Seven Summers: A Memoir
Author:
Mulk Raj AnandPublisher:
Penguin IndiaLanguage:
EnglishCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 248.17
₹
299
Available
Seven Summers, first drafted when Mulk Raj anand was a student at London University but not published till 1951, recreates teh events and feelings of the first seven years of the writer’s life, or what he called his ‘half unconcious and half conscious childhood’. first of the seven volumes of autobiographical fiction that Anand conceptualized but never completed, this book is full of memorable scenes and people observed through the eyes of a child. the most impressive of them all being the Coronation Durbar in Delhi to which our young hero is smuggled wrapped in a blanket so that the Sahibs might not object to the presence of ‘so discordant an element into so gorgeous a ceremony’. this edition of Seven Summers is a special reissue of the classic autobiography to commemorate Anand’s birth centenary.
ISBN: 9780144000180
Pages: 256
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: यह किताब उस दिन से शुरू होती है जब 1940 में ‘पाकिस्तान प्रस्ताव' पास किया गया था। तब मैं स्कूल का एक छात्र मात्र था, लेकिन लाहौर के उस अधिवेशन में मौजूद था जहाँ यह ऐतिहासिक घटना घटी थी। यह किताब इस तरह की बहुत-सी घटनाओं की अन्दरूनी जानकारी दे सकती है, जो किसी और तरीक़े से सामने नहीं आ सकती—बँटवारे से लेकर मनमोहन सिंह की सरकार तक। अगर मुझे अपनी ज़िन्दगी का कोई अहम मोड़ चुनना हो तो मैं इमरजेंसी के दौरान अपनी हिरासत को ऐसे ही एक मोड़ के रूप में देखना चाहूँगा, जब मेरी निर्दोषिता को हमले का शिकार होना पड़ा था। यही यह समय था जब मुझे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के हनन का अहसास होना शुरू हुआ। साथ ही, व्यवस्था में मेरी आस्था को भी गहरा झटका लगा था। पाकिस्तान और बांग्लादेश में बहुत-से लोगों के साथ मेरे व्यक्तिगत सम्बन्ध हैं और मुझे इन सम्बन्धों पर गर्व है। मेरा विश्वास है कि किसी दिन दक्षिण एशिया के सभी देश यूरोपीय संघ की तरह अपना एक साझा संघ बनाएँगे। इससे उनकी अलग-अलग पहचान पर कोई असर नहीं पड़ेगा। मैं पूरी ईमानदारी से कह सकता हूँ कि नाकामयाबियाँ मुझे उस रास्ते पर चलने से रोक नहीं पाई हैं जिसे मैं सही मानता रहा हूँ और लड़ने लायक़ मानता रहा हूँ। ज़िन्दगी एक लगातार बहती अन्तहीन नदी की तरह है, बाधाओं का सामना करती हुई, उन्हें परे धकेलती हुई, और कभी-कभी ऐसा न कर पाते हुए भी। यह बता पाना बस से बाहर है कि पिछले आठ दशकों से कौन सी चीज़ मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रही है—नियति या संकल्प? या ये दोनों ही? आख़िर तमाशा जारी रहना चाहिए। मैं इस मामले में महान उर्दू शायर ग़ालिब से पूरी तरह सहमत हूँ—शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक। —भूमिका से
Man Sarjan
- Author Name:
Dr. Anil Gandhi
- Book Type:

