Parstree
Author:
Bimal MitraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Contemporary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Unavailable
प्रख्यात बांग्ला कथाकार विमल मित्र का यह उपन्यास एक ऐसे आदर्शवादी युवक की कहानी है, जो अपने जीवन में कुछ महान कार्य कर दिखाने की आकांक्षा रखता है, लेकिन कई अप्रत्याशित घटनाएँ उसे कुछ और ही बना देती हैं, जिसकी ख़ुद उसने या किसी ने भी कल्पना नहीं की थी। घटनाचक्र में पड़कर वह कई मोड़ों से गुज़रता है, और अन्त में जब वह इच्छित पथ पा लेता है तो उसे बोध होता है कि जीवन की वास्तविकता क्या है। इस क्रम में उसे जीवन के अनेक रूप देखने को मिलते हैं तथा बहुत कुछ बलिदान भी करना पड़ता है। विकृतियों का चरम भोग भोगते हुए उसने कीचड़ में कमल की तरह खिलते सुकृतियों के स्वरूप भी देखे। पात्र और घटनाएँ उपन्यास में इस तरह गुँथे हुए हैं कि सहसा यह कह पाना मुश्किल होगा कि इस उपन्यास की कथा-वस्तु चरित्र द्वारा अनुशासित है अथवा घटनाओं द्वारा। एक की जीवन्तता और दूसरे की सहजता ने कथा को लयात्मक गति व विस्तार दिया है।
‘परस्त्री’ की एक विशेषता यह भी है कि इसकी कथा समकालीन सामाजिक जीवन की पृष्ठभूमि में आगे बढ़ती है। यह व्यक्ति के अन्तर्मन के रहस्यों को नहीं, बल्कि सामाजिक जीवन के यथार्थ को उजागर करती है। सिर से पाँव तक भ्रष्टाचार में डूबे व्यवस्था-तंत्र और उससे त्राण पाने के लिए छटपटाते सामान्यजन की वेदना का अत्यन्त सजीव चित्रण इस उपन्यास में हुआ है।
ISBN: 9788193969205
Pages: 331
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: Two brothers bound by tragedy. A fiercely brilliant woman haunted by her past. A country torn by revolution. A love that lasts long past death. This extraordinary, emotionally riveting new novel, set in India and America, expands the scope and range of one of our most beloved storytellers: the Pulitzer Prize-winning, #1 New York Times best-selling author of Interpreter of Maladies and Unaccustomed Earth. Born just fifteen months apart, Subhash and Udayan Mitra are inseparable brothers, one often mistaken for the other in the Calcutta neighborhood where they grow up. But they are also opposites, with gravely different futures ahead. It is the 1960s, and Udayan-charismatic and impulsive-finds himself drawn to the Naxalite movement: he will give everything, risk all, for what he believes. Subhash, the dutiful son, does not share his brother’s political passion; he leaves home to pursue a life of scientific research in a quiet, coastal corner of America. But when Subhash learns what happened to his brother in the lowland outside their family’s home, he comes back to India, hoping to pick up the pieces of a shattered family, and to heal the wounds Udayan left behind-including those seared in the heart of his brother’s wife. Suspenseful, sweeping, piercingly intimate, The Lowland is a masterly novel of fate and will, exile and return. Shifting among the points of view of a wide range of richly drawn characters, it is at once a page-turner and a work of great beauty and complex emotion; an engrossing family saga with very high stakes; and a story steeped in history that seamlessly spans generations and geographies. A tour de force and an instant classic, this is Jhumpa Lahiri at the height of her considerable powers.
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