Kawale and Manas
Author:
Uttam KamblePublisher:
Manovikas Prakashan LLPLanguage:
MarathiCategory:
Contemporary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
कावळे आणि माणसं...
एक जमिनीवरून चालणारा आणि
हवेत उडणारा पक्षी तर
दुसरा जमिनीवरून चालणारा आणि
कल्पनेचे पंख घेऊन उडणारा...
दोघांचं भौतिक जग
भिन्न वाटत असलं तरी
मानसिक जग जवळपास जाणारं...
काही वेळा कावळे
माणसासारखं वागतात तर
माणसं कावळ्यासारखं...
कावळा माणसाचा बाप बनतो
पण माणूस कावळ्याचा बाप नाही बनत...
ज्या माणसाच्या सहवासात कावळा राहतो
त्याचे गुण-दुर्गुण उचलतो...
कधी कधी कावळा
माणसापेक्षा शहाणा होतो
तर कधी कधी असहाय्य माणूस
कावळ्यासमोर हात जोडतो...
कावळे, माणसं आणि स्मशान
यांना शब्दात पकडण्याचा
हा एक प्रयत्न...
Kawale and Manas : Uttam Kamble
कावळे आणि माणसं : उत्तम कांबळे
ISBN: 9789383850945
Pages: 184
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: आज बाज़ार के दबाव और सूचना-संचार माध्यमों के फैलाव ने राजनीति, समाज और परिवार का चरित्र पूरी तरह बदल डाला है, मगर पितृसत्ता का पूर्वग्रह और स्त्री को देखने का उसका नज़रिया नहीं बदला है, जो एक तरफ़ स्त्री की देह को ललचाई नज़रों से घूरता है, तो दूसरी तरफ़ उससे कठोर यौन-शुचिता की अपेक्षा भी रखता है। पितृसत्ता का चरित्र वही है। हाँ, समाज में बड़े पैमाने पर सक्रिय और आत्मनिर्भर होती स्त्री की स्वतंत्र चेतना पर अंकुश लगाने के उसके हथकंडे ज़रूर बदले हैं। मगर ख़ुशी की बात यह है कि इसके बरक्स बड़े पैमाने पर आत्मनिर्भर होती स्त्रियों ने अब इस व्यवस्था से निबटने की रणनीति अपने-अपने स्तर पर तय करनी शुरू कर दी है। आख़िर कब तक स्त्रियाँ ऐसे समय और नैतिकता की बाट जोहती रहेंगी जब उन्हें स्वतंत्र और सम्मानित इकाई के रूप में स्वीकार किया जाएगा? क्या यह वाकई ज़रूरी है कि स्त्रियाँ पुरुषों के साहचर्य को तलाशती रहें? क्यों स्त्री की प्राथमिकताओं में नई नैतिकता को जगह नहीं मिलनी चाहिए? इस पुस्तक में साहित्य, पत्रकारिता, थिएटर, समाज-सेवा और कला-जगत की ऐसी ही कुछ प्रबुद्ध स्त्रियों ने पितृसत्ता द्वारा रची गई छद्म नैतिकता पर गहराई और गम्भीरता से चिन्तन किया है और स्त्री-मुक्ति के रास्तों की तलाश की है। प्रभा खेतान कहती हैं, ‘नारीवाद, राजनीति से सम्बन्धित नैतिक सिद्धान्तों को पहचानना होगा, ताकि सेवा जैसा नैतिक गुण राजनीतिक रूपान्तरण का आधार बन सके।’
Phoolsunghi
- Author Name:
Gautam Choubey
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- Description: ‘Babu Sahib! You must have heard of a phoolsunghi—the flower-pecker—yes? It can never be held captive in a cage. It sucks nectar from a flower and then flies on to the next.’ When Dhelabai, the most popular tawaif of Muzaffarpur, slights Babu Haliwant Sahay, a powerful zamindar from Chappra, he resolves to build a cage that would trap her forever. Thus, the elusive phoolsunghi is trapped within the four walls of the Red Mansion. Forgetting the past, Dhelabai begins a new life of luxury, comfort, and respect. One day, she hears the soulful voice of Mahendra Misir and loses her heart to him. Mahendra too, feels for her deeply, but the lovers must bear the brunt of circumstances and their own actions which repeatedly pull them apart. The first ever translation of a Bhojpuri novel into English, Phoolsunghi transports readers to a forgotten world filled with mujras and mehfils, court cases and counterfeit currency, and the crashing waves of the River Saryu.
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