tasawwuf and bhakti have been dealt with simultaneously, and that too in the real perspective of both trends. It reveals, in a nutshell, that there may be apparent similarities among tasawwuf, mysticism or surrealism, and bhakti, but they all have different concepts or no concept of God. Therefore, they are not the same, indeed. However, all three spiritual courses emphasise benevolence doing good to humanity and rendering service to the creatures of God. An attempt has also been made to find out the similarities and differences between the oneness of God (Tauheed) and Vedic monotheism on one hand and wahdatulwujud (unit of existence) and wahdatushshuhud (unity of divine manifestation) on the other, to the creatures of God. An attempt has also been made to find out similarities and differences between the oneness of God (Tauheed) and Vedic monotheism on one hand and wahadatulwujud (unit of existence) and wahdatushshuhud (unity of divine manifestation) on the other.
Rahbari Ke Sawal
- Author Name:
Chandrashekhar
- Book Type:

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Description:
‘रहबरी के सवाल’ में चन्द्रशेखर के ही शब्दों में उनके जीवन के कुछ प्रमुख पड़ावों और विचार-बिदुओं को नए सन्दर्भों में नए सिरे से प्रस्तुत किया गया है। चन्द्रशेखर का जीवन मूलत: एक भारतीय किसान का जीवन था जिसमें कोई दुराव-छिपाव नहीं। राजनीति के शिखर व्यक्तित्व होते हुए भी वे किसी भी विषय पर बिना लाग-लपेट के और दो टूक बोलते थे। यह भी भारतीय किसान का ही स्वभाव है। चन्द्रशेखर के व्यक्तित्व को समझने में यह अवधारणा बहुत मदद देती है। वे जिस विषय पर बोलते थे, उनके विचारों के केन्द्र में भारतीय समाज की परिस्थितियाँ और समाजवादी लोकतांत्रिक मूल्य प्रमुख रूप से दिखाई देते थे। अपनी वैचारिक दृढ़ता के कारण ही वे उथल-पुथल भरे राजनैतिक झंझावातों के बीच आज भी एक जलती मशाल की तरह दृष्टिगत होते हैं।
इस पुस्तक के छह खंडों के नाम हैं : ‘राजनीति के सोपान’, ‘चौदहवीं लोकसभा और संसदीय प्रणाली’, ‘यक्ष प्रश्न’, ‘नज़रिया’, ‘अन्तरंग’ तथा ‘अनुलग्नक’। इन अध्यायों में उन प्रसंगों पर विस्तृत बातचीत की गई है जो आज के सन्दर्भ में भी जीवन्त हैं। चन्द्रशेखर का जीवन एक कभी न रुकनेवाला यायावर का जीवन था। इसमें कहीं ठहराव नहीं। यही वजह है कि उनका व्यक्तित्व उनके किसी भी समकालीन राजनैतिक व्यक्तित्व की तुलना में अधिक गतिशील दिखता है। इस पुस्तक में सार्थक और जीवन्त प्रश्नों के सहारे चन्द्रशेखर के अद्यतन वैचारिक चिन्तन और निष्कर्षों को दर्ज करने का ऐतिहासिक प्रयास किया गया है। ये विचार हमें आत्ममंथन के लिए तो प्रेरित करते ही हैं, भूमंडलीकरण के शोर में अपनी खोती हुई अस्मिता को बचाने के लिए नई शक्ति से भरते भी हैं। यही वजह है कि यह पुस्तक निराशा के राष्ट्रव्यापी माहौल में नई व्यवस्था बनाने के लिए एक सार्थक हस्तक्षेप की तरह है।
Sanskriti Sangam
- Author Name:
Acharya Kshiti Mohan Sen
- Book Type:

- Description: इस पुस्तक में आचार्य क्षितिमोहन सेन के अद्भुत पाण्डित्य और तीक्ष्ण दृष्टि के साथ मानव-प्रेम और सहज भाव का परिचय मिलता है। पुस्तक में केवल शुद्ध पाण्डित्य की ज्ञान-चर्चा नहीं हैं, इसमें 'मनुष्य' के प्रति आचार्य सेन के अटूट विश्वास और दृढ़ निष्ठा का परिचय मिलता है। साथ ही अपने देश की उस महती प्रतिभा का साक्षात्कार पायेंगे जो विषम परिस्थितियों में अपना रास्ता निकाल लेती है और अनैक्य के भीतर ऐक्य का सन्देश खोज लेती है। पुराने युग से कितनी ही मानव-मण्डलियाँ इस देश में अपने आचार-विचारों और संस्कारों को लेकर आयी हैं, कुछ देर तक एक-दूसरे के प्रति शंकालु भी रही हैं पर अन्त तक भारतीय प्रतिभा ने नानात्व के भीतर से ऐक्य-सूत्र खोज निकाला है। सन्तों-महात्माओं की सहज दृष्टि प्रत्येक युग में बाह्य जंजाल के नीचे गुप्त रूप से प्रवहमान् प्राणधारा का सन्धान पाती रही है।
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