- Description: अज्ञान का, ग़रीबी का, बीमारियों का, अंधश्रद्धा का, सामाजिक विषमता का, एक-दूसरे पर अविश्वास का अंधकार हमारे समाज से दूर कर ज्ञान का, समृद्धि का, सत्श्रद्धा का, एक-दूसरे पर विश्वास का प्रकाश यदि चाहिए तो ऐसे सत्चरित्र व्यक्ति का निर्माण कैसे हुआ, इसका चित्रण सबके सामने आना चाहिए। बुद्धिमानी, निरन्तर मेहनत करने की तैयारी, दूसरों की ज़रूरतों का अहसास, त्याग करने की मनोवृत्ति, सादे जीवन का महत्त्व जानना, सत् सीखने की प्रवृत्ति होना ऐसे अनेक पहलू, जिनके व्यक्तित्व पर नज़र डालने पर दृष्टिगोचर होते हैं, उनमें डॉ. अनिल गांधी ‘कनिष्ठिकाधिष्ठित’ हैं। उन्हें जिन कठिनाइयों से रास्ता निकालना पड़ा, उनका इस पुस्तक में उन्होंने ईमानदारी से वर्णन किया है। अपने पिता और सगे भाई के गुण-दोष का वर्णन करते समय भी उन्होंने सच्चाई का दामन नहीं छोड़ा। अपने गुरुजनों के बारे में आदर भाव में कमी न आने देते हुए उनका योग्य मूल्यमापन किया है। डॉ. अनिल गांधी द्वारा लिखित इस पुस्तक की विशेषता है, विषय-विविधता। सामाजिक कार्यों के लिए उनकी छटपटाहट, निष्ठा, कौशल्य के साथ व्यावसायिक सिद्धान्त, जीवन में व्यावहारिक बातों में सामर्थ्य कैसे प्राप्त करें, इस सम्बन्ध में उनके द्वारा किया गया अमूल्य मार्गदर्शन महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त पारिवारिक सन्दर्भ में अपने बच्चों की प्रतिभा पहचान कर उन्हें उनके ‘आकाश’ का यानी उनकी सामर्थ्य का अहसास करा देना, मुझे विशेष लगता है। इतना ही नहीं, उन्हें संस्कृति के बारे में जो गर्व है, वह भी कौतुकास्पद है। पृथ्वी-प्रकृति इन सभी के बारे में कुतूहल लगनेवाले विषयों पर उन्होंने अध्ययनपूर्ण और सरल भाषा में जो लिखा है, वह मुझे बहुत अच्छा लगा।
Bandhan: The Making Of A Bank
- Author Name:
Tamal Bandyopadhyay
- Rating:
- Book Type:

- Description: This is the story of Bandhan, the only bank that emerged in eastern India after Independence. Founded by the son of a sweet vendor, with a mere Rs 2 lakh, the sum total of his life savings. On 17 June, 2015, Chandra Shekhar Ghosh stepped out of the Reserve Bank of India building in Mumbai with the much-coveted banking licence, beating some of the country’s top corporate houses. This moment compensated for all the frustrations that had come along the way. A year later, Bandhan Bank was launched with 6.7 million small borrowers. So, how did Ghosh build India’s biggest MFI from scratch and then, along with his team, transform it into a universal bank? Bandhan: The Making of a Bank chronicles that journey. This is also Ghosh’s personal story-of a boy growing up in small-town Agartala struggling with poverty, but relentless in his ambition to make it big. He battles competition, hostile moneylenders, a tough economic climate and the perpetual lack of resources. Nobody in India perhaps knows better than him the psyche of a small borrower and the alchemy of doing business with the poor, profitably. This is one of India’s biggest entrepreneurial stories.
Kranti-Path Ka Pathik : Dastan Bhagat Singh Ki
- Author Name:
Pradeep Garg
- Book Type:

- Description: भगतसिंह की दुर्धर्ष क्रान्तिकारी, महान देशभक्त और शहीद-ए-आज़म की छवि को ही पुस्तकों में अधिकांशतः उभारा गया है। उनके व्यक्तित्व के अनदेखे पहलुओं को उजागर करने तथा उसके जीवन-दर्शन के क्रमिक विकास को पाठकों के सामने प्रस्तुत करना क्रान्ति-पथ का पथक पुस्तक का उद्देश्य है। भारत के नौजवानों में क्रान्ति के प्रति जागृति और कटिबद्धता उत्पन्न करने के उद्देश्य से शहादत देना ही भगतसिंह के जीवन का लक्ष्य था। भगतसिंह के क्रान्तिकारी साथी जयदेव कपूर बताते हैं, ‘भगतसिंह की प्रतिभा बहुमुखी थी। उनको साहित्य, संगीत, गाना, सिनेमा इन सब चीज़ों से लगाव था।’ क्रान्तिकारिणी दुर्गा भाभी, सांडर्स को मारने के बाद पुलिस और सी.आई.डी. की ऐन नाक के नीचे से निकलकर, लाहौर से कलकत्ता भगतसिंह जिनकी मदद से ही जा पाए, कहती हैं, ‘वह सौन्दर्य का उपासक था, कला का प्रेमी था और जीवन के प्रति उसे आसक्ति थी।’ देशहित में वह फाँसी के फन्दे पर झूल गए। देश के लिए आज़ादी हासिल करने का जुनून उनकी बाक़ी सारी चाहतों पर भारी पड़ गया।
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